हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 137 – सजा राम का सरयू तट है ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – सजा राम का सरयू तट है। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 137 – सजल – सजा राम का सरयू तट है… ☆

सजा राम का सरयू तट है।

खड़ा कृष्ण का वंशी वट है।।

*

कौन भला है कौन बुरा अब

सबका मन देखो नटखट है।

*

मानव भूला जिम्मेदारी,

जात-पाँत की कड़वाहट है।

*

नेताओं के बदले तेवर,

सबकी भाषा अब मुँहफट है।

खुला द्वार भ्रष्टाचारों का,

देखो लगा बड़ा जमघट है।

*

धर्म धुरंधर बने सभी अब,

घर-बाहर इनके खटपट है।

*

आतंकी घुसपैठी करते,

यही समस्या बड़ी विकट है।

*

हाथों में आया मोबाइल,

मेल-जोल का अब झंझट है।

*

कलम उठा कर लिखता कविता

मेरे मन की अकुलाहट है।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुप्पी – 28 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  चुप्पी – 28 ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

उच्चरित शब्द

अभिदा है,

शब्द की

सीमाएँ हैं

संज्ञाएँ हैं

आशंकाएँ हैं,

चुप्पी

व्यंजना है,

चुप्पी की

दृष्टि है

सृष्टि है

संभावनाएँ हैं!

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 10:44 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही देंगे  🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ माँ !! ☆ श्री आशीष गौड़ ☆

श्री आशीष गौड़

सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री आशीष गौड़ जी का साहित्यिक परिचय श्री आशीष जी के  ही शब्दों में “मुझे हिंदी साहित्य, हिंदी कविता और अंग्रेजी साहित्य पढ़ने का शौक है। मेरी पढ़ने की रुचि भारतीय और वैश्विक इतिहास, साहित्य और सिनेमा में है। मैं हिंदी कविता और हिंदी लघु कथाएँ लिखता हूँ। मैं अपने ब्लॉग से जुड़ा हुआ हूँ जहाँ मैं विभिन्न विषयों पर अपने हिंदी और अंग्रेजी निबंध और कविताएं रिकॉर्ड करता हूँ। मैंने 2019 में हिंदी कविता पर अपनी पहली और एकमात्र पुस्तक सर्द शब सुलगते  ख़्वाब प्रकाशित की है। आप मुझे प्रतिलिपि और कविशाला की वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं। मैंने हाल ही में पॉडकास्ट करना भी शुरू किया है। आप मुझे मेरे इंस्टाग्राम हैंडल पर भी फॉलो कर सकते हैं।”

आज प्रस्तुत है एक विचारणीय एवं हृदयस्पर्शी कविता माँ !!

☆ कविता ☆ माँ !! ☆ श्री आशीष गौड़ ☆

मुझे बचपन का बहुत कुछ याद नहीं पड़ता।

उस पल का तो कुछ भी नहीं, जब मैं गर्भ में था ॥

 

कष्ट, डर, भूख और याद

अनुभूति की इन्ही विधाओं से मैंने तुम्हें पहली बार जाना था।

 

कुछ और पलों को, मैंने संभावनाओं और आकांक्षाओं वाले कमरे में जिए।

उसी कमरे के दाहिने वाले दरवाज़े से बाहर सड़क शहर जाती थी ॥

 

कुछ कुछ याद है, तब का जब मैं पहली बार घर छोड़ रहा था।

याद नहीं की मैंने पूछा नहीं या तुमने बताया नहीं, की अब घर छूट रहा था ॥

 

विस्थापन सदा सुखद नहीं रहते।

नहीं याद मुझे की मेरे जाने के बाद, तुमने मुझे कितने पलों तक वहीं से देखा था ॥

 

वही मुँडेर जहाँ से मैं कूद नहीं पाता था, उसी को लांघते देख तुमने मुझे विदा किया था ॥

 

 – २ –

 

अनंत में शून्य से इस शहर में,

इकाई से शुरू हुए जीवन में,

टाइम मशीन मेरे साल निगलती रही ॥

 

तुम आती रही, जब जब मैंने बुलाया।

तब भी, जब जब तुम्हें आना था ॥

 

माँ तुम्हारे सुनहरे होते बालों में

एक आज, मुझे दो कल सा प्रतीत होता था ॥

 

मेरे बच्चों को बड़ा किया

पर मैं ना देख पाया बचपन उनका, जैसे नहीं जानता था मैं बचपन मेरा ॥

 

मैंने नहीं देखे मेरे खिलौने

जैसे नहीं देखी, मैंने तुम्हारी भी डिग्रियाँ ॥

 

मेरे जीवन की त्रासदी यह होगी, कि मैं तुम्हें बूढ़ा होते देख रहा हूँ।

जैसे इस सभ्यता की एक त्रासदी यह,

कि  गाँव से विस्थापन ने, माँ को गाँव और बेटों को शहर कर दिया ॥

 

अब जब तुम यहाँ नहीं होती

तब भी रहती हो तुम थोड़ा थोड़ा,गाँव से लाए गए बर्तन बिस्तरों में।

दिखती हो तुम हमेशा, दीवार पर टंगी मेरा बचपन ढोती तस्वीरों में ॥

 

©  श्री आशीष गौड़

वर्डप्रेसब्लॉग : https://ashishinkblog.wordpress.com

पॉडकास्ट हैंडल :  https://open.spotify.com/show/6lgLeVQ995MoLPbvT8SvCE

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 14 – नवगीत – माँ शारदा वंदन… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत –माँ शारदा वंदन

? रचना संसार # 13 – नवगीत – माँ शारदा वंदन…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

हे शारदे करुणामयी माँ,भक्त को पहचान दो।

श्वेतांबरा ममतामयी माँ,श्रीप्रदा हो ध्यान दो।।

गूँजे मधुर वाणी जगत में,वल्लकी बजती रहे।

कामायनी माँ चंद्रिका सुर,रागिनी सजती रहे।।

वागीश्वरी है याचना भी,भक्त का उद्धार हो।

विद्या मिले आनंद आए,प्रेम की रसधार हो।।

आभार शुभदा है शरण लो,बुद्धि का वरदान दो।

 *

उल्लास दो नव आस दो प्रिय,ज्ञान की गंगा बहे।

चिंतन मनन हो भारती का,लेखनी चलती रहे।।

मैं छंद दोहे गीत लिख दूँ,नव सृजन भंडार हो।

आकाश अनुपम गद्य का हो,प्रार्थना स्वीकार हो।।

भवतारिणी तम दूर हो सब,नित नवल सम्मान दो।

 *

तुम प्रेरणा संवाहिका हो,चेतना संसार की।

वासंतिका हो ज्ञान की माँ,पद्य के शृंगार की।।

साहित्य में नवचेतना हो,कामना कल्याण भी।

संजीवनी हिंदी सुजाता,श्रेष्ठ हो मम प्राण भी।।

आलोक प्रतिभा हो धरा की,लक्ष्य का संधान दो।

 *

भामा कहें महिमामयी माँ,प्राणदा भावार्थ हो।

त्रिगुणा निराली साधना हो,भावना परमार्थ हो।।

हर क्षेत्र में साधक सफल हो ,चँहुदिशा जय घोष हो।

विपदा टरे उत्कर्ष हो माँ,ज्ञान संचित कोष हो।।

उत्थान हो इस देश का भी,शांति का परिधान दो।

 

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected][email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #241 ☆ भावना के दोहे – – मेघ ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – मेघ)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 241 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – मेघ ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

घिरे मेघ अब कह रहे,  सुनो गीत मल्हार।

बरसेंगे हम झूम के, नाचेगा संसार।।

**

मेघ गरजते दे रहे, प्यारा सा संदेश।

देखो साजन आ रहे, वापस अपने देश।।

**

रिमझिम रिमझिम आ रही, है वर्षा की  फुहार।

 आ जाओ अब सजन तुम, आया है त्योहार।।

**

मौसम है बरसात का, गिरी कृषक पर गाज।

खेत लबालब हैं भरे , मेघ बरसते आज ।।

**

जगह – जगह पर बाढ़ है,  उजड़ रहे घरबार।

खोज रहे हैं हम सभी , नहीं बचा  परिवार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #223 ☆ एक पूर्णिका – हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 223 ☆

☆ एक पूर्णिका – हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बंद जब उनकी ज़ुबां  होती है

बात  नजरों से  बयां  होती  है

*

मोम  क्या है  वो क्या  समझेंगे

संग-दिल जिनकी अदा होती है

*

तिश्नगी प्यार की बढ़ी इस कदर

लरजते  होठों  से अयां  होती है

*

सुकूं  रूह को  मिले  जो प्यार  में

तनवीर    ऐसी   कहाँ   होती   है

*

याद   उनकी  लाती  है  बे- सुधी

देख  उनको  उम्मीदें जवां होती हैं

*

हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी

पर तकदीर सभी की जुदा होती है

*

“संतोष” प्यार में खोए हैं इस तरह

न आग लगती है, न धुआँ  होती है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पर्यायवाची ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पर्यायवाची ? ?

कितना ही डराओ,

दबाओ, कुचलो,

मारो, पीटो, वध करो,

बार-बार संघर्ष करते हो,

हर बार उठ खड़े होते हो,

तुम पर क्या

मृत्यु का असर नहीं होता?

मैं हँस पड़ा,

मात्र शरीर नश्वर होता है,

पर शब्द ईश्वर होता है..,

सुनो,

अशेष का पर्यायवाची होता है,

सर्जक, जगत में

आठवाँ चिरंजीवी होता है!

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 5 :05 बजे, 18 जुलाई 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना ज्येष्ठ पूर्णिमा तदनुसार 21 जून से आरम्भ होकर गुरु पूर्णिमा तदनुसार 21 जुलाई तक चलेगी 🕉️

🕉️ इस साधना में  – 💥ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। 💥 मंत्र का जप करना है। साधना के अंतिम सप्ताह में गुरुमंत्र भी जोड़ेंगे 🕉️

💥 ध्यानसाधना एवं आत्म-परिष्कार साधना भी साथ चलेंगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 292 ☆ कविता – सेवा निवृत्ति पर ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 292 ☆

? कविता – सेवा निवृत्ति पर ?

तीस-पैंतीस साल पहले, एक नौजवान,

मिठाई बांट रहा था नौकरी में चयन पर,

मां खुश थी, बहनें हर्षित,

पिता की चिंता थी खत्म हुई।

 

आज वही युवक बन चुका है एक परिपक्व पुरुष,

कुछ खिचड़ी बाल अब वह रखता है,

साथ ब्लड प्रेशर और शुगर की दवाएं,

नौकरी की गाथा पूरी हुई,

पत्नी प्रसन्न हुई,

अब आपका समय सिर्फ मेरा होगा।

 

खूब मेहनत की है आपने,

अब समय है आराम और सुकून का,

घूमना है दुनियां,

अब यादें हैं अनगिनत,

अनुभव हैं अमूल्य,

डायरियां भर भर,

सीखा और जिया है जीवन,

नित नई चुनौतियों की फाइलों के बीच।

 

अब समय है खुद के लिए समय निकालने का,

अपने सपनों को पूरा करने का,

नई उम्मीदों के साथ,

जीवन के नए मुकाम की ओर बढ़ने का,

जीवन के नए अध्याय रचने हैं,

कुछ खुद के लिए,

कुछ परिवार के लिए,

और कुछ समाज के लिए।

 

जुड़ना है अब दोबारा गांव की मिट्टी से,

करने हैं पूरे अपने शौक,

बेरोकटोक जीना है अपने आप के लिए।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 212 ☆ बाल गीत – पुस्तक बाँचें ज्ञान-वान की ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 212 ☆

बाल गीत – पुस्तक बाँचें ज्ञान-वान की  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

चिड़िया बैठी शमी-डाल पर

करती आज सवेरा।

आँख दिखाई चिड़िया ने जब

भागा दूर अँधेरा।।

एक-एक करके बहुतेरी

चिड़ियाँ हैं आईं।

पुस्तक बाँचें ज्ञान-वान की

मन से करें पढ़ाई।

 *

पढ़तीं क,ख,ग,घ,अं,अः,

कोई ठ से पढ़े ठठेरा।।

 *

कोई पढ़ती ए,बी,सी,डी,

पढ़तीं अ , आ , इ , ई।

गणित और विज्ञान पढ़ें सीखें

तकनीकें नई -नई।

 *

कोई पढ़ती बाल पत्रिका

उपवन में उनका डेरा।

 *

शिक्षा से ही ज्योतिर्मय हो

मिटती द्वेष कुरीती।

देश प्रेम जगता है मन में

बढ़े सुमति सँग प्रीती।

 *

अहंकार भी मिट जाता है

मन से तेरा – मेरा।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #238 – कविता – ☆ है उम्मीद अभी भी बाकी… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता है उम्मीद अभी भी बाकी…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #238 ☆

☆ है उम्मीद अभी भी बाकी… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

बीता वक्त साथ में

बीत गए स्वर्णिम पल

मची हुई स्मृतियों में हलचल।

*

शिथिल पंख अनंत इच्छाएँ

कैसे अब उड़ान भर पाएँ

आसपास पसरे बैठे हैं

लगा मुखौटे छल-बल के दल

मची हुई स्मृतियों में हलचल…

*

कल परसों सी रही न बातें

अनजानी सी अंतरघातें

सद्भावी नहरे हैं खाली

हुआ प्रदूषित नदियों का जल

मची हुई स्मृतियों में हलचल…

*

सूरज से थे आँख मिलाते

चंदा से जी भर बतियाते

कैद दीवारों में एकाकी

शेष शून्यमय मन की हलचल

मची हुई स्मृतियों में हलचल…

*

ऋतु बसंत अब भी है आती

होली दिवाली शुभ राखी

परंपरागत करें निर्वहन

पर न प्रेम वह रहा आजकल

मची हुई स्मृतियों में हलचल…

*

है उम्मीद अभी भी बाकी

उदित सूर्य किरणें उषा की

आलोकित होंगे अंतर्मन

होंगे फिर जीवन पथ उज्जवल

मची हुई स्मृतियों में हलचल…

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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