श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – सजा राम का सरयू तट है”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 137 – सजल – सजा राम का सरयू तट है… ☆
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सजा राम का सरयू तट है।
खड़ा कृष्ण का वंशी वट है।।
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कौन भला है कौन बुरा अब
सबका मन देखो नटखट है।
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मानव भूला जिम्मेदारी,
जात-पाँत की कड़वाहट है।
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नेताओं के बदले तेवर,
सबकी भाषा अब मुँहफट है।
खुला द्वार भ्रष्टाचारों का,
देखो लगा बड़ा जमघट है।
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धर्म धुरंधर बने सभी अब,
घर-बाहर इनके खटपट है।
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आतंकी घुसपैठी करते,
यही समस्या बड़ी विकट है।
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हाथों में आया मोबाइल,
मेल-जोल का अब झंझट है।
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कलम उठा कर लिखता कविता
मेरे मन की अकुलाहट है।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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