श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – न करते मुहब्बत तो कुछ गम नहीं…। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 222 ☆
☆ एक पूर्णिका – न करते मुहब्बत तो कुछ गम नहीं… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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हम मिलते रहे जिंदगी की तरह
वो हमसे मिले अजनबी की तरह
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प्यार में संजीदा वो हो नहीं सकते
हम निभाते रहे बंदगी की तरह
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न करते मुहब्बत तो कुछ गम नहीं
पेश आते मगर आदमी की तरह
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उन्हें दोस्ती कबूल न थी ना सही
पर मिला न करें दुश्मनी की तरह
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प्यार क्या है समझ सके न वो कभी
अदा लगती रही मसखरी की तरह
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हम समझते रहे उनको सबसे जुदा
वो निकले मगर हर किसी की तरह
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हमें मंजूर है हम अजनबी ही सही
संतोष मिलते रहो मजहबी की तरह
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
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