(संयोग से इसी जमीन पर इसी दौरान एक और कविता की रचना सुश्री नूतन गुप्ता जी द्वारा “पेंसिल की नोक “ के शीर्षक से रची गई। मुझे आज ये दोनों कवितायें जिनकी अपनी अलग पहचान है, आपसे साझा करने में अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है।
प्रस्तुत है जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी की भावप्रवण कविता ।)
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। वर्तमान में आप जनरल मैनेजर (विद्युत) पद पर पुणे मेट्रो में कार्यरत हैं।)
(डॉ हनीफ का e-abhivyakti में स्वागत है। डॉ हनीफ स प महिला महाविद्यालय, दुमका, झारखण्ड में प्राध्यापक (अंग्रेजी विभाग) हैं । आपके उपन्यास, काव्य संग्रह (हिन्दी/अंग्रेजी) एवं कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।)
गजल
देख तस्वीर उनकी, उनकी याद आ गई
छुपी थी जो तहरीर उनकी,उनकी याद आ गई।
कहते हैं शीशे में कैद है उनकी जुल्फें
दफ़न हुए कफ़न कल की,उनकी याद आ गई।
क़मर छुप गया देख तसव्वुर महक की
खिली धूप में खिली हुई,उनकी याद आ गई।
लम्हें खता कर हो गई गाफिल फिर
आरजू आंखों में लिपटी रही,फ़क़त उनकी याद आ गई।
तन्हाइयों में भी तन्हा साये में खोई सी
दर्द जब इंतहा से गुजरी,उनकी याद आ गई।
खार चुभी जब जिगर में उनके गुजरने की,उनकी याद आ गई।
उनकी यादों के आंचल में हुई परवरिश,क़ज़ा हुई तो उनकी याद आ गई।