हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 127 ☆ हाइकु ☆ ।।नारी… मेरा क्या कसूर।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 127 ☆

हाइकु ☆ ।।नारी… मेरा क्या कसूर।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

आजाद कली

मानवता   क्षरण

वो गई छली।

[2]

वस्तु भोग की

मानसिकता   बनी

आज लोगों की।

[3]

नारी सम्मान

सदा से ही जरूरी

देना ये मान।

[4]

आज मानव

प्रभु क्या हो रहा

बना दानव।

[5]

रावण आज

रावण जिंदा अभी

दुष्कर्म काज।

[6]

नारी अस्मिता

लाज का मोल भूले

यह दुष्टता।

[7]

काम पिपासा

हैवान बना व्यक्ति

मरी है आशा।

[8]

रचनाकार

नारी सृष्टि रचे है

करो स्वीकार।

[9]

ये व्यभिचार

मां पत्नी बेटी देखो

करो विचार।

[10]

नारी बोलती

मेरा   क्या    कसूर

क्यों मैं झेलती।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 191 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत – मोहब्बत… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण गीत  – “मोहब्बत। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 191 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत मोहब्बत ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

मोहब्बत एक पहेली है जो समझाई नहीं जाती ।

है दिल की वह सहेली जो कि जब आई नहीं जाती ।।

*

किसी की याद में मन भूल सब, बेचैन रहता है,

अकेला बात करता, खुद ही सुनता, खुद से कहता है।

कभी अपने में हँसता या कभी खुद चैन खोता है

मगर मन की लगी औरों से बतलाई नहीं जाती ।। १ ।।

*

जलाती तन को फिर भी मन को अक्सर खूब भाती है।  

भुलाने की करो कोशिश तो ज्यादा याद आती है ।

जो अच्छी लगती सबको, पै जमाना जिस पै हँसता है

बढ़ाती ऐसी बेचैनी जो बतलाई नहीं जाती ।। २ ।।

*

सुहानी रोशनी है जिससे दुनियाँ में उजाला है,

मिली जिसको ये सचमुच वो बड़ी तकदीर वाला है।

सभी तो चाहते, पाते मगर कुछ ही हजारों में है

उलझन ऐसी मीठी जो कि सुलझाई नहीं जाती ।। ३ ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 18 – ग़ज़ल – ख़ुदा ख़ैर करे… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम ग़ज़ल – ख़ुदा ख़ैर करे… 

? रचना संसार # 18 – ग़ज़ल – ख़ुदा ख़ैर करे… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

उनकी नज़रें बनीं तलवार ख़ुदा ख़ैर करे

हुस्न के हो गये बीमार ख़ुदा ख़ैर करे

लोग चेहरे पे लगा लेते हैं चेहरा ही नया

झूठ का गर्म है बाज़ार ख़ुदा ख़ैर करे

 *

क़ैद हैं कब से क़फ़स में तेरी उल्फ़त के सनम

अब तो मरने के हैं आसार ख़ुदा ख़ैर  करे

 *

अद्ल-ओ -इंसाफ़ की हमसे न करे बात कोई

बिकते सच के भी हैं दरबार ख़ुदा ख़ैर करे

 *

ख़ुद-ग़रज़ होके किये ज़ुल्म भी क़ुदरत पे बहुत

वक़्त की पड़ने लगी मार ख़ुदा ख़ैर करे

 *

हर तरफ देख बिछीं लाशें ही लाशें मौला

जीना अब हो गया दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे

 *

 ग़ैर होते, तो नहीं रंज जफ़ा का होता

सारे अपने हैं गुनहगार ख़ुदा ख़ैर करे

 *

शे’र कहने का सलीक़ा भी नहीं है जिनको

लब पे उनके भी हैं  अशआर ख़ुदा ख़ैर करे

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected][email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ भीड़ के अभिभावक ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे ☆

डॉ प्रेरणा उबाळे

☆ कविता – भीड़ के अभिभावक ☆  डॉ प्रेरणा उबाळे 

भीड़ में चलते हैं

बहुत अकेले होते हैं

*

जीते सबके खातिर

सोचते कमाते लुटाते

अपनों के खातिर

प्रेम बरसाते

बस सभी के लिए l

*

सादगी कपड़ों में

सहजता बातों में

सरलता आँखों में

निश्चलता व्यवहार में

झरना बहता अखंड।

*

होठों की मुस्कान

छुपाता समंदर गहरा

कर्मठ कर्मरत

अखंड अविरत।

*

मारना पड़ता है

खुदको

भावनाओं को

संभलना पड़ता है

बारंबार l

*

प्राणों पर बन आए

तब भी

जिलाए रखती है जिंदगी

निखरती रहती है जिंदगी।

हो कोई भी क्षेत्र

रहना पड़ता है अडिग

नदी के द्वीप की तरह l

*

भीड़ में चलते हैं

बिल्कुल अकेले होते हैं

कार्य करने वाले –

कार्यकर्ता

अफसर

अध्यापक

नेता

*

हर ईमानदार में है मौजूद

वह अकेला

हर निष्ठावान में है मौजूद

वह अकेला

सबके साथ रहने वाला

है अकेला l

*

भीड़ का अभिभावक होना

नहीं है आसान

लहरें बाधाओं की

करनी पड़ती है पार।

पर

भीड़ साथ हो न हो

पूरे ब्रम्हांड का मिलता है

आशीष और दुलार l

■□■□■

© डॉ प्रेरणा उबाळे

17 अगस्त 2024

सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर,  पुणे ०५

संपर्क – 7028525378 / [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #246 ☆ भावना के दोहे – रक्षा बंधन… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – रक्षा बंधन)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 246 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – रक्षा बंधन☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

रक्षा बंधन प्यार का, प्यारा सा त्योहार।

खुशियां भाई बहिन की, मना रहा संसार।।

भैया घर पर आ रहे, यही बहन की चाह।

धागा राखी का लिए , देख रही है राह।।

 *

लगी द्वार पर टकटकी, देख रही हूँ राह।

राखी का त्योहार है, है बहना को चाह।।

 *

चौमासे की धूम है,  हर दिन है त्यौहार।

संग सखी,  भाई बहन, मिले पिया का प्यार।।

 *

धागा प्यारा लग रहा, है बहन का प्यार।

यह केवल धागा नहीं, रक्षा का त्योहार।।

 *

भाव समाहित हो रहे, मिलता है आशीष।

भाई आदर कर रहा, झुके सदा ही शीष।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #228 ☆ दो मुक्तक… जागरुकता ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है दो मुक्तकजागरुकता आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 228 ☆

☆ दो मुक्तक जागरुकता ☆ श्री संतोष नेमा ☆

(संस्कारधानी जबलपुर पर आधारित)

दवाओं   में   लूट   बहुत   है

प्रशासन   की  छूट  बहुत  है

जनप्रतिनिधि जाग कर सोते

नेताओं   में   फूट   बहुत   है

*

शहर  के लिए एक हो जाओ

करो  विकास  नेक हो जाओ

जबलपुर  का मान रखो  सब

जागरूक  प्रत्येक  हो  जाओ

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ भारत देश… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह,  एक उपन्यास (फिर एक नयी सुबह) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आपका उपन्यास “औरत तेरी यही कहानी” शीघ्र प्रकाश्य। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता भारत देश … ।)  

☆ कविता भारत देश… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

आज फिर लिखने बैठी…

हिन्दोस्तान की गाथा…

तिरंगा नहीं मात्र तीन रंग,

शक्ति है भारत देश की,

स्वाभिमान है देश का,

यह प्रतीक है आज़ादी का,

बड़ी निराली यह कहानी,

सुनो! लोगों हमारे भारत की कथा,

अरे! यहाँ पर बसते हर धर्म के लोग,

अवतरित हुए राम औ’ कृष्ण भी,

लिखे गये गीता, रामायण औ’ महाभारत,

धार्मिक ग्रंथ जिस पवित्र धरती पर…

ऋषि मुनियों ने जहाँ जन्म लिया,

ऐसी भारत की पावन धरा पर,

हर कोई अपना न कोई पराया,

फिर भी रक्षा करता हर किसी की,

उत्तर में हिमालय खड़ा,

पूरब में बंगाल की खाड़ी………….

पश्चिम में अरब महासागर…..

तो दक्खन में खड़ा हिन्द महासागर,

भारत के लोगों की शान,

न आँच आने देंगे इस पर,

यहाँ बसते हर संस्कृति के लोग,

सभ्यता लोगों की शान कहलाई,

विविधता में एकता लेकर आई,

उद्योग में भी सबसे आगे,,

विश्व में सर्वप्रथम कहलाई,          

तकनीकी में भी सर्वप्रथम,

 

अरे !!! शून्य दिया भारत ने,

आँखों में समायी मूरत माँ भारती की,

अनेक रंगों से रंगी माँ भारती,

हाथों में हरे रंग की चूडिया शोभती,

कृषि की जान हुई माँ भारती,

हर तरफ़ छाई हरियाली,

संपूर्ण विश्व में एक अलग पहचान,

आज़ाद हवा में सांसे ले रही,

डर ने किसी को नहीं छुआ,

संकीर्ण विचारों से परे…

कभी स्वयं को न खोनेवाली,

सबकी ताकत बननेवाली,

आज़ादी रुपी स्वर्ग में…

हँसते हुए विचरण करनेवाली,

उसकी रक्षा के लिए तैनात वीर…

नहीं है हाथों में चूड़ियाँ,

नतमस्तक है भारत के शहीद…

जिन्होंने अपनी जान देकर…

भारतीयों को बचाया है…

ये मात्र वीर नहीं बल्कि!!!

शेर की दहाड़ दुश्मन को डराने,

नहीं आँसू बहायेगा भारतीय,

नहीं दुश्मनी करना इनसे,

खत्म करेंगे समूल,

इल्म तक होने नहीं देंगे,

हमारा प्यारा भारत देश,

माँ भारती की ललकार,

भारत माता की जय… जय हिन्द,

वंदे…मातरम्‌ … वंदे… मातरम्‌ ।

© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ आडवं येतय वय आता!… ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? कवितेचा उत्सव ? 

☆ 🤠 आडवं येतय वय आता!…😜 ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

😝 आजच्या “सिनिअर सिटीझनडेच्या” निमित्ताने, माझ्यासकट सत्तरीपार सर्व तरुण म्हाताऱ्यांसाठी !😍

जड पिशवी उचलतांना

फुलतो छातीचा भाता,

मनाने मानले नाही तरी

आडवं येतय वय आता !

*

स्मार्टफोन हाताळतांना

छोटा नातू नाराज करतो,

फोन हातातला घेऊन

“लेट मी शो यू” म्हणतो !

*

कधी टेनिस खेळतांना

सार शरीर संप करते,

“कॅरमला” नाही पर्याय

मन निक्षुन त्या बजावते !

*

धावती बस धरण्याचा प्रयत्न

शरीर आता हाणून पाडते,

‘ओला’ शिवाय नाही तरणोपाय

मन त्याला पुन्हा समजावते !

*

पाहून एखादी रूपगर्विता

शिट्टी मारण्या मन मोहवते,

पण तोंडातून फक्त हवा जाता,

खरी ताकद शरीराची कळते !

खरी ताकद शरीराची कळते !

© प्रमोद वामन वर्तक

२१-०८-२०२४

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ प्राणान्तक पुकार !! ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ प्राणान्तक पुकार !! ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

पाषाणी प्रतिमा से

धर्मग्रन्थ के पन्नों से

बाहर निकल आओ

माँ

महिषासुरमर्दिनी

सकल आयुध साथ लेकर

*

हाहाकार कर रही हैं

दिशाएं

ठठा रहा है रक्तबीज

फाँसी का फंदा, बंदूक की गोली

काल कोठरी

उसमें  खौफ़ पैदा नहीं करती

*

वह जानता है

उसका जिस्म मरेगा

वो नहीं

*

उसके कुत्सित विचारों के

रक्तबिन्दु

हर दिशा में हो रहे हैं

साकार

*

कहां हैं योगिनियां

कहाँ हो माँ दुर्गा

प्रतीक्षा का अंत करो

क्या तुम्हें सुनाई

नहीं देती

प्राणान्तक पुकार !!

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दशरथ मांझी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  दशरथ मांझी ? ?

वे खड़े करते रहे

मेरे इर्द-गिर्द

समस्याओं के पहाड़

धीरे-धीरे….,

मेरे भीतर

पनपता गया

एक ‘दशरथ मांझी’

धीरे-धीरे…!

© संजय भारद्वाज  

रात्रि 8:17 बजे, 7 अप्रैल 2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रवण मास साधना में जपमाला, रुद्राष्टकम्, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना करना है 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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