मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हलधर… ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆

श्री तुकाराम दादा पाटील

? कवितेचा उत्सव ?

☆ हलधर… ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆

कोण मारतो फुंकर आहे

विझत चालल्या अंगारावर

चिथावणीने  नाचत  होते

कुडामुडाचे थकलेले घर

*

संध्याकाळी मावळतीला

तुफान झाले होते वादळ

आभाळाला कळले नाही

तारे  होते  फिरले गरगर

*

दिवस उगवला प्रभात झाली

डोंगर  माथा  बघत  राहिला

चमकत होती  पूर्व दिशेने

पांघरलेली  भगवी  चादर

*

दवात भिजल्या पानफुलांनी

हार  घातले  गळ्यात  सुंदर

भिडला  वारा  आनंदाने

दवमोत्यांची झाली थरथर

*

भिजली माती रानामधली

स्वागतकरण्या तयार झाली

ताडमाड ही  उभे  ठाकले

झुकवत माथा राखत आदर

*

हासत खेळत अखंड होते

बरसत पाणी आभाळाचे

रानामधल्या दगडाला ही

मग मायेचे फुटले  पाझर

*

तेज धरेवर येते तेव्हा

माणसातला फुलतो मानव

मरगळलेला जीव येथला

उत्साहाने  होतो नवथर

*

घामगाळतो मातीवरती

 करतो सेवा तिची निरंतर

स्वतंत्रतेने अविरत राबत

अभिमानाने जगतो हलधर

© प्रा. तुकाराम दादा पाटील

मुळचा पत्ता  –  मु.पो. भोसे  ता.मिरज  जि.सांगली

सध्या राॅयल रोहाना, जुना जकातनाका वाल्हेकरवाडी रोड चिंचवड पुणे ३३

दुरध्वनी – ९०७५६३४८२४, ९८२२०१८५२६

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 193 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 193 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 193) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

 

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

 

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 193 ?

☆☆☆☆☆

रूह से जुड़े रिश्तों पर

फरिश्तों के पहरे होते हैं

कोशिशें कर लो तोड़ने की

ये और भी गहरा जाते हैं…

☆☆

Soul-related relationships

are guarded by the angels

If you try breaking them

they consolidate further…

☆☆☆☆☆

नींद लेने का मुझे ऐसा

कोई शौक भी नहीं

मगर तेरे ख्वाब न देखूँ

तो गुजारा भी नहीं होता…

☆☆

Though not so very

fond of falling asleep…

But then can’t even live

without seeing your dreams

☆☆☆☆☆

छोटा सा लफ्ज है मुहब्बत

मगर तासीर है इसकी गहरी

गर दिल से करोगे इसे तुम

तो कदमों में होगी ये दुनिया सारी…

☆☆

Love is a little word, though

But its effect is so deep

If you do it with all your heart

Whole world lies at your steps

☆☆☆☆☆

लोग  तलाशते  हैं  कि

कोई  तो  फिकरमंद  हो,

वरना कौन ठीक होता है

यूँ ही सिर्फ हाल पूछने से…

☆☆

People  keep   searching  for    

someone who is worried, but then

How could  anyone ever get  fine

Just by inquiring his well-being!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 192 ☆ सॉनेट – याद ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है सॉनेट – याद…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 192 ☆

☆ सॉनेट – याद ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

याद झुलाती झूला पल पल श्वासों को,

पेंग उठाती ऊपर, नीचे लाती है,

धीरज रस्सी थमा मार्ग दिखलाती है,

याद न मिटने देती है नव आसों को।

*

याद न चुकने-मिटने देती त्रासों को,

घूँठ दर्द के दवा बोल गुटकाती है,

उन्मन मन को उकसाती हुलसाती है,

याद ऊगाती सूर्य मिटा खग्रासों को।

*

याद करे फरियाद न गत को बिसराना,

बीत गया जो उसे जकड़ रुक जाना मत,

कल हो दीपक, आज तेल, कल की बाती।

*

याद बने बुनियाद न सच को ठुकराना,

सुधियों को संबल कर कदम बढ़ाना झट,

यादों की सलिला, कलकल कल की थाती।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२.४.२०२४ 

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दखनी तडका ☆ सौ. जस्मिन रमजान शेख  ☆

? कविता ?

 ☆ दखनी तडका ☆ सौ. जस्मिन रमजान शेख  

(भारत में 15 से 20 किलोमीटर में भाषा बदल जाती है। यहाँ तक कि हिन्दी में भी क्षेत्रीय भाषाओं का पुट मिलने लगता है। जैसे जैसे हम उत्तर से दक्षिण कि ओर चलते हैं हिन्दी का स्वरूप भी  बदलने लगता है। जब हम उत्तर से मध्य भारत की बढ़ते हैं तो हम क्षेत्रीय भाषाओं जैसे अवधी, बृज, बुंदेलखंडी आदि से रूबरू होते हैं। इसी प्रकार दखनी हिन्दी का भी अपना अस्तित्व आंध्र और दक्षिण महाराष्ट्र में है। स्थानीय हिन्दी साहित्य का अस्तित्व भी जीवित रहना चाहिए। आज प्रस्तुत है सौ. जस्मिन रमजान शेख जी की एक दखनी कविता दखनी तड़का।   – संपादक )

नानीअम्मा सोकोच हैं

कित्ते दिनांशी

क्याबी खाती नै

घरमें क्या नै बी खाने को

 

मेरी अम्मा चार घरांमेंशी

मंगको लाती चार निवाले

चार गाल्यांकेसात

हमे खाली पेटांशी देकते बैटतैं

मा बेटी का भुका प्यार

 

एक दिन नानीअम्मा गई

अल्ला के घरकू

फिर चारघरके लोकांने

लेको आए ढीगभर खाना

मरेसो नानी के वास्ते

हमेच खाय नानीके नामपर

नानीमरी पर हमारा पेट भरी

 

कलशी भाई बिमार पडे

और हमना भुका लगैं

छोटा मुन्ना पुचतै अम्मा को,

अम्मा,भैया कब मरींगा गे?

साभार – सौ. उज्ज्वला केळकर, सम्पादिका ई-अभिव्यक्ती (मराठी)

© सौ. जस्मिन रमजान शेख

मिरज जि. सांगली

9881584475

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ डॉ. वनीता की मूल पंजाबी सात कविताएँ  ☆  भावानुवाद – डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक  ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ डॉ. वनीता की मूल पंजाबी सात कविताएँ  ☆  भावानुवाद – डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

डॉ. वनीता

(साहित्य शिरोमणि पुरस्कार विजेता डॉ. वनीता पंजाबी भाषा की सशक्त हस्ताक्षर  हैं। उनकी हृदय-स्पर्शी कविताएँ पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं और कुछ नया सोचने के लिए विवश करती हैं।

उनकी कविताओं में संवेदनशीलता और गहरी सोच की झलक, नारी सशक्तिकरण, प्रेम की अनुभूतियाँ और मानवीय मूल्यों का स्पष्ट प्रतिबिंब देखा जा सकता है।)

1. बर्फ़

पहले-पहल की दिवाली, क्रिसमस

नए वर्ष के कार्ड

लाता था डाकिया,

बर्फ़ों को रौंदता हुआ

गर्मी-सर्दी झेलता हुआ

धीरे-धीरे पिघल गईं बर्फ़

बह गईं बर्फ़े

किन्तु, आश्चर्य यह है कि

बर्फ़ के नीचे पहाड़ दबे

न बर्फ़

न पर्बत

न कार्ड

न डाकिया

फिर भला

कौन से कार्डों के बीच

शब्दों का करो इन्तज़ार ?

2.हस्तक्षेप

कहते हैं

किसी का किया हुआ व्यवहार

भुला नहीं देना चाहिए

*

हाँ,  मान्यवर

नहीं भूलूँगी

तेरा किया मेरे साथ

संदेह, वहिम, नफ़रतें

ला-परवाहियाँ, माथे की तिऊड़ियाँ,

यातनाएँ, ग़लत-फ़हमियाँ

*

तेरा हस्तक्षेप

मेरे जीवन में लगातार

एक कशमकश है।

3. मछली

मछली की सीमा पानी

पानी की सागर

मछली सागर में रहते हुए भी

आँख में कल्पना करती

ऊपर आती

आसमान को आँख में भरती

आँख में बने आसमान को

सागर में ले जाती है।

4.तेरा नाम

मैं हार रही होती हूँ

क्षण-क्षण टूट रही होती हूँ

अपवाद सह रही होती हूँ

तीर हृदय में चुभ रहे होते हैं

साज़िशें रची जा रही होती हैं

परन्तु, ख़ुशी-ख़ुशी

सभी आँधियों को पार कर आती हूँ

सिर्फ़ तेरी नज़र के सदक़े

हार में भी लज़्ज़त आने लगती

टूटना-जुड़ना लगने लगता

*

असत्य में से कहानियाँ गढ़ने लगती

हृदय में चुभे तीरों के साथ

ऐसा लगता

ख़ून स्याही बन गया

अपने विरुद्ध रची साजिशों को

दे कर क़लम का रूप

चुनौतियों को पार कर

फिर लिखने लगती हूँ

तेरा नाम।

5.सम्भाल

लुटाती हूँ

      आसमान

सँभालती हूँ

     एक झोंका

लुटाती हूँ

      धरती

सँभालती हूँ

      एक बीज

लुटाती हूँ

      समन्दर

सँभालती हूँ

      एक बूँद

लुटाती हूँ

       उम्र

सँभालती हूँ

     बस याद।

6.स्वंय

वह एक जुगनूँ  बनाता है

उसमें

जगमग जैसी रौशनी भरता है

पंख लगाता है

आसमाँ में उड़ाता है

*

स्वंय

ओझल होकर

देखने लगता है लीला

जुगनूँ की

रौशनी की

अन्धेरे की।

7.मुहब्बत

अपनी मुहब्बत का

दा’वा कोई नहीं

परन्तु,

नैनों में उमड़ती

लहरों के स्पर्श का

ज़रूर है अहसास

भिगोती हैं जो मेरे

अहसासों को

*

खड़ी रहती हूँ

सूखे किनारों पर

ले जाती हैं उठती लहरें

अपने साथ मेरा अस्तित्व

और वजूद

कोसता रहता

मेरा अस्तित्व

तेरे में विलीन होता।

कवयित्रीडॉ. वनीता

भावानुवाद –  डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं –  9646863733 ई मेल- [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुप्पी – 14 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – चुप्पी – 14 ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

तुम चुप रहो

तो मैं कुछ कहूँ..,

इसके बाद

वह निरंतर

बोलता रहा

मेरी चुप्पी पर..,

अपनी चुप्पी की

सदाहरी कोख पर

आश्चर्यचकित हूँ!

© संजय भारद्वाज  

(प्रातः 8:23 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #242 – 127 – “कुछ  रिश्तों  के  पोखर सूखे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “कुछ  रिश्तों  के  पोखर सूखे…” ।)

? ग़ज़ल # 127 – “कुछ  रिश्तों  के  पोखर सूखे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

एक साल धरा पर  बीत गया,

दिल हार गया मन जीत गया।

*

सधता कब सब कुछ जीवन में,

कुछ सुलझा कुछ विपरीत गया।

*

कुछ  रिश्तों  के  पोखर सूखे,

मन झरने  से  संगीत  गया।

*

बीता  साल  उमंग  भरा था,

समय गुज़रते वो  रीत गया।

*

महत्व   पाने  की  इच्छा  में,

व्यर्थ  जीवन   व्यतीत  गया।

*

यमदूत  सधा  काल नियम से,

मेरा  मन तो  भयभीत  गया।

*

बिछड़ कर वह रहा दिल में ही,

आतिश का पर  मनमीत गया।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 120 ☆ ।।मुक्तक।। ☆ ।। योग भगाए रोग ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 120 ☆

।।मुक्तक।। ☆ ।। योग भगाए रोग ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

।।विश्व योग दिवस।। – (21 – 06 – 2024)

[1]

योग से   बनता    है   मानव

शरीर   स्वस्थ  आकार।

योग एक  है   जीवन      की

पद्धति स्वास्थ्य आधार।।

योग से निर्मित होता तन मन

और  मस्तिष्क   सुदृढ़।

तभी तो   हम कर   सकते  हैं

हर जीवन स्वप्न साकार।।

[2]

भोग नहीं योग आज  की बन

गया   एक   जरूरत  है।  

रोग प्रतिरोधक क्षमता  से  ही

जीवन बचने की सूरत है।।

दस   वर्ष पूर्व सम्पूर्ण विश्व को

भारत ने दिखाया  रास्ता।

आज तो पूरी  दुनिया में भारत

बन गया योग की मूरत है।।

[3]

नित प्रतिदिन   व्यायाम  ही तो

योग का एक  रूप    है।

व्यवस्थित हो  जाती  दिनचर्या

बदलता    स्वरूप     है।।

निरोगी काया आर्थिक  स्थिति

भी होती योग  से सुदृढ़।

योग तो सारांश में तन मन की

सुंदरता का प्रतिरूप है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 182 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – दुख से घबरा न मन ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “अभी भी बहुत शेष है। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 182 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – दुख से घबरा न मन ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

दुख से घबरा न मन, कर न गीले नयन,

दुख तो मानव के जीवन का सिंगार है ।

इससे मिलता है बल, दिखती दुनियां सकल

आगे बढ़ने का ये सबल आधार है ।।۹ ۱۱

*

सुख में डूबा है जो, मन में फूला है जो,

समझो यह-राह भटका है, भूला है वो ।

दुख ही साथी है जो साथ चल राह में

रखता साथी को हरदम खबरदार है ।। २ ।।

*

सुख औ’ दुख धूप-छाया हैं बरसात की

उड़ती बदली शरद-चाँदनी रात की ।

सुख की साधे ललक, दुख की पाके झलक

जो भी डरता है वो कम समझदार है ।। ३ ।।

*

कर्म-निष्ठा से नित करते रहना करम भूलकर

सारे भ्रम आदमी का धरम फल तो देता है

खुद कर्म हर एक किया फल पै

कोई किसी का न अधिकार है ।। ४ ।।

*

जो भी चलते हैं पथ पै समझ-बूझकर

उन्हें सुख-दुख बराबर, नहीं कोई डर ।

उनकी मंजिल उन्हें देती अपना पता

सहना है जिंदगी – ये ही संसार है ।। ५ ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दोहा – योग भगाये रोग ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ दोहा – योग भगाये रोग ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

(अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस विशेष)

योग भगाता रोग है, काया हो आदित्य।

स्वास्थ्य रहे हरदम खरा, मिले ताज़गी नित्य।।

*

योग कला है, ज्ञान है, रिषियों का संदेश।

तन-मन की हर पीर को, करे दूर, हर क्लेश।।

*

योग साधना मानकर, पाते हम बल-वेग।

गति-मति में हो श्रेष्ठता, मिले खुशी का नेग।।

*

दीर्घ आयु मिलती सदा, अपनाते जो ध्यान।

योग करो, ताक़त गहो, पाओ नित सम्मान।।

*

योग कह रहा नित्य यह, लेना शाकाहार।

तभी मिलेगा हर कदम, जीवन में उजियार।।

*

भारत चिंतन में प्रखर, देता उर-आलोक।

योग-ध्यान से बंधुवर, पास न आता शोक।।

*

योग दिवस मंगल रचे, अखिल विश्व में मान।

योगासन हर मुद्रा, पाती है यशगान।।

*

योग साधना दिव्य है, रामदेव जी संत।

जिन ने भारत से किया, सकल रुग्णता अंत।।

*

योग नया विश्वास है, चोखी है इक आस।

जो जीवन-आनंद दे, रचे नया मधुमास।।

*

योग-ध्यान से नेह कर, गाओ जीवन गीत।

तन-मन को बलवान कर, पाओ हरदम जीत।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares