सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – जीवन को वसंत करो…।
रचना संसार # 11 – नवगीत – जीवन को वसंत करो… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
☆
पतझड़ से इस जीवन को तुम,
आकर कंत वसंत करो।
साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला ,पंत करो।।
*
शब्द -शब्द माणिक कर दो तुम,
भरो प्रेम की गागर तुम।
गुंजित सारा जग हो जाए,
वंशी तुम नटनागर तुम।।
भाव सुपावन गंगाजल कर,
लेखन को जीवंत करो।
*
साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला,पंत करो।।
*
श्वेता की वीणा बजती हो,
सात सुरों की सरगम हो।
अलंकार रस छंद निराले,
नवल सृजन का उद्गम हो,
नव रस की रसधारा में तुम,
पीडाओं का अंत करो।
साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला,पंत करो।।
*
निष्ठाओं की डोर पकड़कर ,
तन -मन अर्पण करना है।
दिनकर -सा उजियारा करने ,
सार्थक चिंतन करना है।।
जग -कल्याण भावना रखकर,
मन को सज्जन संत करो ।
जीवन को वसंत करो
*
साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला ,पंत करो।।
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शब्द -शब्द माणिक कर दो तुम,
भरो प्रेम की गागर तुम।
गुंजित सारा जग हो जाए,
वंशी तुम नटनागर तुम।।
भाव सुपावन गंगाजल कर,
लेखन को जीवंत करो।
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साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला,पंत करो।।
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श्वेता की वीणा बजती हो,
सात सुरों की सरगम हो।
अलंकार रस छंद निराले,
नवल सृजन का उद्गम हो,
नव रस की रसधारा में तुम,
पीडाओं का अंत करो।।
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साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला,पंत करो।।
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निष्ठाओं की डोर पकड़कर ,
तन -मन अर्पण करना है।
दिनकर -सा उजियारा करने ,
सार्थक चिंतन करना है।।
जग -कल्याण भावना रखकर,
मन को सज्जन संत करो ।
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साहित्यिक संप्रेषण को अब,
सदृश निराला,पंत करो।।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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