हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पूर्ण ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पूर्ण ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

पूर्ण से

पूर्ण चले जाने पर भी

पूर्ण ही शेष रहता है..,

चैनलों पर सुनता हूँ

प्रायोजित प्रवचन

चुप हो जाता हूँ..,

सारी चुप्पियाँ

समाप्त होने के बाद भी

बची रहती है चुप्पी,

पूर्णमिदं……

……..पूर्णमेवावशिष्यते!

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 7:49 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘आवेग’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Impulse…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “आवेग.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – आवेग ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

‘चुप रहो’

क्रोध का पारावार

ज्यों-ज्यों बढ़ता है

अपने सिवा

हरेक से

चुप्पी की आशा करता है,

आवेग की

इकाई होती है चुप्पी!

© संजय भारद्वाज  

(2.9.18, प्रातः 6:51 बजे)

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Reticence ~??

?

As the mercury

of anger shoots up,

One expects silence

from everyone

except himself,

Unit of impulse

is the ‘Silence’..!

?

~ Pravin Raghuvanshi

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ संसार ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह,  एक उपन्यास (फिर एक नयी सुबह) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आपका उपन्यास “औरत तेरी यही कहानी” शीघ्र प्रकाश्य। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता संसार।)  

☆ कविता ☆ संसार ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

अहा! कितना रमणीय,

कितना मनमोहक,

कितना आकर्षक,

फिर भी क्यों दुखी लोग,

ईश्‍वर ने बनाई दुनिया,

बसते है लोग यहाँ पर,

हँसते रहना है,

ध्यान रखना है,

जन्म से मरण तक,

बस एक ही बात,

मुस्कुराते रहना है,

दर्द को भी झेलना है,

मुस्कुराते हुए…

                मत कर भरोसा किसी पर भी,

       अवलंबित नहीं होना किसी पर भी,

       उन्मुक्त पंछी की तरह,

उड़ना है आसमान रुपी संसार में,

रात- दिन करना है संघर्ष,

मत डाल हथियार,

मात्र जूझना है परिस्थितियों से,

लड़नी खुद की लड़ाई,

न कोई किसीका दुनिया में,

ईश्वर ने भेजा है……

उसी का एक मात्र…

अधिकार तुम पर,

जब चाहे वह…

अपने पास बुलाएगा,

तब तक जीना है…

मुस्कुराते जीओ,

सच को कर स्वीकार

जब भी ज़रुरत पडेगी,

न करेगा इंतज़ार वह,

जब तक चाहेगा,

तब तक ही रहेगा,

इन्सान धरती पर,

फिर क्यों रोना?

हंमेशा खुश रहना,

बनो सूरज की किरणॆं,

बनो चांद की चांदनी,

फैला दो प्रकाश जीवन में,

शांति के दूत बनो,

सलाम करेगी दुनिया,

संघर्ष करता चल,

बन मुसाफिर-मानव,

यह मात्र संसार,

ईश्वर ने रचा है,

यह खेल है ईश्वर का,

हम तो सिर्फ है मोहरे,

हम तो है मात्र खिलौने,

बना अपनी किस्मत,

मत दोषी ठहरा किसीको भी,

स्वयं तुम्हें आगे बढ़ना है,

ख्वाइशो को मत कुचलो,

पाने की कोशिश करो,

मत कर काम गलत कोई,

यह संसार बनाया ईश्वर ने,

दायाँ- बायाँ भरोसा मत कर,

विश्वास रखो खुद पर,

रब भी देगा साथ,

परदीगार साथ है,

संघर्ष मात्र करो…

मंजिल चूमेंगे कदम,

मुकद्दर को लिखो तुम,

कर लो दोस्ती किताबों संग,

संकल्प कर लो जीने का,

राह मिलेगी स्वयं ही,

मुट्ठी में होगा संसार,

वाकीफ है सच से सभी,

परदा लगा है मन पर,

धूल हटा मन पर से,

तुम हो शक्तिशाली,

कर सकते हो हर कार्य,

दिखा दो ईश्वर को भी,

हो तुम सशक्त बलशाली,

श्मशान की राख को भी,

लगायेंगे माथे पर यहाँ,

याद रखे तुम्हें संसार,

करना तुम्हें काम ऐसा,

ईश्वर ने बनाया संसार ।

© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 195 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 196 – कथा क्रम (स्वगत)✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

☆ 

इच्छित कार्य का सम्पादन

ययाति की

विनीत और अबूझ

वचनावली से आश्चर्य आहत थे

गालव और गरुड़।

आश्चर्य भेदन किया

ययाति ने –

मैं आपको सौंपता हूँ।

अपनी

देवकन्यासी कांतिवाली

अक्षत योनि कन्या

माधवी

जो करेगी

चार कुलों की स्थापना

और वृद्धि करेगी

सम्पूर्ण धर्म की।”

“हे। ऋषिवर

इस रूपवती गुणवती

को पाने

सुर, असुर, और मनुष्य

सभी लालायित है

आतुर हैं।”

ग्रहण करें

मेरी पुत्री

और

सिद्ध करें

अपना अभीष्ट।

जो

इससे करना चाहे

हो—

 क्रमशः आगे —

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 195 – “कड़ियों शहतीरों में…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “कड़ियों शहतीरों में...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 195 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “कड़ियों शहतीरों में...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

पूछे मेहराब से

डरे अनाथ कंगूरे

राजपाट चलागया

हम रहेअधूरे

 

कड़ियों शहतीरों में

चिह्न राजवंशो के

टूटकर बिखर गये

बचे अंश ध्वंशों के

 

अर्दली दरवान सभी

वक्त रहे निकल गये

जो थे विश्वास पात्र

आधे अधूरे

 

रेगरेंग चलते थे

ड्योढ़ी के जो आगे

वे सब बौने सेवक

फेरफेर मुँह भागे

 

दारोगा प्रहरी सब

या फिर दीवान सभी

लगा यहाँ करते थे

कभी कनखजूरे

 

तुर्कीटोपी और हेट

लगाये तिरछे

भागते रहे आये

जो घोड़ों के पीछे

 

इनकी अपनी बिसात

वैसे तो कुछ न थी

ऐंठ चला करते थे

राजसी जमूरे

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

16-06-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अति ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  अति  ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

किसी बात की

अति अच्छी नहीं होती

माँ कहती हैं..,

सोचता हूँ

क्रोध की अति

अपने साथ

दूसरे के लिए भी

घातक होती  है,

चुप्पी की अति

मारकेश का

कारक होती है!

© संजय भारद्वाज  

( प्रातः 7:28 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 182 ☆ # “घरौंदा” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता घरौंदा

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 182 ☆

☆ # “घरौंदा” #

जीवन भर की

मेहनत से

लगन से

बचत से

हम एक घरौंदा बनाते हैं  

अपनी आशाएं

इच्छाएं

संभावनाएं

लगाकर

उसे सजाते हैं

हमारी सिर्फ

यही कोशिश होती है

कि  पूरा परिवार

साथ रह सके

खुशी हो या गम

कांटे हो या फूल

दुःख हो या सुख

साथ-साथ सह सकें

जब घरौंदा बनता है

प्यार और स्नेह

आपस में छनता है

हर पल खिलखिलाहट

घर में जगमगाहट

रिश्तों की नई पहचान होती है

घर की आन और शान होती है

हम आत्मविभोर हो जाते हैं

सुन्दर सपनों में खो जाते हैं

मीठी मीठी नींद गुदगुदाती है

ठंडी ठंडी हवा

आगोश में सुलाती है

 

तभी आसमान से

एक परी उतरती है

घर में सज धज कर आती है

सारा घर उसके स्वागत में

पलकें बिछाता है

छोटा हो या बड़ा

हर कोई गले लगाता है

वो सबके आंखों

का नूर होती है

अपनी प्रशंसा से

मगरूर होती है

धीरे धीरे वो अपना

रंग दिखाती है

दूसरे देश से आई है

यह अपने व्यवहार से दर्शाती है

घर की खुशियां

बिखर जाती है

अपने तानों से

सबका दिल दुखाती है

अपने प्राणाधार के साथ

दूसरी दुनिया में

चली जाती है

घरौंदा टूटता है

राख बच जाती है

 

पति-पत्नी जीवन भर

एक खुशगवार फूलों सा

घरौंदा बनाने का

सपना देखते हैं

ऐसी परियां

उनके सपने तोड़ कर

कौड़ी के दाम

बेचते हैं

जीवन के आखिरी पड़ाव पर

क्या यही उनके जीवन भर के

त्याग, परिश्रम का मोल है ?

टूटते घरौंदे, बिखरते परिवार

बिलखते मां-बाप

असहाय, निर्बल

क्यों

घर और बाहर

दोनों जगह बेमोल हैं ? /

*

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – हमारा देश…भारत ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता हमारा देश…भारत।)

☆ कविता – हमारा देश…भारत ☆

सिर पर ताज हिमालय का है,

 सागर चरण पखारता,

गंगा यमुना की बाहों को,

 अंबर पुलक निहारता,

 देश के हर कोने से उठता,

 हर स्वर यही पुकारता,

 वंदे मातरम्, वंदे मातरम्,

*

 राम कृष्ण की भूमि है ये,

इस मिट्टी की शान है,

सभी देवता गोद में खेले,

 भारत भूमि महान है,

एक बंधन में हम सब आएं

एक ही सुर में मिलकर गाएं,

वंदे मातरम्, वंदे मातरम्,

*

आओ मिलकर शपथ उठाएं,

भारत मां की आन की,

कभी शान ना झुकने पाए,

भारत मां की शान की,

भारत मां का दर्शन पाएं

सभी देवता सस्वर गाएं,

वंदे मातरम्, वंदे मातरम्.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 192 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 192 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 192) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 192 ?

☆☆☆☆☆

गुफ़्तुगू करे हैं अक्सर

उंगलियां ही अब तो..

ज़बां तरसती है

कुछ कहने के लिए..

☆☆

Fingers only chat 

these days now ..

The tongue  longs

To say something…

☆☆☆☆☆

तेरी बात को यूँही…

खामोशी से मान लेना

ये भी एक अंदाज़ है,

मेरी  नाराज़गी  का…

☆☆

Just simply accepting

your  words  quietly…

Is  also  my  way  of

expressing resentment…

☆☆☆☆☆

रूबरू  होने   की  तो  छोड़िये,

गुफ़्तगू से  भी  क़तराने  लगे हैं,

ग़ुरूर ओढ़ते  हैं  रिश्ते  अब तो,

हैसियत पर अपनी इतराने लगे हैं…

☆☆

Leave apart being face to face,

They’ve begun  to avoid talking,

Relations are so conceited now,

Proudly unmask their haughtiness

☆☆☆☆☆

बहुत ही नादान है वो,

ज़रा समझाइए ना उसे,

बात न करने से कभी,

मोहब्बत कम नहीं होती…

☆☆

She is too innocent,

Please explain to her that

Not talking to someone

Doesn’t reduce love for him!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 191 ☆ द्विपदियाँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है द्विपदियाँ …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 191 ☆

☆ द्विपदियाँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

परवाने जां निसार कर देंगे.

हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..

*

तितलियों की चाह में भटको न तुम.

फूल बन महको चली आएँगी ये..

*

जब तलक जिन्दा था रोटी न मुहैया थी.

मर गया तो तेरहीं में दावतें हुईं..

*

बाप की दो बात सह नहीं पाते

अफसरों की लात भी परसाद है..

*

पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.

मैं ढूँढ-ढूँढ हारा, घर एक नहीं मिलता..

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९.४.२०१०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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