हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #46 ☆ कविता – “तुम मेरी दास्तां हो…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 46 ☆

☆ कविता ☆ “तुम मेरी दास्तां हो…☆ श्री आशिष मुळे ☆

कहां शुरू कहां खत्म हो

कितनी छोटी बडी गेहरी हो

या बस इक सवाल हो

तुम मेरी दास्तां हो

 

आयी हो जैसे बारिश हो

भिगोकर कुछ पल जाती हो

ख्वाहिशें अंकुरित करती

तुम मेरी दास्तां हो

 

लुभाने की जैसे अदा हो

चले जाने की इक आदत हो

जाकर भी मेरा हिस्सा हो

तुम मेरी दास्तां हो

 

कितनी बार जाकर आती हो

कुछ ना कुछ लिख जाती हो

दिल की इक किताब हो

तुम मेरी दास्तां हो

 

पढ़ने वाला क्या पढे तुझे

अनसुलझी इक पहेली हो

सुनाने वाला क्या सुनाए

तुम मेरी दास्तां हो

 

कभी जिंदगी कभी मौत हो

तकलीफ कभी तसल्ली हो

तहहयात जैसे गले पड़ी हो

तुम मेरी दास्तां हो

 

घूमने का इक नशा हो

अफसोस दुनियां गोल है

घूमकर यहीं पहुंचती हो

तुम मेरी दास्तां हो

 

सुनो, जो सुनना चाहती हो

हरबार अलग हो

मगर मेरी बस तुम ही हो

तुम मेरी दास्तां हो….

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 208 ☆ गीत – अपनी ढपली ताल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 208 ☆

☆ गीत – अपनी ढपली ताल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

 घर-घर एसी लगी बिमारी

गर्मी करे कमाल।

पर्वत भी अब गर्म हो रहे

शिमला, नैनीताल।

दो-दो तीन-तीन इक घर में

वाहन का है रेला भारी।

सब ही गाड़ी आज चाहते

सर्विस भी चाहें सरकारी।

 *

मेहनत से सब बचना चाहें

स्वयं हुए कंगाल।

 *

निज वाहन से करें यात्रा

फँसें जाम में तीर्थयात्री।

तौबा-तौबा करें जाम से

चिल्ल- चिल्ल पौं मचती भारी।

 *

वाहन खूब चलावें सरपट

स्वयं बुलाएँ काल।

 *

पथ चलते मोबाइल बातें

भोजन करते टीवी देखें।

कितने व्यस्त लगें अब सब ही

ब्यूटी पार्लर खींचे रेखें।

 *

आत्ममुग्ध अपने ही होकर

अपनी ढपली ताल।

 *

जंगल धधकें मनुज कृत्य से

जगह – जगह अग्निकांड हो रहे

जंगल काटें , जल का दोहन

मानव खोटा बीज बो रहे।

 *

ग्लोबल वार्मिंग करे तबाही

नित्य बढ़ें जंजाल।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #233 – बाल कविता – “करें ज्ञान विज्ञान की बातें…”☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम  बाल कविता – करें ज्ञान विज्ञान की बातें” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #233 ☆

☆ बाल कविता – करें ज्ञान विज्ञान की बातें… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

करें ज्ञान विज्ञान की बातें

क्यों होते दिन होती रातें।

*

तारे टिमटिम क्यों क tvरते हैं

दूर गगन में क्यों रहते हैं।

क्यों मंडराते नभ में बादल

कैसे होती है बरसातें।

करें ज्ञान विज्ञान की बातें।।

*

चंदा क्यों बढ़ता घटता है

सूरज क्यों हर दिन तपता है

सप्त ऋषि तारे क्या कहते

क्यों ध्रुव तारा देख लुभाते।

करें ज्ञान विज्ञान की बातें।।

*

खारा क्यों होता है सागर

भाटा ज्वार में क्या है अंतर

कैसे बिजली पैदा करते

नदियों पर क्यों बांध बनाते

करें ज्ञान-विज्ञान की बातें।।

*

क्यों किसान खेतों को जोते

बीज अंकुरित कैसे होते

कैसे टीवी चित्र दिखाएं

और  रेडियो  गाने गाते।

करें ज्ञान विज्ञान की बातें।।

*

चलो चलें हम जल्दी शाला

हल होगा सब वहीं मसाला

टीचर जी समझायेंगे सब

जैसे  और  प्रश्न समझाते।

करें ज्ञान विज्ञान की बातें।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 57 ☆ धर्म ध्वजा… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “धर्म ध्वजा…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 57 ☆ धर्म ध्वजा… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

पाप-पुण्य की

इस नगरी में

धर्म हमारी ध्वजा रही है ।

 

तिनका- तिनका जोड़ जतन से

एक घोंसला सुघर बनाया

ना जाने कब कौन शिकारी

की पड़ गई अमंगल छाया

 

छन कर आती

धूप नहीं अब

छाँव अँधेरे सजा रही है ।

 

मिलजुल कर बोया फसलों को

काट रहे हैं अपनी-अपनी

ढो-ढो कर रिश्तों की गठरी

पीठ हो गई छलनी-छलनी

 

हवा हुई बे-शर्म

यहाँ की

गंध सुवासित लजा रही है ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मूल्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  मूल्य  ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

तुम्हारी चुप्पी मूल्यवान है

जितना चुप रहते हो

उतना मूल्य बढ़ता है,

वैसे तुम्हारी चुप्पी का मूल्य

कहाँ  तक पहुँचा?

…और बढ़ेगा क्या..?

मैं फिर चुप लगा गया।

© संजय भारद्वाज  

1.9.18, रात 11:40 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सभी है मुसाफिर यहाँ चार दिन के… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “सभी है मुसाफिर यहाँ चार दिन के“)

✍ सभी है मुसाफिर यहाँ चार दिन के… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

 कहीं कारवां क्या मिला पूछते हैं

सफ़र में जो बिछड़े पता पूछते हैं

दिया दर्द जो हमसे नादान उससे

जो आराम दे वो दवा पूछते हैं

 *

जिन्हें ख़्याल रखना सिरे से न आया

वही मुझसे क्या है गिला पूछते हैं

 *

जिन्हें हर खुशी है मयस्सर जहां में

वो बेअक्ल क्या है ख़ुदा पूछते हैं

 *

बहुत हमने सोचा समझ में न आया

मिले गर कभी वो तो क्या पूछते हैं

 *

तिज़ारत समझते है जो आशिक़ी को

मुहब्बत में मुझसे नफ़ा पूछते हैं

 *

अगर चोर दिल में नहीं है जो तेरे

बता क्यों तेरा सर झुका पूछते हैं

 *

सभी है मुसाफिर यहाँ चार दिन के

हमारा तुम्हारा है क्या पूछते हैं

 *

कहाँ छीनकर मौत ले जाती सारे

ये हम प्रश्न तुझसे ख़ला पूछते हैं

 *

हमें और कितने कराएगी फांके

तुझे बेंच दे क्या अना पूछते हैं

 *

अरुण उनकी दरिया दिली देखिये तो

ख़ता की न उसकी सजा पूछते हैं

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – प्रेम ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

 

☆ गीत – प्रेम  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

गुज़ारें प्रेम से जीवन,नफ़रती सोच को छोड़ें।

हम अपने सोच की शैली अभी से,आज से मोड़ें।।

*

अँधियारे को रोककर,सद्भावों का गान करें।

मानव बनकर मानवता का नित ही हम सम्मान करें।।

अपनेपन की बाँहें डालें ,नव चेतन मुस्काए।

दुनिया में बस अच्छे लोगों को ही हम अपनाएँ।। 

जो दीवारें खड़ी बीच में आज गिरा दें।

अपने जीवन की शैली को आज फिरा दें।।

*

लड़ें नहिं,मत ही झगड़ें,कुछ भी नहीं मिलेगा।

किंचित नहीं नेह के आँगन में फिर फूल खिलेगा।।

देखें हम पीछे मुड़कर के,क्या-क्या नहीं गँवाया।

तुमने नहिं,नहिं मैंने लड़कर कुछ भी तो है पाया ।।

जो फैलाती हैं कटुता ताक़तें,उनको तो छोड़ें।।

गुज़ारें प्रेम से जीवन,नफ़रती सोच को छोड़ें।

हम अपने सोच की शैली अभी से,आज से मोड़ें।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 58 – आप बुलाने आये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – आप बुलाने आये।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 58 – आप बुलाने आये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

आज क्या बात है जो आप मनाने आये 

फिर से, अहसान नया मुझपे जताने आये

*

आये हैं आतिशी अंदाज में सँवरकर वो 

जब भी आये हैं, इसी भाँति जलाने आये

*

मेरी पुस्तक में, मिला फूल एक मुरझाया 

झूल, आँखों में कई दृश्य पुराने आये

*

आज फिर देर तक बोला मुँडेर पर कागा

लौटकर क्या, वही पल फिर से सुहाने आये

*

उनकी यादों ने, मुझे चैन से सोने न दिया

ख्वाब में आये, तो बस मुझको रुलाने आये

*

कितने परिचित, यहाँ चेहरे दिखाई देते हैं 

याद, गुजरे हुए इक साथ जमाने आये

*

लेके, सद्भाव का मरहम निकल पड़े हैं वो 

दुश्मनी, ऐसे ही हर बार भंजाने आये

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 132 – गौरैया कहती सुनो… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “गौरैया कहती सुनो…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 132 – गौरैया कहती सुनो… ☆

 कांक्रीट के शहर में, नहीं मिले अब छाँव।

गौरैया कहती सुनो, चलो चलें फिर गाँव।।

 *

रवि है आँख दिखा रहा, बढ़ा रहा है ताप।

ग्रीष्म काल का नवतपा, रहा धरा को नाप।।

 *

कंठ प्यास से सूखते, तन-मन है बैचेन ।

दूर घरोंदे में छिपे, बाट जोहते नैन।।

 *

उनने खुद ही कर दिया, काट उन्हें बेजान।

ठूंठों से है आजकल, जंगल की पहचान।।

 *

सभी घोंसले मिट गए, तनते रोज मकान।

दाना पानी अब नहीं, हम पंक्षी हैरान।।

 *

पोखर पूर तलाब में, तन गईं अब दुकान।

हम पक्षी दर-दर फिरें, खुला हुआ मैदान।।

 *

सूरज के उत्ताप से, सूखे नद-तालाब।

आकुल -व्याकुल कूप हैं, हालत हुई खराब।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मंत्रमुग्ध हूँ…! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मंत्रमुग्ध हूँ…!  ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

जो मैंने कहा नहीं

जो मैंने लिखा नहीं

उसकी समीक्षाएँ

पढ़कर तुष्ट हूँ

अपनी चुप्पी की

बहुमुखी क्षमता पर

मंत्रमुग्ध हूँ…!

© संजय भारद्वाज  

1.9.18 रात्रि11:37 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares