श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक विचारणीय व्यंग्य “नंगे हो तो नंगे दिखो भी”।)
☆ शेष कुशल # 31☆
☆ व्यंग्य – “नंगे हो तो नंगे दिखो भी” – शांतिलाल जैन ☆
(इस स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे व्यंग्यकार के सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक हैं ।यदि किसी व्यक्ति या घटना से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि प्रत्येक व्यंग्य को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें।)
हम तो कहेंगे साहब कि ये हवाईजहाज़ बनाने वाली कंपनी की गलती है. इतने बड़े एयरक्राफ्ट के अन्दर खम्बे फिट करना भूल गई. अब किसी को एक पैर ऊपर करके हल्का होना हो तो वो आसमान में कहाँ जाए, बताईये भला ? फ्लाईट में बैठनेवाले सभी तो इंसा नहीं होते हैं ना, कुछ सूंघ कर करनेवाले भी होते हैं. धुत्त नशे में जो इंसा इंसा नहीं रहा उसके लिए क्या तो महिला और क्या तो खम्बा. करने को तो वे टायर पे भी कर सकते थे मगर आसमां में विमान के टायर बाहर नहीं होते सो अन्दर ही हल्का होना पड़ा.
बहरहाल, आसमां पर रहनेवाले आभिजात्य के लिए नीचे की पूरी दुनिया एक यूरीनल है, वे जब जैसे जहाँ चाहे यूरिनेट कर सकते हैं. वे ओरिजनलिटी में रहते हैं, नंगे हो तो नंगे दिखो भी. उन्होंने नंगापन दिखाया तो, आई मीन ज़िप खोल के जेनिटल्स दिखाए ना. अखबार में तो यही लिखा रहा. पूछने का मन किया किया कि बिना ज़िप खोले उनपे धार कैसे मारी जा सकती थी जो दादी नहीं तो माँ की उम्र की तो हैं ही. शराब तो बस तड़का लगाती है, असल नशा पद, पैसे, रसूख का होता है. एक तो फ्रिक्वेंट फ्लायर, मल्टीनॅशनल कंपनी का वाईस प्रेसिडेंट, करोड़ दो करोड़ का पैकेज तो रहा ही होगा, कमाल का पढ़ा लिखा मगर अंततः नंगा जो ठहरा. नंगे के नौ-ग्रह बलवान. केबिन-क्रू को भी अपनी नौकरी प्यारी जो ठहरी. न एयर इंडिया सरकारी रही न उनकी नौकरियाँ. अब गई कि तब गई. तलवार की धार पर चलना है तो धार मारनेवाले कस्टमर को भी नाराज़ नहीं कर सकते. घुटना डॉलर की तरफ मुड़ता है. एविएशन का मार्किट है श्रीमान, यहाँ उपभोक्ता राजा होता है. राजा को नंगा तो कोई अबोध बालक ही कह सकता है, कप्तान पायलट की क्या बिसात ?
वो राजा ही नहीं ‘राजा बेटा’ भी है. पप्पा बचाव में उतर आए हैं. जितनी घिनौनी हरकत लाड़ले ने की उतना ही खूबसूरत दलीलें धृतराष्ट्र ने दी. अपन के बाऊजी होते तो इससे हज़ार गुना छोटी हरकत पे भी हवाई अड्डे से घर तक जुतियाते हुए लाते और थानेदार को बोलते कि दो डंडे तू भी लगा नालायक के, बिरादरी में नाक कटा दी. अभिजनों के संसार में पैसा ही नाक है, माल हो ज़ेब में तो नाक तो टाईटेनियम की भी लग जाती है. होड़ सी लगी है – बेटा इत्ता नंगा तो बाप इत्ते पे और इत्ता. वैसे भी जो लोग सभ्यता के चरम पर पहुँच जाते हैं वे कब आदिम दौर में प्रवेश कर जाते हैं पता ही नहीं चलता, वल्कल वस्त्र से भी पूर्व की अवस्था में. उसी का मुज़ाहिरा पेश किया सुसु भैया ने. संभ्रांतजन उस सभ्य समाज की नुमाईंदगी करते हैं जो दीखते साथ में हैं मगर होते अकेले है. अकेले सहा दादी ने. पुरुष तो बहुत थे साथ में, कमी रही तो बस एक अदद मर्द की. एक ऐसे मर्द की जो टॉमी को लतियाकर भगा पाता.
बहरहाल, विमान के अन्दर खम्बों का इंतज़ाम किए जाने तक विमानन कंपनियों को चाहिए कि वे हर एग्जिट गेट के पास एक-एक पुराना टायर रख दे, उस प्रजाति का यात्री सूंघे और हल्का हो ले. दूसरे यात्रियों के कपड़े गीले न हों. विमान की आंतरिक दीवारों पर बाकी जगह लिखा हो – ‘यहाँ पेशाब करना मना है, पकड़े जाने पर पांच सौ रूपये जुर्माना’.
और हाँ, टेक-ऑफ से पहले एक जरूरी उद्घोषणा – “यात्रीगण कृपया ध्यान दें, इस फ्लाईट में पुरुष सह-यात्री डायपर पहन कर नहीं आए हैं अतः महिला यात्री अपनी सीट के नीचे रखे रेनकोट पहन लें और उतरते समय कुर्सी की पेटी खोलने के संकेत होने तक पहने रहें. आपकी यात्रा सूखी और शुभ हो.”
© शांतिलाल जैन
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