श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है पितृपक्ष में एक विचारणीय व्यंग्य – “बैठे ठाले – ‘कौआ महासंघ की मीटिंग के मिनिट’” ।)
☆ व्यंग्य जैसा # 227 – “बैठे ठाले – ‘कौआ महासंघ की मीटिंग के मिनिट’” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
पितृपक्ष के पहले ‘अखिल भारतीय कौआ महासंघ’ की गंभीर मीटिंग सम्पन्न हुई, जिसमें १७ तारीख से चालू होने वाले पितृपक्ष पर बहुत से ऐजेण्डों पर बातचीत हुई, महासंघ के महासचिव ने बताया कि कोई भी देश या समाज कितना भी विकसित या शिक्षित कहा जाए किन्तु यह सच है कि बिना अपनी आदिम परम्पराओं, विश्वास और आस्था के नही रह सकता। पूर्णरूपेण नास्तिक और भौतिकवादी रहने के अपने खतरे हैं। इस साल पितृ पक्ष 17 सितम्बर से आरंभ हो गया है, अखिल भारतीय कौआ महासंघ’ के डर से शासन ने 14 तारीख से 17 तारीख तक छुट्टी की घोषणा भी कर दी है ये हमारे महासंघ की विशेष उपलब्धि है। ऐसा मत सोचना कि ये पितृपक्ष सिर्फ हमारे भारत में ही मनाया जाता है, अमेरिका और अन्य देशों में ३१ अक्टूबर को इसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हेलोवीन पश्चिमी देशों का पितृपक्ष कहा जा सकता है। इस दिन आत्माओं को संतुष्ट करने उनकी कुदृष्टि से बचने उनको खुश रखने के लिए जो त्यौहार मनाया जाता है उसका नाम है हेलोवीन! कद्दू, कुम्हड़े या कुष्मांड का उस दिन अनेक प्रकार का व्यंजन बनाना, कद्दू के भूतिया डरावने चेहरे बनाकर पहनना ये सब हेलोवीन में होता है। आप सब बोर हो रहे हैं, इसलिए कुछ तुकबंदी भरी कविता सुनाना जरूरी लग रहा है। हमारे हितचिंतक बनारस के साहित्यकार सूर्य प्रकाश मिश्र जी को हम कौवा महासंघ की ओर से बधाई देना चाहते हैं उनका लिखा कौवा पुराण बहुत लोकप्रिय हुआ है, कौवा पुराण की कुछ पंक्तियां सुनिए…
“सूखे का मौसम रहे चाहे आये बाढ़
कागचन्द जी को खुदा देता छप्पर फाड़
देता छप्पर फाड़ बन गये हातिमताई
काग संगठन चला रहे हैं कौवा भाई
खास ख्याल रखते हैं हर नंगे भूखे का
इन्तजार करते रहते पानी -सूखे का”
‘कौवा महासंघ’ के महासचिव के रूप में मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि कौवे अब हंस की चाल चलने की गलती नहीं करते। वे जान गए हैं कि हंसो को आजकल कोई नहीं पूछता इसलिए वे अपनी ही चाल चल रहे हैं। एक और कहावत ‘कौआ कान ले गया’ आये दिन हम सब मीडिया और इन्टरनेट पर चरितार्थ होते देखते हैं। मसला कुछ भी हो सकता है, कोई वीडियो, कोई खबर या किसी फिल्म की विषयवस्तु। ख़बर चलती है कौआ कान ले गया और पब्लिक अपना कान चेेेक करने के बजाय डंंडा लेकर कौए को ढूंढने निकल पड़ती है। मनुष्य की ये आदत बिल्कुल गलत है, कौवा महासंघ’ इस प्रवृत्ति की निंदा करता है। कौवा महासंघ की सागर जिला ईकाई ने शिकायत दर्ज कराई है कि आजकल महिलाएं हम कौवों का नाम लेकर अपने पति को धमकी देतीं हैं और आंगन में नाचते हुए कहतीं हैं…
“झूठ बोले कौआ काटे,
काले कौए से डरियो
मैं मायके चली जाऊंगी
तुम देखते रहिओ “
भीड़ में पीछे से इंदौर के कौवे की आवाज आई, यदि झूठ बोलने वाले को कौआ काटता है तो नेता लोगों को अभी तक कोई कौवे ने क्यों नहीं काटा ? राम के नाम से वोट मांगकर लोग मंत्री बन जाते हैं फिर स्वयं प्रभु राम ने बाण मारकर हमें काना क्यों बना दिया ? संघ के महासचिव ने अपने दार्शनिक अंदाज में उत्तर दिया – देखिए इंदौर वाले भैया आपकी बात से हम सहमत हैं, पर हम कौवों को गर्व करना चाहिए कि प्रभु राम जी ने काना बनाकर हमें अमर कर दिया। कौवा जिसे आमतौर पर कोई देखना भी पसंद नहीं करता दुनिया के टाॅप टेन बुद्धिमान पशु-पक्षियों में गिना जाता है। बच्चों को सिखाया जाता है- काक चेष्टा, बको ध्यानम… ‘काक चेष्टा’ यानि कौए की तरह कोशिश, प्रयास करने वाला। मतलब ध्यान और लक्ष्य केन्द्रित।
भाईयो और बहनों…आपको लग रहा है कि मैं बहुत देर से कांव कांव कर रहा हूं, इसलिए ये माइक हम महासंघ के अध्यक्ष के हवाले कर रहा हूं, आप शांति बनाए रखें और वायदा करें कि इस बार पितृपक्ष में घर में बनाए बेस्वाद भोजन न करें, इस बार हमारा स्विगी, और जोमेटो से बहुत तगड़ा एग्रीमेंट हो गया है कि सब जगह के कौवे स्विगी, जोमोटो से मंगाएं गये भोजन का स्वाद लेंगे, और इस बाबत चित्रगुप्त जी को भी सूचना दी जा चुकी है कि वे सब पितर जरूर पधारें जिनकी बहुओं ने जीवन भर बेमन से बेस्वाद खाना खिलाया था, इस बार बढ़िया गर्मागर्म जोमेटो वाले सुस्वाद खाना सप्लाई करने वाले हैं…
© जय प्रकाश पाण्डेय
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