(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की एक समसामयिक एवं सार्थक व्यंग्य आश्वासन के सम्मान में वोट । इस सार्थक व्यंग्य के लिए श्री विवेक रंजन जी का हार्दिकआभार। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 79 ☆
☆ व्यंग्य – आश्वासन के सम्मान में वोट ☆
हम भारत के लोग सदा से आश्वासन का सम्मान करते आये हैं. प्रत्येक चुनाव में हर पार्टी के घोषणा पत्र निखालिस आश्वाशन ही तो होते हैं, जिनके सम्मान में नेता जी सादर चुन लिये जाते हैं. सरकारें बन जाती हैं फिर आश्वाशन पूरे हों न हों यह जनता के भाग्य पर निर्भर करता है. हम स्वयं अपने वोट से उत्साह पूर्वक अपने ही उपर राज करने के लिये चार किंबहुना समान चेहरो मे से किसी न किसी को चुन ही लेते हैं वह भी केवल उसके आश्वाशन का सम्मान करते हुये.
डाक्टर मरीज को आश्वासन देता है और बीमार महंगी दवाइयों पर भरोसा कर लेता है. बच्चे को माता पिता ईनाम का आश्वासन देते हैं और वह उसके सम्मान में मन लगाकर पढ़ने बैठ जाता है. पति पत्नी एक दूसरे को रोज दिये जाते आश्वासनो की पूर्ति में दाम्पत्य की इबारत लिखते रहते हैं. मालिक नौकर को वेतन बढ़ाने का आश्वासन देते हैं और वह उसके सम्मान में एक आशा के साथ महीनों निकाल देता है. मतलब हम सदा से आश्वासन का सम्मान करते आये हैं.
सामान्यतः सम्मान पोस्टपेड एक्टिविटी होती है. पहले लोग अपना सर्वस्व दांव पर लगा देते हैं, एक जुनून के पीछे. तब कहीं व्यक्ति के कार्य फलीभूत होते हैं और जब धरातल पर प्रयास कार्य में परिणित हो जाते हैं तब जब समाज उनका मूल्यांकन करता है तब बारी आती है सम्मान की. पर संयुक्तराष्ट्र संघ ने चैम्पियन्स आफ अर्थ का प्रतिष्ठापूर्ण सम्मान हमारे प्रधान मंत्री जी को प्रदान किया है. वास्तव में यह हर भारत वासी के लिये गर्व की बात है. मैं भी बहुत प्रसन्न हुआ. न केवल इसलिये कि प्रधानमंत्री जी के सम्मान से दुनियां में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है बल्कि इसलिये भी कि संयुक्त राष्ट्र संघ आश्वासन पर यह सम्मान देता है. यह सम्मान कार्य होने से पहले ही कार्य के आश्वासन का है. हमारे प्रधानमंत्री जी ने एक संकल्प, एक ढ़ृड़ता एक कमिटमेंट प्रदर्शित किया है कि २०२२ तक एकल उपयोग वाली सभी तरह की प्लास्टिक को भारत से हटा दिया जावेगा.इसी तरह उन्होने सोलर पावर के उपयोग के प्रति भी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है यह असाधारण नेतृत्व क्षमता सचमुच सम्मान योग्य है. संयुक्त राष्ट् संघ ने प्रधानमंत्री जी के इस महत्वपूर्ण कमिटमेंट को चेंपियन्स आफ अर्थ पुरस्कार से रिकगनाईज किया है.
ऐसे पुरस्कारो से सम्मान करने वाली संस्थाओ को प्रेरणा लेनी चाहिये.मतलब यह कि न केवल परिणामो का सम्मान हो बल्कि परिणामो के लिये प्रतिबद्धता का भी सम्मान किया जाना चाहिये. सम्मान केवल काम करने पर ही नही अब काम करने की योजनाओ पर भी दिये जाने शुरू कर दिये जाने चाहिये जिससे समाज में और रचनात्मक व सकारात्मक वातावरण बने.
यानी मैं उन अकादिमियो की ओर आशा भरी निगाहो से देख रहा हूं जो सम्मान के लिये प्रविष्टियां बुलाती हैं. नामांकन में आवेदन के प्रारूप में प्रकाशित पुस्तको की प्रतियां मांगती हैं. अब इसमें संशोधन की गुंजाइश है. किताब लिखने के संकल्प पर, लेखन के कमिटमेंट पर भी संयुक्त राष्ट्र संघ का अनुकरण करते हुये पुरस्कार दिया जा सकता है.
खैर लेखन के आश्वासन पर जब पुरस्कार मिलेंगे तब की तब देखेंगे, फिलहाल फ्री वेक्सीन, फ्री लैपटाप, लाखों नौकरियो के आश्वासनो के सम्मान में न सही अवार्ड कम से कम वोट तो दे ही रहे हैं हम.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈