श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “बैन बनाम चैन”। वास्तव में श्रीमती छाया सक्सेना जी की प्रत्येक रचना कोई न कोई सीख अवश्य देती है। सोशल मीडिया में विदेशी एप्प्स को बैन करने के सकारात्मक परिणामों के कटु सत्य पर विमर्श करती यह सार्थक रचना हमें राष्ट्रहित में उठाये कदमों हेतु प्रेरित करती है, बस समय के साथ जीवन शैली परिवर्तित करने की आवश्यकता है। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 25 ☆
☆ बैन बनाम चैन ☆
चैन बना कर व्यापार को बढ़ाने की खूबी तो आजकल जोर -शोर से सिखायी जा रही है । इतनी लंबी चैन की सामने वाले का चैन ही छीन ले । बस प्रचार – प्रसार हेतु छोटे- छोटे वीडियो बना कर पोस्ट करना तो मानो परम्परा का रूप ही धारण करने लगा है। हर बात को मीडिया से जोड़कर रखने में ही लोग फैशन समझते हैं । शेयर, हैश टैग, कमेंट, मैसेज ये सब रुतबे के साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म में घूमते नजर आते हैं ।
हर पीढ़ी के दिलोदिमाग पर इनकी गहरी छाप पड़ चुकी है । चार- चार लॉक डाउन बिना ऊफ किये यदि मजे से बीत गए हैं ; तो केवल डिजिटलाइजेशन की वजह से । इसकी खूबी है; कि जब मोबाइल हाथ में तो कैसे वक्त बीतता जाता है , कुछ पता ही नहीं चलता । जिस प्रश्न का उत्तर गूगल बाबा से पूछो तो उसके साथ – साथ बहुत से उत्तर अनोखे अंदाज में देने लगता है । यदि आप कच्चे मन के स्वामी हुए तो बस वहीं अटक कर रह जायेंगे, यदि छूटने हेतु थोड़ा और जोर लगाया तो यू ट्यूब के फंदे में अवश्य फसेंगे । बस यहाँ से आपको भगवान भी नहीं बचा सकते क्योंकि यहाँ आध्यात्म से जुड़े हुए एक से एक रोचक प्रसंग भी उपलब्ध रहते हैं ।
अब कैसे बचें ? आखिर इस सब से पेट तो भरेगा नहीं । फिर भी मनोरंजन तो जरूरी है; सो प्रयोग करते रहें । अब जबकि कुछ एप्स पर बैन लग चुका है तो इनके यूजर बेचारे रुआसे से हो रहे हैं । मजे की बात देखिए कि इस मुद्दे पर भी दो खेमे तैयार हैं, एक पक्ष में दूसरा विपक्ष में । क्या राष्ट्रीय हितों पर ही गुटबाजी अच्छी बात है । इन एप्स का इतना नशा कि आप राष्ट्र की अस्मिता को भी दाँव पर लगा कर इनके प्रयोग के समर्थन में जी- जान की बाजी लगा देंगे ।
अच्छा हुआ जो बैन लगा, पता तो चला कि इस विदेशी एप तकनीकी ने किस तरह से माइंड को बड़ी सफाई के साथ सेट कर मास्टरमाइंड बना दिया है। सही है ; जब मानसिक युद्ध मोबाइल के मार्फ़त हो रहा है, तो बचाव भी मोबाइल के माध्यम से ही होना चाहिए । समय रहते सचेत होने से स्वदेशी एप को बढ़ावा मिलेगा व भारतीय और तकनीकी रूप से उन्नत होने का प्रयास करेंगे जिससे सुखद परिणाम अवश्य आयेंगे अतः बेचैन होने से अच्छा है ; चैन के साथ बैन का स्वागत करें ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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