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(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)
साहित्य जगत में ग्रामीण क्षेत्र से उभरती प्रतिभा – श्रीमती योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ – अभिनंदन
श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’, झिगिराघाट अंजनिया, मंडला, मध्यप्रदेश के बहुत ही छोटे से गाँव से हैं। आप स्व. विजय चौरसिया (पिता), श्रीमति रजनी देवी चौरसिया (माता) की सुपुत्री एवं श्री योगेश चौरसिया जी की अर्धांगिनी अपना व्यापार संभालते हुए सामाजिक व साहित्यिक सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहती है।
आपने बहुत ही कम उम्र में कई मुकाम हासिल किए हैं। विगत दिनों आपने ‘भारत जानो’ पुस्तक पर राजस्थान से संबन्धित होते हुए दोहे व चौपाई से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कविसम्मेलन द्वारा मंत्रमुग्ध कर दिया। हाल ही में दिल्ली में सम्मान समारोह में हमारे देश के भारतरत्न साझा संकलन में डाँ. अब्दुल कलाम जी पर स्वरचित रचना जो गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में चयनित हुई है, नई दिल्ली में सम्मानित किया जाएगा।
आपने कई साझा संकलन पर काम किया है। दो सौ से अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। जिसमे कोरोना सम्मान, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रमुख है।
वर्तमान में आपके ‘प्रेमिल सृजन काव्य कलश 1’ नामक दोहा-छंद संग्रह व ‘विविध प्रकार के छंद काव्य कलश-2’ प्रकाशनधीन है।
आप कृष्ण भक्ति से ओतप्रोत अपने हृदयभावों को विश्व के समक्ष रखने का प्रयास करती है। स्वयं को जोगन मान बहुत सी रचनाओं द्वारा शब्दाजंली अपने माधव को अर्पित करती है।
आपकी रचनाएँ (गीत, गज़ल, छंदबद्ध, छंदमुक्त, कहानी, लघुकथा, संस्मरण आदि) विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्र पत्रिकाओं में सतत् प्रकाशित होती रहती हैं।
आपकी लेखनी का उद्देश्य समाज की व्यथा को उजागर करना व समाज में चेतना का संचार करना। हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार करना।
साहित्यिक जगत में एकल काव्य पाठ, दोहा शिक्षक व समीक्षक साथ ही संस्थागत दायित्व कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष अदि पदों का निर्वहन भी कर रही हैं।
आप समाजिक कार्यकर्ता के रुप में नारी समिति संस्था मंडला, आदर्श महिला क्लब मंडला, चौरसिया सेवा ट्रेस्ट मध्यप्रदेश, से जुड़ी है।
प्रेमिल सृजन :
विधा – नरहरि छंद
आज योगिता जोगन है, बावरी।
कृष्ण रंग मैं रँगती बन, साँवरी।।
हृदय धरे चलती अब जो, सार है।
दर्श आस रख अश्रु बहे, धार है ।।1!!
विरह वेदना करती है, सामना ।।
आ जाओ बंशी धारी, कामना ।
हृदय पीर बढ़ती है अब, साजना ।
सुनो प्रार्थना करती हूँ, साधना ।।2!!
सदा प्रीत ही जीत बने, हार कर ।
करें जिंदगी न्यौछावर, वार कर ।।
मीत अनोखे कृष्ण बने, खास हैं ।
हृदय पटल पर जो रचते, रास हैं ।।3!!
– योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’
मंडला म.प्र.
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈