प्रा. रोहिणी तुकदेव यांची नवीन कादंबरी ‘थांगपत्ता’ अगदी अलीकडेच , डॉ ताराबाई भवाळकर यांच्या हस्ते ‘ऑन लाईन’ प्रकाशित झाली आहे. त्यांचे अभिनंदन आणि पुढील वाटचालीसाठी त्यांना शुभेछा. आज वाचा, या कादंबरीविषयी त्यांनी लिहिलेले मनोगत.
ई–अभिव्यक्तीतर्फे अभिनंदन व पुढील वाटचालीसाठी शुभेच्छा
8 मार्च. जागतिक महिला दिन. या निमित्ताने महिला जगताशी संबंधित साहित्य पाठवावे असे आवाहन आम्ही केले होते. त्याला उत्तम प्रतिसाद मिळाला आहे.जास्तीत जास्त साहित्य आपल्या समोर यावे या उद्देशाने हा विशेषांकही अन्य विशेषांकांप्रमाणे आम्ही दि. 8, 9 व 10 असा तीन दिवस काढण्याचे आम्ही ठरवलेआहे. सर्वांनी असेच व्यक्त होत रहावे व ‘अभिव्यक्ती’ ला फुलवावे, ही विनंती.
?जागतिक महिला दिना निमित्त समस्त महिला वर्गाला खूप खूप शुभेच्छा आणि अभिनंदन. आपापल्या क्षेत्रातील कार्यकतृत्व बहरत जावो हीच सदिच्छा!?
तसेच
? स्त्रियांच्या कर्तृत्वाचे भान असणा-या, त्यांच्या कर्तृत्वाला वाव देणा-या, त्यांच्याविषयी समानतेचा भाव बाळगणा-या, पुरूष बांधवांनाही महिला दिनाच्या निमित्ताने विनम्र अभिवादन?
? ई-अभिव्यक्ति परिवार के गौरव – आचार्य भगवत दुबे जी को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से ‘साहित्य भूषण सम्मान’ ?
ई- अभिव्यक्ति परिवार के गौरव, देश के प्रतिष्ठित साहित्यकार एवं लगभग 50 से अधिक कृतियों के रचयिता हिंदी साहित्य जगत के पितामह गुरुवर परम आदरणीय आचार्य भगवत दुबे जी को आपकी साहित्य साधना के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया जाएगा । सम्मान स्वरूप आपको 2 लाख की नगद राशि प्रदान की जाएगी।
ई-अभिव्यक्ति ने आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तृत आलेख अपने पाठकों के साथ साझा किया था जिसे आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं:
☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव के व्यंग्य संग्रह ‘खटर पटर’ व ‘धन्नो बसंती और बसन्त’ लोकार्पित ☆
विवेक जी के व्यंग्य पाठक को बांध लेने वाले होते हैं .. अलका अग्रवाल, मुंबई
जबलपुर। वरिष्ठ व्यंग्यकार विवेक रंजन श्रीवास्त के सद्य प्रकाशित व्यंग्य संग्रहखटर पटर व धन्नो बसंती और बसन्त का लोकार्पण एक सादे समारोह में कोविड प्रोटोकाल का परिपालन करते हुए, मुम्बई से आई हुई अलका अग्रवाल व नगर के सक्रिय व्यंग्यकारों के मध्य सम्पन्न हुआ। समकालीन व्यंग्यकारों
डा स्नेहलता पाठक, रायपुर कहती हैं कि – “आदमी होने की तमीज सिखाते व्यंग्य लिखते हैं विवेक रंजन, लंबी सी बातों को कम से कम शब्दों में कह देना उनकी विशेषता है। इंजीनियर होते हुये भी वे भाषा और साहित्य में गजब की पकड़ रकते हैं।“
समीक्षा तैलंग, पुणे से लिखती हैं कि “विवेक जी का व्यंग्य लेखन कोरोना जैसी अलाओ बलाओ से भी रुकता नही, वरन विसंगतियो से उनका लेखन और मुखर होता है।“
साधना बलवटे, भोपाल से कहती हैं कि “हिन्दी साहित्य के विस्तृत आकाश में व्यंजना शक्ति का सामर्थ्य परिलक्षित हो रहा है। इन्हीं सामर्थ्यवानों में एक नाम विवेक रंजन श्रीवास्तव जी का है। अपनी निरतंर व्यंग्य साधना से उन्होंने साहित्य में अपना विशेष स्थान बनाया है।“
शांतिलाल जैन, उज्जैन की नजरों मे “विवेक रंजन श्रीवास्तव के पास व्यंग्य की कोई एक्सक्लूस्सिव भाषा या मुहावरा नहीं हैं, बल्कि वे विषय के अनुकूल मुहावरे गढ़ते है और यथायोग्य भाषा को बरतते हैं। उनके व्यंग्य अभिधा में बात कहने से बचते हैं जो व्यंग्य लेखन की पहली और अनिवार्य शर्त है। विवेक व्यंग्य के उपादान सावधानी से चुनते हैं और उसे इस तरह करीने से सजाते हैं कि रचना दिलचस्प बन उठती है।“
प्रभात गोस्वामी, जयपुर के अनुसार “एक बड़े जिम्मेदार शासकीय पद पर कार्य करते हुये आस पास होते अन्याय के विरुद्ध,कटाक्ष करने का साहस कम ही रचनाकारो में दिखता है, विवेक जी पूरी संवेदनशीलता के साथ विषय की गहराई में उतरकर बड़ी चतुराई से कलम से खतर पटर करते हुये प्रहार करते हैं। उम्मीद है उनकी यह खटर पटर ऐसी अनुगूंज बनेगी जो किंचित उन तक पहुंचेगी जिन पर वे प्रहार कर रहे हैं।“
इंजी अनूप शुक्ल, कानपुर बताते हैं कि “इंजी विवेक रंजन संस्कारधानी जबलपुर में रहते हुए विपुल लेखन करते सम्मानित साहित्यकार हैं। क्रिकेट में सिद्ध बल्लेबाज जिस तरह विकेट के चारो तरफ शॉट लगाते हैं विवेक जी उसी तरह समसामयिक विषयों पर लगातार लेखन करते हैं।“
अरुण अर्नव खरे, बेंगलोर – “विवेक रंजन जी को आज के सबसे सक्रिय व्यंग्यकारों में बताते हैं। एक इंजीनियर होने के चलते छोटी छोटी अदृश्य लगने वाली चीज़ें भी उनकी दृष्टि से बच नहीं पाती और उनको लेकर जिस तरह वह अपनी रचनाओं की बुनावट करते हैं वह कई बार चमत्कृत करता है। उनके पास विषयों का भंडार है और वह समाज से ऐसे विषयों को उठाते हैं जो समाज के प्रति उनके दायित्वबोध को दिखाता है।“
राजशेखर चौबे, रायपुर कहते हैं कि “श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी व्यंग्य के बेहतरीन खिलाड़ी हैं वे तकनीकी ज्ञान का भरपूर प्रयोग कर विज्ञान कथाएं भी लिखते है।“
कैलाश मण्डलेकर, खण्डवा के शब्दों में “विवेक जी के व्यंग्यो में सामाजिक विद्रूप के खिलाफ सहज व्यंग्य बोध है। वे इस बात की फिक्र करते दिखते हैं कि जो दिखाई दे रहा है उसके नेपथ्य में क्या चल रहा है जिसे वे निडरता से उजागर करते हैं।“
श्री अरविंद तिवारी, शांहजहांपुर के अनुसार “विवेक रंजन व्यंग्य में शिद्दत से सक्रिय हैं। वे व्यंग्य गोष्ठियां खूब करते हैं। नये नये विषयो पर लिखते हैं। उनके व्यंग्य का कलेवर बहुत बड़ा नही होता किंतु वे संदेश दायी होते हैं।“
श्री प्रभाशंकर उपाध्याय के अनुसार “विवेक जी गंभीर रचनाकार हैं। बहुत अच्छा लिख रहे हैं। मैं सुझाव देना चाहता हूं कि अखबारों के लिए लिखते समय, पहले रचना को शब्द सीमा से मुक्त होकर लिखें उस मूल रूप को अलग से सुरक्षित रखें और उसके बाद शब्द सीमा के अनुरूप संशोधित कर समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में भेज दें। मैं ऐसा ही करता हूं।“
बुलाकी शर्मा, दिल्ली कहते हैं – “फेसबुक, सोशल मीडिया, अखबारो के संपादकीय पन्नो पर मैं विवेक रंजन जी को पढ़ता रहा हूं। साहित्य के संस्कार उन्हें परिवार से मिले हैं। वे इंजीनियर के रूप में बड़े पद के दायित्वों के साथ निरंतर साहित्य सेवा में निमग्न हैं। उनके कार्यालयीन अनुभवो का प्रतिफलन उनके लेखों में स्पष्ट दिखता है। वे गहरे तंज करने में माहिर हैं।“
श्री जय प्रकाश पाण्डे, जबलपुर ने समारोह में विमोचित कृतियों की लिखित समीक्षा पढ़ीं, उनके अनुसार “विवेक जी की रचना शैली जीवन मूल्यों के प्रति संघर्ष करना सिखाती है, विसंगतियों को पकड़ने का उनका अपना अलग अंदाज है। वे सहजता से तीखी बात कहने में माहिर हैं। बहुआयामी विषयो पर लिखते हैं। व्यंग्य के धारदार उपकरणो का सतर्कता से प्रयोग करते हैं।“
टीकाराम साहू – “विवेक रंजन श्रीवास्तव जी के व्यंग्यों की सबसे बड़ी विशेषता बताते हुए कहते है-रोचकता और धाराप्रवाह लेखन।शीर्षक बड़े मजेदार है जो व्यंग्य के प्रति उत्सुकता जगाते हैं।“
पिलकेंद्र अरोड़ा उज्जैन– “विवेक रंजन जी विगत कई वर्षो से व्यंग्य के क्षेत्र में खटर पटर कर रहे हैं। आपके व्यंग्य विवेक पूर्ण होते हैं। पाठको का रंजन करते हैं। उनके व्यंग्य में विट और आयरनी का करंट बिना कटौती दौड़ता रहता है। इसलिये वे लगातार प्रकाशित होते हैं।“
लालित्य ललित के अनुसार “विवेक रंजन श्रीवास्तव बेहतरीन व्यंग्यकार हैं व्यंग्य तो व्यंग्य वे कविता में भी उतने ही सम्वेदनशील है जितने प्रहारक व्यंग्य में।“
परवेश जैन, लखनऊ कहते हैं कि “परसाई जी की नगरी के श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी की रचनाओं में परसाई की पारसाई झलकती हैं। वे प्रत्येक व्यंग्य में गहन चिन्तन के पश्चात विषय का सावधानी से प्रवर्तन करते हैं। व्यंग्यकार विवेक को फ्रंट कवर पर लिखवा लेना चाहिए “चैलेंज।। पूरी पढ़ने से रोक नहीं सकोगें”।“
मुकेश राठौर के अनुसार “विवेक जी बोलचाल के शब्दों के बीच उर्दू और अंग्रेजी भाषा के शब्दों को खूबसूरती से प्रयोग करते हैं उनकी भाषा सरल,प्रवाहमान है जो पाठक को बहाते लिए जाती है। रचनाओं में यत्र-तत्र तर्कपूर्ण ‘पंच’ देखे जा सकते हैं। रचनाओं के शीर्षक बरबस ध्यान खींचते हैं।“
शशांक दुबे, मुम्बई बताते हैं “विज्ञान के विद्यार्थी होने के कारण विवेक जी के पास चीजों को सूक्ष्मतापूर्वक देखने की दृष्टि भी है और बगैर लाग-लपेट के अपनी बात कहने की शैली भी।“
हरीशकुमार सिंह, उज्जैन के शब्दों में “प्रख्यात व्यंग्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव के व्यंग्य आज के भारत के आम आदमी की व्यथा हैं। उसे राजनीति ने सिर्फ दाल रोटी में उलझा दिया है और अपने व्यंग्य में वे लगभग ऐसे सभी विषयों पर कटाक्ष करते हैं।“
रमेश सैनी, जबलपुर कहते हैं कि “विवेक रंजन जी के व्यंग्य दृष्टि सम्पन्न हैं जिसमें समाज और वर्तमान समय में व्याप्त विसंगतियों पर प्रहार किया गया है।लेखक की नजर मात्र विसंगतियों पर नहीं वरन मानवीय प्रवृत्तियों पर भी गई है जो कहीं न कहीं पाठक को सजग करती हैं।“
राकेश सोहम, जबलपुर ने कहा कि “आदरणीय विवेक रंजन की सक्रियता व्हाट्स एप्प के समूहों से मिलती है। रचनाओं में उतरने से पता चलता है कि उनकी दृष्टी कितनी व्यापक है। एक इंजीनियर होने के नाते तकनीकी जानकारी तो है ही। अपनी पारखी दृष्टी और तकनीकी ज्ञान को बुनने का कौशल उन्हें व्यंग्य के क्षेत्र में अलग स्थान प्रदान करता है।“
श्री गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त ने संचालन व श्री ओ पी सैनी ने आभार व्यक्त किया।
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
दि. 27 फेब्रुअरी “मराठी राजभाषा गौरव दिन” व “कुसुमाग्रज जन्म दिन” आणि दि. 28 फेब्रुअरी “विज्ञान दिन” साजरा होत आहे. या अनुषंगाने आम्ही आपल्याकडून साहित्य मागवले होते.या आवाहनाला आमच्या अपेक्षेपेक्षा खूपच उत्तम प्रतिसाद आपण दिला आहेत. त्यामुळे दि. 27, 28फेब्रुवारी आणि 1 मार्च हे तीन दिवस आपल्याला मराठी भाषा व विज्ञान याविषयीचे साहित्य वाचायला मिळणार आहे. आपण त्याचा आस्वाद घ्यालच.
९४व्या अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलनाचे अध्यक्ष म्हणून ज्येष्ठ वैज्ञानिक आणि विज्ञानलेखक डॉ जयंत नारळीकर यांची सन्मानपूर्वक निवड करण्यात आली आहे. यानिमित्ताने यंदाचा विज्ञान दिवस (दि.28 फेब्रुवारी) साजरा कराण्यासाठी विज्ञान कथा, कविता अपेक्षित आहे.
आपले साहित्य दि. 26/02/2021 पर्यंत पाठवावे,ही विनंती.
!!!…अवसर है पुस्तक “तलवार की धार” के लेखक, अध्ययन और पर्यटन के शौक़ीन एवं स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त सहायक-महाप्रबंधक “सुरेश पटवा” जी से मिलने का…!!!
? किताब के बारे में ? ? तलवार की धार ?
संविधान सभा में विचार किया गया था कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्यापक लोकहित सुनिश्चित करने हेतु संस्थाओं की स्वायत्तता सबसे महत्वपूर्ण कारक होगी ताकि संस्थाएँ सम्भावित तानाशाही पूर्ण राजनीतिक दबाव और मनमानेपन से बचकर जनहित कारी नीतियाँ बनाकर पेशेवराना तरीक़ों से लागू कर सकें। इसलिए भारतीय स्टेट बैंक का निर्माण करते समय सम्बंधित अधिनियम में संस्था को स्वायत्त बनाए रखने की व्यवस्था की गई थी। तलवार साहब ने भारतीय दर्शन के रहस्यवादी आध्यात्म की परम्परा को अपने जीवन में उतारकर सिद्धांत आधारित प्रबन्धन तरीक़ों से प्रशासकों की एक ऐसी समर्पित टीम बनाई जिसने स्टेट बैंक को कई मानकों पर विश्व स्तरीय संस्था बनाने में सबसे उत्तम योगदान दिया। आज भारत को हरमधारी साधु-संतो की ज़रूरत नहीं है अपितु आध्यात्मिक चेतना से आप्लावित तलवार साहब जैसे निष्काम कर्मयोगी नेतृत्व की आवश्यकता है जो भारतीय संस्थाओं को विश्व स्तरीय प्रतिस्पर्धा में खरी उतरने योग्य बनाने में सक्षम हों। यह पुस्तक ऐसे ही निष्काम कर्मयोगी के कार्य जीवन की कहानी है। जो आपको यह बताएगी कि मूल्यों से समझौता किए बग़ैर सफल, सुखद और शांत जीवन यात्रा कैसे तय की जा सकती है।
दिनाँक : 20 फरवरी 2021
समय : 4:00 pm – 5:00 pm
मिलने का स्थान : लैंडमार्क द बुक स्टोर, ई-5/21, अरेरा कॉलोनी, हबीबगंज पुलिस स्टेशन रोड, भोपाल
फोन : 0755-2465238/4277445
? नीचे दिये फेसबुक लिंक के माध्यम से आप इस कार्यक्रम में जुड़कर लेखक के साथ अपने विचार-विमर्श कर सकते हैं –
ई–अभिव्यक्तीच्या लेखिका सौ. दीप्ती कुलकर्णी यांना आज श्री साई प्रकाशन मिरज यांच्या वतीने आयोजित केलेल्या साहित्य संमेलनात, या संस्थेतर्फे नवरत्न साहित्य पुरस्काराने गौरवण्यात येत आहे.
त्यांची चैतन्य (काव्यसंग्रह), असे शोध: असे संशोधक – भाग १ आणि भाग २ ही पुस्तके प्रसिद्ध आहेत. याशिवाय विविध पुस्तकातून, मासिकातून त्यांचे लेख, निबंध, कथा इ. प्रकाशित झाल्या आहेत. काही निबंधांना विविध संस्थाचे पुरस्कारही मिळाले आहेत. बालकुमार साहित्य सभा – कोल्हापूर संस्थेमध्येही त्या सक्रीय आहेत.
पुरस्काराबद्दल त्यांचे ई–अभिव्यक्तीतर्फे अभिनंदन व पुढील वाटचालीसाठी शुभेच्छा.