हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 85 – दाग दामन में ऐसा लगाकर गये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – चातक व्रत का वरण किया है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 85 – दाग दामन में ऐसा लगाकर गये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

मेरा दिल, इस तरह वो दुखाकर गये 

मेरे दुश्मन के सँग, मुस्कुराकर गये

*

आशियाना मेरा, फूंक जिनने दिया 

वो, नये घर का नक्शा, दिखाकर गये

*

याद मुझको नहीं, अपने घर का पता 

वो, खुदा का ठिकाना, बताकर गये

*

साफ करना जिसे, चाहता मैं नहीं 

दाग दामन में ऐसा लगाकर गये

*

जीते जी, जो अछूतों के जैसे रहे 

राख, गंगा में उनकी, बहाकर गये

*

उनके बलिदान पर, गर्व करता वतन 

राष्ट्र चरणों पर, जो सिर चढ़ाकर गये

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अजेय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  अजेय ??

समुद्री लहरों का

कंपन-प्रकंपन,

प्रसरण-आकुंचन,

मशीनों से

मापनेवालों की

आज हार हुई,

मेरे मन में

उमड़ती-घुमड़ती लहरें,

उनकी पकड़

और परख से

दूर जो सिद्ध हुईं..!

© संजय भारद्वाज  

।7.11.2016, रात्रि 9.40 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना आपको शीघ्र दी जावेगी। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 157 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपके “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 157 – मनोज के दोहे ☆

अविश्वास के दौर ने, बड़ी खींच दी रेख।

संबंधों की बानगी, समय बिगड़ता देख।।

 *

रामायण के पात्र सब,बहुविध दें संदेश।

यश अपयश की राह चुन, हम बदलें परिवेश।।

 *

विद्या पा जाग्रत करें, अपना ज्ञान विवेक।

जीवन सफल बनाइए, राह बनेगी नेक।।

 *

नेकी की दीवार से, गढ़िए नए मुकाम।

मानवता समृद्धि से, खुश होते श्री राम।।

कालचक्र अविरल चला, गढ़ी गई यह सृष्टि।

फिर उदास किस बात पर, बदलें अपनी दृष्टि।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




English Literature – Travelogue ☆ New Zealand: A Journey Through Aotearoa: Memoirs of New Zealand:  # 7 ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

Shri Jagat Singh Bisht

☆ Travelogue – New Zealand: A Journey Through Aotearoa: Memoirs of New Zealand:  # 7 ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

My love affair with the Land of the Long White Cloud, Aotearoa – New Zealand – began a few years ago, and my fondness for this enchanting country has only grown with time. This travelogue captures glimpses from our first unforgettable adventure in Kiwi Land.

Having previously explored destinations like the Andaman and Nicobar Islands, Thailand, and Malaysia during brief holidays, we yearned for a long, leisurely escape. That wish materialized when Anurag sent us tickets to Auckland. The flight with Air New Zealand was seamless, and we were greeted warmly by Sneha and Anurag at the Auckland International Airport. Their cozy home at North Shore became our haven during the trip.

Settling into the Kiwi Rhythm:

Jet lag was surprisingly absent, and the next morning started with chai. While Sneha and Radhika visited the Countdown supermarket, Anurag and I spent time catching up as he washed his bike. In the evening, a long, circular walk from Birkdale to Beach Haven set the tone for our stay – a mix of exploration, nature, and bonding.

Queenstown: Adventure in Paradise:

A flight to Queenstown in the South Island unveiled a world of alpine beauty. Nestled on the shores of Lake Wakatipu and surrounded by dramatic ranges, the town captivated us. Highlights included savoring the iconic Fergburger, exploring serene walking trails, and enjoying panoramic views from Bob’s Peak via a gondola ride. A coach trip to Milford Sound was the pinnacle of our journey, with its awe-inspiring cliffs, cascading waterfalls, and Kipling-worthy vistas.

Cricket, Beaches, and Regional Parks:

The thrill of watching a T20 cricket match between Pakistan and New Zealand at close quarters was an unforgettable experience. Weekend drives to the Coromandel Peninsula revealed golden beaches and lush rainforests, while evenings at Shakespear Regional Park were filled with laughter and tranquility.

Volunteering and Spiritual Connection:

Volunteering at Dhamma Medini, a Vipassana meditation center in Kaukapakapa, added depth to the trip. Surrounded by a picturesque valley, my days were spent gardening, maintaining the premises, and meditating. A laughter yoga session with dhamma servers from across the globe brought smiles and joy.

Rotorua: A Geothermal Wonderland:

Rotorua’s unique geothermal activity gave it an otherworldly charm. From the vibrantly colored Champagne Pool to a Maori cultural show complete with Haka dance and traditional dinner, every moment in this lakeside city was extraordinary.

Daily Adventures and Laughter Clubs:

Daily walks through Kauri parks and along the coast became cherished routines. A newfound yoga spot by the sea at Beach Haven Wharf was Radhika’s sanctuary. Meanwhile, the laughter yoga community welcomed us warmly, sharing their practices and camaraderie during gatherings arranged by Louise Stevens.

Exploring Auckland’s Gems:

Auckland’s vibrant mix of attractions kept us enthralled – from the War Memorial Museum and Botanic Gardens to a walk from Britomart to Mission Bay Beach. Watching the sunrise from Mount Eden and sunset from Devonport provided bookends to days filled with exploration.

Culinary Delights and Cultural Etiquette:

From Thai and Mediterranean cuisine to indulgent chocolates, ice cream, and Manuka honey, our taste buds were in for a treat. Two simple yet powerful words, “kia ora,” epitomized the Kiwi spirit of warmth and respect.

Reflections on Aotearoa:

As we boarded our flight home, one thought lingered: if citizens everywhere followed rules and embraced kindness as the Kiwis do, every country could be as peaceful as New Zealand. This journey was more than a trip; it was an immersion into a way of life that left us inspired and longing to return.

© Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

Founder:  LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and training.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈




हिन्दी साहित्य – संस्थाएं ☆ “लिटरेरी वॉरियर्स: साहित्य का वैश्विक मंच”/”सृजन का कारवां: लिटरेरी वॉरियर्स” ☆ साभार – सुश्री नीलम सक्सेना ☆

☆ संस्थाएं ☆ “लिटरेरी वॉरियर्स: साहित्य का वैश्विक मंच”/”सृजन का कारवां: लिटरेरी वॉरियर्स” ☆ साभार – सुश्री नीलम सक्सेना ☆

विश्व विख्यात लेखिका कवियित्री और लिम्का बुक्स ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर नीलम सक्सेना जी द्वारा नवंबर, 2011 में POETS AND WRITERS DEN नामक समूह की स्थापना की गई। उस समय फेसबुक भी धीरे-धीरे प्रचलित हो रहा था इस समूह को स्थापित करने का उस समय एकमात्र उद्देश्य था साहित्य में रुचि लेने वाले उनके सहपाठी और मित्रों को एक मंच प्रदान करना। प्रारंभिक दिनों में इस समूह में केवल उनके महाविद्यालय के सहपाठी ही थे । समूह को प्रारंभ करते हुए कविता लेखन और कुछ साहित्यिक प्रतियोगिताएं और गतिविधियां आयोजित की गई। धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता गया ……जैसा कि मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने कहा है कि

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,

लोग साथ आते गए कारवां बढ़ता गया

इसी तरह यह कारवां बढ़ते बढ़ते हजारों तक पहुंच गया समूह के ईमानदार प्रयासों से इसकी लोकप्रियता भी बढ़ती गई और समान रुचि वाले साहित्य प्रेमी जुड़ते चले गए।

फिर आया 2020 जब संपूर्ण विश्व को आपदा का सामना करना पड़ा। कोरोनाकाल में जब सभी इस महामारी से जूझ रहे थे, तब जन्म हुआ साहित्यिक सिपाहियों की ऑनलाइन गतिविधियों का। इस तरह POETS AND WRTERS DEN तब्दील हो गया लिटरेरी वॉरियर्स ग्रुप में। उस समय जब सभी लोग महामारी से जूझ रहे थे तो कठिन मानसिक दौर से जूझने के लिए रचनात्मकता सबसे बेहतरीन माध्यम थी। यह आवश्यक था कि जीवन को सकारात्मक बनाए रखने के लिए रचनात्मकता से जुड़ा जाए। इसी उद्देश्य के साथ फेसबुक पेज पर ऑनलाइन कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। आज जब पीछे मुड़कर देखते हैं तब लगता है कि कुछ सहपाठियों द्वारा शुरू किया गया यह छोटा सा समूह आज विश्व विख्यात है। इसमें लगभग 300000 फॉलोअर्स है और पेज की व्यूअरशिप भी लगभग लाखों तक पहुंच गई है। इस समूह से न केवल भारत के साहित्य प्रेमी बल्कि विदेश में बसे भारतीय साहित्य प्रेमी भी जुड़ते जा रहे हैं।

आज तक लिटरेरी वॉरियर्स ग्रुप के तहत बहुत सारे कार्यक्रम साहित्यिक समारोह आयोजित किए हैं जिसमें प्रमुख हैं साहित्य अकादमी दिल्ली में आयोजित लिटरेचर फेस्टिवल जो कि नवंबर 2023 में आयोजित किया गया था। इसी प्रकार प्रतिष्ठित NCPA सभागृह में लिटरेरी वॉरियर्स ग्रुप के सफल कार्यक्रम आयोजित किया जा चुके हैं। इसके अलावा विश्व पुस्तक मेला लखनऊ में 11 पुस्तकों का विमोचन भी हमारे समूह द्वारा किया गया जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। हाल ही में पुणे के प्रतिष्ठित CME सभागार, पुणे में लिटरेरी वॉरियर्स ग्रुप के दूसरे लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन किया गया। दो दिन के इस समारोह में संपूर्ण भारत से आए साहित्य प्रेमियों ने उत्साह पूर्वक हिस्सा लिया और इस कार्यक्रम को सफल बनाया। कार्यक्रम के दौरान पुस्तक विमोचन, चित्रकला प्रदर्शनी, कविता पाठ और विभिन्न प्रतियोगिताओं के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों का भी आयोजन किया गया।

हम सब ने मिलकर अपने आप को साहित्य के योद्धा घोषित कर दिया है। देखा जाए तो हम सब सिपाही ही थे जो कोरोनाकाल के उस गंभीर दौर में नकारात्मकता से लड़ रहे थे। कलम और भावनाओं का सुहाना सफर यूं ही जारी रहे यही उम्मीद है।

और अंत में…

Here is the story of LWG from our very own Anup Jalan Ji who made this video despite his ill health.

Literary Warriors Group or LWG is a brainchild of well-known author and poetess, Neelam Saxena Chandra, who wanted to bring Indian authors together under the same roof and create a platform for budding writers and poets to express themselves, learn and grow.
Author and translator Anup Jalan Ji was one of the first six members of the group and has seen it grow from six to an amazing 1,300 members.

LITERARY WARRIORS GROUP की कहानी श्री अनूप जालान जी की जुबानी

Instagram Link 👉 https://www.instagram.com/reel/DC_BflhtMqY/?utm_source=ig_web_copy_link&igsh=MzRlODBiNWFlZA==

साभार – सुश्री नीलम सक्सेना 




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मेरी डायरी के पन्ने से # 39 – लघुकथा – संस्कार ☆ सुश्री ऋता सिंह ☆

सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से …  लघुकथा – संस्कार)

? मेरी डायरी के पन्ने से # 39 – लघुकथा – संस्कार ?

“भाभी आपके कॉलेज की सहेलियाँ आपसे मिलने आईं हैं।” शुभ्रा ने अपनी भाभी तृषा से कहा।

तृषा अपनी सास के साथ बैठी थी।आजकल दिन भर कोई न कोई मिलने आया करता था।अभी कुछ दिन ही तो हुए थे उसके ससुर जी का देहांत हुआ था। वह आजकल सप्ताह भर छुट्टी पर थी।वह तुरंत  ड्राइंग रूम की तरफ़ चलने को उद्यत हुई।

सास ने कहा ” बेटा पानी तो पूछ लेना।अब समय बदल गया है।” “जी माँ।”  कहकर तृषा सहेलियों के बीच आ गई।

पहले सभी एक एक कर उसके गले लगीं और शोक व्यक्त किया। नेहा तृषा की करीबी सखी थी।उसने अचानक यह सब कैसे हो गया पूछा तो तृषा रोने लगी और आँसू पोंछती हुई ससुर जी के अचानक गुज़र जाने का वृतांत सुनाने लगी।

नेहा ने उसके कंधे पर हाथ रखकर ढाढ़स बँधाया और कहा,” अब कुछ समय वर्क फ्रॉम होम कर ले।सासू माँ को सहारा हो जाएगा।”

“हाँ , ऐसा ही कुछ सोच रहे हैं। हम तीनों मिलकर ही वर्क फ्रॉम होम करेंगे तो माँ के पास हमेशा ही कोई न कोई होगा।”

“दो-तीन महीने में संभल जाएँगी वे। खाना बना रही हो तुम लोग?” सुमन ने पूछा।

“नहीं रे, मम्मी के घर से तीनों टाइम का भोजन आता है। मम्मी पापा शाम का खाना लेकर स्वयं माँ से मिलने आते हैं। कभी बुआ जी आती हैं तो वे भोजन लेकर आती हैं।कभी छोटे चाचू और चाची आते हैं। दिन भर लोगों का आना जाना लगा रहता है।” तृषा बोली।

“तेरा सारा परिवार इसी शहर में है तो सब मिलकर संभाल लेते हैं। यही तो फायदा होता है साथ रहने से ।” एक सहेली बोली

तृषा ने चाय के लिए पूछा तो सबने मना किया। अब वे आपस में बातें करने लगीं। इतने में नेहा ने कहा- तृषा इस महीने में तेरी किट्टी है। अब तो गेट टूगेदर न हो पाएगा घर पर। क्या करना है बता।”

एक सखी बोली- अपने पापा के घर जा रही है कहकर कुछ घंटों के लिए निकल जाना, फिर किसी होटल में पार्टी कर लेंगे।”

तृषा अवाक सी उसकी ओर देखकर बोली- मैं ऐसा नहीं कर सकती। मेरे ससुर जी मेरे भी पिता थे। उनके निधन पर मुझे भी उतना ही दुख है जितना शेखर और शुभ्रा को है। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी। इस बार की किट्टी कोई और उठा ले यह ग्रुप में बता दो।

नेहा ने कहा -“ठीक है यही सही है। अपना ध्यान रख। याद रख तेरे भीतर भी एक प्राण पल रहा है।ह र समय उदास रहना उसके लिए भी ठीक नहीं।”

सखियाँ चली गईं। शुभ्रा कमरे के भीतर से सभी सहेलियों की बात सुन रही थी। उसने माँ से जाकर सहेलियों की आपसी चर्चा का ज़िक्र किया।

माँ बोली, ” सुसंस्कृत घर की बेटियाँ दोनों घरों को जोड़े रखतीहैं। केवल पढ़ लिख लेना पर्याप्त नहीं होता। यही तो संस्कार है।

© सुश्री ऋता सिंह

23/11/24

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 559 ⇒ चेतना के स्वर ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चेतना के स्वर।)

?अभी अभी # 559 ⇒ चेतना के स्वर ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जीव जड़ नहीं चेतन है। चेतना तो पेड़ पौधों और वनस्पति में भी है, लेकिन उनका विकास जड़ से ही तो होता है। जीव की उत्पत्ति भी बीज से ही होती है। एक बीज से ही पूरा वृक्ष आकार लेता है, मानव हो अथवा महामानव, सभी माता के गर्भ से ही जन्म लेते हैं।

जड़ चेतन में हमें जो भेद दिखाई देता है, वह भी स्थूल ही है। परोक्ष रूप से देखा जाए तो पूरी सृष्टि में ही चेतन तत्व समाया हुआ है। अगर पंच महाभूत चेतन नहीं होते तो हमारे शरीर का भी निर्माण नहीं होता। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से ही हमारा कारण शरीर बना है। प्राण तत्व तो इतना सूक्ष्म है, कब जीव में प्रवेश करता है और कब और कहां विलीन हो जाता है, कुछ पता ही नहीं चल पाता। ।

पदार्थ जिसे विज्ञान की भाषा में matter कहते हैं, उसके भी विशिष्ट गुण धर्म होते हैं। पदार्थ की तीन अवस्थाएं होती हैं, ठोस, द्रव और गैस। ठोस पदार्थों का आकार और आयतन निश्चित होता है। 

द्रवों का आयतन निश्चित होता है, लेकिन वे अपने कंटेनर के आकार के मुताबिक ढल जाते हैं. ऑक्सीजन और हीलियम गैसों के उदाहरण हैं.कहीं पहाड़ तो कहीं समंदर। जब कि गैसों का कोई निश्चित आकार या आयतन नहीं होता।

आप मरे और जग प्रलय। हम तो मरते ही चेतना शून्य हो जाते हैं, हमारा जीवन संगीत ठहर जाता है, चेतना के स्वर टूट, बिखर जाते हैं। जब कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं, एक नई शुरुआत है, फिर भोर है, प्रभात है, किसी घर में अहीर भैरव के स्वर गूंज रहे हैं, जागो मोहन प्यारे, लेकिन हम, इस सबसे अनजान हैं, क्योंकि मेरा जीवन सपना टूट गया। ।

यह जीवन और यह दुनिया ही हमारा संसार है, हमारा अस्तित्व है, क्योंकि इसके आगे हमारी चेतना का विकास ही नहीं हुआ है, कूप मंडूक होते हुए भी हमारी अस्मिता और अहंकार के कारण हम किसी सर्वज्ञ से कम नहीं। हमने पत्थर को भगवान मान तो लिया, लेकिन कभी जानने की कोशिश नहीं की।

हम मृत्यु और प्रलय में ही उलझे रहे, अमर होने की केवल कोशिशें करते रहे, कभी महामृत्यु और महाप्रलय की ओर हमारा ध्यान गया ही नहीं। जब तक हम अपने भय पर विजय प्राप्त नहीं करते, मृत्यु पर कैसे विजय प्राप्त कर पायेंगे। ।

जीवन कभी भी ठहरता नहीं, जल की कलकल ध्वनि ही जीवन संगीत है, पक्षियों का कलरव, बादलों का गरजना, बिजली का चमकना, सूर्य की सुनहरी धूप और चंद्रमा की कलाएं, चांदनी, ध्रुव नक्षत्र और तारागण ही केवल अखिल ब्रह्मांड का हिस्सा नहीं, स्वर्ग लोक, पाताल लोक और नर्क की धारणा, से भी परे सप्त लोक भी है। कौन ऋषि है और कौन तारा, सुन चंपा सुन तारा, यह इतना आसान नहीं।

इस चेतन तत्व में ही परा चेतना के स्वर हैं। अपना पराया भूलकर, चित्त शुद्धि के पश्चात् ही परा चेतना की यात्रा शुरू होती है। उस यात्रा का कोई पासपोर्ट नहीं कोई वीजा नहीं, कोई आधार, कोई पहचान पत्र नहीं। जो अपने आप को पूरी तरह भूलकर उस परमात्मा में समा गया, उसकी चेतना के सभी स्वर झंकृत हो गए। नूपुर सबद रसाल, बसो मोरे नैनन में नंदलाल। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 322 ☆ लघुकथा – “काउंटर गर्ल…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 322 ☆

?  लघुकथा – काउंटर गर्ल…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

उसने बचपन से ही पढ़ा था रंग, रूप, धर्म, भाषा, क्षेत्र के भेदभाव के बिना सभी नागरिकों के सभी अधिकार समान होते हैं । सिद्धांत के अनुसार नौकरी में चयन का आधार योग्यता मात्र होती है।

किन्तु आज जब इस बड़े से चमकदार शो रूम में उसका चयन काउंटर गर्ल के रूप में हुआ तो ज्वाइनिंग के लिए जाते हुए उसे अहसास था कि उसकी योग्यता में उसका रंग रूप, सुंदरता, यौवन ही पहला क्राइटेरिया था । यह ठीक है कि उसका मृदु भाषी होना, और प्रभावी व्यक्तित्व भी उसकी बड़ी योग्यता थी, पर वह समझ रही थी कि अलिखित योग्यता उसकी सुंदरता ही है। वह सोच रही थी, एयर होस्टेस, एस्कार्ट, निजी सहायक कितने ही पद ऐसे होते हैं जिनमें यह अलिखित योग्यता ही चयन की सर्वाधिक प्रभावी, मानक क्षमता है।

काले टाइडी लिबास में धवल काउंटर पर बैठी वह सोच रही थी नारी को प्रकृति प्रदत्त कोमलता तथा पुरुष को प्रदत्त ही मैन कैरेक्टर को स्वीकार करने में आखिर गलत क्या है ?

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 113 – देश-परदेश – न्यौता ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 113 ☆ देश-परदेश – न्यौता ☆ श्री राकेश कुमार ☆

न्यौता, आमंत्रण, बुलावा… 

इन्विटेशन ये एक ऐसी क्रिया है, जो किसी भी पारिवारिक, धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, निज़ी आयोजनों का पहला कदम होता है।

बचपन में भी पिताजी को इस प्रकार के आमंत्रण आते थे। कभी वो कहते मैं अकेला ही जाऊंगा क्योंकि आमंत्रण सिर्फ मेरे नाम से है। परिवार सहित आमंत्रण आने पर हम सब भाई बहन भी कार्यक्रमों में भाग लेते थे।

शनै शनै न्यौता की परिभाषा समझ में आने लगी थी। जब कभी हमारे परिवार में कोई आयोजन होता तो भी “जैसे को तैसा” वाला फॉर्मूला लगा कर ही आमंत्रित किया जाता था। जिसने हमे परिवार सहित बुलाया उसको हम भी परिवार सहित बुलाते थे।

दूर दराज के शहर में रहने वाले रिश्तेदारों को पोस्ट कार्ड द्वारा अग्रिम सूचना प्रेषित की जाती थी। आयोजन से कुछ दिन पूर्व आमंत्रण पत्र भी भेजा जाता था। राजा महाराजा अपने दूत और कभी कभी तो कबूतर पक्षी से भी आमंत्रण भिजवाते थे। बहन और बेटी को तो निजी रूप में उसके शहर में जाकर पूरी इज्जत और आदर से आग्रह किया जाता था। लेकिन फिर भी फूफा कई बार नाराज़ हो जाते थे।

सदी के महानायक बिग बी ने जब अपने पुत्र के विवाह में कुछ मित्रों को आमंत्रित नहीं किया था, तो फिल्म उद्योग के नामी नाम दिलीप साहब, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे लोगों ने विवाह की मिठाई भी लेने से सार्वजनिक रूप से इन्कार कर दिया था।

“न्यौता में घोचा” ये किसी भी आयोजन में होना स्वाभाविक है। आज कल तो फोन, व्हाट्स ऐप, कार्ड आदि का प्रयोग होता हैं। आयोजन कर्ता के लिए ये सब से कठिन कार्य होता है।

नाराज़ तो लोग इस बात से भी हो जाते है, की फलां ने व्हाट्स ऐप का नया ग्रुप बनाया है, लेकिन हमें उसमें नहीं जोड़ा। हमने तो उसे अपने ग्रुप में सबसे पहले सदस्य बनाया था।

सेवानिवृत साथी भी कार्यरत साथियों के न्योते की बाट जोहते रहते हैं। फिर जब निमंत्रण नहीं आता तो कहते है, हमने तो उनको परिवार सहित बुलाया था, लेकिन वो अब भूल गए। सेवानिवृत साथी ये भूल जाते है, कि जब उन्होंने बुलाया था, तो दोनों सहकर्मी थे। अब दोनों की परिस्थितियां भिन्न हैं।

बिन बुलाए मेहमान बनने भी कोई बुराई नहीं हैं। समाज में ऐसे लोगों को ठसयीएल की संज्ञा दी गई हैं। सभ्य लोग तो इसको “मान ना मान मैं तेरा मेहमान” कह देते हैं। बचपन में कुछ मित्रों के साथ हमने भी बिना बुलाए बहुत सारे कार्यक्रमों में खूब मॉल उड़ाया था। अब आने वाले नए वर्ष की दावतों में ऐसे प्रयास करने पड़ेंगे। क्योंकि उम्र दराज लोगों को कम ही इस प्रकार के न्योते मिलते हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #266 ☆ वैभवशाली नक्षी… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 266 ?

☆ वैभवशाली नक्षी ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

मोर पिसावर कुठून सुंदर आली नक्षी

मोर नाचतो दिसते नखरेवाली नक्षी

*

डोंगर माथी विशाल मंदिर कसे बांधले

छान वारसा येथे वैभवशाली नक्षी

*

ती ओठांना लावुन आली होती लाली

तिने काढली होती माझ्या गाली नक्षी

*

असेल अबला म्हणून त्याने छेड काढली

तिने काढली त्याच्या कानाखाली नक्षी

*

हातावरती हिरवी मेंदी तिने काढली

रातभरातच लाल कशीही झाली नक्षी

*

वेणी गजरा तिला आवडे सुगंध त्याचा

फुला फुलांची डोक्यावरती ल्याली नक्षी

*

अडव्या-तिडव्या फांद्यांचे तो रूप बदलतो

त्या झाडावर करतो तो वनमाली नक्षी

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈