हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 21 ☆ पिताश्री प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध के जिल्द बंद शब्दों  की पुस्तक यात्रा  ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकते हैं।  आज लीक से हटकर  पुस्तक चर्चा का विषय चुना है।  मैं कुछ और लिखूं इसके पूर्व कर्त्तव्यस्वरूप कुछ  लिखना चाहूंगा।  हमने मातृ  पितृ भक्त श्रवण कुमार की कहानियां  पढ़ीं हैं । किन्तु, यह अतिशयोक्ति कदापि नहीं होगी  और मैंने  स्वयं श्री विवेक जी के व्यवहार -कर्म  में श्रवण कुमार सी  मातृ-पितृ भक्ति की छवि  एवं संस्कार  अनुभव किया है । हमारे विशेष अनुरोध पर  उन्होंने आज  पिताश्री प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध के जिल्द बंद शब्दों  की पुस्तक यात्रा  हमारे  पाठकों  के साथ साझा  किया है । उनका रचना कर्म निरन्तर जारी है। जो हमारी पूंजी है। हमारी ईश्वर से प्रार्थना है यह सतत जारी रहे। वे हमारे प्रेरणा स्रोत हैं।  श्री विवेक जी  का  हृदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 21 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – पिताश्री प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध के जिल्द बंद शब्दों  की पुस्तक यात्रा

 1948 चाँद, सरस्वती जैसी तत्कालीन साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताओं के प्रकाशन से प्रारंभ उनकी शब्द यात्रा के प्रवाह के पड़ाव हैं उनकी ये किताबें।

पहले पुस्तक प्रकाशन केंद्र दिल्ली की जगह आगरा और इलाहाबाद हुआ करता था। आगरा का प्रगति प्रकाशन साहित्यिक किताबों के लिए बहुत प्रसिद्ध था। स्वर्गीय परदेसी जी द्वारा साहित्यकार कोष भी छापा गया था, जिसमें पिताजी का विस्तृत परिचय छपा है।भारत चीन व पाकिस्तान युद्धो के समय जय जवान जय किसान,  उद्गम, सदाबहार गुलाब, गर्जना, युग ध्वनि आदि प्रगति प्रकाशन की किताबों में पिताजी की रचनाएं प्रकाशित हैं। कुछ किताबें उन्हें समर्पित की गई हैं, कुछ का उन्होंने सम्पादन किया है। ये सामूहिक संग्रह हैं।

पिताजी शिक्षा विभाग में प्राचार्य, फिर संयुक्त संचालक, शिक्षा महाविद्यालय में प्राध्यापक, केंद्रीय विद्यालय जबलपुर तथा जूनियर कालेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य रहे हैं।  आशय यह कि उन्होंने न जाने कितनी ही पुस्तकें पुस्तकालयों के लिए खरीदी, पर जोड़-तोड़ और गुणा-भाग से अनभिज्ञ सिद्धांतवादी पिताश्री की रचनाये पुस्तक रूप में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद मैंने ही प्रस्तुत कीं। उन्हें किताबें छपवाने, विमोचन समारोह करने, सम्मान वगैरह में कभी दिलचस्पी नहीं रही।

मेघदूतम का हिंदी छंदबद्ध पद्यानुवाद उनका बहुत पुराना काम था, जो पहली पुस्तक के रूप में 1988 में आया। बाद में मांग पर उसका नया संस्करण भी पुनर्मुद्रित हुआ।

फिर ईशाराधन आई, जिसमे उनकी रचित मधुर प्रार्थनाये हैं। वे लिखते हैं

नील नभ तारा ग्रहों का अकल्पित विस्तार है

है बड़ा आश्चर्य, हर एक पिण्ड बे आधार है

है नहीं कुछ भी जिसे सब लोग कहते हैं गगन

धूल कण निर्मित भरी जल से  सुहानी है धरा

पेड़-पौधे जीव जड़ जीवन विविधता से भरा

किंतु सब के साथ सीमा और है जीवन मरण

सूक्ष्म तम परमाणु अद्भुत शक्ति का आगार है

हृदय की धड़कन से भड़ भड़ सृजित संसार है

जीव क्या यह विश्व क्यों सब कठिन चिंतन मनन

कारगिल युद्व के समय मण्डला के स्टेडियम में गणतंत्र दिवस के भव्य समारोह में उल्लेखनीय रूप से वतन को नमन का विमोचन हुआ।

पिताश्री की रचनाओ का मूल स्वर देशभक्ति, आध्यात्मिक्ता, बच्चों के लिए शिक्षा प्रद गीत, तात्कालिक घटनाओं पर काव्यमय सन्देश, संस्कृत से हिंदी काव्य अनुवाद है।

अनुगुंजन का प्रकाशन वर्ष 2000 में हुआ, जिसके विषय में सागर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति श्री शिवकुमार श्रीवास्तव ने लिखते हुए पिताजी की ही रचना उधृत की है

होते हैं मधुरतम गीत वही

जो मन की व्यथा सुनाते हैं

जो सरल शब्द संकेतों से

अंतर मन को छू जाते हैं

वसुधा के संपादक  डॉक्टर कमला प्रसाद ने उनके गीतों के विषय में लिखा “वे सामाजिक अराजकता के विरोधी हैं उनकी कविताओं में सरलता सरसता गीता तथा दिशा बोध बहुत साफ दिखाई देते हैं,विचारों की दृढ़ता तथा भावों की स्पष्टता के लिए उनके गीत हिंदी साहित्य में उदाहरण है”

बाल साहित्य की उनकी उल्लेखनीय किताबें हैं बाल गीतिका,बाल कौमुदी, सुमन साधिका,  चारु चंद्रिका,कर्मभूमि के लिए बलिदान, जनसेवा,अंधा और लंगड़ा, नैतिक कथाएं, आदर्श भाषण कला इत्यादि ये पुस्तकें विभिन्न  पुस्तकालयों  में खूब खरीदी गईं।

मानस के मोती तथा मानस मंथन रामचरितमानस पर उनके लेखों के संग्रह हैं। मार्गदर्शक चिंतन वैचारिक दिशा प्रदान करते आलेख हैं।

भगवत गीता के प्रत्येक श्लोक का हिंदी  पद्यानुवाद अर्थ सहित दो संस्करण छप चुका है। अनेक अखबार इसे धारावाहिक छाप रहे हैं। यह किताब लगातार बहुत डिमांड में है। ( ई- अभिव्यक्ति में सतत रूप से प्रतिदिन एक श्लोक का पद्यानुवाद तथा हिंदी / अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित होता है )

तीसरा संस्करण तैयार है जिसमे अंग्रेजी में भी अर्थ दिया गया है। प्रकाशक संपर्क कर सकते हैं।

रघुवंश का भी सम्पूर्ण हिंदी काव्य अनुवाद प्रकाशित है। 1900 श्लोकों का वृहद अनुवाद कार्य उन्होनें मनोरम रूप में मूल काव्य की भावना की रक्षा करते हुए किया। यह 2014 में छपा।

साहित्य अकादमी के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने पिताजी की पुस्तक स्वयं प्रभा जिसका प्रकाशन सितंबर 2014 में हुआ के विषय में लिखा है

श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव के गीत कविता को प्यार , स्नेह , संवेदना और सुंदरता के सीमित आंचल से बाहर निकालते हुए देशभक्ति के विस्तृत पटल तक ले जाती हैं। रचनाओं को पढ़ते ही मन देश प्रेम के सागर में हिलोरे लेने लगता है। आज सुसंस्कृत भारत की संस्कार और संस्कृति की समझ कम हो रही है वहीं ऐसे कठिन समय में विदग्ध जी की रचनाएं महासृजन की बेला में शब्दों और भाषा से शिल्पित, सराहनीय, उद्देश्य में सफल है।

फरवरी 2015 में अंतर्ध्वनि आई। म प्र राष्ट्र भाषा प्रचार समिति भोपाल के मंत्री संचालक श्री कैलाश चन्द्र पन्त जी ने इसकी भूमिका में लिखा  है  ” उनकी संवेदना का विस्तार व्यापक है, कविताओं का शिल्प द्विवेदी युगीन है। वे  उनकी सरस्वती वंदना से पंक्तियों को उधृत करते हैं “

हो रही घर-घर निरंतर आज धन की साधना

स्वार्थ के चंदन अगरु से  अर्चना आराधना

आत्मवंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है

चेतना गीत की जगा मां, स्वरों को झंकार दे

भारतीय दर्शन को सरल शब्दों में व्याख्यायित  करते हुए एक अन्य कविता में विदग्ध जी लिखते हैं,

प्रकृति में है चेतना, हर एक कण सप्राण है

इसी से कहते कि कण कण में बसा भगवान है

चेतना है ऊर्जा , एक शक्ति जो अदृश्य है

है बिना आकार पर, अनुभूतियों में दृश्य है

2018 में अनुभूति, फिर हाल ही 2019 में शब्दधारा  पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।

2018 दिसम्बर का ट्रू मीडिया विशेषांक पिताजी पर केंद्रित अंक था।

उनकी ढेरो कविताये  डिजिटल मोड में मेरे कम्प्यूटर पर हैं जिनकी सहज ही दस पुस्तकें तो बन ही सकती हैं। प्रकाशक मित्रों का स्वागत है।

उनका रचना कर्म निरन्तर जारी है। जो हमारी पूंजी है।

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

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English Literature – Poetry – ☆ Did the ocean churning happen only once? ☆ – Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry “समुद्र मंथन क्या एक बार ही हुआ था?” published in today’s edition as ☆ संजय दृष्टि  – समुद्र मंथन क्या एक बार ही हुआ था? ☆  We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.   )

☆ Did the ocean churning happen only once? ☆

 If so, then what is this constant, unending form of churning in the mind?  The demons are also inside, the deities are also within!… And, the desire to allure the world by becoming Mohini*, the  enchantress, is also inside!

… Did the sea-churning really happen only once ..?

Churning is eternal; and so is the creation…

*Mohini** is the female avatar of the Hindu god Vishnu. She is portrayed as a femme fatale, an enchantress, who maddens lovers, sometimes leading them to their doom.

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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English Literature – Poetry – ☆ Caged Willpower ☆ – Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry “पिंजरा ” published in today’s edition as ☆ संजय दृष्टि  – पिंजरा  ☆ We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.  Emotions running amok… yet again… )

☆ Caged Willpower ☆

 

Within the walls of cage

my wings flutter viciously,

Cravingly, seeing the open sky

they conflict with each other,

as they get grisly afflicted…

I tear up my wings yet again

Turn my helplessness

into rage,

I shout and yell

Kept looking at ajar blue sky,

Exhausted, I surrender again

Feel shattered with

my compromised routine,

Resign to my futility…

I’m not sad because of captivity

But, to lose myself to myself

Coz, I only have chosen the cage

Though, scared of soaring heights of sky,

But, weary of captivity,

I too want to touch the sky

Knowing well that both together

Was neither possible

nor will it ever be

I wear out in dilemma…

Seeing the inviting open sky

I pledge to fight the cage

But, glancing at the bread in cage,

I fold back the wings

And, never attempt to fly again…

Eternal question remains unanswered

Who has imprisoned whom?

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 19 – The Poetry ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

 

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday Ms. Neelam Saxena Chandra ji is Executive Director (Systems) Mahametro, Pune. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “The Poetry.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 19

☆  The Poetry ☆

 

Poetry should be loved forever,

And to keep loving it,

You have to keep it

In the chambers of your fragile heart.

 

If you throw it out

And still expect it to love you,

You are in a world of illusion.

 

Hoping that it will adjust

To its new surroundings

Outside your heart,

Is a misapprehension.

 

Love is its forte

And it shall keep loving you,

But it shall

Neither knock at your door,

Nor even be visible to your naked eyes.

 

One day,

When you shall finally understand

How much did the poetry love you,

You will miss its benign presence,

You will yearn for it to come back,

You will crave to hold its hands,

You will long to clasp it in your warm embrace;

But it won’t return.

 

After all,

Poetry is a butterfly

And its wings are fragile.

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

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English Literature – Poetry – ☆ Introspection ☆ – Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry “ आत्ममंथन” published in today’s edition as  संजय दृष्टि  – आत्ममंथन  We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

 

☆ Introspection  ☆

 

I meet myself

A new creation emerges,

Looking back today

Counted my creations

Then I felt

Though lived such a long life

But,

How seldom

Could I meet myself..!

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

 

 

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 19 – The Phenomenon ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

 

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday Ms. Neelam Saxena Chandra ji is Executive Director (Systems) Mahametro, Pune. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “The Phenomenon .)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 19

☆  The Phenomenon ☆

 

It was October again,

Time when the clouds

Had been bidding adieu,

Year after year

To the Earth.

 

“Do you love me?”

The earth, couldn’t resist

Asking the cloud.

Since long,

No words had been spoken

Between them,

But she had always felt

That it was because of love

And the special bondage

That they both shared,

The clouds had been coming

And bathing her with affection.

 

The cloud coughed,

“What’s love?

I sprinkle raindrops

Since I become overladen-

It’s just a scientific process!”

And he vanished unhesitatingly.

 

The Earth stared for long

At the retreating cloud,

And despite the wetness spread

By the cloud a few moments ago,

She felt dry and barren.

 

She knew that

The clouds will come back again next year,

But neither will she long for them,

Nor await their arrival;

Getting soaked in the rains

Will just be another heartless phenomenon!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

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हिंदी साहित्य – कविता / Poetry – ☆ मरीचिका मृत  हुई…  / The mirage died ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं। हम आदरणीय  कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी के  ह्रदय से आभारी हैं। कैप्टन प्रवीण रघुवंशी न केवल हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रवीण हैं, बल्कि उर्दू और संस्कृत में भी अच्छा-खासा दखल रखते हैं. उन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपनी अतिसुन्दर मौलिक रचना “मरीचिका मृत  हुई…” और इसी कविता का अंग्रेजी अनुवाद ” The mirage died” उपलब्ध कराया है जिसे आप इसी पृष्ठ  पर मूल रचना के अंत में  पढ़ सकते हैं।)

☆ मरीचिका मृत  हुई… 

अन्ततः

मरीचिका मृत  हुई

अंनत काल-चक्रव्यूह

एक और पुनर्जन्म

एक और शरीर

घोषित हुए परिणाम

‘माया मिली ना राम…!’

 

The mirage died

Finally,

The ‘Marichika’ –the mirage died

Infinite life-cycle maze

Another rebirth

Yet another body

But, the declared results:

‘Maya Mili Na Ram …!’*

 

*NB*:

**Maya mili na Ram…*

By obsessively chasing the materialistic affairs and also involving in spiritual pursuits, one could neither get the worldly euphoric fantasies nor the supreme God…

 

–  कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, पुणे

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 18 – OM ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

 

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday Ms. Neelam Saxena Chandra ji is Executive Director (Systems) Mahametro, Pune. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “OM.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 18

☆ OM ☆

 

The sky is in complete disarray today-

There is a lot of helplessness

In its flowing silver hair,

Its eyes have lost the twinkle,

The clouds have covered

Its luscious lips, forbidding it to speak,

The red moon on its forehead

Seems ferocious, as if on a revenge,

And bats fly all over the periphery

Crying aloud to hunt their preys.

 

I

Simply close my eyes,

Breathe in and out gently

Summoning your light O Lord,

And chant “Om”!

 

When I open my eyes again,

There is complete calm!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

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English Literature – Classical Poetry – ☆ Anguish of the River… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

Captain Pravin Raghuvanshi ji  is not only proficient in Hindi and English, but also has a strong presence in Urdu and Sanskrit.   We present an English Version of Ms. Nirdesh Nidhi’s  Classical Poetry  “नदी नीलकंठ नहीं होती”   with title  “The Last Metropolis” .  We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

सुश्री निर्देश निधि

इस कविता की मूल लेखिका सुश्री निर्देश निधि और कैप्टन साहब के प्रति आभार प्रकट करते हुए इस रचना मूल हिंदी  संस्करण आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं

>>> “नदी नीलकंठ नहीं होती”.

मैं निःशब्द हूँ और स्तब्ध भी हूँ। इस घटना / रचना को तो सामयिक भी नहीं कह सकता। सुश्री निर्देश निधि जी की रचनाओं के सन्दर्भ में कुछ लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। उनके एक-एक शब्द इतना कुछ कह जाते हैं कि मेरी लेखनी थम जाती है। आदरणीया की लेखनी को सादर नमन।

आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में पढ़ें और इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से  सुश्री निर्देश निधि जी एवं अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी को अवश्य अवगत कराएँ.

 ☆ Anguish of the River…☆

River is not *Neelkanth, the Lord Shiva — poison digester…

She was once a  playful translucent  river

And me, a carefree ambitious damsel

Used to do *Aachman*, sipping her sacred water while offering her my obeisances…

 

I always stood by her as a solid rock

Kept attending to all

–her frustrations, her vexations, her boisterous predicaments…

I was happy to be a rock to her…

 

But, one day you came, and

Crossed all the limits by embracing me

I didn’t like

your that filthy touch,

In a moment, I got disintegrated,

like millions of sand particles

 

Just resigned to the gloomy

lap of the river

That’s when I realised that

river is not mere flowing water

 

She is a dextrous historian

Scripting historical manuscripts,

Creating cultures, nurturing customs as responsible ancestor…

 

She was also a modern trendsetter

Always altering courses on her freewill…

She is the seeker, a questor!

 

She was a loving-mother incarnate

That’s how I could live the anguish of the river…

 

You have removed even

the womb, intestine, heart,

flesh and marrow from her body…

 

So many times I heard

her sobbings from the palatial garrets

 

Witnessed the river

Repeatedly shedding her tears in the

inner layers of the roads

 

She too wanted to get dispersed as particles in the thin air

Exactly like me!

 

But where could she go?

Where could she get accommodated? Where!!

As she did not have river, just like herself only…

 

I fell on her bosom, tiredly

Kept watching her helplessly,

By choking her face with a dirty cloth

Kept witnessing her sufferings,

Her writhing in agony, even for a breath!

Her misery of breathlessness

Was far worse than my dispersing into particles…

 

River, that joyfully spilled around

its banks for ages

Now, in this epoch, only last few breaths of life are left

Stinking, panting, with last few breaths…!

 

How many times

did I beg of you

If you desire, take my remaining particles; but,

Fill her with few breaths in her chest

By mouth-to-mouth resuscitation,

Just return her past glory

Which you forcibly snatched her of,

By planting *Singi* –poisonous trees

to pull all the poison out of her body…

 

Listen,

River cannot survive

By drinking the poison

Because, river is not the *Neelkanth*, the Lord Shiva…!

 

*Note*:
*Neelkanth*, is the other name of Lord Shiva who drank the poison, without having effect on him; and held it in his neck which became blue; thus called  *Neelkanth* *(Blue Neck)*.

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Originally Written in Hindi by Nirdesh Nidhi

English Translation by Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd), Pune   

 

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 17 – Nothingness ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

 

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday Ms. Neelam Saxena Chandra ji is Executive Director (Systems) Mahametro, Pune. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “Nothingness.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 17

☆ Nothingness ☆

 

There are so many sentiments-

The feeling of being loved,

The desire for togetherness,

The emotions of hurtfulness,

The longing of your arms,

The sadness on parting,

The glee on arrival;

But everything in life

Has to settle down!

 

Nature is full of entropy

And the most obvious way

Is to tend to move towards nothingness.

 

The questions are-

When do you move towards zilch?

And how do you tend towards zero?

 

Sadly,

For why,

There are no answers!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

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