मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 10 – ही रैना ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘ही रैना ’ 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 10 ☆ 

☆ ही रैना 

 

ही रैना

नवी नवेली

छैलछबिली

नखरेवाली

अलगद खाली

उतरून आली

तरल पाउली

चरचरावर

टाकीत आपुले

विलोल विभ्रम

मांडित अवघा

रंगरूपाचा

अपूर्व उत्सव

नाचनाचली

रंगरंगली

झिंगझिंगली

झुलत राहिली

 

बापुडवाणी

होऊन

पडली

क्षितीज कडेला

पुन्हा सकाळी

ही रैना

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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हिंदी साहित्य – फिल्म/रंगमंच ☆ सुशांत स्मृति सन्दर्भ – मैं वहां आ रहा …. ☆ श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। आज प्रस्तुत है  स्व सुशांत सिंह राजपूत जी की स्मृति में लिखी गई भावप्रवण कविता “ मैं वहां आ रहा …. । युवा पीढ़ी के चर्चित चेहरे ने कल अंतिम सांस ली । कारण कुछ भी रहा हो किन्तु , अंतिम निर्णय कदापि सकारात्मक नहीं था। जब जीवन में इतना संघर्ष किया तो जीवन से संघर्ष में क्यों हार गए ? विनम्र श्रद्धांजलि !)

☆ सुशांत स्मृति सन्दर्भ – मैं वहां आ रहा …. ☆ 

दम घुटता कसी हवाओं से

ज़हरीली फ़िज़ाओं से

एक फंदा सा लहराता

सजीली लताओं से

 

मेरे देश में प्यार

कम हो रहा

हर दिल में

ग़म रो रहा

 

तू कहाँ है माँ

कुच रुचता नहीं

चले जा रहे सब

कोई रुकता नहीं

 

मुझसे रहा जाता नहीं

मैं कहाँ जा रहा

मुझसे सहा जाता नहीं

मैं वहाँ आ रहा

 

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #51 ☆ लॉकडाउन  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # लॉकडाउन ☆

ढाई महीने हो गए। लॉकडाउन चल रहा है। घर से बाहर ही नहीं निकले। किसी परिचित या अपरिचित से आमने-सामने बैठकर बतियाए नहीं। न कहीं आना, न कहीं जाना। कोई हाट-बाज़ार नहीं। होटल, सिनेमा, पार्टी नहीं। शादी, ब्याह नहीं। यहाँ तक कि मंदिर भी नहीं।. ..पचास साल की ज़िंदगी बीत गई।  कभी इस तरह का वक्त नहीं भोगा। यह भी कोई जीवन है? लगता है जैसे पागल हो जाऊँगा।

बात तो सही कह रहे हो तुम।…सुनो, एक बात बताना। घर में कोई बुज़ुर्ग है? याद करो, कितने महीने या साल हो गए उन्हें घर से बाहर निकले? किसी परिचित या अपरिचित से आमने-सामने बैठकर बतियाए? न कहीं आना, न कहीं जाना। कोई हाट-बाज़ार नहीं। होटल, सिनेमा, पार्टी नहीं। शादी, ब्याह नहीं। यहाँ तक कि मंदिर भी नहीं।…. उन्हें भी लगता होगा कि  यह भी कोई जीवन है? उन्हें भी लगता होगा जैसे पागल ही हो जाएँगे।

…लेकिन उनकी उम्र हो गई है। जाने की बेला है।… तुम्हें कैसे पता कि उनके जाने की बेला है। हो सकता है कि उनके पास पाँच साल बचे हों और तुम्हारे पास केवल दो साल।…बड़ी उम्र में शारीरिक गतिविधियों की कुछ सीमाएँ हो सकती हैं पर इनके चलते मृत्यु से पहले कोई जीना छोड़ दे क्या?

वे अनंत समय से लॉकडाउन में हैं। उन्हें ले जाओ बाहर, जीने दो उन्हें।…सुनो, यह चैरिटी नहीं है, तुम्हारा प्राकृतिक कर्तव्य है। उनके प्रति दृष्टिकोण बदलो। उनके लिए न सही, अपने स्वार्थ के लिए बदलो।

जीवनचक्र हरेक को धूप, छाँव, बारिश सब दिखाता है। स्मरण रहे, घात लगाकर बैठा जीवन का यह लॉकडाउन धीरे-धीरे  तुम्हारी ओर भी बढ़ रहा है।

©  संजय भारद्वाज

प्रात: 4:35 बजे, 6.6.2020

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 31 ☆ कोरोना पर वार करो ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक सकारात्मक एवं भावप्रवण कविता  “कोरोना पर वार करो.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 31 ☆

☆  कोरोना पर वार करो  ☆ 

देश हमें यदि प्यारा है तो

कोरोना पर वार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

बचो-बचाओ मिलने से भी

घर से बाहर कम निकलो

भीड़-भाड़ में कभी न जाओ

कुछ दिन अंदर ही रह लो

 

हाथ मिलाना छोड़ो मित्रो

हाथ जोड़कर प्यार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

साफ-सफाई रखो सदा ही

घर पर हों या बाहर भी

हाथ साफ करना मत भूलो

यही प्राथमिक मंतर भी

 

करना है तो मन से करना

सबका ही उपकार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

मन को रखना बस में अपने

बाहर का खाना छोड़ें

घर में व्यंजन स्वयं बनाना

बाहर से लाना छोड़ें

 

शाकाहारी भोजन अच्छा

उसका ही सत्कार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

अपने को मजबूत बनाओ

योगासन-व्यायाम करो

बातों में मत समय गँवाओ

दिनचर्या अभिराम करो

 

प्रातःकाल जगें खुश होकर

आदत स्वयं सुधार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

देश हमें यदि प्यारा है तो

कोरोना पर वार करो

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ नुक्कड़ नाटक – जल है तो कल है – 4 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ नुक्कड़ नाटक – जल है तो कल है – 4 ☆

(प्रसिद्ध पत्रिका ‘नवनीत ‘के जून 2020 के अंक में श्री संजय भारद्वाज जी के नुक्कड़ नाटक जल है तो कल है का प्रकाशन इस नाटक के विषय वस्तु की गंभीरता प्रदर्शित करता है। ई- अभिव्यक्ति ऐसे मानवीय दृष्टिकोण के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए कटिबद्ध है। हम इस लम्बे नाटक को कुछ श्रृंखलाओं में प्रकाशित कर रहे हैं। आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया इसकी विषय वस्तु को गंभीरता से आत्मसात करें ।)

(लगभग 10 पात्रों का समूह। समूह के प्रतिभागी अलग-अलग समय, अलग-अलग भूमिकाएँ निभाएंगे। इन्हें क्रमांक 1,  क्रमांक 2 और इसी क्रम में आगे संबोधित किया गया है। सुविधा की दृष्टि से 1, 2, 3… लिखा है।)

जल है तो कल है – भाग 4 से आगे …

समवेत- बहता पानी रुकने लगा…सड़ने लगा… मछलियाँ और जलचर मरने लगे…आदमी का जीवन थमने लगा…दूषित जल से आदमी बीमार पड़ने लगा।

(कुछ पात्रों द्वारा समवेत वाक्यों को मूक अभिनय द्वारा दर्शाया जाएगा।)

3- तन की बीमारी जल्दी ठीक हो सकती है, मन के इलाज में समय लगता है।

4- लालच और लापरवाही के रोगी आदमी ने अमूल्य पानी का मूल्य समझा ही नहीं।

5- पानी प्राकृतिक संसाधन है, इसे तैयार नहीं किया जा सकता।

6- इसे रिसाइकिल करना होता है।

7- जल के स्रोतों को रिचार्ज करना होता है।

8- धरती का तीन-चौथाई हिस्सा पानी से घिरा है।

9- पर उपलब्ध पानी का केवल एक प्रतिशत उपयोग के योग्य है।

10- इस एक प्रतिशत पर मनुष्य के अलावा वनस्पति, पशु, सिंचाई, उद्योग भी निर्भर हैं।

1- बारिश के माध्यम से प्रकृति का उपहार देती है।

2-पानी का समुचित संरक्षण हम नहीं कर पाते।

3- पानी का समुचित संचयन हम नहीं कर पाते।

4- बारिश का अधिकांश पानी नदी, नालों से होकर खारे समुद्र में जा मिलता है।

5- अच्छी बरसात के लिए चाहिए पहाड़ और जंगल।

6- आदमी ने काट दिए जंगल।

7- बादल रुकना बंद हो गए।

8- आदमी ने पाट दिए पहाड़।

9- बादल बरसना बंद हो गए।

10- आदमी ने सुखा डाले ताल तलैया।

1- बादल भी सूख गया भैया।

2- आदमी की लापरवाही बढ़ती गई।

3- बरसात लगातार घटती गई।

 

समवेत- आदमी ने काट दिए जंगल…बादल रुकना बंद हो गए…आदमी ने पाट दिए पहाड़… बादल बरसना बंद हो गए…आदमी ने सुखा डाले ताल तलैया…बादल भी सूख गया भैया …आदमी की लापरवाही बढ़ती गई… बरसात लगातार घटती गई…।

(समवेत वाक्यों पर कुछ पात्रों द्वारा मूक अभिनय किया जाएगा।)

4- घरों में पाइपलाइन से आने लगा पानी।

5- पानी के प्राकृतिक स्रोत उपेक्षा के शिकार हो चले।

6- जनसंख्या का विस्फोट बढ़ता गया।

7- भूजल का स्तर घटता गया।

8- कभी चक्र बनाया है..?

9- एक भी बिंदु ना हो तो चक खंडित हो जाता है।

10- आदमी ने जगह-जगह खंडित कर दिया जलचक्र।

समवेत- एक भी बिंदु ना हो तो चक्र खंडित हो जाता है…आदमी ने जगह-जगह खंडित कर दिया जलचक्र।

(उपरोक्त वाक्यों को कुछ पात्र मूक अभिनय से दर्शाएँगे।)

समवेत-

घटता जल, संकट में आज-संकट में कल। घटता जल, संकट में आज-संकट में कल।

10- याद रहे, जल है तो कल है।

समवेत- जल है तो कल है…जल है तो कल है।

क्रमशः  —— 5

(यह नुक्कड़ नाटक संकल्पना, शब्द, कथ्य, शैली और समग्र रूप में संजय भारद्वाज का मौलिक सृजन है। इस पर संजय भारद्वाज का सर्वाधिकार है। समग्र/आंशिक/ छोटे से छोटे भाग के प्रकाशन/ पुनर्प्रकाशन/किसी शब्द/ वाक्य/कथन या शैली में परिवर्तन, संकल्पना या शैली की नकल, नाटक के मंचन, किसी भी स्वरूप में अभिव्यक्ति के लिए नाटककार की लिखित अनुमति अनिवार्य है।)

(नोट– घनन घनन घिर घिर आए बदरा,  गीत श्री जावेद अख्तर ने लिखा है।) 

©  संजय भारद्वाज, पुणे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
मोबाइल– 9890122603

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Happiness Activity: What determines HAPPINESS? ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆ Happiness Activity: What determines HAPPINESS? ☆ 

Video Link >>>>

Happiness Activity: What determines HAPPINESS?

CAN YOU MAKE YOURSELF LASTINGLY HAPPIER?

This video provides you answers to these questions based on POSITIVE PSYCHOLOGY – the modern Science of Happiness.

According to Positive Psychologists, the enduring level of happiness that you experience is determined by three factors: your biological set point, the conditions of your life, and the voluntary activities you do.

YES!! You can make yourself lastingly happier by practicing Happiness Activities that have been proven to work by Positive Psychologists.

It is worth striving to get the right relationships between yourself and others, between yourself and your work, and between yourself and something larger than yourself. If you get these relationships right, a sense of purpose and meaning will emerge.

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 6 – संदेश ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 6 उपन्यास, 6 लघुकथा संग्रह 14 कथा संग्रह एवं 6 तत्वज्ञान पर प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘संदेश’ ।आप प्रत्येक मंगलवार को श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 6 ☆ 

☆ संदेश 

आपल्या

आकांती हिमवर्शावाने

अवघं जीवन

उध्वस्त करण्याच्या

उन्मादात

शिशिराने

थैमान मांडला होता.

त्याच वेळी,

झाडांचा संदेश घेऊन

निघालेली पाने

मातीच्या कानी लागत

म्हणाली-

माते, आता तरी वाहू दे

तुझ्या काळजातील अमृतधारा

मिळू दे थेंब…थेंब ….

झाडांच्या शिखा-शेंड्यांना

उमटू देत पुन्हा

शाश्वताच्या खाणा-खुणा

त्यांच्या कटी-खांद्यावर

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (12) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

 

ज्ञेयं यत्तत्वप्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्नुते ।

अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते ।।12।।

ज्ञेय जो है परब्रम्ह वह, सत औ” असत से दूर

यह सब हो तो व्यक्ति में, अमृत सुख भरपूर ।।12।।

 

भावार्थ :  जो जानने योग्य है तथा जिसको जानकर मनुष्य परमानन्द को प्राप्त होता है, उसको भलीभाँति कहूँगा। वह अनादिवाला परमब्रह्म न सत्‌ ही कहा जाता है, न असत्‌ ही।।12।।

 

I will declare that which has to be known, knowing which one attains to immortality, the beginning-less supreme Brahman, called neither being nor non-being.।।12।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आशीष साहित्य # 44 – दृष्टि ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है  एक महत्वपूर्ण  एवं  ज्ञानवर्धक आलेख  “दृष्टि। )

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 44 ☆

☆ दृष्टि 

 मैं अब आपको स्वर योग के विषय में कुछ बताता हूँ । सर्वप्रथम हाथों द्वारा नाक के छिद्रों से बाहर निकलती हुई श्वास को अनुभव करने का प्रयत्न कीजिए । देखिए कि कौन से छिद्र से श्वास बाहर निकल रही है । स्वर योग के अनुसार अगर श्वास दाहिने छिद्र से बाहर निकल रही है तो यह सूर्य स्वर होगा । इसके विपरीत यदि श्वास बाएँ छिद्र से निकल रही है तो यह चंद्र स्वर होगा एवं यदि जब दोनों छिद्रों से श्वास निकलता अनुभव हो तो यह सुषुम्ना स्वर कहलाएगा । श्वास के बाहर निकलने की उपरोक्त तीनों क्रियाएँ ही स्वर योग का आधार हैं । सूर्य स्वर पुरुष प्रधान है । इसका रंग काला है । यह शिव स्वरूप है, इसके विपरीत चंद्र स्वर स्त्री प्रधान है एवं इसका रंग गोरा है, यह शक्ति अर्थात्‌ पार्वती का रूप है । इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं ओर स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दाहिनी ओर अर्थात्‌ इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर स्थित रहता है और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर । सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब दोनों ओर से श्वास निकले वह सुषम्ना स्वर कहलाएगा ।

गांधार नाड़ी नाक में, हस्तिजिह्वा दाहिनी आंख में, पूषा दाये कान में, यशस्विनी बायें कान में, अलंबुसा मुख में, कुहू लिंग प्रदेश में और शंखिनी गुदा में जाती है । हठयोग में नाभिकंद अर्थात कुंडलिनी का स्थान गुदा से लिंग प्रदेश की ओर दो अंगुल हटकर मूलाधार चक्र में माना गया है । स्वर योग में कुंडलिनी की यह स्थिति नहीं मानी जाती है। स्वर योग शरीर शास्त्र से संबंध रखता है और शरीर की नाभि गुदामूल में नहीं, वरन उदर मध्य ही हो सकती हैं । इसीलिए यहाँ नाभिप्रदेश का तात्पर्य उदर भाग मानना ही ठीक है । श्वास क्रिया का प्रत्यक्ष संबंध उदर से ही है । स्वर योग इस बात पर जोर देता है कि मनुष्य को नाभि तक पूरी साँस लेनी चाहिए । वह प्राण वायु का स्थान फेफड़ों को नहीं, नाभि को मानता है । गहन अनुसंधान के पश्चात अब शरीर शास्त्री भी इस बात को स्वीकारते हैं कि वायु को फेफड़ों में भरने मात्र से ही श्वास का कार्य पूरा नहीं हो जाता । उसका उपयुक्त तरीका यह है कि उससे पेड़ू तक पेट सिकुड़ता और फैलता रहे एवं डायफ्राम का भी साथ-साथ संचालन हो । तात्पर्य यह कि श्वास का प्रभाव नाभि तक पहुँचना जरूरी है । इसके बिना स्वास्थ्य खराब होने का खतरा बना रहता है । इसीलिए सामान्य श्वास को स्वर योग में अधूरी क्रिया माना गया है । इससे जीवन की प्रगति रुकी रह जाती है । इसकी पूर्ति के लिए योग के आचार्यों ने प्राणायाम जैसे अभ्यासों का विकास किया ।

तो वास्तव में हम प्रकृति और ब्रह्मांड में बाहरी परिवर्तन के साथ हमारे आंतरिक शरीर और मस्तिष्क के परिवर्तनों को समझ सकते हैं ।

 

 

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆  Buddha#2 –  A Beautiful Story from the Buddha ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆ BUDDHA –  A Beautiful Story from the Buddha☆ 

Video Link >>>>

A Beautiful Story from the Buddha

The Buddha spoke to his son, the young novice Rahula, soon after the boy was ordained..

One day the Buddha came to Rahula, pointed to a bowl with a little bit of water in it, and asked: “Rahula, do you see this bit of water left in the bowl?”

Rahula answered: “Yes, sir.”

“So little, Rahula, is the spiritual achievement of one who is not afraid to speak a deliberate lie.”

Then the Buddha threw the water away, put the bowl down, and said: “Do you see, Rahula, how that water has been discarded?

“In the same way, one who tells a deliberate lie, discards whatever spiritual achievement he has made.”

Again, he asked: “Do you see how this bowl is now empty?

“In the same way, one who has no shame in speaking lies is empty of spiritual achievement.”

Then the Buddha turned the bowl upside down and said: “Do you see, Rahula, how this bowl has been turned upside down?

“In the same way, one who tells a deliberate lie turns his spiritual achievement upside down and becomes incapable of progress.”

Therefore, the Buddha concluded, one should not speak a deliberate lie even in jest.

Text courtesy:

THE NOBLE EIGHTFOLD PATH

Bhikkhu Bodhi

 

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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