(ई-अभिव्यक्ति ने समय-समय पर श्रीमदभगवतगीता, रामचरितमानस एवं अन्य आध्यात्मिक पुस्तकों के भावानुवाद, काव्य रूपांतरण एवं टीका सहित विस्तृत वर्णन प्रकाशित किया है। आज से आध्यात्म की श्रृंखला में ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री हनुमान चालीसा के अर्थ एवं भावार्थ के साथ ही विस्तृत वर्णन का प्रयास किया है। आज से प्रत्येक शनिवार एवं मंगलवार आप श्री हनुमान चालीसा के दो दोहे / चौपाइयों पर विस्तृत चर्चा पढ़ सकेंगे।
हमें पूर्ण विश्वास है कि प्रबुद्ध एवं विद्वान पाठकों से स्नेह एवं प्रतिसाद प्राप्त होगा। आपके महत्वपूर्ण सुझाव हमें निश्चित ही इस आलेख की श्रृंखला को और अधिक पठनीय बनाने में सहयोग सहायक सिद्ध होंगे।)
☆ आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 9 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
अर्थ:- यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
भावार्थ:- यह चौपाई श्री रामचंद्र जी द्वारा हनुमान जी की प्रशंसा में कही गई है। उन्होंने कहा है कि यम अर्थात यमराज, जो हर व्यक्ति का लेखा जोखा रखते हैं, कुबेर अर्थात विश्व के सभी ऐश्वर्य के स्वामी दसों दिगपाल अर्थात दसों दिशाओं के रक्षक देवता गण विश्व के सभी कवि सभी विद्वान सभी पंडित मिलकर के भी आपके यश का पूर्णत वर्णन नहीं कर सकते हैं।
संदेश-
अगर आप अच्छी इच्छा शक्ति और अच्छे इरादे के साथ कर्म करें तो आपकी प्रशंसा करने के लिए सभी बाध्य हो जाते हैं।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई के बार बार पाठ करने से यश कीर्ति की वृद्धि होती है, मान सम्मान बढ़ता है।
विवेचना:-
यह चौपाई “जम कुबेर दिगपाल जहां ते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते” इसके पहले की चौपाई “सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा “ के साथ पढ़ी जानी चाहिए। इस चौपाई में भी श्री रामचंद्र जी ने हनुमान जी की प्रशंसा की है। यम से यहां पर आशय यमराज से है जो कि मृत्यु के देवता है। इनके पिताजी भगवान सूर्य कहे जाते हैं और यमुना जी इनकी बहन है। इनके अन्य भाई बहनों के नाम शनिदेव, अश्वनीकुमार, भद्रा, वैवस्वत मनु, रेवंत, सुग्रीव, श्राद्धदेव मनु और कर्ण है। इनके एक पुत्र का नाम युधिष्ठिर है जो पांच पांडवों में से एक हैं। यमराज जी जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं। वे परम भागवत, बारह भागवताचार्यों में हैं। यमराज दक्षिण दिशा के दिक्पाल कहे जाते हैं। ये समस्त जीवो के अच्छे और बुरे कर्मों को बताते हैं। परंतु ये भी हनुमान जी द्वारा किए गए अच्छे कार्यों को पूर्णरूपेण बताने में असफल हैं।
कुबेर जी धन के देवता माने जाते हैं पूरे ब्रह्मांड का धन इनके पास है। यक्षों के राजा कुबेर उत्तर दिशा के दिक्पाल हैं। संसार के रक्षक लोकपाल भी हैं। इनके पिता महर्षि विश्रवा थे और माता देववर्णिणी थीं। वह रावण, कुंभकर्ण और विभीषण के सौतेले भाई हैं। धन के देवता कुबेर को भगवान शिव का द्वारपाल भी बताया जाता है। श्री कुबेर जी के पास ब्रह्मांड का पूरा धन होने के उपरांत भी वे हनुमान जी की कीर्ति की व्याख्या पूर्ण करने में असमर्थ हैं।
सनातन धर्म के ग्रंथों में दिक्पालों का बड़ा महत्व है। सनातन धर्म के अनुसार 10 दिशाएं होती हैं और हर दिशा की रक्षा करने के लिए एक दिग्पाल हैं। यथा – पूर्व के इन्द्र, अग्निकोण के वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्यकोण के नैऋत, पश्चिम के वरूण, वायु कोण के मरूत्, उत्तर के कुबेर, ईशान कोण के ईश, ऊर्ध्व दिशा के ब्रह्मा और अधो दिशा के अनंत। दसों दिशाओं में होने वाली हर कार्यवाही की पर इनकी नजर होती है। परंतु श्री रामचंद्र जी के अनुसार ये भी हनुमान जी की पूर्ण प्रशंसा करने में असमर्थ हैं।
कहा जाता है कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि। परंतु ये कवि गण भी हनुमान जी की पूर्ण प्रशंसा करने में असमर्थ हैं।
अगर हम हनुमान जी के हर एक गुण का अलग-अलग वर्णन करें तो भी हम हनुमान जी के समस्त गुणों को लिपिबद्ध नहीं कर सकते। जैसे कि उनके दूतकर्म के लिए वाल्मीकि रामायण में श्री रामचंद्र जी के मुंह से कहा गया है:-
एवम् गुण गणैर् युक्ता यस्य स्युः कार्य साधकाः।
स्य सिद्ध्यन्ति सर्वेSर्था दूत वाक्य प्रचोदिताः।।
(वाल्मीकि रामायण, किष्किंधाकांड)
अर्थात हे लक्ष्मण एक राजा के पास हनुमान जैसा दूत होना चाहिए जो अपने गुणों से सारे कार्य कर सके। ऐसे दूत के शब्दों से किसी भी राजा के सारे कार्य सफलता पूर्वक पूरे हो सकते हैं।
सीता जी का पता लगाने के लिए जामवंत जी की कसौटी पर केवल हनुमान जी ही खरे उतरते हैं। देखिए जामवंत जी ने क्या कहा :-
हनुमन् हरि राजस्य सुग्रीवस्य समो हि असि |
राम लक्ष्मणयोः च अपि तेजसा च बलेन च ||
(वाल्मीकि रामायण/सुंदरकांड-६६-३)
अर्थात हे हनुमान आप वीरता में वानरों के राजा सुग्रीव के समान हैं। आपकी वीरता स्वयं श्री राम और लक्ष्मण के बराबर है।
रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने अवतरण का उद्देश्य भी स्पष्ट किया है –
राम काज लगि तब अवतारा।
सुनतहिं भयउ परबतकारा।।
अर्थात – महावीर हनुमान जी का जन्म ही राम काज करने के लिए हुआ था। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के बराबर हो गए।
जब हनुमान जी मां जानकी का पता लगाने के अलावा लंका को जला कर वापस लौटे। उसके उपरांत सभी बंदर, भालू श्री रामचंद्र जी के पास आए तब जामवंत जी ने हनुमान जी की प्रशंसा में श्री राम चंद्र जी से कहा:-
नाथ पवसुत कीन्हीं जो करनी।
सहसहुं मुख न जाई सो बरनी।।
पवनतनय के चरित सुहाए।
सुनत कृपानिधि मन अति भाए।।
श्रीरामचंद्र जी ने जब यह सुना कि हनुमान जी लंका जलाकर आए हैं तब उन्होंने परम वीर हनुमान जी से घटना का पूरा विवरण जानना चाहा :-
कहु कपि रावन पालित लंका।
केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका।।
महावीर स्वामी महावीर हनुमान जी ने इसका बड़ा छोटा सा जवाब दिया प्रभु यह सब आपकी कृपा की वजह से हुआ है। यह विनयशीलता की पराकाष्ठा है:-
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना।
बोला बचन बिगत हनुमाना।।
साखा मृग के बड़ी मनुसाई।
साखा ते साखा पर जाई।।
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा।
निसिचर गन बधि बिपिन उजारा।।
सो सब तव प्रताप रघुराई।
नाथ न मोरी कछु प्रभुताई।
ता कहूं प्रभु कछु अगम नहीं जा पर तुम्ह अनुकूल।
तव प्रभावं बड़वानलहि जारि सकल खलु तूल।।
(रामचरितमानस/सुंदरकांड)
अर्थात महावीर हनुमान जी अपने श्री राम को प्रसन्न देख कर अपने अभिमान और अहंकार का त्याग कर अपने कार्यों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि एक बंदर की क्या विशेषता हो सकती है। वो तो एक पेड़ की शाखा से दूसरी शाखा पर कूदता रहता है। इसी तरह से मैंने समुद्र पार किया और सोने की लंका जलाई। राक्षसों का वध किया और अशोक वाटिका उजाड़ दी।
हे प्रभु ये सब आपकी प्रभुता का कमाल है। मेरी इसमें कोई शक्ति नहीं है। आप जिस पर भी अनुकूल हो जाते हैं उसके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं होता। आपके प्रभाव से तुरंत जल जाने वाली रुई भी एक बड़े जंगल को जला सकती है।
सूरदास जी ने सूरसागर के नवम स्कंद के 147 वें पद में लिखा है :-
कहाँ गयौ मारुत-पुत्र कुमार।
ह्वै अनाथ रघुनाथ पुकारे, संकट-मित्र हमार।।
इतनी बिपति भरत सुनि पावैं आवैं साजि बरूथ।
कर गहि धनुष जगत कौं जीतैं, कितिक निसाचर जूथ।
नाहिं न और बियौ कोउ समरथ, जाहि पठावौं दूत।
को अब है पौरुष दिखरावै, बिना पौन के पूत?
इतनौ वचन स्त्र वन सुनि हरष्यौ, फूल्यौ अंग न मात।
लै-लै चरन-रेनु निज प्रभु की, रिपु कैं स्त्रोनित न्हात।
अहो पुनीत मीत केसरि-सुत,तुम हित बंधु हमारे।
जिह्वा रोम-रोम-प्रति नाहीं, पौरुष गनौं तुम्हारे!
जहाँ-जहाँ जिहिं काल सँभारे,तहँ-तहँ त्रास निवारे।
सूर सहाइ कियौ बन बसि कै, बन-बिपदा दुख टारै॥147॥
यह पद लक्ष्मण जी को शक्ति लगने के उपरांत की प्रकृति का वर्णन करता है। उस समय श्री हनुमान जी संजीवनी बूटी ढूंढ़ने के बजाय पूरा पर्वत ही उठा कर ले आते हैं और श्री लक्ष्मण जी के प्राण बचाते हैं। हनुमान जी की सेवा के अधीन होकर प्रभु श्रीराम ने उन्हें अपने पास बुला कर कहा—
कपि-सेवा बस भये कनौड़े, कह्यौ पवनसुत आउ।
देबेको न कछू रिनियाँ हौं, धनिक तूँ पत्र लिखाउ।।
(विनय-पत्रिका पद १००।७)
‘भैया हनुमान! तुम्हें मेरे पास देने को तो कुछ है नहीं; मैं तेरा ऋणी हूँ तथा तू मेरा धनी (साहूकार) है। बस इसी बात की तू मुझसे सनद लिखा ले।’
इसी प्रकार समय-समय पर हनुमान जी की प्रशंसा मां जानकी, भरत जी, लक्ष्मण जी, रावण एवं अन्य देवताओं ने की है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हनुमान जी की प्रशंसा में हर किसी ने कुछ न कुछ कहा है परंतु तब भी उनकी प्रशंसा पूर्ण नहीं हो पाई है। ऐसे हनुमान जी से प्रार्थना है कि वे हमारी रक्षा करें।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
💥 महादेव साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जाएगी।💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 37 – भाग 2 ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆
काळं पाणी आणि हिरवं पाणी
अंदमान आता प्रवासी स्थान झालं आहे. जैवविविधतेने नटलेला निसर्ग, अनेक दुर्मिळ झाडं, प्राणी, पक्षी, जलचर असा दुर्मिळ खजिना इथे आहे. वर्ल्ड हेरिटेज म्हणून आणि इको टुरिझम म्हणून अंदमानला मान्यता मिळाली आहे. इथे सेंटेनल, जारवा, ओंगे, ग्रेट निकोबारी अशा आदिम जमाती आहेत. त्यांना एकांतवास व त्यांची जीवनपद्धतीच प्रिय आहे. आपण प्रवाशांनी त्यांच्या जीवनात हस्तक्षेप न करता, तिथल्या श्रीमंत निसर्गाला धक्का न लावता, तिथल्या टुरिझम बोर्डाच्या नियमांप्रमाणेच वागणं आवश्यक आहे. इथले आदिवासी हे मानववंशशास्त्राच्या दृष्टीने फार महत्त्वाचा दुवा आहेत. त्यांना इथलं प्राणी व पक्षी जीवन, सागरी जीवन, विविध वृक्ष, त्यांचे औषधी उपयोग यांचं पारंपरिक ज्ञान आहे. या दुर्मिळ खजिन्याच्या रक्षणासाठी त्यांच्या ज्ञानाचा त्यांच्या कलाने उपयोग करून घेणं महत्त्वाचं आहे.
पोर्ट ब्लेअरच्या दक्षिणेला वांडूर बीच जवळ लहान मोठी पंधरा बेटे मिळून ‘महात्मा गांधी मरीन नॅशनल पार्क उभारण्यात आलं आहे. इथली सागरी संपत्ती पाहिली की निसर्गाच्या अद्भुत किमयेला दाद द्यावीशी वाटते. कोरल्सचे असंख्य प्रकार इथे बघायला मिळतात. आपल्या मेंदूसारखे लाटालाटांचे कोरल, बशीसारखे, झाडासारखे असे विविध आकारांचे कोरल्स आहेत. विंचवासारखा, वाघासारखा, सार्जंट, गिटार, वटवाघुळ, फुलपाखरू यांच्या आकारातील मासे आहेत. पोपटाच्या चोचीसारखे तोंड पुढे आलेले हिरवट पॅरट मासे आहेत. हे सारे जलचर एकमेकांशी सहकार्याने राहतात. सी-ॲनम हा जलचर खडकाला चिकटून राहतो तर जोकराच्या आकाराचा मासा त्याला खायला आणून देतो व सी-ॲनम जोकर माशाला खडकाचं घर देतो.काळ्या चंद्रकलेवर मोती जडवावे तसे काळ्या छोट्या माशांवर स्वच्छ पांढरे ठिपके होते. एका प्रचंड व्हेल माशाचा सांगाडा ठेवला आहे.
सेल्युलर जेलजवळ आता अंदमान वॉटर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स उभारलं आहे. त्यात मोटार बोटी,पॅडल बोटी, वॉटर स्कूटर्स,स्किईंग वगैरे प्रकार आहेत. पोर्ट ब्लेअर जवळील चातम आयलंडला एका पुलावरून गेलो. इथे आशियातील सर्वात जुनी व सर्वात मोठी सॉ मील आहे. रेडवूड, सागवान, सॅटिन वूड, ब्लॅक चुगलम, थिंगम, कोको, महुआ, जंगली बदाम, डिडु अशा नाना प्रकारच्या वृक्षांचे भले मोठे घेर असलेले ओंडके ठेवले होते. दुसऱ्या महायुद्धात या मिलच्या काही भागाचं नुकसान झालं. हे मोठमोठे लाकडी ओंडके कापणाऱ्या, धारदार, विजेवर चालणाऱ्या करवती होत्या. यातील काही लाकूड इमारत कामासाठी तर काही फर्निचर व कोरीव कामासाठी,बोटी बनविण्यासाठी वापरण्यात येतं. पूर्वी रेल्वे रूळांचे स्लीपर्स बनविले जात. तिथल्या म्युझियममध्ये रेडवूडपासून बनविलेले कोरीव गणपती, देव्हारे, पुतळे, घड्याळे अशा सुंदर वस्तू आहेत. तिथून मानव विज्ञान संग्रहालय पाहायला गेलो. अंदमान- निकोबारच्या आदिवासींच्या वापरण्यातल्या वस्तू म्हणजे बांबूच्या चटया, पंखा, झाडू, टोपली मशाल, बाण, तिरकमठा, हुक्का, मधपात्र, बरछी, मासे पकडायची जाळी, सामुदायिक झोपडी, लाकडाची डोंगी म्हणजे होडी, झाडाच्या सालींच्या पट्ट्या रंगवून त्या डोक्याला व कमरेला गुंडाळायचे वस्त्र, शंख- शिपल्यांच्या माळा, कवड्यांच्या माळा, सुंभाचे बाजूबंद, समुद्र कोरलचे पैंजण, लाल मातीने चेहऱ्यावर केलेले पेंटिंग,नृत्याचे रिंगण अशा वस्तू, पुतळे पाहिले की आदिम काळापासून स्त्रियांची नटण्याची हौस आणि उपलब्ध सामग्रीतून जीवनोपयोगी वस्तू बनविण्याची मानवाची बुद्धी लक्षात येते.
रॉस आयलँड ही ब्रिटिशांची जुनी ऍडमिनिस्ट्रेटिव्ह राजधानी होती. तिथे ब्रिटिशांनी घरे, स्विमिंग पूल, चर्च, जिमखाना, क्लब, ओपन एअर थिएटर सारं काही उभारलेलं होतं. नारळाची व इतर अनेक प्रकारची झाडं आहेत. हरणं व बदकं फिरत असतात. विहिरी व जपानी सैन्याने खोदलेले बंकरही बघायला मिळाले. आता हे बेट आपल्या नौदलाच्या ताब्यात आहे. वायपर आयलंड इथे कैद्यांना फाशी देण्याची ब्रिटिशकालीन जागा आहे. तसंच स्त्री कैद्यांसाठी तिथे तुरुंग बांधण्यात आला होता. आमच्या गाईडने अगदी तन्मयतेने त्या काळातील राजकीय कैद्यांचा त्याग, त्यांनी भोगलेल्या शिक्षा आमच्यापुढे शब्दातून उभ्या केल्या. त्या अज्ञात शूरवीरांना आम्ही ‘वंदे मातरम्, भारत माता की जय’ असं म्हणत आदरांजली वाहिली.
नॉर्थ बे आयलंड इथे स्नॉर्केलिंगची मजा अनुभवता आली. आपल्याला डोळ्यांना विशिष्ट प्रकारचा चष्मा लावायला देतात. त्यामुळे नाकपुड्या बंद होतात. आपण दातांमध्ये धरलेल्या नळीचं तोंड समुद्राच्या वरच्या पातळीवर राहतं. आपल्याला तोंडाने श्वास घ्यायला लागतो. तेथील प्रशिक्षकाच्या सहाय्याने पाण्यावर तरंगत हा निसर्गाचा खजिना बघायला मिळाला. या भागात किनाऱ्याजवळच खूप प्रवाळ बेटे आहेत. पाणी संथ व स्वच्छ असल्यामुळे नाना तऱ्हेचे व रंगाचे छोटे-मोठे मासे सुळकन इकडे तिकडे फिरताना दिसत होते. बटरफ्लाय, टायगर, गोल्डन टेट्रा असे मासे झुंडीने फिरत होते. स्पंजसारखे जिवंत कोरल्स होते. त्यांना स्पर्श केल्यावर ते तोंड उघडत. त्यांचा फिका जांभळा रंग व तोंडात छोटे छोटे गोंड्यासारखे जांभळ्या रंगाचे पुंजके दिसले.
साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार – जयपुर से – डॉ निशा अग्रवाल
समरस राष्ट्रीय संस्थान द्वारा गणतंत्र दिवस पर विशेष ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित
समरस राष्ट्रीय संस्थान के मंच पर गणतंत्र दिवस की शाम देशवासियों के संग, शौर्य वीरता की गाथाओं के साथ कई कवियों ने बिखेरा अपनी रचनाओं में बसंती रंग।
आजादी के अमृत की 74 वीं गणतंत्र की शाम समरस राष्ट्रीय संस्थान द्वारा विशेष ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आगाज राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश व्यास स्नेहिल द्वारा तथा कामिनी व्यास की मधुर आवाज में मां सरस्वती की वंदना के साथ हुआ। कार्यक्रम का संचालन डॉ निशा अग्रवाल द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में कई वरिष्ठ साहित्यकारों ने, रचनाकारों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और अपनी अपनी जादुई कलम का अनौखा अंदाज मंच पर बिखेरा। इनकी देश भक्ति भाव से पूर्ण जोशीली, ज्ञानवर्धक, प्रेरणादायक रचनाओं, गजलों एवं शायरियों ने मंच पर शमा बांध दिया।
कार्यक्रम के दौरान संस्था प्रमुख श्री मुकेश व्यास स्नेहिल ने समरस बाल कार्यशाला 16 जनवरी से शुरू होने की घोषणा की । विधा प्रभारी एवं बाल काव्यशाला प्रभारी विनीता निर्झर ने बताया कि बाल काव्यशाला से जुड़ने वाले सभी बच्चों को मात्रा और मापनी को ध्यान में रखते हुए सबसे पहले दोहे सिखाए जायेंगे। कार्यक्रम में कवि अमित, संजय, विजयप्रताप, कमल, दशरथ, मधु अग्रवाल, प्रेम सोनी, गजल गायक सुंदर सोनी, रजनी शर्मा,कल्पना गोयल, राजेंद्र, सागर, गजराज, शशि जैन, संजू पाठक, कांता त्रिवेदी, शिवरतन, छगन, श्रृद्धा, अलका माहेश्वरी,जयपुर इकाई अध्यक्ष लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला एवं अनेक कवियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का समापन कामिनी व्यास की अध्यक्षता में वंदे मातरम् के साथ हुआ।
साभार – डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर ,राजस्थान
☆ (ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका) ☆ एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री ☆
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(त्यांना काय हो कल्पना, की पोटचा मुलगा असा वागेल. मी मात्र एका क्षणात रस्त्यावर आले.) इथून पुढे ——-
“तो मला वृद्धाश्रमात ठेवून निघून गेला तो गेलाच. मला अगदी थोडे पेन्शन आहे, पण मला काय लागते हो?
याने दहा वर्षाचे पैसे भरून टाकलेत— मला आश्चर्य वाटते,हा माझाच का मुलगा? कुठे कमी पडलो आम्ही त्याच्यावर संस्कार करायला? जाऊ दे. नशिबाचे भोग म्हणायचे.” सुधाताई खिन्न होऊन म्हणाल्या– “ तुम्ही त्याच्याच वयाचे ना?
काल तुमची आई येऊन सगळ्या पेशन्टची किती मायेने चौकशी करून गेली. किती अभिमान आहे त्यांना तुमचा.
माझा मुलगा इतका विख्यात सर्जन असूनही, मी या सुखाला कायमची पारखी झाले आहे. एकदा विचारले सुद्धा,की अरे,असे का वागतोस बाबा ? काय चुकलंय आमचं? “ तर म्हणाला, “ काही नाही ग.पण आता मलाच काही इंटरेस्ट नाही, नाती उगीच जपत बसण्यात. माझा व्याप खूप वाढलाय, आणि मी करतोय ना कर्तव्य? मला अजिबात वेळ नाही सतत भारतात फेऱ्या मारायला. “ .. “आता यावर काय बोलणार सांगा.” डॉक्टरही अवाक् झाले हे ऐकून.
सुधाताई वृद्धाश्रमात गेल्या. एक महिन्याने चेकअप साठी आल्यावर, डॉक्टर विश्वास त्यांना म्हणाले, “ ताई, एक सुचवू का? आमच्या हॉस्पिटलमध्ये तुम्ही व्यवस्थापक म्हणून काम बघाल का? वर्षाची एकटीची खूप धावपळ होते. सगळा स्टाफ सांभाळायचा, पेशन्टचे जेवणखाण, आणि इतर सगळीच मॅनेजमेंटबघावी लागते.. खूप काम करावे लागते तिला. “
जरासा विचार करून सुधाताई म्हणाल्या, “ बरं. करुन बघते एखादा महिना.”
दोन महिन्यांनी सुधाताईंनी काम बघायला सुरवात केली. त्यांनी हॉस्पिटलच्या किचनपासून सुरवात केली. मुळात त्या शिक्षक असल्याने त्यांना व्यवस्थापनाची उत्तम सवय होतीच ! गोड बोलून,नीट लक्ष देऊन, त्यांनी सगळा नोकरवर्ग आपलासा केला. एका डायरीत त्यांना रोजचा खर्च, बिले, लॉंन्ड्री ,सर्व लिहून काढायला लावले. चार महिन्यांनी वर्षाला ती डायरी दाखवली.
व्यवस्थितपणे लिहिलेली ती डायरी पाहून वर्षा थक्क झाली. सगळी उधळमाधळ थांबली होती. वेळच्यावेळी सगळ्या गोष्टी सुरळीत होऊ लागल्या होत्या. जेवणाचा दर्जा कितीतरी सुधारला होता. जवळजवळ चाळीस हजार रुपये वाचले होते चार महिन्यात. रोज सुधाताई सकाळी ९ ला हजर असत, ते संध्याकाळी सातला,सर्व मार्गी लावूनच जात.
डॉक्टर विश्वास आणि वर्षाने, सुधाताईना बोलावून घेतले. “अहो, काय हा चमत्कार करून दाखवलात तुम्ही !
केवढा खर्च होत होता पूर्वी ! आम्ही इतकं लक्ष देऊ शकत नव्हतो हो. केवढी बिले यायची किराण्याची, लॉन्ड्रीची. आणि स्टाफला किती सुंदर शिस्त लावलीत तुम्ही. पेशन्टही, जेवणावर खूष आहेत पूर्वीपेक्षा. सुधाताई, किती गुणी आहात तुम्ही. मी तुम्हाला ऑफर देतो, नाकारू नका. तुम्ही आमच्या हॉस्पिटलमध्ये व्यवस्थापक म्हणून रहायलाच या. आम्ही तुम्हाला अति होईल असे काम कधीच सांगणार नाही. फक्त देखरेख करायची तुम्ही. आम्ही तुम्हाला छान खोली देतो रहायला. आणि काम होईनासे झाले, तरी आम्ही तुम्हाला कायम सांभाळू— अगदी माझ्या आईसारखेच. मान्य आहे का? दरमहा तुम्हाला आम्ही पगार देऊच, तो तुमच्या बँकेत जमा होईल.”
सुधाताई थक्कच झाल्या. ही अपेक्षाच कधी केली नव्हती त्यांनी—
“ अहो डॉक्टर,मला कशाला पगार? आणि मी राहीन की वृद्धाश्रमात. आणि तिथूनच येत जाईन ना रोज.”
“ नको नको,ताई, तुम्ही इथेच राहा. माझ्या आईलाही तुमची छान सोबत होईल. तुम्हाला सांगू का, ही सूचना तिचीच आहे खरं तर. ती बघतेय ना तुम्ही केलेला बदल. परवा तुम्ही सिस्टरला चादरीचा हिशोब विचारला तेव्हा किती गडबडून गेली होती ती. निमूट सर्व चादरी मोजून जमा केल्या तिने. पूर्वी हे आम्हाला शक्य होत नव्हते हो.
माझ्या आईनेच हे बघितले आणि म्हणाली, ”अरे,तुम्ही सुधाताईंनाच विचारा की, त्या काम बघतील का ते.”
सुधाताईंच्या डोळ्यात अश्रू आले.
“ जे काम माझ्या मुलाने करायला हवे, ते काम तुम्ही परकी मुले करताय, काय बोलू मी ? मी नक्की करीन हे काम.
त्यात अवघड काय आहे ? पण डॉक्टर, एक शब्द द्या. या वयात आता पुन्हापुन्हा धक्के सहन होत नाहीत हो.
मला पुन्हा वृद्धाश्रमात नाही ना पाठवणार? नाही तर मी आहे तिकडेच बरी आहे.”
डॉक्टर वर्षाच्या डोळ्यात पाणी आले. “ नाही हो सुधाताई,असं कसं करू आम्ही? एवढे मोठे हॉस्पिटल आहे आपले, तुम्ही आम्हाला कधीही जड होणार नाही. उलट तुमची केवढी मदतच होतेय आम्हाला. आणि आम्ही आणखी नोकर देऊ की तुमच्या मदतीला.” सुधाताई तयार झाल्या या ऑफरला.
त्या गेल्यावर डॉक्टर विश्वासच्या आई म्हणाल्या, “ तुम्ही दोघांनी किती छान काम केलेत रे. शाबास. एका कर्तबगार बाईचा आत्मसन्मान तिला परत मिळवून दिलात. असेच कायम सहृदयतेने वागा रे पोरांनो ! विश्वास, तो अभय– मुलगा म्हणून अपात्र ठरला. पण तू आज नुसता डोळ्यांचा नाही तर मनाचाही डॉक्टर झालास बघ.”
— विश्वास, वर्षा आणि त्यांच्या आईच्या डोळ्यातलं पाणीच खूप काही सांगून गेलं.
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है जीवन में आनंद एवं सुमधुर आयोजन के महत्व को दर्शाती एक भावप्रवण लघुकथा “विशाल भंडारा”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 149 ☆
लघुकथा विशाल भंडारा
भंडारा कहते ही सभी का मन भोजन की ओर सोचने लगता है।
सभी प्रकार से सुरक्षित, साधन संपन्न, शहर के एक बहुत बड़े हाई स्कूल जहाँ पर छात्र-छात्राएं एक साथ (कोएड) पढ़ते थे।
हाई स्कूल का माहौल और बच्चों का प्ले स्कूल सभी के मन को भाता था। गणतंत्र दिवस की तैयारियां चल रही थी। सभी स्कूल के टीचर स्टाफ अपने अपने कामों में व्यस्त थे।
गीत – संगीत का अलग सेक्शन था वहाँ भी बैंड और राष्ट्रीय गान को अंतिम रूप से दिया जा रहा था।
स्कूल में एक कैंटीन थी, जहाँ पर बच्चे और टीचर /स्टाफ सभी को पर्याप्त रूप से नाश्ते में खरीद कर खाने का सामान मिल जाता था।
स्कूल का वातावरण बड़ा ही रोचक और मनोरम था। किसी टीचर का जन्मदिन या शादी की सालगिरह या कोई अन्य कार्यक्रम होता।उस दिन कैंटीन पर वह जाकर कह देते और पेमेंट कर सभी 150 से 200 टीचर / स्टाफ आकर अपना नाश्ता ले लेते और बदले में बधाईयों का ढेर लग जाता। शुभकामनाओं की बरसात होती। मौज मस्ती का माहौल बन जाता।
स्कूल में भंडारा कहने से बात हवा की तरह फैल गई। सभी खुश थे आज भंडारा खाने को मिलेगा। यही हुआ आज स्कूल स्टाफ के संगीत टीचर विशाल का जन्मदिन था।
विशाल शांत, सौम्य और संकोची स्वभाव का था। अपने काम के प्रति निष्ठा स्कूल के आयोजन को पूर्णता प्रदान करने में अग्रणी योगदान देता था।
विशाल का युवा मन कहीं कोई कुछ कह न दे या किसी को मेरे कारण किसी बात से ठेस न पहुँचे, इस भावना से वह चुपचाप जाकर कैंटीन पर धीरे से वहां की आंटी को बोला…. “ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है, आज मेरा जन्मदिन है। सभी स्टाफ को मेरी तरफ से नाश्ता देना है।”
शांत, मधुर मुस्कान लिए विशाल ने जब यह बात कही। कैंटीन वाली आंटी ने पहले सोचा इसे सरप्राइज देना चाहिए। विशाल के वहाँ से निकलने के बाद वह सभी से कहने लगी भंडारा भंडारा भंडारा विशाल भंडारा सभी बड़े खुश हो गए।
किसी का ध्यान विशाल के जन्मदिन की ओर नहीं गया। बस यह था कि स्कूल से भरपूर भंडारा खाने का मजा आएगा। जो सुन रहा था वह खुशी से एक दूसरे को बता रहे थे।
पर कारण किसी को पता नहीं था। अपने कामों में व्यस्त विशाल के पास उसका अपना दोस्त दौड़ते आया और कहने लगा… “सुना तुमने आज विशाल भंडारा होने वाला है।” जैसे ही विशाल ने सुना पियानो पर हाथ रखे उंगलियां एक साथ बज उठी और तुरंत वहाँ से उठकर चल पड़ा। ‘चल चल चल’ दूसरी मंजिल से जल्दी-जल्दी सीढ़ियां उतरते विशाल ने देखा आंटी सभी को खुश होकर नाश्ता बांट रही थी, और कह रही थी विशाल का भंडारा है जन्मदिन की बधाइयाँ। सभी के हाथों पर नाश्ते की प्लेट और चेहरे पर मुस्कान थी।
अपने जन्मदिन का इतना सुंदर तोहफा, आयोजन पर विशाल गदगद हो गया। तभी बैंड धुन बजाने लगे हैप्पी बर्थडे टू यू। सारे स्टाफ के बीच विशाल अपना जन्मदिन मनाते सचमुच विशाल प्रतीत हो रहे थे। विशाल भंडारा सोच कर वह मुस्कुरा उठा। जन्मदिन की खुशियां दुगुनी हो उठी।
पाश्चिमात्य संशोधकांनी उलगडले की संस्कृत मंत्र लक्षात ठेवणारी मुले मोठी झाल्यावर अति हुशार का होतात ?
कठोरपणे लक्षात ठेवणे मेंदूला किती मदत करू शकते हे न्यूरोसायन्स दाखवते. ‘संस्कृत इफेक्ट’ ही संज्ञा न्यूरोसायंटिस्ट जेम्स हार्टझेल यांनी तयार केली होती, ज्यांनी व्यावसायिक पात्रता असलेल्या २१ संस्कृत पंडितांचा अभ्यास केला होता. त्यांनी शोधून काढले की वैदिक मंत्रांचे स्मरण केल्याने अल्प आणि दीर्घकालीन स्मृतीसह संज्ञानात्मक कार्याशी संबंधित मेंदूच्या क्षेत्रांचा आकार वाढतो. हा शोध भारतीय परंपरेच्या श्रद्धेला पुष्टी देतो, ज्यामध्ये असे मानले जाते की मंत्रांचे स्मरण करणे आणि पाठ करणे स्मरणशक्ती आणि विचार वाढवते.
डॉ. हार्टझेलच्या अलिकडील अभ्यासात असा प्रश्न निर्माण झाला आहे की अशाप्रकारच्या प्राचीन ग्रंथांचे स्मरण अल्झायमर आणि इतर स्मरणशक्तीवर परिणाम करणाऱ्या रोगांचे विनाशकारी आजार कमी करण्यासाठी उपयुक्त ठरू शकते का? वरवर पाहता, भारतातील आयुर्वेदिक डॉक्टर असे सुचवतात, आणि संस्कृतमध्ये अधिक संशोधनासह भविष्यातील अभ्यास नक्कीच केले जातील.
आपल्या सर्वांना सजगता आणि ध्यान पद्धतींचे फायदे माहित असताना, डॉ हार्टझेलचे निष्कर्ष खरोखरच नाट्यमय आहेत. कमी होत चाललेल्या लक्षांच्या जगात, जिथे आपल्याला दररोज माहितीचा पूर येतो आणि मुले लक्ष वेधून घेणारे अनेक विकार दाखवतात, तिथे प्राचीन भारतीय शहाणपणामध्ये पश्चिमेला (आणि पूर्वेकडील त्यांच्या ‘आधुनिक’ बौद्धिक सेवकांना) शिकवण्यासारखे बरेच काही आहे.
गायत्री मंत्रासारख्या सामान्य संस्कृत मंत्रांचे थोडय़ा प्रमाणात जप आणि पठण करूनही आपल्या सर्व मेंदूवर आश्चर्यकारक परिणाम होऊ शकतो.
रानातून आलेल्या तात्यांनी घराच्या मागच्या बाजूला असणाऱ्या गोठयात वैरणीचा भारा टाकला आणि तिथंच डाव्या बाजूला अळू, कर्दळ आणि केळी जवळ असणाऱ्या दगडावर उभा राहून हातपाय धुतले. तोंडावर पाणी मारले आणि पायात वहाणा सरकवून खांद्यावरच्या टॉवेलने तोंड पुसत मागच्या दाराने घरात न येता बाजूच्या बोळकांडीतून पुढे आले. तीन पायऱ्या चढून वर सोप्यात आल्यावर उजव्या बाजूला भिंतीकडे पायातल्या वहाणा काढल्या आणि सोप्यातल्या खांबाला टेकून बसत बायकोला, लक्ष्मीला हाक मारली.
गोठ्यात वैरणीचा भारा टाकला तेंव्हाच लक्ष्मीला तात्यांच्या येण्याची चाहूल लागली होती. त्यांनी वैलावरचा चहा उतरवला. दोन कपात गाळला आणि चुलीतील लाकडे बाहेर ओढून त्या चहा आणि पाण्याचा तांब्या घेऊन बाहेर आल्या. तात्यांच्या हातात तांब्या देताच त्यांनी वरूनच चार घोट पाणी प्यायले आणि तांब्या बाजूला ठेवला. त्यांनी तात्यांच्या हातात चहाचा भरलेला कप दिला आणि स्वतः तिथंच शेजारी पायरीवर पाय सोडून जोत्यावर बसल्या.
तात्या चहा पीत असतानाच त्यांना तो ही वैरणीचा भारा घेऊन येताना दिसला. तो तात्यांच्या हद्दीत पायही पडणार नाही याची काळजी घेत त्याच्या हद्दीवरून वळला. वैरणीचा भारा गोठयाच्या बाहेरच्या बाजूला उभ्या उभ्याच फेकला. तात्यांकडे रागाचा कटाक्ष टाकून तोंडातल्या तोंडात पुटपुटत त्याच्या घरात गेला.
तात्यांना पाहिले किंवा काही मनाविरुद्ध झाले तर त्याचे सळसळते रक्त उसळून यायचे, तो चिडायचाच अन एकदा चिडला की मग मात्र त्याचा स्वतःवर ताबा राहत नसे. त्यात वडील गेल्यापासून तर त्याच्यावर वचक असा कुणाचाच राहिला नव्हता. आई बिचारी त्याच्या वडिलांच्या अकाली मृत्यूमुळे मनाने खचलेली, थकलेली. ती त्याला सारखे सांगत राहायची, समजावत राहायची.
आईच्या समजवण्यावरही तो उसळून तावातावाने ,रागाने, चिडून आणि शेजारी तात्यांच्या घरात ऐकू जाईल असे म्हणायचा.
त्याच्या मनात आपल्या शेजाऱ्यांच्याबद्दल, तात्यांच्याबद्दल खूप राग होता. शेजारच्या तात्यांचा आणि त्याच्या कुटुंबीयांचा हद्दीवरून वाद होता, ही गोष्ट खरी होती पण हा वाद काही आत्ताचा नव्हता. मागील तीन चार पिढ्यांपासूनचा वाद होता. त्याची ही चौथी पिढी. वाद होता तरीही त्यांची कुटुंबे शेजारी-शेजारी नांदली होती.
गुण्यागोविंदाने नांदली होती असे म्हणता येणार नाही पण कारणपरत्वे होणारे, घडणारे भांडण वगळले, एकमेकांशी असणारा अबोला वगळता, खरंच ती शेजारी नांदली होती. सुख-दुःखाच्या क्षणी,काही दिवसांकरिता का होईना, हा अबोला विरघळून जायचा. पण त्याच्या वडिलांचे अकाली निधन झाल्यावर मात्र शेजारच्या काकू, तात्यांची बायको, आईचा आधार झाली होती. दुपारच्या निवांत वेळी परड्यात काहीतरी काम करता करता त्या तिच्याशी बोलत असत. कधीतरी घरात काही केलेला पदार्थ त्याच वेळी इकडून तिकडे जात येत असे.
आधीही भांडणे नियमित अशी नव्हतीच कधीतरी कारण परत्वे होत.. ती मात्र कडाक्याची, हमरीतुमरीवर येऊन होत. पण त्याच्या वडिलांच्या मृत्युनंतर तात्यांकडून कधीच भांडण झाले नव्हते.. त्यांच्या कडून भांडणाची धार बोथट झाली होती. त्याचे वडील गेल्यावर पुन्हा पुन्हा काही दिवसांनी तात्या त्यांच्या घरी आलेूपच वाईट झाले. आपल्या दोन्ही कुटुंबात वाद-विषय आहेच पण ते सारे विसरून काहच पण ते सारे विसरून काहीही अडले-नडले तर सांगा. “
तात्या त्याच्या आईला म्हणाले होते. त्यांच्या मनालाही त्याच्या वडिलांचा मृत्यु चटका लावून गेला होता.