अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – षोडश अध्याय (5) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

 

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।

मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव।।5।।

 

दैवी संपत्ति शुद्धि हित, आसुरी दुखद महान

पार्थ ! तू दैवी युक्त है, मत कर शोक सुजान।।5।।

 

भावार्थ :  दैवी सम्पदा मुक्ति के लिए और आसुरी सम्पदा बाँधने के लिए मानी गई है। इसलिए हे अर्जुन! तू शोक मत कर, क्योंकि तू दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुआ है ।।5।।

The divine nature is deemed for liberation and the demoniacal for bondage. Grieve not, O Arjuna, for thou art born with divine properties! ।।5।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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मो ७०००३७५७९८

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – षोडश अध्याय (4) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

 

दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।

अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्‌।।4।।

असुरो की संपत्ति है, दम्भ, दर्प, अभिमान

दुर्गुण, क्रोध, निठुर वचन और बडा अज्ञान ।।4।।

 

भावार्थ :  हे पार्थ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी- ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं।।4।।

 

Hypocrisy, arrogance, self-conceit, harshness and also anger and ignorance, belong to one who is born in a demoniacal state, O Arjuna! ।।4।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – षोडश अध्याय (3) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

 

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहोनातिमानिता।

भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।3।।

तेजस्विता, क्षमा तथा मन में द्रोह अभाव

ये सब दैवी संपदा, दिव्य पुरूष के भाव ।।3।।

 

भावार्थ :  तेज (श्रेष्ठ पुरुषों की उस शक्ति का नाम ‘तेज’ है कि जिसके प्रभाव से उनके सामने विषयासक्त और नीच प्रकृति वाले मनुष्य भी प्रायः अन्यायाचरण से रुककर उनके कथनानुसार श्रेष्ठ कर्मों में प्रवृत्त हो जाते हैं), क्षमा, धैर्य, बाहर की शुद्धि (गीता अध्याय 13 श्लोक 7 की टिप्पणी देखनी चाहिए) एवं किसी में भी शत्रुभाव का न होना और अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव- ये सब तो हे अर्जुन! दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं।।3।।

Vigour, forgiveness, fortitude, purity, absence of hatred, absence of pride-these belong to one born in a divine state, O Arjuna!।।3।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – षोडश अध्याय (2) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

 

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्‌।

दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्‌।।2।।

शांति अक्रोध, सत, अहिंसा और कर्मफल त्याग

मृदुता, लज्जा, धैर्य औ” जीवदया प्रतिराग ।।2।।

 

भावार्थ :  मन, वाणी और शरीर से किसी प्रकार भी किसी को कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण (अन्तःकरण और इन्द्रियों के द्वारा जैसा निश्चय किया हो, वैसे-का-वैसा ही प्रिय शब्दों में कहने का नाम ‘सत्यभाषण’ है), अपना अपकार करने वाले पर भी क्रोध का न होना, कर्मों में कर्तापन के अभिमान का त्याग, अन्तःकरण की उपरति अर्थात्‌ चित्त की चञ्चलता का अभाव, किसी की भी निन्दादि न करना, सब भूतप्राणियों में हेतुरहित दया, इन्द्रियों का विषयों के साथ संयोग होने पर भी उनमें आसक्ति का न होना, कोमलता, लोक और शास्त्र से विरुद्ध आचरण में लज्जा और व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव।।2।।

 

Harmlessness, truth,   absence   of   anger,   renunciation,   peacefulness,   absence   of crookedness,  compassion  towards  beings,  uncovetousness,  gentleness,  modesty,  absence  of fickleness.।।2।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – षोडश अध्याय (1) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

 

श्रीभगवानुवाच

अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।

दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्‌।।1।।

 

श्री भगवान ने कहा-

अभय,दान,दम,यज्ञ,तप तथा हृदय की शुद्धि

स्वाध्याय औ” सरलता, ज्ञान योग की स्थिति।।1।।

 

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- भय का सर्वथा अभाव, अन्तःकरण की पूर्ण निर्मलता, तत्त्वज्ञान के लिए ध्यान योग में निरन्तर दृढ़ स्थिति (परमात्मा के स्वरूप को तत्त्व से जानने के लिए सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप में एकी भाव से ध्यान की निरन्तर गाढ़ स्थिति का ही नाम ‘ज्ञानयोगव्यवस्थिति’ समझना चाहिए) और सात्त्विक दान (गीता अध्याय 17 श्लोक 20 में जिसका विस्तार किया है), इन्द्रियों का दमन, भगवान, देवता और गुरुजनों की पूजा तथा अग्निहोत्र आदि उत्तम कर्मों का आचरण एवं वेद-शास्त्रों का पठन-पाठन तथा भगवान्‌ के नाम और गुणों का कीर्तन, स्वधर्म पालन के लिए कष्टसहन और शरीर तथा इन्द्रियों के सहित अन्तःकरण की सरलता।।1।।

 

Fearlessness, purity of heart, steadfastness in Yoga and knowledge, alms-giving, control of the senses, sacrifice, study of scriptures, austerity and straightforwardness।।1।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – पंचदश अध्याय (20) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पुरूषोत्तम योग

(संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय)

(क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय)

 

इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ ।

एतद्‍बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत ।।20।।

 

इस प्रकार यह शास्त्र गुण मुझे बताया पार्थ

जिसे जान सब विज्ञजन लेते अमित कृतार्थ।।20।।

 

भावार्थ :  हे निष्पाप अर्जुन! इस प्रकार यह अति रहस्ययुक्त गोपनीय शास्त्र मेरे द्वारा कहा गया, इसको तत्त्व से जानकर मनुष्य ज्ञानवान और कृतार्थ हो जाता है।।20।।

 

Thus, this most secret science has been taught by Me, O sinless one! On knowing this, a man becomes wise, and all his duties are accomplished, O Arjuna!।।20।।

 

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे पुरुषोत्तमयोगो नाम पञ्चदशोऽध्यायः ॥15॥

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – पंचदश अध्याय (19) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पुरूषोत्तम योग

(संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय)

(क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय)

 

यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्‌ ।

स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ।।19।।

 

जो ज्ञानि करते मुझे प्रेमभाव से याद

पूजा करते है मेरी, पाते विमल प्रसाद।।19।।

 

भावार्थ :  भारत! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्त्व से पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है।।19।।

 

He who, undeluded, knows Me thus as the highest Purusha, he, knowing all, worships me with his whole being (heart), O Arjuna!।।19।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – पंचदश अध्याय (18) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पुरूषोत्तम योग

(संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय)

(क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय)

 

यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः ।

अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः।।18।।

क्षर-अक्षर से अलग मै हूं सबसे उत्तम

इसीलिये जग, वेद में ज्ञात मै पुरूषोत्तम ।।18।।

भावार्थ :  क्योंकि मैं नाशवान जड़वर्ग- क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिए लोक में और वेद में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ।।18।।

 

As I transcend the perishable and am even higher than the imperishable, I am declared as the highest Purusha in the world and in the Vedas।।18।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – पंचदश अध्याय (17) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पुरूषोत्तम योग

(संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय)

(क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय)

उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः ।

यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ।।17।।

उत्तम पुरूष तो एक है इन दोनो से भिन्न

वह पालक परमात्मा, सदा प्रसन्न अखिन्न ।।17।।

 

भावार्थ :  इन दोनों से उत्तम पुरुष तो अन्य ही है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर और परमात्मा- इस प्रकार कहा गया है।।17।।

 

But distinct is the Supreme Purusha called the highest Self, the indestructible Lord who, pervading the three worlds, sustains them.।।17।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – पंचदश अध्याय (16) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पुरूषोत्तम योग

(संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय)

(क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय)

 

द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।

क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ।।16।।

 

पुरूष दो है इस लोक में क्षर-अक्षर है भेद

क्षर कहती सब भूल को अक्षर जीव अनेक ।।16।।

 

भावार्थ :  इस संसार में नाशवान और अविनाशी भी ये दो प्रकार (गीता अध्याय 7 श्लोक 4-5 में जो अपरा और परा प्रकृति के नाम से कहे गए हैं तथा अध्याय 13 श्लोक 1 में जो क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के नाम से कहे गए हैं, उन्हीं दोनों का यहाँ क्षर और अक्षर के नाम से वर्णन किया है) के पुरुष हैं। इनमें सम्पूर्ण भूतप्राणियों के शरीर तो नाशवान और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है॥16॥

 

Two Purushas there are in this world, the perishable and the imperishable. All beings are the perishable, and the Kutastha is called the imperishable.।।16।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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