आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (15) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

 

स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम ।

भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ।।15।।

 

नहीं कोई कुछ जानता सब करते अनुमान

जगत्पति पुरूषोत्तम आपको ही सच ज्ञान।।15।।

      

भावार्थ :  हे भूतों को उत्पन्न करने वाले! हे भूतों के ईश्वर! हे देवों के देव! हे जगत्‌के स्वामी! हे पुरुषोत्तम! आप स्वयं ही अपने से अपने को जानते हैं॥15॥

 

Verily, Thou Thyself knowest Thyself by Thyself, O Supreme Person, O source and  Lord of beings, O God of gods, O ruler of the world!

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (14) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव ।

न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः ।।14।।

देव दानवों को भी नहिं है प्रभु का सच्चा ज्ञान

जो कुछ मुझसे आपने कहा सत्य भगवान।।14।।

 

भावार्थ :  हे केशव! जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते हैं, इस सबको मैं सत्य मानता हूँ। हे भगवन्‌! आपके लीलामय (गीता अध्याय 4 श्लोक 6 में इसका विस्तार देखना चाहिए) स्वरूप को न तो दानव जानते हैं और न देवता ही।।14।।

 

I believe all this that Thou sayest to me as true, O Krishna! Verily, O blessed Lord, neither the gods nor the demons know Thy manifestation (origin)! ।।14।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Silence! Laughter Session is ON! – Video #12 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

 ☆ Silence! Laughter Session is ON! ☆ 

Video Link >>>>

LAUGHTER YOGA: VIDEO #12

Silent Laughter is a powerful cardio-vascular exercise that relieves stress instantly, boosts immune system and produces feel good hormones known as endorphins. It is cathartic, massages internal organs and induces deep breathing from the diaphragm.

Silent Laughter is a laughter exercise where we laugh silently without making any sound. The laughter is vigorous but there is no sound. You may use facial expressions and hand gestures to articulate your laughter. It’s more fun than other laughter exercises because the more you try to suppress the sound of laughter, the more difficult and hilarious it becomes until everyone burst out laughing loud.

It’s a powerful cardio-vascular exercise, alleviates stress and induces deep breathing from the diaphragm. Silent laughter is cathartic and boosts our immune system. It produces copious amounts of feel good hormones known as endorphins. Gentle laughter massages all our internal organs thoroughly.

First of all, one needs to cultivate childlike playfulness and get prepared to laugh for no reason. Then, the laughter needs to be sustained for 5-10 minutes before going into Laughter Meditation. You become quieter and relax – laughing less and less outwardly but more and more of your laughter is inwardly.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (12-13) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

 

अर्जुन उवाच

 

परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्‌।

पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्‌।।12।।

आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।

असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ।।13।।

अर्जुन ने कहा –

परब्रम्ह अतिपावन परमधाम गुणवान

आप निरंतर दिव्य हैं आदिदेव भगवान।।12।।

सब ऋषियों ने आपका नारद देवल व्यास

कहा यही है असित ने और स्वतः भी आप।।13।।

      

भावार्थ :  अर्जुन बोले- आप परम ब्रह्म, परम धाम और परम पवित्र हैं, क्योंकि आपको सब ऋषिगण सनातन, दिव्य पुरुष एवं देवों का भी आदिदेव, अजन्मा और सर्वव्यापी कहते हैं। वैसे ही देवर्षि नारद तथा असित और देवल ऋषि तथा महर्षि व्यास भी कहते हैं और आप भी मेरे प्रति कहते हैं॥12-13॥

 

Thou art the Supreme Brahman, the supreme abode (or the supreme light), the supreme purifier, the eternal, divine Person, the primeval God, unborn and omnipresent.।।12।।

 

All the sages have thus declared Thee, as also the divine sage Narada; so also Asita, Devala and Vyasa; and now Thou Thyself sayest so to me.।।13।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (11) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।

नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ।।11।।

उन पर करके कृपा मैं उनके मन का वास

सब अज्ञान ज तमस हर करता ज्ञान प्रकाश।।11।।

भावार्थ :  हे अर्जुन! उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिए उनके अंतःकरण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञानजनित अंधकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ।।11।।

 

Out of mere compassion for them, I, dwelling within their Self, destroy the darkness born of ignorance by the luminous lamp of knowledge.

।।11।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (10) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

 

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌।

ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ।।10।।

 

उन विभोर हो भक्तिरत भक्त जो आते पास

को मैं देता बुद्धि गति भक्ति और विश्वास।।10।।

 

भावार्थ :  उन निरंतर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्तों को मैं वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ, जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।।10।।

 

To them  who  are  ever  steadfast,  worshipping  Me  with  love,  I  give  the  Yoga  of discrimination by which they come to Me.।।10।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (9) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

 

मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्‌।

कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ।।9।।

 

मुझको अर्पित प्राण मन आपस में विद्धान

करते हैं चर्चा मेरी करके कई अनुमान।।9।।

 

भावार्थ :  निरंतर मुझमें मन लगाने वाले और मुझमें ही प्राणों को अर्पण करने वाले (मुझ वासुदेव के लिए ही जिन्होंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है उनका नाम मद्गतप्राणाः है।) भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरंतर रमण करते हैं।।9।।

 

With their minds and lives entirely absorbed in Me, enlightening each other and always speaking of Me, they are satisfied and delighted.।।9।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (8) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( फल और प्रभाव सहित भक्तियोग का कथन )

 

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।

इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ।।8।।

 

मैं ही कारण जगत का मुझसे सब गतिमान

ज्ञानी ऐसा समझ नित ,भावित श्रद्धावान।।8।।

      

भावार्थ :  मैं वासुदेव ही संपूर्ण जगत्‌की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब जगत्‌चेष्टा करता है, इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान्‌भक्तजन मुझ परमेश्वर को ही निरंतर भजते हैं।।8।।

 

I am  the  source  of  all;  from  Me  everything  evolves;  understanding  thus,  the  wise, endowed with meditation, worship Me.।।8।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (7) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

 

एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः ।

सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ।।7।।

 

मम इस योग विभूति को जो भी लेता जान

वह निश्चित ही योग से जुडता शुभ पहचान।।7।।

 

भावार्थ :  जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्यरूप विभूति को और योगशक्ति को तत्त्व से जानता है (जो कुछ दृश्यमात्र संसार है वह सब भगवान की माया है और एक वासुदेव भगवान ही सर्वत्र परिपूर्ण है, यह जानना ही तत्व से जानना है), वह निश्चल भक्तियोग से युक्त हो जाता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है।।7।।

 

He who  in  truth  knows  these  manifold  manifestations  of  My  Being  and  (this) Yoga-power of Mine, becomes established in the un-shakeable Yoga; there is no doubt about it ।।7।।

 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (6) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा ।

मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः ।।6।।

 

पुरा सप्त ऋषि चार मनु उपजे मम संकल्प

जिनसे इस संसार में वर्णित सृष्टि अकल्प।।6।।

 

भावार्थ :  सात महर्षिजन, चार उनसे भी पूर्व में होने वाले सनकादि तथा स्वायम्भुव आदि चौदह मनु- ये मुझमें भाव वाले सब-के-सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए हैं, जिनकी संसार में यह संपूर्ण प्रजा है।।6।।

 

The seven great sages, the ancient four and also the Manus, possessed of powers like Me (on account of their minds being fixed on Me), were born of (My) mind; from them are these creatures born in this world.।।6।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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