जीवन-यात्रा-पं. आयुष कृष्ण नयन – श्री दिनेश नौटियाल

पं॰ आयुष कृष्ण नयन

मुझे उन लोगों के जीवन वृत्तान्त सदैव ही विस्मित करते रहे हैं, जिन्होने लीक से हट कर कुछ नया किया है।

आज मैं जिस अभिव्यक्ति के स्वरूप एवं व्यक्तित्व की चर्चा करने जा रहा हूँ वह है “कथा वाचन”। यहाँ मैं आपसे  साझा कर रहा हूँ जानकारी, एक साधारण गाँव  के एक विलक्षण प्रतिभा के  धनी बालक की  जो  मात्र   10 वर्ष की आयु से श्रीमदभागवत, रामायण, महाभारत, शिवपुराण आदि ग्रन्थों का कथावाचक है। वह श्लोकों की संदर्भ सहित व्याख्या करने की क्षमता रखता है, तो निःसन्देह कोई इसे चमत्कार की संज्ञा देगा और कोई ईश्वर की अनुकम्पा या गॉड गिफ्ट कहेगा।

मैं अध्ययन करने की इस वैज्ञानिक/मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया को उस विलक्षण प्रतिभा के धनी बालक की निर्मल हृदय से धार्मिक एवं आध्यात्मिक ज्ञानार्जन की भावना, अन्तर्मन की एकाग्रता से कुछ सीखने का प्रयास, ईश्वर के प्रति समर्पण, परिवार के संस्कार के अतिरिक्त ईश्वर के आशीर्वाद को नकार नहीं सकता। 

(पं॰ आयुष कृष्ण नयन जी का जीवन वृत्तान्त उनके पिता श्री दिनेश नौटियाल जी  की  ही कलम से अक्षरशः लेने का पूर्ण प्रयास है।श्री  दिनेश जी  उत्तराखंड के एक विद्यालय में शिक्षक हैं । यह लेख कतिपय विज्ञापन नहीं है। )

आपका जन्म 05.03.2006 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद के अन्तर्गत अंतर्गत यमुनोत्तरी  धाम के निकट देवराना घाटी श्री रुद्रेश्वर महादेव की पावन धर्मस्थली के कण्डाउ ग्राम के सारी नामक एक गौशाला में हुआ। आपकी माता श्रीमती नीलम नौटियाल को गर्भावस्था के दौरान देहरादून डॉक्टर के पास ले जाते वक्त अत्यधिक प्रसवपीड़ा के कारण गौशाला में ही ठहराया गया जिसमें आपका जन्म हुआ। स्थानीय प्रथानुसार जहां जन्म होता है वहीं 21 दिन व्यतीत करने होते हैं। अतः उसी गौशाला में 21 गायों के मध्य आप 21 दिनों तक रहे। तत्पश्चात अपने गाँव कण्डाउ में वापस आ गए। जीवन बढ़ता गया। बचपन से ही भगवान की मूर्तियों पर आपकी दृष्टि टिकी रहती थी। ईश्वर की कृपा से घर पर मांगलिक कार्यक्रम तथा सुख शान्ति के साथ परिवार बहुत अच्छी प्रकार से आगे बढ्ने लगा। अन्न-धन घर में आने लगा, साथ ही पहले परिवार की दयनीय स्थिति थी उसमे भी सुधार होने लगा। आपकी माता गर्भावस्था के दौरान धार्मिक कार्यक्रमों, पूजा-पाठ व पुराणों में बहुत रुचि लेतीं थी। वे अपने ससुर पंडित श्री महिमानन्द नौटियाल जी से वेदों, पुराणों की कथा निरन्तर सुना करती थी। आपके पिता श्री दिनेश नौटियाल एक शिक्षक होने के साथ-साथ पूजा-पाठ में भी बहुत रुचि लेते थे। आपके जन्म के 2 वर्ष पश्चात आपको एक सर्प के साथ खेलते देखा तो सभी लोग भौंचक्के रह गए।

समय बीतता गया। आप जैसे ही 3 वर्ष के हुए तो निरन्तर अपने दादा जी के साथ पूजा में बैठने लगे और रात्रि को आपको तब तक नींद नहीं आती, जब तक आप पुराण की कोई कथा नहीं सुन लेते।

आपका दाखिला जागृति पब्लिक स्कूल, उत्तरकाशी, नौगांव में कराया गया किन्तु पढ़ाई में मन न लगने से आप स्कूल में भी अध्यापकों को पुराण की कथा सुनाने लगे। इसके कुछ दिनों के पश्चात अपने पिता श्री दिनेश नौटियाल जी से वृंदावन जाने की जिद करने लगे। लेकिन वृंदावन दूर होने का बहाना बना कर पिताजी ने बात को टाल दिया। कुछ दिनों के बाद आप पुनः बार-बार वृंदावन जाने की जिद करने लगे। पुत्र की जिद्द के सामने पिता हार गए। जब आपने कहा की कभी ऐसा हो सकता है कि मैं स्कूल जाते वक्त सीधा वृंदावन चला जाऊंगा। इस कारण यह निश्चय किया गया कि अब चाहे जो भी हो भविष्य भगवान के हाथ में छोड़ते  हुए 30 अप्रैल 2015 को हम उनकी माताजी के साथ वृंदावन गए।

सर्वप्रथम श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन किए तत्पश्चात भगवान की ऐसी कृपा हुई कि हम सीधे अनजान वृंदावन में “शालिग्राम चित्रकुटी आश्रम” पहुंचे जहां ऐसे सन्त के दर्शन हुए, जिन्होने आपको अपने सानिध्य में रखा। वे सन्त हैं “शिरोमणि परमपूज्य गुरुदेव भगवान श्री रामकृपाल  दास चित्रकुटी जी”, जिनकी देखरेख में आप विद्याध्ययन करने लगे। यह सब इतना आसान नहीं था। पहले गुरुदेव ने आपसे श्लोक कंठस्थ करवाकर आपकी परीक्षा ली जिसमें आप सफल हुए। आश्रम के कठोर नियमों का बड़ी सहजता से पालन करते हुए गुरुदेव द्वारा तय समय मानकों में अपेक्षा से अधिक श्लोक कंठस्थ किए। गुरुदेव भगवान का स्नेह आप पर दिनों दिन बढ़ता गया। गुरुदेव आपको अपने साथ प्रतिदिन विद्वत गोष्ठियों में ले जाते और आपने भी बाल्यकाल में ही अनेक संतों के आशीर्वाद प्राप्त किए। जो पाठ्यक्रम लगभग तीन वर्षों में पूर्ण होता है वह आपने लगभग दस माह में ही पूर्ण कर लिया। आपने रामायण तथा महाभारत के विभिन्न श्लोकों सहित श्रीमदभागवत महापुराण के 12,000 (बारह हजार) से अधिक श्लोकों को कंठस्थ किया है। आपकी प्रथम श्रीमदभागवत कथा 11वें माह पश्चात ही 3 मार्च 2016 को विभिन्न विद्वानों के मध्य श्री वृंदावन धाम में सम्पन्न हुई जिसमें हजारों की संख्या में लोग आए और अचंभित रह गए कि मात्र आठ वर्ष का बालक श्रीमद्भगवत कथा का वाचन इतनी सहजता से कैसे कर रहा है? आपने यह कथा प्रतिदिन लगभग आठ घंटे के वाचन से सात दिनों में पूर्ण की। ठाकुर जी कि कृपा आप पर ऐसे बनी कि प्रथम कथा वृंदावन धाम तथा ठीक एक माह पश्चात दूसरी कथा श्री राम जी के धाम अयोध्या में हुई।

आपके दीक्षा गुरु श्री राम कृपाल दास चित्रकुटी जी महाराज ने आपका नाम “आयुष नौटियाल” से “पंडित आयुष कृष्ण नयन” रख दिया।  आपके पिता जो आपके भविष्य को लेकर चिन्तित थे वह सब आज आपकी प्रतिभा से खुश हैं। आपके परिवार में आपकी एक छोटी बहन कु. अदिति है जो आपकी हर संभव मदद करती है। आपने इतनी छोटी सी उम्र में समाज को जागरूक करने के साथ सम्पूर्ण भारत में कथाओं द्वारा भगवान की भक्ति के लिए प्रेरित करने एवं समाज में विभिन्न प्रकार की कुरीतियों को समाप्त करने का संकल्प लिया है।  आप दहेज, अशिक्षा, बालिका स्वास्थ्य, प्रकृति में पेड़ पौधे, माता-पिता की सेवा, वृद्धजनों की सेवा, दिव्याङ्ग सेवा तथा सभी प्रकार के व्यसनों (शराब, तंबाकू आदि) पर रोक के लिए सभी कथाओं में चर्चा करते हैं। आप अब तक 79 कथाओं का वाचन कर चुके हैं। वर्तमान में आप श्री राम कथा, शिवमहापुराण, देवी भागवत, श्रीमदभागवत आदि कथाओं का वाचन करते हैं। इसके अतिरिक्त विशेष यह कि वे कथावाचन के किसी भी प्रकार के व्यवसायीकरण के सख्त विरोधी हैं।

इनके कुछ वीडियो यूट्यूब के इस लिंक https://www.youtube.com/channel/UCAf-Z4cPBI9lYOa0IYmw3Tg पर देखे जा सकते हैं।

© श्री दिनेश नौटियाल, ग्राम कण्डाउ, उत्तरकाशी (उत्तराखंड) मोबाइल 9760498242

Please share your Post !

Shares
image_print