हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 18 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(ई-अभिव्यक्ति ने समय-समय पर श्रीमदभगवतगीता, रामचरितमानस एवं अन्य आध्यात्मिक पुस्तकों के भावानुवाद, काव्य रूपांतरण एवं  टीका सहित विस्तृत वर्णन प्रकाशित किया है। आज से आध्यात्म की श्रृंखला में ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री हनुमान चालीसा के अर्थ एवं भावार्थ के साथ ही विस्तृत वर्णन का प्रयास किया है। आज से प्रत्येक शनिवार एवं मंगलवार आप श्री हनुमान चालीसा के दो दोहे / चौपाइयों पर विस्तृत चर्चा पढ़ सकेंगे। 

हमें पूर्ण विश्वास है कि प्रबुद्ध एवं विद्वान पाठकों से स्नेह एवं प्रतिसाद प्राप्त होगा। आपके महत्वपूर्ण सुझाव हमें निश्चित ही इस आलेख की श्रृंखला को और अधिक पठनीय बनाने में सहयोग सहायक सिद्ध होंगे।)   

☆ आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 18 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥

अर्थ:- आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।

भावार्थ:- यहां पर रसायन शब्द का अर्थ दवा है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान जी के पास में राम नाम का रसायन है। इसका अर्थ हुआ हनुमान जी के पास राम नाम रूपी दवा है। आप श्री रामचंद्र जी के सेवक हैं इसलिए आपके पास नामरूपी दवा है। इस दवा का उपयोग हर प्रकार के रोग में किया जा सकता है। सभी रोग इस दवा से ठीक हो जाते हैं।

संदेश:- ताकतवर होने के बावजूद आपको सहनशील होना चाहिए।

हनुमान चालीसा की इस चौपाई के बार बार पाठ करने से होने वाले लाभ:-

राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥

 इस चौपाई का बार बार पाठ करने से रहस्यों की प्राप्ति होती है।

विवेचना:- मेरा यह परम विश्वास है कि अगर आप बजरंगबली के सानिध्य में हैं,बजरंगबली के ध्यान में है तो किसी भी तरह की व्याधि और, विपत्ति आपका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती हैं। क्योंकि बजरंगबली के पास राम नाम का रसायन है। अज्ञेय कवि ने कहा है:-

क्यों डरूँ मैं मृत्यु से या क्षुद्रता के शाप से भी?

क्यों डरूँ मैं क्षीण-पुण्या अवनि के संताप से भी? व्यर्थ जिसको मापने में हैं विधाता की भुजाएँ— वह पुरुष मैं, मर्त्य हूँ पर अमरता के मान में हूँ!

मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

मैं हनुमान जी के ध्यान में हूं तो मैं मृत्यु से भी क्यों डरूं। मैं अपने आप को छोटा क्यों समझूं। हमारे हनुमान जी के पास तो राम नाम का रसायन है।

यह राम नाम का रसायन क्या है। पहले इस चौपाई के एक एक शब्द की चर्चा करते हैं।

राम शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है रम् + घम। रम् का अर्थ है रमना या निहित होना। घम का अर्थ है ब्रह्मांड का खाली स्थान। इस प्रकार राम शब्द का अर्थ हुआ जो पूरे ब्रह्मांड में रम रहा है वह राम है। अर्थात जो पूरे ब्रह्मांड में जो हर जगह है वह राम है।

 राम हमारे आराध्य के आराध्य का नाम भी है। पहले हम यह विचार लेते हैं कि हम श्री राम को अपने आराध्य का आराध्य क्यों कहते हैं। हमारे आराध्य हनुमान जी हैं और हनुमान जी के आराध्य श्री राम जी हैं। इसलिए श्री राम जी हमारे आराध्य के आराध्य हैं। हनुमान जी स्वयं को, अपने आप को श्री राम का दास कहते हैं। यह भी सत्य है कि सीता जी ने भी हनुमान जी को श्री राम जी के दास के रूप में स्वीकार किया है।:-

कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास

जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास॥13॥

(रामचरितमानस/ सुंदरकांड/ दोहा क्र 13)

अर्थ:- हनुमान जी के प्रेमयक्त वचन सुनकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न हो गया, उन्होंने जान लिया कि यह मन, वचन और कर्म से कृपासागर श्री रघुनाथजी का दास है॥

हनुमान जी के सभी भक्तों को यह ज्ञात है श्री राम जी हनुमान जी की आराध्य हैं। फिर भी हनुमानजी के भक्त सीधे श्री राम जी के भक्त बनना क्यों नहीं पसंद करते हैं।

बुद्धिमान लोग इसके बहुत सारे कारण बताएंगे परंतु हम ज्ञानहीन लोगों के पास ज्ञान की कमी है।इसके कारण हम बुद्धिमान लोगों की बातों को कम समझ पाते हैं। मैं तो सीधी साधी बात जानता हूं। हम सभी हनुमान जी के पुत्र समान है और हनुमान जी अपने आप को रामचंद्र जी के पुत्र के बराबर मानते हैं। इस प्रकार हम सभी श्री राम जी के पौत्र हुए। यह बात जगत विख्यात है कि मूल से ज्यादा सूद प्यारा होता है या यह कहें पुत्र से ज्यादा पौत्र प्यारा होता है। इस प्रकार हनुमान जी के भक्तों को श्री रामचंद्र जी अपने भक्तों से ज्यादा चाहते हैं। इसलिए ज्यादातर लोग पहले हनुमान जी से लगन लगाना ज्यादा पसंद करते हैं।

हम पुर्व में बता चुके हैं श्रीराम का अर्थ है सकल ब्रह्मांड में रमा हुआ तत्व यानी चराचर में विराजमान स्वयं परमब्रह्म।

शास्त्रों में लिखा है, “रमन्ते योगिनः अस्मिन सा रामं उच्यते” अर्थात, योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं उसे राम कहते हैं।

भारतीय समाज में राम शब्द का एक और उपयोग है। जब हम किसी से मिलते हैं तो आपस में अभिवादन करते हैं। कुछ लोग नमस्कार करतें हैं। कुछ लोग प्रणाम करतें हैं और कुछ लोग राम-राम कहते हैं। यहां पर दो बार राम नाम का उच्चारण होता है जबकि नमस्कार या प्रणाम का उच्चारण एक ही बार किया जाता है। हमारे वैदिक ऋषि-मुनियों ने जो भी क्रियाकलाप तय किया उसमें एक विशेष साइंस छुपा हुआ है। राम राम शब्द में भी एक विज्ञान है। आइए राम शब्द को दो बार बोलने पर चर्चा करते हैं।

एक सामान्य व्यक्ति 1 मिनट में 15 बार सांस लेता छोड़ता है। इस प्रकार 24 घंटे में वह 21600 बार सांस लेगा और छोड़ेगा। इसमें से अगर हम ज्योतिष के अनुसार रात्रि मान के औसत 12 घंटे का तो दिनमान के 12 घंटों में वाह 10800 बार सांस लेगा और छोड़ेगा। क्योंकि किसी देवता का नाम पूरे दिन में 10800 बार लेना संभव नहीं है।इसलिए अंत के दो शुन्य हम काट देते हैं। इस तरह से यह संख्या 108 आती है। इसीलिए सभी तरह के जाप के लिए माला में मनको की संख्या 108 रखी जाती है। यही 108 वैदिक दृष्टिकोण के अनुसार पूर्ण ब्रह्म का मात्रिक गुणांक भी है। हिंदी वर्णमाला में क से गिनने पर र अक्षर 27 वें नंबर पर आता है। आ की मात्रा दूसरा अक्षर है और  “म” अक्षर 25 वें नंबर पर आएगा। इस प्रकार राम शब्द का महत्व 27+2+25=54 होता है अगर हम राम राम दो बार कहेंगे तो यह 108 का अंक हो जाता है जो कि परम ब्रह्म परमात्मा का अंक है। इस प्रकार दो बार राम राम कहने से हम ईश्वर को 108 बार याद कर लेते हैं,।

 मेरे जैसा तुच्छ व्यक्ति राम नाम की महिमा का गुणगान कहां कर पाएगा। गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है :-

करऊँ कहा लगि नाम बड़ाई।

राम न सकहि नाम गुण गाई।।

स्वयं राम भी ‘राम’ शब्द की विवेचना नहीं कर सकते। ‘राम’ विश्व संस्कृति के नायक है। वे सभी सद्गुणों से युक्त है। अगर सामाजिक जीवन में देखें तो- राम आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श पति, आदर्श शिष्य के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। अर्थात् समस्त आदर्शों के एक मात्र न्यायादर्श ‘राम’ है।

क्योंकि राम शब्द की पूर्ण विवेचना करना मेरे जैसे  तुच्छ व्यक्ति के सामर्थ्य के बाहर है अतः इस कार्य को यहीं विराम दिया जाता है।

इस चौपाई का अगला शब्द रसायन जिसका शाब्दिक अर्थ कई हैं। जैसे :-

  1. पदार्थ का तत्व-गत ज्ञान
  2. लोहा से सोना बनाने का एक योग
  3. जरा व्याधिनाशक औषधि। वैद्यक के अनुसार वह औषध जो मनुष्य को सदा स्वस्थ और पुष्ट बनाये रखती है।

अगर हम रसायन शब्द का इस्तेमाल पदार्थ के तत्व ज्ञान के बारे में करते हैं यह कह सकते हैं के हनुमान जी के पास राम नाम का पूरा ज्ञान है। पूर्ण ज्ञान होने के कारण हनुमान जी रामचंद्र जी के पास पहुंचने के एक सुगम सोपान है। अगर आपने हनुमान जी को पकड़ लिया तो रामजी तक पहुंचना आपके लिए काफी आसान हो जाएगा।अगर आप सीधे रामजी के पास पहुंचना चाहोगे यह काफी मुश्किल कार्य होगा। अगर हम लोकाचार की बात करें तो यह उसी प्रकार है जिस प्रकार प्रधानमंत्री से मिलने के लिए हमें किसी सांसद का सहारा लेना चाहिए। मां पार्वती से मिलने के लिए गणेश जी का सहारा, गणेश जी की अनुमति लेना चाहिए। इस चौपाई से तुलसीदास जी कहना चाहते हैं रामजी तक आसानी से पहुंचने के लिए हमें पहले हनुमान जी के पास तक पहुंचना पड़ेगा।

अर्थ क्रमांक 2 में बताया गया है लोहा से सोना बनाने का जो योग होता है उसको भी रसायन कहा जाता है। अब यहां लोहा कौन है ? हम साधारण प्राणी लोहा हैं और अगर हमारे ऊपर पवन पुत्र हनुमान जी की कृपा हो जाए तो हम सोने में बदल जाएंगे। हनुमान जी के पास रामचंद जी का दिया हुआ लोहे को सोना बनाने वाला रसायन है।

अब हम तीसरे बिंदू पर आते हैं। भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के अनुसार किसी भी रोग, ताप, व्याधि को नष्ट करने के लिए विभिन्न रसायनों का प्रयोग किया जाता है। इन रसायनों का पूरा स्टॉक हमारे महाबली हनुमान जी के पास राम जी की कृपा से है। अगर हनुमान जी की कृपा हमारे ऊपर रही तो हमें कभी भी रोग या व्याधि से परेशान नहीं होना पड़ेगा। हमारा शरीर और मन सदैव स्वस्थ रहेगा। मन के स्वस्थ रहने के कारण हमारे ऊपर पवन पुत्र की और श्री रामचंद्र जी की कृपा बढ़ती ही जाएगी।

यहां पर यह ध्यान देने वाली बात है कि ब्याधि का अर्थ केवल शारीरिक बीमारी नहीं है। बरन मानसिक परेशानियां भी व्याधि के अंतर्गत आती है। यह संस्कृत का शब्द है और यह साहित्य में एक भाव भी है। किसी भी प्रकार के  कष्ट पहुंचाने वाली वस्तु को भी व्याधि कहते हैं।

आयुर्वेद में इन सभी प्रकार की व्याधियों को दूर करने के लिए रसायनों का प्रयोग होता है। इसके अलावा आयुर्वेद के अनुसार वह औषध जो जरा और व्याधि का नाश करनेवाली हो। वह दवा जिसके खाने से आदमी बुड़ढ़ा या बीमार न हो उसको भी हम रसायन कहेंगे। ऐसी औषधों से शरीर का बल, आँखों की ज्योति और वीर्य आदि बढ़ता है। इनके खाने का विधान युवावस्था के आरंभ और अंत में है। कुछ प्रसिद्ध रसायनों के नाम इस प्रकार है। – विड़ग रसायन, ब्राह्मी रसायन, हरीतकी रसायन, नागवला रसायन, आमलक रसायन आदि। प्रत्येक रसायन में कोई एक मुख्य ओषधि होता है ; और उसके साथ दूसरी अनेक ओषधियाँ मिली हुई होती हैं।

परंतु राम रसायन एक ऐसी औषधि है जिनमें हर प्रकार की व्याधियों को दूर करने की क्षमता है। यह राम रसायन हमारे पवन पुत्र के पास है।

इस चौपाई का अगला वाक्यांश है “सदा रहो रघुपति के दासा”। जिसका सीधा साधा अर्थ भी है की हनुमान जी सदैव रामचंद्र जी के सेवा मैं प्रस्तुत रहे। रघुनाथ जी के शरण में रहे। हनुमान जी ने सदैव मनसा वाचा कर्मणा श्री रामचंद्र की सेवा की और और इसी बात का श्री रामचंद्र जी से आशीर्वाद भी मांगा।

बचपन में एक बार परमवीर हनुमान जी ने भगवान शिव के साथ अयोध्या के राजमहल में भगवान श्री राम को देखा था। बाद में सीता हरण के उपरांत जब श्री रामचंद्र जी ऋषिमुक पर्वत के पास पहुंचे तब वहां पर हनुमान जी सुग्रीव जी के आदेश से ब्राम्हण रुप में श्रीरामचंद्र जी के पास गये। हनुमान जी श्री रामचंद्र जी को पहचान नहीं पाए। बाद में श्री राम जी द्वारा बताने पर वे श्री रामचंद्र जी को पहचान गये। उन्होंने श्री रामचंद्र जी को अपना प्रभु बताते हुए कहा मैं मूर्ख वानर हूं। अज्ञानता बस आपको पहचान नहीं पाया परंतु आप तो तीन लोक के स्वामी हैं आप तो मुझे पहचान सकते थे।

पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही॥

मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं॥

(रामचरितमानस /किष्किंधा कांड/1/4)

अर्थ:- फिर धीरज धर कर स्तुति की। अपने नाथ को पहचान लेने से उनके हृदय में हर्ष हो रहा है। (फिर हनुमान्‌जी ने कहा-) हे स्वामी! मैंने जो पूछा वह मेरा पूछना तो न्याय था, (वर्षों के बाद आपको देखा, वह भी तपस्वी के वेष में। मेरी वानरी बुद्धि इससे मैं तो आपको पहचान न सका। अपनी परिस्थिति के अनुसार मैंने आपसे पूछा), परंतु आप मनुष्य की तरह कैसे पूछ रहे हैं?॥4॥

जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें। सेवक प्रभुहि परै जनि भोरें॥

नाथ जीव तव मायाँ मोहा। सो निस्तरइ तुम्हारेहिं छोहा॥

 (रामचरितमानस/ किष्किंधा कांड/ 2/1)

अर्थ:- हे नाथ! यद्यपि मुझ में बहुत से अवगुण हैं, तथापि सेवक स्वामी की विस्मृति में न पड़े। (आप उसे न भूल जाएँ)। हे नाथ! जीव आपकी माया से मोहित है। वह आप ही की कृपा से निस्तार पा सकता है॥1॥

ता पर मैं रघुबीर दोहाई। जानउँ नहिं कछु भजन उपाई॥

सेवक सुत पति मातु भरोसें। रहइ असोच बनइ प्रभु पोसें॥

(रामचरितमानस /किष्किंधा कांड/2/2)

अर्थ:- उस पर हे रघुवीर! मैं आपकी दुहाई (शपथ) करके कहता हूँ कि मैं भजन-साधन कुछ नहीं जानता। सेवक स्वामी के और पुत्र माता के भरोसे निश्चिंत रहता है। प्रभु को सेवक का पालन-पोषण करते ही बनता है (करना ही पड़ता है)॥

श्री रामचंद्र जी का अयोध्या में राजतिलक हो चुका था। रामराज्य अयोध्या में आ गया था। रामचंद्र जी ने तय किया पुराने साथियों को उनके घर जाने दिया जाए। पहली मुलाकात के बाद से ही सुग्रीव, जामवंत, हनुमान जी, अंगद जी, विभीषण जी, सभी उनके साथ अब तक लगातार थे। अब आवश्यक हो गया था कि इन लोगों को घर जाने की अनुमति दी जाए। जिससे यह सभी लोग अपने परिवार जनों के साथ मिल सकें। विभीषण और सुग्रीव जी अपने-अपने राज्य में जाकर रामराज लाने का प्रयास करें। वहां की शासन व्यवस्था को ठीक करें। जाते समय श्री रामचंद्र जी सभी लोगों को कुछ ना कुछ उपहार दे रहे थे। जब सभी लोगों को श्री रामचंद्र जी ने विदा कर दिया उसके बाद हनुमान जी से पूछा कि उनको क्या उपहार दिया जाए। हनुमान जी ने कहा कि आपने सभी को कुछ ना कुछ पद दिया है। मुझे भी एक पद दे दीजिए। उसके उपरांत उन्होंने श्री रामचंद्र जी के पैर पकड़ लिए।

अब गृह जाहु सखा सब भजेहु मोहि दृढ़ नेम।

सदा सर्बगत सर्बहित जानि करेहु अति प्रेम॥16॥

(रामचरितमानस /उत्तरकांड /दोहा क्रमांक 16)

अर्थ:- हे सखागण! अब सब लोग घर जाओ, वहाँ दृढ़ नियम से मुझे भजते रहना। मुझे सदा सर्वव्यापक और सबका हित करने वाला जानकर अत्यंत प्रेम करना॥

हनुमान जी द्वारा वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमानजी श्रीराम से याचना करते हैं-

यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले।

तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशय:।।

(वाल्मीकि रामायण /उत्तरकांड 40 / 17)

अर्थ : – ‘हे वीर श्रीराम! इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहें।’

जिसके बाद श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते हैं-

‘एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशय:।

चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका

तावत् ते भविता कीर्ति: शरीरे प्यवस्तथा।

लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा।।’

(बाल्मीकि रामायण /उत्तरकांड/40/21-22)

अर्थात् :- ‘हे कपिश्रेष्ठ, ऐसा ही होगा, इसमें संदेह नहीं है। संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण रहेंगे। जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेंगी।

एक दिन, विभीषण जी ने समुद्र की दी हुई एक उत्तम कोटि का अति सुंदर माला सीता मां को भेंट की। सीता मां ने माला ग्रहण करने के उपरांत श्री राम जी की तरफ देखा। रामजी ने कहा कि तुम यह माला उसको दो जिस पर तुम्हारी सबसे ज्यादा अनुकंपा है। सीता मैया ने हनुमान जी को मोतीयों की यह माला भेट दी। हनुमान जी ने माला को बड़े प्रेम से ग्रहण किया। उसके उपरांत हनुमान जी एक एक मोती को दांतोसे तोड़ कर कान के पास ले जाते और फिर फेंक देते। अपने भेंट की इस प्रकार बेइज्जती होते देख विभीषण जी काफी कुपित हो गए। उन्होंने हनुमान जी से पूछा कि आपने यह माला तोड़ कर क्यों फेंक दी। इस पर हनुमान जी ने कहा कि हे विभीषण जी मैं तो इस माला की मणियों में सीताराम नाम ढूंढ रहा हूं। परंतु वह नाम इनमें नहीं है। अतः मेरे लिए यह माला पत्थर का एक टुकड़ा है। इस पर किसी राजा ने कहा कि आप हर समय आप हर जगह सीताराम को ढूंढते हो। आप ने जो यह शरीर धारण किए हैं क्या उसमें भी सीता राम हैं और उनकी आवाज आती है। इतना सुनते ही हनुमान जी ने पहले अपना एक बाल तोड़ा और उसे उन्हीं राजा के कान में लगाया। बाल से सीताराम की आवाज आ रही थी। उसके बाद उन्होंने अपनी छाती चीर डाली। उनके ह्रदय में श्रीराम और सीता की छवि दिखाई पडी साथ ही वहां से भी सीताराम की आवाज आ रही थी।

अपनी अनन्य भक्ति के कारण हनुमान जी के हृदय में श्रीराम और सीता के अलावा संसार की किसी भी वस्तु की अभिलाषा नहीं थी।

इस प्रकार यह स्पष्ट है की हनुमान जी सदैव ही श्री राम जी के दास रहे और श्री रामचंद्र जी सदैव ही हनुमान जी के प्रभु रहे।

जय श्री राम। जय हनुमान।

चित्र साभार – www.bhaktiphotos.com

© ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ आलेख – ब्रह्मांड एवं पृथ्वी – वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय गणना ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? आप समय समय पर ज्योतिष विज्ञान संबंधी विशेष जानकारियाँ भी आपसे साझा करते  रहते हैं । इसी कड़ी में आज प्रस्तुत है आपका विशेष आलेख ब्रह्मांड एवं पृथ्वी – वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय गणनाआपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ ब्रह्मांड एवं पृथ्वी – वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय गणना ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆  

वैज्ञानिक पृथ्वी पर हुई घटनाओं की गणना चार प्रकार से करते हैं। पहली गणना परतदार चट्टानों के निर्माण की गति से की जाती है। इस गणना के अनुसार पृथ्वी की आयु 5 करोड़ 42 लाख वर्ष होती है जिसे कि वैज्ञानिकों ने बाद में अमान्य कर दिया।

दूसरी प्रक्रिया है जिसमें पृथ्वी के तापमान को आधार  बना करके पृथ्वी की आयु निकाली गई और यह 10 वर्ष करोड़ वर्ष प्राप्त हुई। इसे भी वैज्ञानिकों द्वारा अमान्य कर दिया गया।

तीसरी प्रक्रिया के अनुसार रेडियो सक्रिय तत्वों के विघटन के आधार पर पृथ्वी की आयु निकाली गई है वर्तमान में इसे प्रमाणिक माना जा रहा है। इसके अनुसार पृथ्वी के पहले योग जिसे हैडियन युग कहा जाता है 4.53 Ga वर्ष पहले हुआ था। हैडियन युग में ही पृथ्वी का एक भाग अंतरिक्ष में उछल गया और वह चंद्रमा कहलाया। हेडियन युग के दौरान पृथ्वी की सतह पर लगातार उल्कापात होता रहा और बड़ी मात्रा में उष्मा के प्रभाव तथा भू-उष्मीय अनुपात के कारण ज्वालामुखियों का विस्फोट हुआ और जर्कान कण बने। इस युग का अंत 3.8 Ga के आस पास हुआ। रेडियोएक्टिव पदार्थों के अर्धवार्षिक आयु के गणना से पृथ्वी की आयु 4.54 अरब वर्ष पहले हुई। चंद्रमा की आयु 4.52 या 4.48 अरब वर्ष मानी जाती है।

पृथ्वी पर जीवन का प्रारंभ लुका कोशिका द्वारा 3.5 अरब वर्ष पहले माना जाता है। इसका अर्थ है पहला जीवन लुका कोशिका का था जो कि 3.5 अरब वर्ष पहले हुआ था। यह लुका कोशिका आज के पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवित पदार्थों का पूर्वज है।

इसके उपरांत प्रोटेरोज़ोइक युग आया। यह युग 2.5 अरब वर्ष से 54.2 करोड़ वर्ष तक चला। इस समयावधि में पृथ्वी पर दो भीषण हिमयुग आए और पृथ्वी पर ऑक्सीजन का वातावरण निर्मित हुआ। जीवन की गति प्रारंभ हुई। इसके उपरांत निम्नानुसार जीवन की गति बढ़ी।

  1. 54.2 से 48.8 करोड़ वर्ष के बीच में जीवन की उत्पत्ति अत्यंत तीव्र गति  से हुई और मछली की तरह के किसी जन्तु का प्रादुर्भाव हुआ।
  2. 38.0 से 37.5 करोड़ों वर्ष के बीच चतुर प्राणी का विकास हुआ।
  3. 36.5 करोड़ वर्ष पर वनस्पतियां बनी।
  4. 25.0 से 15.7 करोड़ वर्ष के बीच डायनासोर बने।
  5. 60 करोड़ से  20 करोड़ वर्ष के बीच वानर से मानव का विकास हुआ।
  6. 200000 वर्ष पूर्व वर्तमान मानव अस्तित्व में आया।

अब हम विभिन्न धर्मों के अनुसार पृथ्वी के आयु के बारे में चर्चा करते हैं।

ईसाई धर्म के अनुसार आदम से लेकर ईसा मसीह तक समस्त ईश्वर के पैगंबर की उम्र की गणना अगर की जाए तो 3572 वर्ष + 2022 वर्ष पूर्व आदम इस धरती पर आए थे। इसके अलावा ईसाई धर्म के अन्य विचारधारा के अनुसार 7200 वर्ष पूर्व पैगंबर आदम इस धरती पर आए थे। अर्थात मानव 7200 वर्ष पहले धरती पर आया था।

इस्लाम धर्म में सीधे-सीधे कहीं भी नहीं लिखा गया है कि पृथ्वी कितने साल पुरानी है।

अब हम हिंदू धर्म के अनुसार पृथ्वी के आयु के बारे में चर्चा करेंगे और विज्ञान से इसकी तुलना करेंगे।

भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार समय की गणना एक महत्वपूर्ण कार्य है। किसी भी हिंदू आयोजन में सबसे पहले संकल्प किया जाता है जिसमें संकल्प का समय एवं स्थान आदि पूर्णतया परिभाषित होता है। संकल्प लेने का यह कार्य  वैदिक परंपरा के प्रारंभ से ही हो रहा है। संकल्प निम्नानुसार होता है।

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:। श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्यैतस्य ब्रह्मणोह्नि द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचरणे भूर्लोके भारतवर्षे जम्बूद्विपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तस्य ………… क्षेत्रे ………… मण्डलान्तरगते ………… नाम्निनगरे (ग्रामे वा) श्रीगड़्गायाः ………… (उत्तरे/दक्षिणे) दिग्भागे देवब्राह्मणानां सन्निधौ श्रीमन्नृपतिवीरविक्रमादित्यसमयतः ……… संख्या -परिमिते प्रवर्त्तमानसंवत्सरे प्रभवादिषष्ठि -संवत्सराणां मध्ये ………… नामसंवत्सरे, ………… अयने, ………… ऋतौ, ………… मासे, ………… पक्षे, ………… तिथौ, ………… वासरे, ………… नक्षत्रे, ………… योगे, ………… करणे, ………… राशिस्थिते चन्द्रे, ………… राशिस्थितेश्रीसूर्ये, ………… देवगुरौ शेषेशु ग्रहेषु यथायथा राशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ………… गोत्रोत्पन्नस्य ………… शर्मण: (वर्मण:, गुप्तस्य वा) सपरिवारस्य ममात्मन: श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-पुण्य-फलावाप्त्यर्थं ममऐश्वर्याभिः वृद्धयर्थं।

संकल्प में पहला शब्द  द्वितीये परार्धे आया है। श्रीमद भगवत पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी की आयु 100 वर्ष की है जिसमें से पूर्व परार्ध अर्थात 50 वर्ष बीत चुके हैं तथा दूसरा परार्ध प्रारंभ हो चुका है। त्रैलोक्य की सृष्टि ब्रह्मा जी के दिन प्रारंभ होने से होती है और दिन समाप्त होने पर उतनी ही लंबी रात्रि होती है। एक दिन एक कल्प कहलाता है।

यह एक दिन 1. स्वायम्भुव, 2. स्वारोचिष, 3. उत्तम, 4. तामस, 5. रैवत, 6. चाक्षुष, 7. वैवस्वत, 8. सावर्णिक, 9. दक्ष सावर्णिक, 10. ब्रह्म सावर्णिक, 11. धर्म सावर्णिक, 12. रुद्र सावर्णिक, 13. देव सावर्णिक और 14. इन्द्र सावर्णिक- इन 14 मन्वंतरों में विभाजित किया गया है। इनमें से 7वां वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है। 1 मन्वंतर 1000/14 चतुर्युगों के बराबर अर्थात 71.42 चतुर्युगों के बराबर होती है।

यह भिन्न संख्या पृथ्वी के 27.25 डिग्री झुके होने और 365.25 दिन में पृथ्वी की परिक्रमा करने के कारण होती है। दशमलव के बाद के अंक को सिद्धांत के अनुसार दो मन्वन्तर के बीच के काल के अनुसार  जिसका परिमाण 4,800 दिव्य वर्ष (सतयुग काल) माना गया है। इस प्रकार मन्वंतरों का काल=14*71=994 चतुर्युग हुआ।

हम जानते हैं कि कलयुग 432000 वर्ष का होता है इसका दोगुना द्वापर युग 3 गुना त्रेतायुग एवं चार गुना सतयुग होता है। इस प्रकार एक महायुग 43 लाख 20 हजार वर्ष का होता है।

71 महायुग मिलकर एक मन्वंतर बनाते हैं जोकि 30 करोड़ 67 लाख 20 हजार वर्ष का हुआ। प्रलयकाल या संधिकाल जो कि हर मन्वंतर के पहले एवं बाद में रहता है 17 लाख 28 हजार वर्ष का होता है। 14 मन्वन्तर मैं 15 प्रलयकाल होंगे अतः प्रलय काल की कुल अवधि 1728000 *15 = 25920000 होगा। 14 मन्वंतर की अवधि 306720000 * 14 = 4294080000 होगी और एक कल्प की अवधि इन दोनों का योग 4320000000 होगी। जोकि ब्रह्मा का 1 दिन रात है। ब्रह्मा की कुल आयु (100 वर्ष) = 4320000000 * 360 * 100 = 155520000000000 = 155520 अरब वर्ष होगी। यह ब्रह्मांड और उसके पार के ब्रह्मांड का कुल समय होगा। वर्तमान विज्ञान को यह ज्ञात है कि ब्रह्मांड के उस पार भी कुछ है परंतु क्या है यह वर्तमान विज्ञान को अभी ज्ञात नहीं है।

अब हम पुनः एक बार संकल्प को पढ़ते हैं जिसके अनुसार वैवस्वत मन्वन्तर चल रहा है अर्थात 6 मन्वंतर बीत चुके हैं सातवा मन्वंतर चल रहा है। पिछले गणना से हम जानते हैं की एक मन्वंतर 306720000 वर्ष का होता है। छह मन्वंतर बीत चुके हैं अर्थात 306720000 * 6 = 1840320000 वर्ष बीत चुके हैं। इसमें सात प्रलय काल और जोड़े जाने चाहिए अर्थात (1728000 * 7) 12096000 वर्ष और जुड़ेंगे इस प्रकार कुल योग  (1840320000 + 12096000) 1852416000 वर्ष होता है।

हम जानते हैं एक मन्वंतर 71 महायुग का होता है जिसमें से 27 महायुग बीत चुके हैं। एक महायुग 4320000 वर्ष का होता है इस प्रकार 27 महायुग (27*4320000) 116640000 वर्ष के होंगे। इस अवधि को भी हम बीते हुए मन्वंतर काल में जोड़ते हैं (1852416000+116640000) तो ज्ञात होता है कि 1969056000 वर्ष बीत चुके हैं।

28 वें महायुग के कलयुग का समय जो बीत चुका है वह (सतयुग के 1728000 + त्रेता युग 1296000+ द्वापर युग 864000) = 3888000 वर्ष होता है। इस अवधि को भी हम पिछले बीते हुए समय के साथ जोड़ते हैं (1969056000 + 3888000 ) और संवत 2079 कलयुग के 5223 वर्ष बीत चुके हैं।

अतः हम बीते गए समय में कलयुग का समय भी जोड़ दें तो कुल योग 1972949223 वर्ष आता है। इस समय को हम 1.973 Ga वर्ष भी कह सकते हैं।

ऊपर हम बता चुके हैं कि आधुनिक विज्ञान के अनुसार पृथ्वी का प्रोटेरोज़ोइक काल 2.5 Ga से 54.2 Ma वर्ष तथा और इसी अवधि में पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति हुई है। इन दोनों के मध्य में भारतीय गणना अनुसार आया हुआ समय 1.973 Ga वर्ष भी आता है। जिससे स्पष्ट है कि भारत के पुरातन वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर जीवन के प्रादुर्भाव की जो गणना की थी वह बिल्कुल सत्य है।

आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य 4.603 अरब वर्ष पहले अपने आकार में आया था। इसी प्रकार पृथ्वी 4.543 अरब वर्ष पहले अपने आकार में आई थी।

हमारी आकाशगंगा 13.51 अरब वर्ष पहले बनी थी। अभी तक ज्ञात सबसे उम्रदराज वर्लपूल गैलेक्सी 40.03 अरब वर्ष पुरानी है। विज्ञान यह भी मानता है कि इसके अलावा और भी गैलेक्सी हैं जिनके बारे में अभी हमें ज्ञात नहीं है। हिंदू ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मा जी की आयु 155520 अरब वर्ष की है जिसमें से आधी बीत चुकी है। यह स्पष्ट होता है कि ज्योतिषीय संरचनाओं ने  77760 अरब वर्ष पहले आकार लिया था और कम से कम इतना ही समय अभी बाकी है।

आपसे अनुरोध है कि कृपया इस पर अपनी प्रतिकृया अवश्य दें ।  इस पर अगर आपको कोई  संदेह है तो कृपया आवश्यक रूप से बताएं जिससे उसे दूर किया जा सके।

जय मां शारदा।

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ वार्षिक राशिफल 2023 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆ – शीघ्र प्रकाश्य 

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

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यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ धन्वंतरी जयंती या धन त्रयोदशी ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ धन्वंतरी जयंती या धन त्रयोदशी ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

भारतीय परंपरा का पावन त्यौहार धन्वंतरी जयंती या धन त्रयोदशी निकट है । आज मैं आप सभी को इसके महत्व के बारे में बताऊंगा।

दीपावली पांच पर्वों का समूह है जोकि धनतेरस  से प्रारंभ होता है ।

धनतेरस को धनत्रयोदशी धन्वंतरि जयंती या यम त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है । 

धनतेरस को मनाने के लिए के बारे में दो अलग-अलग कथाएं हैं ।

पहली कथा के अनुसार इसी दिन समुंद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत लेकर प्रकट हुए थे । अर्थात इस दिन मानव जाति को अमृत रूपी  औषध प्राप्त हुई थी । इस औषध की एक बूंद ही व्यक्ति के मुख में जाने से  व्यक्ति की कभी भी मृत्यु नहीं होती है । अगर हम आज के संदर्भ में बात करें एक ऐसी वैक्सीन की खोज हुई थी जिसके एक बूंद में  मात्र से व्यक्ति को कभी कोई रोग नहीं हो सकता है ।

दूसरी कथा के अनुसार यमदेव ने एक चर्चा के दौरान बताया है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को रात्रि के समय  पूजन एवं दीपदान को विधि पूर्वक पूर्ण करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है । इसमें दीपक और पूजन का महत्व बताया गया है । अगर हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यम देव ने संभवत एक ऐसे तेल का आविष्कार किया था जिसका दीप बनाकर प्रयोग करने  से उस दीप की लौ से निकलने वाले गैस को ग्रहण करने से अकाल मृत्यु से व्यक्ति को छुटकारा मिलता था ।  अगर हम ध्यान दें तो इन दोनों कथाओं का संबंध व्यक्ति के स्वास्थ्य से है ।

अगर हम इस त्योहार को सामान्य दृष्टिकोण से देखें तो हम पाते हैं कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तक वर्षा ऋतु समापन पर आ जाती है और इस दिन भी प्रकार की पूजा पाठ करने से तथा दीपक जलाने से विभिन्न प्रकार के कीट पतंगों का जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं नष्ट करने में हमें मदद मिलती है।

जैन आगम में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूँकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनियाँ के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं। धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है । लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी, गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।

आप सभी को यह जानकर प्रसन्नता होगी की धनतेरस को भारत सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मान्यता दी है।

धनत्रयोदशी रात्रि का त्यौहार है इस वर्ष जबलपुर के भुवन विजय पंचांग के अनुसार त्रयोदशी 22 अक्टूबर को सायंकाल 4:04 से प्रारंभ हो रही है और अगले दिन अर्थात 23 तारीख को दिन के 4:35 तक रहेगी । इससे यह स्पष्ट है दीपदान हेतु समय 22 अक्टूबर को सायंकाल 4:04 के बाद ही प्रारंभ होगा । उज्जैन के पुष्पांजलि पंचांग के अनुसार त्रयोदशी 22 तारीख को सायंकाल 5:56 से प्रारंभ हो रही है जो अगले दिन 23 तारीख को सायंकाल 5:58 तक रहेगी । जबलपुर के समय के अनुसार 23 तारीख को 4:30 से 4: 33 रात्रि अंत तक भद्रा रहेगी । 22 तारीख को सायंकाल का मुहूर्त ही उपयुक्त है । धनतेरस की खरीदारी 22 तारीख को सायंकाल उज्जैन के समय के अनुसार सायंकाल 5:56 से 7:29 तक तथा इसके उपरांत रात्रि 9:03 से रात्रि के 25:46  अर्थात रात्रि 1:46 तक  की जा सकती है।

पूजन मुहूर्त की गणना निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार की गई है।

मां शारदा से प्रार्थना है कि आप सभी को सुख समृद्धि और वैभव प्राप्त हो। जय मां शारदा।

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ज्योतिष साहित्य ☆ नवरात्रि विशेष – नवरात्रि त्योहार ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ नवरात्रि विशेष – नवरात्रि त्योहार  ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

इस बार मैं आपको नवरात्र त्यौहार क्या है इसे क्यों मनाते हैं और इसकी आराधना किस तरह से करें, इस संबंध में आपको बताने का प्रयास करूंगा ।

नवरात्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है पहला नव और दूसरी रात्रि । अर्थात नवरात्रि पर्व 9 रात्रियों का पर्व है ।

9 के अंक का अपने आप में बड़ा महत्व है । यह इकाई की सबसे बड़ी संख्या है । भारतीय ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की संख्या भी नौ है ।

9 का अंक एक ऐसी वस्तु का द्योतक है जिसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता । क्योंकि 9 के अंक को चाहे जिस अंक से गुणा किया जाए प्राप्त अंको का योग भी 9 ही होगा ।
हमारे शरीर में 9 द्वार हैं। 2 आंख ,  दो कान , दो  नाक , एक मुख ,एक मलद्वार , तथा एक मूत्र द्वार। नौ द्वारों को सिद्ध करने हेतु पवित्र करने हेतु नवरात्रि का पर्व का विशेष महत्व है। नवरात्रि में किए गए पूजन अर्चन तप यज्ञ हवन आदि से यह नवो द्वार शुद्ध होते हैं।

नवरात्रि दो तरह की होती है एक प्रगट नवरात्रि और दूसरी गुप्त नवरात्रि।

हम यहां केवल प्रगट नवरात्रि की ही चर्चा करेंगे। दो प्रगट नवरात्रि होती हैं । पहली नवरात्रि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होती है । इसे वासन्तिक नवरात्रि भी कहते हैं ‌। यह 2 अप्रैल 2022 से थी।

 

दूसरी नवरात्रि अश्वनी महासके शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होती है । इसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं । यह इस वर्ष 26 सितंबर से प्रारंभ हो रही है।

दोनों नवरात्रि में नवरात्रि पूजन प्रतिभा का सीन प्रतिपदा से नौमी पर्यंत किया जाता है प्रतिपदा के दिन घट की स्थापना करके नवरात्रि व्रत का संकल्प करके गणपति तथा मातृका पूजन किया जाता है । इसके उपरांत पृथ्वी का पूजन कर घड़े में आम के हरे पत्ते दूर्वा पंचामृत पंचगव्य डालकर उसके मुंह में सूत्र बांधा जाता है । घट के पास में गेहूं अथवा जव का पात्र रखकर वरुण पूजन करके भगवती का आह्वान करना चाहिए । नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है ।

विभिन्न ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि पूजन के कुछ नियम है, जैसे :-

देवी भागवत के अनुसार अगर अमावस्या और प्रतिपदा एक ही दिन पड़े तो उसके अगले दिन पूजन और घट स्थापना की जाती है।

विष्णु धर्म नाम के ग्रंथ के अनुसार सूर्योदय से 10 घटी तक प्रातः काल में घटस्थापना शुभ होती है।

रुद्रयामल नाम के ग्रंथ के अनुसार यदि प्रातः काल में चित्र नक्षत्र या वैधृति योग हो तो उस समय घट स्थापना नहीं की जाती है अगर इस चीज को टालना संभव ना हो तो अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापना की जाएगी।

देवी पुराण के अनुसार देवी की देवी का आवाहन प्रवेशन नित्य पूजन और विसर्जन यह सब प्रातः काल में करना चाहिए।

निर्णय सिंधु नाम के ग्रंथ के अनुसार यदि प्रथमा तिथि वृद्धि हो तो प्रथम दिन घटस्थापना करना चाहिए।

नवरात्र के वैज्ञानिक पक्ष की तरफ अगर हम ध्यान दें तो हम पाते हैं कि दोनों प्रगट नवरात्रों के बीच में 6 माह का अंतर है। चैत्र नवरात्रि के बाद गर्मी का मौसम आ जाता है तथा शारदीय नवरात्रि के बाद ठंड का मौसम आता है। हमारे महर्षि यों ने शरीर को गर्मी से ठंडी तथा ठंडी से गर्मी की तरफ जाने के लिए तैयार करने हेतु इन नवरात्रियों की प्रतिष्ठा की है। नवरात्रि में व्यक्ति पूरे नियम कानून के साथ अल्पाहार  एवं शाकाहार  या पूर्णतया निराहार व्रत रखता है । इसके  कारण शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है।अर्थात शरीर के जो भी विष तत्व है वे बाहर हो जाते हैं । पाचन तंत्र को आराम मिलता है । लगातार 9 दिन के  आत्म अनुशासन की पद्धति के कारण मानसिक स्थिति बहुत मजबूत हो जाती है ।जिससे डिप्रेशन माइग्रेन हृदय रोग आदि बिमारियों  के होने की संभावना कम हो जाती है।

देवी भागवत के अनुसार सबसे पहले मां ने महिषासुर का वध किया । महिषासुर का अर्थ होता है ऐसा असुर जोकि भैंसें के गुण वाला है अर्थात जड़  बुद्धि है । महिषासुर का विनाश करने का अर्थ है समाज से जड़ता का संहार करना। समाज को इस योग्य बनाना कि वह नई बातें सोच सके तथा निरंतर आगे बढ़ सके।

समाज जब आगे बढ़ने लगा तो आवश्यक था कि उसकी दृष्टि पैनी होती और वह दूर तक देख सकता ।अतः तब माता ने धूम्रलोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि दी।

धूम्रलोचन का अर्थ होता है धुंधली दृष्टि। इस प्रकार माता जी माता ने धूम्र लोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि प्रदान की।

समाज में जब ज्ञान आ जाता है उसके उपरांत बहुत सारे तर्क वितर्क होने लगते हैं ।हर बात के लिए कुछ लोग उस के पक्ष में तर्क देते हैं और कुछ लोग उस के विपक्ष में तर्क देते हैं । जिससे समाज की प्रगति अवरुद्ध जाती है । चंड मुंड इसी तर्क और वितर्क का प्रतिनिधित्व करते हैं ।माता ने चंड मुंड की हत्या कर समाज को बेमतलब के तर्क वितर्क से आजाद कराया।

समाज में नकारात्मक ऊर्जा के रूप में मनो ग्रंथियां आ जाती हैं ।रक्तबीज इन्हीं मनो ग्रंथियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस प्रकार एक रक्तबीज को मारने पर अनेकों रक्तबीज पैदा हो जाते हैं उसी प्रकार एक नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने पर हजारों तरह की नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। जिस प्रकार सावधानी से रक्तबीज को मां दुर्गा ने समाप्त किया उसी प्रकार नकारात्मक ऊर्जा को भी सावधानी के साथ ही समाप्त करना पड़ेगा।

शारदीय नवरात्र में प्रतिपदा को माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है । उसके उपरांत द्वितीया को ब्रह्मचारिणी त्रितिया को चंद्रघंटा चतुर्थी को कुष्मांडा पंचमी को स्कंदमाता षष्टी को कात्यायनी सप्तमी को कालरात्रि अष्टमी को महागौरी और नवमी को सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है ।

नवरात्रि के दिनों में हमें मनसा वाचा कर्मणा शुद्ध रहना चाहिए। किसी भी प्रकार के मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए । नवरात्र में लोग बाल बनवाना दाढ़ी बनवाना नाखून काटना पसंद नहीं करते हैं । शुद्ध रहने के लिए आवश्यक है कि हम मांसाहार प्याज लहसुन आदि तामसिक पदार्थों का त्याग करें । तला खाना भी त्याग करना चाहिए ।

अगर आपने नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित किया है या अखंड ज्योत जला रहे हैं तो आपको इन दिनों घर को खाली छोड़कर नहीं जाना चाहिए ।

नवरात्र में प्रतिदिन हमें साफ कपड़े साफ और झूले हुए कपड़े पहनना चाहिए । एक विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि इन 9 दिनों में नींबू को काटना नहीं चाहिए । क्योंकि अगर आप नींबू काटने का कार्य करेंगे तो तामसिक शक्तियां आप पर प्रभाव जमा सकती हैं।

विष्णु पुराण के अनुसार नवरात्रि व्रत के समय दिन में सोना निषेध है।

अगर आप इन दिनों मां के किसी मंत्र का जाप कर रहे हैं पूजा की शुद्धता पर ध्यान दें ।जाप समाप्त होने तक उठना नहीं चाहिए।

इन दिनों शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए।

नवरात्रि में रात्रि का दिन से ज्यादा महत्व  है ।इसका विशेष कारण है। नवरात्रि में हम व्रत संयम नियम यज्ञ भजन पूजन योग साधना बीज मंत्रों का जाप कर सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। राज्य में प्रचलित के बहुत सारे और रोज प्रकृति स्वयं ही समाप्त कर देती है। जैसे कि हम देखते हैं अगर हम जिनमें आवाज दें तो वह कम दूर तक जाएगी परंतु रात्रि में वही आवाज दूर तक जाती है दिल में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों को रेडियो तरंगों को आज को रोकती है अगर हम दिन में रेडियो से किसी स्टेशन के गाने को सुनें तो वह रात्रि में उसी रोडियो से उसी स्टेशन के गाने से कम अच्छा सुनाई देगा और संघ की आवाज भी घंटे और शंख की आवाज भी दिन में कम दूर तक जाती है जबकि रात में ज्यादा दूर तक जाती है। दिन में वातावरण में कोलाहल रहता है जबकि रात में शांति रहती है। नवरात्रि में  सिद्धि हेतु रात का ज्यादा महत्व दिया गया है ।

नवरात्रि हमें यह भी संदेश देती है की सफल होने के लिए सरलता के साथ ताकत भी आवश्यक है जैसे माता के पास कमल के साथ चक्र एवं त्रिशूल आदि हथियार भी है समाज को जिस प्रकार  कमलासन की आवश्यकता है उसी प्रकार सिंह अर्थात ताकत ,वृषभ अर्थात गोवंश , गधा अर्थात बोझा ढोने वाली  ताकत , तथा पैदल अर्थात स्वयं की ताकत सभी कुछ आवश्यक है।

मां दुर्गा से प्रार्थना है कि वह आपको पूरी तरह सफल करें ।आप इस नवरात्रि में  जप तप पूजन अर्चन कर मानसिक एवं शारीरिक दोनों रुप में आगे के समय के लिए पूर्णतया तैयार हो जाएं।

जय मां शारदा 🙏🏻

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ज्योतिष साहित्य ☆ शनिदेव का विभिन्न राशियों में  गोचर (सितंबर 2022 से मार्च 2023 तक) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

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विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ शनिदेव का विभिन्न राशियों में  गोचर (सितंबर 2022 से मार्च 2023 तक) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है । उनका मुख्य उत्तरदायित्व है सभी के प्रति न्याय करना। यह पश्चिम दिशा के स्वामी नपुंसक,वात-श्लेष्मिक प्रकृति, कृष्ण वर्ण और वायु तत्व है। शनि देव सप्तम स्थान में बली होते हैं । वक्री ग्रह या चंद्रमा के साथ में रहने से चेस्ट बली होते हैं । इनसे अंग्रेजी विद्या का विचार किया जाता है । रात में जन्म होने पर  मातृ और पितृ कारक होते हैं । शनि ग्रह शारीरिक बल, उदारता, विपत्ति, योगाभ्यास, प्रभुता, ऐश्वर्य, मोक्ष, ख्याति, नौकरी तथा मूर्छा आदि  का विचार किया जाता है।

माह सितंबर 2022 से मार्च 2023 तक अर्थात सितंबर 2022 से विक्रम संवत 2079 के अंत तक शनि का गोचर निम्नानुसार है।

वर्तमान में शनि मकर राशि में वक्री होकर गोचर कर रहे हैं । 22 अक्टूबर 2022 को 8:36 दिन से  मकर राशि में ही मार्गी हो जाएंगे । इसके उपरांत 17 जनवरी को दिन के 4:05 से कुंभ में राशि में प्रवेश करेंगे । 2 फरवरी 2023 को सायं काल 19:02   पर शनि पश्चिम दिशा में अस्त होंगे तथा 11 मार्च 2023 को प्रातः काल 5:40 पर पूर्व दिशा से इनका उदय होगें । इसके उपरांत मार्च 2023 पर्यंत शनि कुंभ राशि में ही रहेंगे ।

 22 अक्टूबर 2022 तक वक्री शनि का विभिन्न राशियों पर के जातकों पर प्रभाव –

मेष राशि

अगर आप कर्मचारी हैं तो कार्यालय में आपका टकराव होगा । शासकीय  कार्यालयों में आपके विभिन्न कार्य में बाधाएं आएंगी । कचहरी के कार्यों में आपको सफलता मिलेगी । जनता के बीच आपकी प्रतिष्ठा बढ़ सकती है । आपके जीवन साथी को भी कष्ट होगा।

वृष राशि

आपके भाग्य मैं बीच-बीच में  रुकावटें आएंगी । धन हानि हो सकती है । शत्रुओं की मात्रा बढ़ेगी  । बहनों से संबंध ठीक रहेगा ।

मिथुन राशि

दुर्घटनाएं हो सकती हैं । धन प्राप्ति में बहुत बाधाएं आएंगी कार्यालय में आप की स्थिति सामान्य रहेगी । आपके संतान को कष्ट होगा।

कर्क राशि

आपके जीवनसाथी को कष्ट होगा। उनके कमर और गर्दन में दर्द हो सकता है । जनता में आपके क्षवि खराब हो सकती है । भाग्य से आपको सामान्य मदद मिलेगी।

सिंह राशि

आपके शत्रुओं की संख्या में कमी आ सकती है। आपका अपनी बहन से झगड़ा हो सकता है । कचहरी के कार्यों में विजय मिल सकती है । शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा।

कन्या राशि

आपकी संतान का आपको सहयोग प्राप्त नहीं होगा । संतान को कई तरह की परेशानियां आ सकती हैं । आपके जीवन साथी को कष्ट होगा । धन लाभ में कमी आएगी।

तुला राशि

जनता के बीच में आप की छवि में गिरावट आएगी । आपके कमर या गर्दन में दर्द होगा । स्प्डेंलाइट्स की शिकायत हो सकती है । अगर आप कर्मचारी अधिकारी हैं तो  अपनी वाणी पर कंट्रोल रखें ।

वृश्चिक राशि

आपका अपनी बहन से तकरार हो सकती है। भाग्य सामान्य रहेगा ।  आपकी संतान आपको विशेष सहयोग नहीं देगी । कचहरी के कार्यों में हार मिल सकती है।

धनु राशि

आपकी धन लाभ में कमी आएगी । कृपया स्त्रियों से या दूसरे धर्म के लोगों से सतर्क रहें।

मकर राशि

इस समय शनि आप के लग्न में  बैठा हुआ है । यह आपको शारीरिक पीड़ा देगा । आपके जीवन साथी को भी शारीरिक कष्ट हो सकता है । अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो कार्यालय में आपको परेशानी आएगी  ।

कुंभ राशि

कुंभ राशि के जातकों के शरीर में कष्ट हो सकता है । कचहरी के कार्यों में असफलता मिलेगी । भाग्य कम साथ देगा ।  धन हानि हो सकती है । शत्रुओं से सतर्क रहें।

मीन राशि

धन निवेश में सावधानी बरतें । अन्यथा आपको धन हानि होगी । स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहें । अपने संतान से सहयोग की उम्मीद कम रखें । वाहन के चलाते समय सावधान रहें।

शनि के प्रकोप से बचने के लिए सभी को चाहिए कि वे शनिवार को शनि मंदिर में जाकर पूजन करें । शनिदेव को तेल चढ़ाएं । पीपल के पेड़ के नीचे दीपक प्रज्वलित कर पीपल की सात बार परिक्रमा करें।

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मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ सितंबर 2022 – व्रत, त्यौहार एवं विशेष दिवस ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? आज प्रस्तुत है सितंबर 2022 – व्रत, त्यौहार एवं विशेष दिवस। 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ सितंबर 2022 – व्रत, त्यौहार एवं विशेष दिवस ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

1 सितंबर : ऋषि पंचमी, गुरु ग्रंथ साहिब प्रकाश दिवस…

भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत खाद्य और पोषण बोर्ड द्वारा प्रतिवर्ष 1 से 7 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (National Nutrition Week) मनाया जाता है।

2 सितंबर : संतान सातें, मोरबाई छठ, मुक्ताभरण सप्तमी…

हर साल 2 सितंबर को विश्व नारियल दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व नारियल दिवस 2021 का विषय “कोविड -19 महामारी और परे के बीच एक सुरक्षित समावेशी लचीला और सतत नारियल समुदाय का निर्माण” है। यह दुनिया में खाए जाने वाले सबसे लोकप्रिय फलों में से एक है।

3 सितंबर : महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ, दुर्गष्टमी, राधा अष्टमी… 

3 सितंबर को गगनचुंबी इमारतों के पहले मास्टर वास्तुकार, लुई सुलिवन को “आधुनिक गगनचुंबी इमारतों के पिता” के रूप में जाना जाता है, जो 3 सितंबर 1856 को बोस्टन में पैदा हुए थे, की स्मृति में स्काईस्क्रेपर दिवस के लिए चुना गया था।

4 सितंबर : द‍धीचि जयंती, श्रीचंद्र नवमी.

5 सितंबर : तेजा दशमी

हर साल ज्ञान के गुरु जो की पुरे देश-विदेश में 5 सितंबर को हम सभी शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं, अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस का कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, यूनिसेफ और एजुकेशन इंटरनेशनल मिलकर करते हैं. भारत में, देश के पूर्व राष्ट्रपति, विद्वान, दार्शनिक और भारत रत्न से सम्मानित डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को चिह्नित करने के लिए 1962 से 5 सितंबर को प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है, जिनका जन्म 1888 में इसी दिन हुआ था।

6 सितंबर : डोल ग्यारस, जलझूलन एकादशी, परिवर्तनी एकादशी, विश्वकर्मा पूजा

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। और इस दिन भगवान विष्णु जी एवं माता पार्वती की पूजा करने से सदैव कृपा बनी रहती हैं..

7 सितंबर : श्रवण द्वादशी, वामन द्वादशी.

8 सितंबर : शुक्ल पक्ष का प्रदोष, ओणम…

वर्ष 1967 से, अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस (International Literacy Day) समारोह दुनिया भर में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है ताकि जनता को सम्मान और मानवाधिकारों के रूप में साक्षरता के महत्व की याद दिलाई जा सके और साक्षरता के एजेंडे को अधिक साक्षर और टिकाऊ समाज की ओर आगे बढ़ाया जा सके। इस वर्ष का अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस “ट्रांसफॉर्मिंग लिटरेसी लर्निंग स्पेसेस “ थीम के तहत दुनिया भर में मनाया जाएगा और यह लचीलापन बनाने और सभी के लिए गुणवत्ता, न्यायसंगत और समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए साक्षरता सीखने के स्थान के मौलिक महत्व पर पुनर्विचार करने का अवसर होगा।

विश्व भौतिक चिकित्सा दिवस हर साल 8 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर के फिजियोथेरेपिस्टों के लिए लोगों को अच्छी तरह से, मोबाइल और स्वतंत्र रखने के लिए महत्वपूर्ण योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने का अवसर है।

9 सितंबर : अनंत चतुर्दशी, गणेश मूर्ति विसर्जन.

10 सितंबर : भाद्र पूर्णिमा, गुर्जर रोट पूजन

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (डब्ल्यूएसपीडी) 2003 से दुनिया भर में विभिन्न गतिविधियों के साथ आत्महत्याओं को रोकने के लिए दुनिया भर में प्रतिबद्धता और कार्रवाई प्रदान करने के लिए हर साल 10 सितंबर को मनाया जाने वाला एक जागरूकता दिवस है। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 2021 से 2023 तक का विषय “कार्रवाई के माध्यम से आशा ”।

11 सितंबर : पितृपक्ष यानी 16 दिनों का श्राद्ध का पर्व प्रारंभ हो जाएगा…

राष्ट्रीय वन शहीद दिवस 11 सितंबर को मनाया जाता है। जैसा कि नाम से पता चलता है, यह दिन उन लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने पूरे भारत में जंगलों, जंगलों और वन्यजीवों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

13 सितंबर : अंगारकी चतुर्थी, संकष्टी गणेश चतुर्थी.

14 सितंबर : भरणी श्रद्धा, राजभाषा दिवस.

15 सितंबर : भारत के बेहतरीन इंजीनियरों में से एक, मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की याद में हर साल 15 सितंबर को भारत में इंजीनियर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। एम विश्वेश्वरैया को सबसे अग्रणी राष्ट्र-निर्माताओं में से एक माना जाता है, जिन्होंने ऐसे चमत्कार किए, जिन पर आधुनिक भारत का निर्माण हुआ था।

16 सितंबर : ओजोन परत के क्षरण के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने और इसे संरक्षित करने के संभावित समाधान खोजने के लिए हर साल 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है। ओजोन परत सूर्य की यूवी किरणों को अवशोषित करके पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करती है।

17 सितंबर : विश्वकर्मा जयंती, रोहिणी व्रत, सूर्य कन्या संक्रांति, कालाष्टमी, श्रीमहालक्ष्मी व्रत समाप्त

विश्व रोगी सुरक्षा दिवस रोगी सुरक्षा में सुधार के लिए सभी देशों और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों द्वारा वैश्विक एकजुटता और ठोस कार्रवाई का आह्वान करता है।

18 सितंबर : मध्य अष्टमी, जिऊतिया व्रत.

19 सितंबर : अविधवा नवमी, मातृ नवमी.

20 सितंबर : गुरु नानकदेव पुण्यतिथि.

21 सितंबर : इंदिरा एकादशी, एकादशी श्राद्ध

अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस, जिसे आधिकारिक तौर पर विश्व शांति दिवस के रूप में भी जाना जाता है,। यह एक संयुक्त राष्ट्र-स्वीकृत दिवस है जिसे प्रतिवर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे 24 घंटे अहिंसा और संघर्ष विराम के माध्यम से शांति के आदर्शों को मजबूत करने के लिए समर्पित दिन के रूप में घोषित किया है।

22 सितंबर : संन्यासी श्राद्ध

22 सितंबर को मनाया जाने वाला विश्व गुलाब दिवस दुनिया भर के कैंसर रोगियों के लिए आशा की किरण है, जो बड़े ‘सी’ का सामना कर रहे हैं। ‘ जो लोग कैंसर से लड़ना चुनते हैं उनके लिए एक कठिन और लंबा संघर्ष इंतजार कर रहा है। यह दिन कनाडा की 12 वर्षीय मेलिंडा रोज की याद में मनाया जाता है, जिन्हें रक्त कैंसर का एक दुर्लभ रूप, एस्किन ट्यूमर का पता चला था।

23 सितंबर : प्रदोष व्रत, माघ श्रद्धा.

24 सितंबर : मास शिवरात्रि, प्राणनाथ प्रकटन महोत्सव.

25 सितंबर : अमावस्या, महालय श्राद्घ पक्ष पूर्ण, पंडित दिनदयाल उपाध्याय जयंती.

26 सितंबर : अग्रसेन जयंती, शरद ऋतू, नवरात्री प्रारंभ, सोमवार व्रत, घट स्थापना.

27 सितंबर : सिंधारा दूज

विश्व पर्यटन दिवस 1980 से प्रत्येक वर्ष 27 सितंबर को आयोजित किया जाता है। “पर्यटन पर पुनर्विचार” की थीम के साथ, इस वर्ष पालन का अंतर्राष्ट्रीय दिवस आकार और प्रासंगिकता दोनों के संदर्भ में क्षेत्र के विकास की फिर से कल्पना करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।

28 सितंबर : विश्व रेबीज दिवस 28 सितंबर को मनाया जाता है। रेबीज के बारे में जागरूकता बढ़ाने और दुनिया भर में रोकथाम और नियंत्रण के प्रयासों को बढ़ाने के लिए भागीदारों को एक साथ लाने के लिए 2007 में एक वैश्विक स्वास्थ्य पालन शुरू किया गया था। 28 सितंबर लुई पाश्चर की मृत्यु की सालगिरह भी है, फ्रांसीसी रसायनज्ञ और सूक्ष्म जीवविज्ञानी, जिन्होंने पहली रेबीज टीका विकसित की थी।

29 सितंबर : वरद चतुर्थी, विनायक चतुर्थी व्रत

विश्व हृदय दिवस हर साल 29 सितंबर को मनाया जाता है। हृदय रोगों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए यह दिन मनाया जाता है। विश्व हृदय दिवस का उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को यह सूचित करना है कि हृदय रोग दुनिया में मृत्यु का प्रमुख कारण है और रोकथाम और नियंत्रण के लिए किए जाने वाले कार्यों को उजागर करना है।

30 सितंबर : उपांग ललिता व्रत, ललित पंचमी

अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस हर साल 30 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन भाषा पेशेवरों के काम को श्रद्धांजलि देने का अवसर प्रदान करता है। यह राष्ट्रों को एक साथ बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और विश्व शांति और सुरक्षा को मजबूत करता है।

आपकी सुविधा के लिए माह सितंबर 2022 के व्रत त्यौहार तथा दिवस बताए गए हैं । आशा है आप इनसे लाभ उठाएंगे ।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें।

 

जय मां शारदा।

 निवेदक:-

पण्डित अनिल कुमार पाण्डेय

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता

प्रश्न कुंडली  और वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ

साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया

 सागर। 470004

 मो 7566503333 /8959594400

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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