श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(हमप्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है आपके द्वारा डॉ. हंसा दीप जी द्वारा लिखित कहानी संग्रह “मेरी पसंदीदा कहानियाँ” पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 174 ☆
☆ “मेरी पसंदीदा कहानियाँ” – कहानीकार – डॉ. हंसा दीप ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
पुस्तक चर्चा
कहानीकार – डॉ. हंसा दीप, टोरंटो
कहानी संग्रह – मेरी पसंदीदा कहानियाँ
किताब गंज प्रकाशन,
मूल्य 350रु
कथा साहित्य के मानकों पर खरी कहानियां
चर्चा … विवेक रंजन श्रीवास्तव,
डॉ. हंसा दीप हिंदी साहित्य की एक विशिष्ट कहानीकार हैं, जिनकी रचनाएँ प्रवासी जीवन की संवेदनाओं, मानवीय संबंधों की जटिलताओं और सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चित्रण के लिए जानी जाती हैं। उनका कहानी संग्रह “मेरी पसंदीदा कहानियाँ” (किताबगंज प्रकाशन) उनकी लेखन शैली की परिपक्वता और कथ्य की गहराई का प्रमाण है। हिंदी कथा साहित्य के मानकों—जैसे कथानक की मौलिकता, चरित्र-चित्रण की गहनता, भाषा की समृद्धि और सामाजिक संदर्भों का समावेश—के आधार पर इस संग्रह की कहानियां खरी उतरती हैं।
हिंदी कथा साहित्य में कथानक की मौलिकता लेखक की सृजनात्मकता का आधार होती है। डॉ. हंसा दीप की कहानियाँ साधारण जीवन की घटनाओं को असाधारण संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती हैं। “टूक-टूक कलेजा” में एक नायिका अपने पुराने घर को छोड़ने की भावनात्मक यात्रा को जीती है। “सामान का आखिरी कनस्तर ट्रक में जा चुका था। बच्चों को अपने सामान से भरे ट्रक के साथ निकलने की जल्दी थी। वे अपनी गाड़ी में बैठकर, बगैर हाथ हिलाए चले गए थे और मैं वहीं कुछ पलों तक खाली सड़क को ताकती, हाथ हिलाती खड़ी रह गयी थी। ” यह अंश विस्थापन की पीड़ा और पारिवारिक संबंधों में बढ़ती दूरी को सूक्ष्मता से उजागर करता है। यह कथानक प्रेमचंद और जैनेन्द्र की परंपरा को आगे बढ़ाता है, जहाँ रोज़मर्रा की घटनाएँ गहरे मानवीय सत्य को प्रकट करती हैं।
वहीं, “दो और दो बाईस” में एक पैकेज की डिलीवरी के इर्द-गिर्द बुना गया कथानक प्रवासी जीवन की अनिश्चितता और अपेक्षाओं के टकराव को दर्शाता है। “पड़ोस में आयी पुलिस की गाड़ी ने मुझे सावधान कर दिया। उनके जाते ही बरबस वे पल जेहन में तैर गए जब मेरा पुलिस से सामना हुआ था। ” यहाँ सस्पेंस और मनोवैज्ञानिक तनाव का संयोजन कहानी को रोचक बनाता है।
उनकी कहानियाँ व्यक्तिगत अनुभवों को सार्वभौमिक संदर्भों से जोड़ने में सक्षम हैं।
कहानी में पात्रों का जीवंत चित्रण कथा की आत्मा होता है। डॉ. हंसा दीप के पात्र बहुआयामी और संवेदनशील हैं। “टूक-टूक कलेजा” की नायिका अपने घर के प्रति गहरे लगाव और उससे बिछड़ने की पीड़ा को इस तरह व्यक्त करती है कि वह पाठक के मन में एक सशक्त छवि बनाती है। “मैंने उस आशियाने पर बहुत प्यार लुटाया था और बदले में उसने भी मुझे बहुत कुछ दिया था। वहाँ रहते हुए मैंने नाम, पैसा और शोहरत सब कुछ कमाया। ” यहाँ उसका आत्मनिर्भर और भावुक व्यक्तित्व उभरकर सामने आता है। यह चरित्र-चित्रण हिंदी साहित्य में नारी के पारंपरिक चित्रण से आगे बढ़कर उसे एक स्वतंत्र और जटिल व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करता है।
“दो और दो बाईस” में नायिका की बेसब्री और आत्म-चिंतन—”अवांछित तनाव को मैं आमंत्रण देती हूँ”—उसके मनोवैज्ञानिक गहराई को दर्शाते हैं। उनकी कहानी “छोड़ आए वो गलियाँ” में भी एक प्रवासी स्त्री का अपने मूल से कटने का दर्द इसी संवेदनशीलता के साथ चित्रित हुआ है। उनकी इस अभिव्यक्ति क्षमता की प्रशंसा की ही जानी चाहिए। वे अपने पात्रों को सामान्य जीवन की असामान्य परिस्थितियों में रखकर उनकी आंतरिक शक्ति को उजागर करती हैं।
भाषा का लालित्य और शिल्प की कुशलता लेखक की पहचान होती है। डॉ. हंसा दीप की भाषा सहज, भावप्रवण और काव्यात्मक है। “टूक-टूक कलेजा” में “उसी खामोशी ने मुझे झिंझोड़ दिया जिसे अपने पुराने वाले घर को छोड़ते हुए मैंने अपने भीतर कैद की थी” जैसे वाक्य भाषा की गहराई और भावनात्मक तीव्रता को प्रकट करते हैं। इसी तरह, “आँखों की छेदती नजर ने जिस तरह सुशीम को देखा, उन्होंने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी” जैसे वाक्य संवाद और वर्णन के बीच संतुलन बनाते हैं। उनकी शैली में एक प्रवाह है, जो पाठक को कथा के साथ रखता है।
उनकी शैली में लोक साहित्य की छाप भी दिखती है।
हंसा दीप की कहानियाँ प्रवासी जीवन के अनुभवों को हिंदी साहित्य में एक सामाजिक आयाम देती हैं।
वे अपने मूल से कटने की भावना को रेखांकित करती हैं। उनकी कहानी “शून्य के भीतर” भी आत्मनिर्वासन और पहचान के संकट को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है। वैश्वीकरण के दौर में भारतीय डायस्पोरा की भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक यात्रा को चित्रित करने में वे सिद्धहस्त हैं। उनकी कहानियाँ न केवल व्यक्तिगत अनुभवों को उकेरती हैं, बल्कि सामाजिक परिवर्तनों पर भी टिप्पणी करती हैं। यह हिंदी साहित्य की उस परंपरा को आगे बढ़ाता है, जिसमें कहानी सामाजिक चेतना का दर्पण बनती हैं। पुरस्कार और मान्यता के संदर्भ में
डॉ. हंसा दीप की लेखन प्रतिभा को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जैसे कमलेश्वर उत्तम कथा पुरस्कार (2018), विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस की अंतरराष्ट्रीय कहानी प्रतियोगिता (2019), और शत प्रतिशत कहानी संग्रह के लिए शांति-गया सम्मान (2021) । ये पुरस्कार उनकी कहानियों की गुणवत्ता और हिंदी साहित्य में उनके योगदान को प्रमाणित करते हैं।
इस पुस्तक में दोरंगी लेन, हरा पत्ता, पीला पत्ता, टूक-टूक कलेजा, फालतू कोना, शून्य के भीतर, सोविनियर, शत प्रतिशत, इलायची, कुलाँचे भरते मृग, अक्स, छोड आए वो गलियाँ, पूर्णविराम के पहले, फौजी, पापा की मुक्ति, नेपथ्य से, ऊँचाइयाँ, दो और दो बाईस, पुराना चावल, चेहरों पर टँगी तख्तियाँ शीर्षकों से कहानियां संग्रहित हैं।
डॉ. हंसा दीप का कहानी संग्रह “मेरी पसंदीदा कहानियाँ” हिंदी कथा साहित्य के सभी प्रमुख मानकों—कथानक की मौलिकता, चरित्र-चित्रण की गहराई, भाषा की समृद्धि और सामाजिक प्रासंगिकता—पर खरा उतरता है। संग्रह न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों को सार्वभौमिक बनाता है, बल्कि प्रवासी चेतना को हिंदी साहित्य में स्थापित करने में भी योगदान देता है। डॉ. हंसा दीप की यह कृति हिंदी साहित्य के समकालीन परिदृश्य में एक मूल्यवान जोड़ है और उनकी लेखन यात्रा का एक सशक्त प्रमाण है। कृति पठनीय है।
कहानीकार – डॉ. हंसा दीप
22 Farrell Avenue, North York, Toronto, ON – M2R1C8 – Canada
दूरभाष – 001 + 647 213 1817
पुस्तक चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८
readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈