हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 23 ☆ कथा संग्रह – सॉफ्ट कार्नर – श्री राम नगीना मौर्य ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री राम नगीना मौर्यजी के कथा संग्रह  “ सॉफ्ट कार्नर ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.   श्री विवेक जी ने  दाम्पत्य की कहानियों पर आधारित पुस्तक की  अतिसुन्दर समीक्षा लिखी है।  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 23☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – कथा संग्रह  –  सॉफ्ट कार्नर

पुस्तक – सॉफ्ट कार्नर 

लेखिका – श्री राम नगीना मौर्य

☆ कथा संग्रह  – सॉफ्ट कॉर्नर – श्री राम नगीना मौर्य –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव 

दांपत्य की कहानियां

सुपरिचित कथाकार राम नगीना मौर्य का यह तीसरा कहानी संग्रह है। इसमें ग्यारह कहानियां हैं। इनके दो कहानी संग्रह आखिरी गेंद और आप कैमरे की निगाह में हैं चर्चित हो चुके हैं। मौर्य अपनी कहानियों में अक्सर छोटे मुद्दे उठाते हैं। यहां भी मुद्दे छोटे हैं पर इनमें आमजन की जिंदगी बसी हुई है। कहानियों में आम आदमी के जीवन की विविध समस्याओं, स्थितियों और वर्तमान पीढ़ी में आई नवीन चेतना के इस तरह बारीक ब्योरे मिलते हैं कि चरित्रों में जीवतंता पूरी गंभीरता से लक्षित होती है। प्रायः सभी कहानियों में शहरी मध्यवर्गीय जीवन के अनुभव और विचारधारा यूं रूपायित हुए हैं कि ये हमारे जीवन का हिस्सा लगते हैं।

अधिकांश कहानियों में दांपत्य प्रमुखता से दर्ज है। जिन कहानियों के कथानक सामाजिक हित साधने वाले हैं, वहां भी दांपत्य अपने महत्व और उपयोगिता के साथ मौजूद है। दंपती अपने उद्देश्य, उम्मीद और उसूलों को उत्तम वैज्ञानिक विश्लेषण और विवेकपूर्ण तर्क के साथ स्थापित करते हैं। इसलिए उनकी आपसी नोक-झोंक निरर्थक नहीं लगती। पति-पत्नी तमाम अभाव, चिंताओं, तनाव और दबावों के बावजूद प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो के कथन ‘हम स्वतंत्र पैदा जरूर हुए हैं, पर हर जगह जंजीरों से जकड़े हुए हैं’ को स्वीकार करते हुए दायित्व और अधिकार के मध्य अच्छा संतुलन रखते हैं।

शीर्षक कहानी ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ में एक-दूसरे के विवाह पूर्व के प्रेम प्रसंगों को जानने-समझने के लिए कूटनीति नहीं बनाई गई है, बल्कि स्वाभाविक जिज्ञासा की तरह जानकारी ली गई है। इन कहानियों के दंपती उस आर्थिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें एक निश्चित आय में गुजर-बसर करना है। घर में पत्नी आडंबर से परे सरल-सा व्यवहार करती है। वह कहती है, “अभी शाम को चाय बनाई थी। अधिक बन गई है। आपके लिए रख दी थी। अब गरम कर दिया है।

इस मितव्ययता से एक किस्म का सदाचार तैयार होता है जो व्यय-अपव्यय के साथ नैतिक-अनैतिक में भी फर्क करना सिखा देता है। इसीलिए कहानी ‘बेकार कुछ भी नहीं होता’ के माधव बाबू सड़क के किनारे पड़े दो स्क्रू पेंच को उठा लेते हैं। दफ्तर में उनके चैंबर की मेज के ड्राअर के हैंडल के जो दो पेंच निकल गए हैं, इन दो पेंच को वहां लगा लेंगे।

वस्तुतः इन कहानियों के पात्र उन साधारण लोगों के बेहद करीब हैं जो रोजमर्रा की खींचतान से भले ही उद्विग्न हो जाएं, पर उनके अंतस में प्राणी मात्र के लिए एक सॉंफ्ट कॉंर्नर होता है। वहीं से वे ताकत पाते हैं। कहानी ‘आखिरी चिट्ठी’ के नायक को कुछ ढूंढ़ते हुए स्कूली दिनों के मित्र की चिट्ठी मिलती है। उसे लगता है जैसे मित्र हरदम उसके आस-पास मौजूद रहता आया है। कहानी ‘संकल्प’ का नायक अपनी अपव्यय की आदत खत्म करने के लिए संकल्प लेता है कि आज एक भी पैसा खर्च नहीं करेगा। लेकिन दफ्तर से घर लौटते हुए एक किशोर उसके जूतों में पालिश करने का आग्रह करता है कि वह सुबह से भूखा है।

नायक उसे उपेक्षित करते हुए स्कूटर स्टार्ट कर घर की जानिब चल देता है। लेकिन उसके भीतर का सॉफ्ट कॉर्नर उसे अधीर करता है कि किशोर भीख नहीं, काम मांग रहा था। तब वह लौटकर आता है और किशोर को कुछ पैसे देने की कोशिश करता है, पर वह किशोर भीख नहीं, जूते पॉलिश कर मेहनताना लेता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ये कहानियां बड़े आग्रह और कोमलता से लिखी गई हैं।

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 22 ☆ व्यंग्य संग्रह – पांडेय जी और जिंदगीनामा – श्री लालित्य ललित ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री लालित्य ललित जी के व्यंग्य संग्रह  “पांडेय जी और जिंदगीनामा” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.   श्री विवेक जी ने पुस्तक की बेबाक आलोचनात्मक समीक्षा लिखी है।  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 22☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य संग्रह  –  पांडेय जी और जिंदगीनामा

पुस्तक –पांडेय जी और जिंदगीनामा

लेखिका – श्री लालित्य ललित

प्रकाशक – भावना प्रकाशन नई दिल्ली

आई एस बी एन – ९७८९३८३६२५५३६

मूल्य –  220 रु  प्रथम संस्करण  2019

☆ व्यंग्य संग्रह  – पांडेय जी और जिंदगीनामा – श्री लालित्य ललित –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

मूलतः पांडेय जी की आपबीती, जगबीती पर केंद्रित कुछ कुछ निबंध टाईप के संस्मरण हैं। “पांडेय जी और जिंदगीनामा” में, जिनमें बीच बीच में कुछ व्यंग्य के पंच मिलते हैं।

लालित्य जी पहले कवि के रूप में ३५ पुस्तको के माध्यम से साहित्य जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं. फिर व्यंग्य की मांग और परिवेश के प्रभाव में वे धुंआधार व्यंग्य लेखन करते सोशल मीडीया से लेकर पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं. इसी वर्ष उनकी १८ व्यंग्य की पुस्तकें छपीं. यह तथ्य प्रकाशको से उनके संबंध रेखांकित करता है. जब बिना ब्रेक इतना सारा लेखन हो तो सब स्तरीय ही हो यह संभव नही. चूंकि पुस्तक  को व्यंग्य संग्रह के रूप में प्रस्तुत किया गया है, मुझे लगता है  पाठक,आलोचक, साहित्य जगत समय के साथ व्यंग्य की कसौटी पर स्वयं ही सार गर्भित स्वीकार कर लेगें या अस्वीकार करेंगे. मैंने जो पाया वह यह कि  २९ लम्बे संस्मरण नुमा लेखो का संग्रह है पांडेय जी और जिंदगीनामा. लेखों की भाषा प्रवाहमान है जैसे आंखों देखा रिपोर्ताज हो रोजमर्रा का पाण्डेय जी का सह-पात्रो के साथ वर्णन की यह शैली ही लालित्य जी की मौलिकता है.

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 21 ☆ पिताश्री प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध के जिल्द बंद शब्दों  की पुस्तक यात्रा  ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकते हैं।  आज लीक से हटकर  पुस्तक चर्चा का विषय चुना है।  मैं कुछ और लिखूं इसके पूर्व कर्त्तव्यस्वरूप कुछ  लिखना चाहूंगा।  हमने मातृ  पितृ भक्त श्रवण कुमार की कहानियां  पढ़ीं हैं । किन्तु, यह अतिशयोक्ति कदापि नहीं होगी  और मैंने  स्वयं श्री विवेक जी के व्यवहार -कर्म  में श्रवण कुमार सी  मातृ-पितृ भक्ति की छवि  एवं संस्कार  अनुभव किया है । हमारे विशेष अनुरोध पर  उन्होंने आज  पिताश्री प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध के जिल्द बंद शब्दों  की पुस्तक यात्रा  हमारे  पाठकों  के साथ साझा  किया है । उनका रचना कर्म निरन्तर जारी है। जो हमारी पूंजी है। हमारी ईश्वर से प्रार्थना है यह सतत जारी रहे। वे हमारे प्रेरणा स्रोत हैं।  श्री विवेक जी  का  हृदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 21 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – पिताश्री प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध के जिल्द बंद शब्दों  की पुस्तक यात्रा

 1948 चाँद, सरस्वती जैसी तत्कालीन साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताओं के प्रकाशन से प्रारंभ उनकी शब्द यात्रा के प्रवाह के पड़ाव हैं उनकी ये किताबें।

पहले पुस्तक प्रकाशन केंद्र दिल्ली की जगह आगरा और इलाहाबाद हुआ करता था। आगरा का प्रगति प्रकाशन साहित्यिक किताबों के लिए बहुत प्रसिद्ध था। स्वर्गीय परदेसी जी द्वारा साहित्यकार कोष भी छापा गया था, जिसमें पिताजी का विस्तृत परिचय छपा है।भारत चीन व पाकिस्तान युद्धो के समय जय जवान जय किसान,  उद्गम, सदाबहार गुलाब, गर्जना, युग ध्वनि आदि प्रगति प्रकाशन की किताबों में पिताजी की रचनाएं प्रकाशित हैं। कुछ किताबें उन्हें समर्पित की गई हैं, कुछ का उन्होंने सम्पादन किया है। ये सामूहिक संग्रह हैं।

पिताजी शिक्षा विभाग में प्राचार्य, फिर संयुक्त संचालक, शिक्षा महाविद्यालय में प्राध्यापक, केंद्रीय विद्यालय जबलपुर तथा जूनियर कालेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य रहे हैं।  आशय यह कि उन्होंने न जाने कितनी ही पुस्तकें पुस्तकालयों के लिए खरीदी, पर जोड़-तोड़ और गुणा-भाग से अनभिज्ञ सिद्धांतवादी पिताश्री की रचनाये पुस्तक रूप में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद मैंने ही प्रस्तुत कीं। उन्हें किताबें छपवाने, विमोचन समारोह करने, सम्मान वगैरह में कभी दिलचस्पी नहीं रही।

मेघदूतम का हिंदी छंदबद्ध पद्यानुवाद उनका बहुत पुराना काम था, जो पहली पुस्तक के रूप में 1988 में आया। बाद में मांग पर उसका नया संस्करण भी पुनर्मुद्रित हुआ।

फिर ईशाराधन आई, जिसमे उनकी रचित मधुर प्रार्थनाये हैं। वे लिखते हैं

नील नभ तारा ग्रहों का अकल्पित विस्तार है

है बड़ा आश्चर्य, हर एक पिण्ड बे आधार है

है नहीं कुछ भी जिसे सब लोग कहते हैं गगन

धूल कण निर्मित भरी जल से  सुहानी है धरा

पेड़-पौधे जीव जड़ जीवन विविधता से भरा

किंतु सब के साथ सीमा और है जीवन मरण

सूक्ष्म तम परमाणु अद्भुत शक्ति का आगार है

हृदय की धड़कन से भड़ भड़ सृजित संसार है

जीव क्या यह विश्व क्यों सब कठिन चिंतन मनन

कारगिल युद्व के समय मण्डला के स्टेडियम में गणतंत्र दिवस के भव्य समारोह में उल्लेखनीय रूप से वतन को नमन का विमोचन हुआ।

पिताश्री की रचनाओ का मूल स्वर देशभक्ति, आध्यात्मिक्ता, बच्चों के लिए शिक्षा प्रद गीत, तात्कालिक घटनाओं पर काव्यमय सन्देश, संस्कृत से हिंदी काव्य अनुवाद है।

अनुगुंजन का प्रकाशन वर्ष 2000 में हुआ, जिसके विषय में सागर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति श्री शिवकुमार श्रीवास्तव ने लिखते हुए पिताजी की ही रचना उधृत की है

होते हैं मधुरतम गीत वही

जो मन की व्यथा सुनाते हैं

जो सरल शब्द संकेतों से

अंतर मन को छू जाते हैं

वसुधा के संपादक  डॉक्टर कमला प्रसाद ने उनके गीतों के विषय में लिखा “वे सामाजिक अराजकता के विरोधी हैं उनकी कविताओं में सरलता सरसता गीता तथा दिशा बोध बहुत साफ दिखाई देते हैं,विचारों की दृढ़ता तथा भावों की स्पष्टता के लिए उनके गीत हिंदी साहित्य में उदाहरण है”

बाल साहित्य की उनकी उल्लेखनीय किताबें हैं बाल गीतिका,बाल कौमुदी, सुमन साधिका,  चारु चंद्रिका,कर्मभूमि के लिए बलिदान, जनसेवा,अंधा और लंगड़ा, नैतिक कथाएं, आदर्श भाषण कला इत्यादि ये पुस्तकें विभिन्न  पुस्तकालयों  में खूब खरीदी गईं।

मानस के मोती तथा मानस मंथन रामचरितमानस पर उनके लेखों के संग्रह हैं। मार्गदर्शक चिंतन वैचारिक दिशा प्रदान करते आलेख हैं।

भगवत गीता के प्रत्येक श्लोक का हिंदी  पद्यानुवाद अर्थ सहित दो संस्करण छप चुका है। अनेक अखबार इसे धारावाहिक छाप रहे हैं। यह किताब लगातार बहुत डिमांड में है। ( ई- अभिव्यक्ति में सतत रूप से प्रतिदिन एक श्लोक का पद्यानुवाद तथा हिंदी / अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित होता है )

तीसरा संस्करण तैयार है जिसमे अंग्रेजी में भी अर्थ दिया गया है। प्रकाशक संपर्क कर सकते हैं।

रघुवंश का भी सम्पूर्ण हिंदी काव्य अनुवाद प्रकाशित है। 1900 श्लोकों का वृहद अनुवाद कार्य उन्होनें मनोरम रूप में मूल काव्य की भावना की रक्षा करते हुए किया। यह 2014 में छपा।

साहित्य अकादमी के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने पिताजी की पुस्तक स्वयं प्रभा जिसका प्रकाशन सितंबर 2014 में हुआ के विषय में लिखा है

श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव के गीत कविता को प्यार , स्नेह , संवेदना और सुंदरता के सीमित आंचल से बाहर निकालते हुए देशभक्ति के विस्तृत पटल तक ले जाती हैं। रचनाओं को पढ़ते ही मन देश प्रेम के सागर में हिलोरे लेने लगता है। आज सुसंस्कृत भारत की संस्कार और संस्कृति की समझ कम हो रही है वहीं ऐसे कठिन समय में विदग्ध जी की रचनाएं महासृजन की बेला में शब्दों और भाषा से शिल्पित, सराहनीय, उद्देश्य में सफल है।

फरवरी 2015 में अंतर्ध्वनि आई। म प्र राष्ट्र भाषा प्रचार समिति भोपाल के मंत्री संचालक श्री कैलाश चन्द्र पन्त जी ने इसकी भूमिका में लिखा  है  ” उनकी संवेदना का विस्तार व्यापक है, कविताओं का शिल्प द्विवेदी युगीन है। वे  उनकी सरस्वती वंदना से पंक्तियों को उधृत करते हैं “

हो रही घर-घर निरंतर आज धन की साधना

स्वार्थ के चंदन अगरु से  अर्चना आराधना

आत्मवंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है

चेतना गीत की जगा मां, स्वरों को झंकार दे

भारतीय दर्शन को सरल शब्दों में व्याख्यायित  करते हुए एक अन्य कविता में विदग्ध जी लिखते हैं,

प्रकृति में है चेतना, हर एक कण सप्राण है

इसी से कहते कि कण कण में बसा भगवान है

चेतना है ऊर्जा , एक शक्ति जो अदृश्य है

है बिना आकार पर, अनुभूतियों में दृश्य है

2018 में अनुभूति, फिर हाल ही 2019 में शब्दधारा  पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।

2018 दिसम्बर का ट्रू मीडिया विशेषांक पिताजी पर केंद्रित अंक था।

उनकी ढेरो कविताये  डिजिटल मोड में मेरे कम्प्यूटर पर हैं जिनकी सहज ही दस पुस्तकें तो बन ही सकती हैं। प्रकाशक मित्रों का स्वागत है।

उनका रचना कर्म निरन्तर जारी है। जो हमारी पूंजी है।

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य ☆ पुस्तक चर्चा ☆ डांस इंडिया डांस – श्री जय प्रकाश पांडेय ☆ “व्यंग्य-लेखन गंभीर कर्म है” – डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आज दिनांक 11 जनवरी को नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में रवीना प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर अग्रज श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  के व्यंग्य संग्रह  “डांस इण्डिया डांस” का विमोचन है।  ऐसे शुभ अवसर पर वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी का यह आलेख निश्चित ही पुस्तक की प्रस्तावना स्वरुप एक आशीर्वचन है जो हम अपने पाठकों के साथ साझा करना चाहेंगे ।)
 
ई – अभिव्यक्ति की और से श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी को इस उपलब्धि के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। 
☆ पुस्तक चर्चा – “व्यंग्य -लेखन गंभीर कर्म है”  – डॉ कुंदन सिंह परिहार  ☆

जो लोग व्यंग्य को मनोरंजन का साधन समझते हैं वे व्यंग्य की वास्तविक प्रकृति को नहीं समझते ।  व्यंग्य -लेखन ज़िम्मेदारी का काम है , यह हल्केपन से ली जाने वाली चीज़ नहीं है ।  हरिशंकर परसाई जैसे लेखकों ने अपनी सशक्त रचनाओं के माध्यम से पाठकों के समक्ष व्यंग्य के सही रूप को प्रस्तुत किया ।  उनकी रचनाएँ सिर्फ सिखाती ही नहीं है वे व्यंग्यकारों की अगली पीढ़ी के लिए चुनौती भी प्रस्तुत करती है ।  परसाई ने व्यंग्य लेखन को गंभीर कर्म माना ।

(श्री जय प्रकाश पाण्डेय)

एक अच्छे व्यंगकार में अनेक गुण अपेक्षित हैं ।  पहले तो व्यंग्यकार संवेदनशील हो, ओढ़ी हुई करुणा से सार्थक व्यंग्यलेखन नहीं होगा ।  दूसरे उसकी द्रष्टि सही हो ।  रूढ़ीवादी और अवैज्ञानिक सोच वाले लेखकों के लिए व्यंग्य को साधना कठिन है ।  लेखक की अभिव्यक्ति प्रभावशाली होनी चाहिए ।  लेखन शैली ऐसी हो जो पाठक को बांधे और साथ ही उसे सोचने को बाध्य करे ।  व्यंग्य का उद्देश पाठक का मनोरंजन करना नहीं हो सकता ।

पुस्तक – डांस इण्डिया डांस ( व्यंग्य-संग्रह) 

लेखक – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

प्रकाशक – रवीना प्रकाशन, नई दिल्ली

मूल्य – रु 300/-

प्रस्तुत व्यंग्य -संकलन के लेखक श्री जय प्रकाश पाण्डेय अनेक वर्षों से व्यंग्यलेखन मे सक्रिय हैं ।  वे कई वर्षों तक स्टेट बैंक में सेवा देने के बाद सेवानिवृत्त हुए हैं और अपने सेवाकाल में उन्हे शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों के सभी वर्गों के लोगों के जीवन को निकट से देखने का अवसर मिला है ।  एक बैंकर से अधिक सामान्य लोगों की समस्याओं को कौन बेहतर समझ सकता है, बशर्ते की उसके पास संवेदनशील मन हो ।  पाण्डेय जी से हमारे कई वर्षो के संबंध से यह समझने का अवसर मिला कि मुहावरे के अनुसार उनका दिल सही जगह पर है और देश के करोड़ों वंचितों और लाचार लोगों के लिए उनके हृदय में पर्याप्त हमदर्दी है ।  यह हमदर्दी ही लेखक को वंचितों, पीड़ितों का प्रतिनिधि और उनकी आवाज़ बना देती है ।

इस संग्रह के विषयों पर दृष्टि डालें तो पता चलता है की लेखक ने आज की सभी ज्वलंत समस्याओं को छुआ है ।  विषयों के चुनाव और उनके ‘ट्रीटमेण्ट’ से लेखक की पक्षधरता और उसकी संवेदनशीलता ज़ाहिर होती है ।  जीवन के प्रति लेखक का दृष्टिकोण उसकी रचनाओं से पकड़ मे आ जाता है, वहाँ ‘साफ छिपते भी नहीं सामने आते भी नहीं’ वाली बात नहीं चलती ।

विषयों का व्यापक फ़लक हमारे सामने आता है इसमे सरकारी आवासीय योजनाओं की धांधली है तो चीन के प्रति हमारा दोहरा रवैया, जी.एस.टी. की भूलभुलैया, गौमाता पर राजनीति, पवित्र नदियों का प्रदूषण, बाढ़ के अपने अर्थ, देश में पसरे अंध विश्वास, बाबाओं का पाखंड और मूर्तियों की राजनीति भी है ।  इनके अतिरिक्त बैंक कर्मियों की अति-व्यस्तता, ए.टी.एम. की दिक्कतें, गरीब को चैक मिलने पर भी भुगतान की दिक्कतें, नाम बदलने की राजनीति, हिन्दी दिवस की रस्म-आदायगी और बापू की कल्पना के भारत के बरक्स आज के भारत का लेखा जोखा भी यहाँ है ।  लेखों मे आम आदमी के लिए लेखक की ‘कंसर्न’ को साफ महसूस किया जा सकता है ।  इस संबंध में कुछ लेखों की पंक्तियों को उदघ्रत करना उचित होगा ।

“पहले वाले साहब नें  इंद्रा आवास योजना में केस बनवाया था, दीवार भर खड़ी हो पाई थी और आगे कुछ भी नहीं हुआ, साहब सब हितग्राहियों का पैसा खा कर ट्रान्सफर करा लिए थे, सब की दीवार बरसात मे गिर गई थी और शहर में साहब का आलीशान बंगला बन गया था”।  (बंगला बखान)

“तहसीलदार ने रंगैया को बोला कि जाकर बैंक वालों से पूछो कि हीरे के व्यापारी को ग्यारह हज़ार करोड़ रुपये दिये थे तो क्या आधार कार्ड लिया था?’ (बैंक मे रंगैया का खाता)

‘हमारी सरकार ने नोट बंदी करके देश विदेश मे नाम कमाया है, बंद हुए 500 और 1000 रुपये के नोटों को सड़ाकर खाद बनाई है जिससे तंदुरुस्त कमल पैदा किए गए हैं’ ।  (‘ए.टी.एम. में खुचड़’)

‘घर की बहू के हाथ से थोड़ा सा दूध गिर जाता है तो सास गोरस के अपमान की बात करके बहू को पाप का भागी बना देती है और उस समय सास और बहुओं ने मिल कर खूब दूध नालियों में बहाया, तब किसी ने नहीं कहा कि सब पापी थे’ ।   (‘अफवाह उड़ाना है पाप’)

शौचालय का शौक ऐसा चर्राया कि शौचालय बना-बना के लोगों ने बड़े बड़े बंगले खड़े कर लिए और शौचालय बिन पानी के गंदगी फैलाने के दूत बन गए’ ।  (‘कचरे के बहाने बहस’)

यह उल्लेखनीय है कि यद्यपि पाण्डेय जी नें अधिकतर तात्कालिक विषयों पर अपनी कलम चलाई है फिर भी वे बार बार हमारे समाज की ‘क्रानिक’ व्याधियों तक पहुचाने का प्रयास करते हैं ।  समाज मे व्याप्त अन्याय और भ्रष्टाचार तथा आम आदमी की लाचारी और बेबसी उनकी रचनाओं मे बार बार नुमायां होती हैं ।

पाण्डेय जी परसाई जी के निकट रहे हैं और उन्होने परसाई जी के जीवन का अंतिम इंटरव्यू भी लिया था जो काफी चर्चित रहा ।  अतः वे व्यंग्य के राग-रेशे से भली भांति वाकिफ हैं ।  उम्मीद की जा सकती है की आगे उनकी रचनाशीलता नए आयाम ग्रहण करेगी ।

 – डॉ कुंदन सिंह परिहार, जबलपुर, मध्य प्रदेश

सम्प्रति : जय प्रकाश पाण्डेय, 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 20 ☆ कहानी संग्रह  –  बिन मुखौटों की दुनिया – डा ज्योति गजभिये ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  डा ज्योति गजभिये जी के कहानी संग्रह  “बिन मुखौटों की दुनिया ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.   श्री विवेक जी ने पुस्तक की भूमिका एवं कहानियों के शीर्षक विवरण जिस तरीके से  प्रस्तुत  किया है वह पुस्तक के  उच्च साहित्यिक स्तर  को प्रदर्शित करता है।  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 20☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – कहानी संग्रह  –  बिन मुखौटों की दुनिया  

पुस्तक –बिन मुखौटों की दुनिया

लेखिका – डा ज्योति गजभिये

प्रकाशक – अयन प्रकाशन नई दिल्ली

मूल्य –  220 रु  हार्ड बाउंड पृष्ठ 116

☆ कहानी संग्रह  –  बिन मुखौटों की दुनिया – डा ज्योति गजभिये –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

कहानी, अभिव्यक्ति की वह विधा है जो परिवेश को आत्मसात कर इस तरीके से लिखने का कौशल चाहती है कि पाठक उस वर्णन में स्वयं का परिवेश ढ़ूंढ़ सके, घटना को महसूस कर सके. डॉ ज्योति गजभिये मूलतः अहिन्दी भाषी हैं, हिन्दी कहानीकार के रूप में सर्वथा नई है. यद्यपि उनकी क्षणिका, कविता, गजल, शोध प्रबंध की पुस्तकें आ चुकी हैं. उन्होने नासिरा शर्मा के कथा साहित्य पर शोध किया है.

प्रस्तुत किताब में उनकी कुल १४ बेहतरीन कहानियां प्रकाशित हैं. अपनी भूमिका में वे कविता की तरह लिखती हैं “शब्दो को ठोक पीट कर वाक्य तैयार कर रही थी, कहानी लिखते हुये भी जब कविता कही से आकर अपनी झलक दिखला जाती तो उसे समझा बुझाकर वापस भेजना पड़ता”. यह सच है कि महानगरीय वातावरण संवेदना शून्य हो चला है, लोग नम्बरो और घड़ी के कांटो की तरह वहीं के वहीं घूम रहे हैं. यह दशा मनोरोगों को जन्म दे रही है. इसे ज्योति जी ने बारीकी से पकड़ा और अपना कथानक बनाया है.

संग्रह में बिरजू नही मरेगा, कवि सम्मेलन का आखिरी कवि, भूखे भेड़िये, टुकड़ा टुकड़ा प्यार, अनोखा ब्याह, कुलच्छिनी, नये जमाने की लड़की, बिन मुखौटो की दुनियां, फकीर नबाब, मिट्टी की खुश्बू, मन्नत का धागा, हीर का तीसरा जन्म, शेष हो तुम मेरे भीतर तथा  महापुरुष शीर्षको से कहानियां संग्रहित हैं. किसी कहानी को मैं कमजोर नही कह सकता. हां बिन मुखौटो की दुनियां जिस पर पुस्तक का नाम रखा गया है, सच ही प्रभावी कहानी है. कहानियां संवाद शैली में बुनी गई हैं, पठनीय  हैं. फ्लैप पर सूर्यबाला जी ने सही ही लिखा है ज्योति जिसे और परिष्कृत कहानियो की उम्मीद हिन्दी साहित्य जगत को है.

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 19 ☆ काव्य संग्रह – लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं – सुश्री सोनिया खुरानिया ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  सुश्री सोनिया खुरानिया जी के काव्य संग्रह लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 19☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – काव्य संग्रह  –  लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं 

पुस्तक –लफ्ज दर लफ्ज मैं

लेखिका –  सुश्री सोनिया खुरानिया

प्रकाशक – रवीना प्रकाशन दिल्ली

आई एस बी एन – ९७८९३८८३४६८१८

मूल्य –  200 रु प्रथम संस्करण 2019

☆ काव्य संग्रह –  लफ्ज़ दर लफ्ज़ मैं – सुश्री सोनिया खुरानिया –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

काव्य वह विधा है जो यदि कौशल से प्रयुक्त हो तो व्यक्तिगत अनुभवो को हर पाठक के उसके अनुभव बना देने की क्षमता रखती है. सोनिया खुरानिया की इस पुस्तक में संग्रहित कवितायें अधिकांशतः इसी तरह की हैं. छंद के शिल्प में भले ही कुछ रचनायें वह पकड़ न रखती हों जो साहित्यिक दृष्टि से आवश्यक हैं किन्तु भाव की कसौटी पर रचनायें खरी अभिव्यक्ति प्रस्तुत कर रही हैं. कोई ६० से अधिक कवितायें, कुछ मुक्त छंद में कुछ छंद में संग्रहित हैं. अधिकतर रचनायें स्त्री पुरुष संबंधो के, प्रतीत होता है उनके स्व अनुभव ही हैं. कवियत्री से अनुभवो की परिपक्वता पर बेहतर साहित्य की उम्मीद साहित्य जगत को है.

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 18 ☆ दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा –  अमर शहीद भगत सिंह ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  अनुव्रता श्रीवास्तव चौधरी जी की प्रसिद्ध पुस्तक “दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा –  अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.  यह पुस्तक आज  के  धार्मिक एवं सामाजिक परिपेक्ष्य में पढ़ी जानी अत्यंत आवश्यक है । साथ ही आज की युवा पीढ़ी को उनकी विचारधारा से अवगत कराने की महती आवश्यकता है। श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 18☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा –  अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण 

 

पुस्तक –दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा –  अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण

लेखिका – अनुव्रता श्रीवास्तव चौधरी
प्रकाशक – रवीना प्रकाशन दिल्ली
मूल्य –  300 रु

☆ दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा –  अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण  – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव 

समय की मांग है कि देश भक्त शहीदो के योगदान से नई पीढ़ी को अवगत करवाने के पुरजोर प्रयास हों . भगतसिंह किताबों में कैद हैं. उनको किताबों से बाहर लाना जरूरी है . उनके विचारो की प्रासंगिकता का एक उदाहरण साम्प्रदायिकता के हल के संदर्भ में देखा जा सकता है . आजादी के बरसो बाद आज भी साम्प्रदायिकता देश की बड़ी समस्या बनी हुई है, जब तब हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क उठते हैं .
भगत सिंह के युवा दिनो में 1924 में बहुत ही अमानवीय ढंग से हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए थे , भगतसिंह ने  देखा कि दंगो में दो अलग अलग धर्मावलंबी परस्पर लोगो की हत्या किसी गलती पर नही वरन केवल इसलिये कर रहे थे , क्योकि वे परस्पर अलग धर्मो के थे, तो उनका युवा मन आक्रोशित हो उठा . स्वाभाविक  रूप से दोनो ही धर्मो के सिद्धांतो में हत्या को कुत्सित और धर्म विरुद्ध  बताया गया है . क्षुब्ध होकर व्यक्तिगत रूप से स्वयं भगत सिंह तो नास्तिकता की ओर बढ़ गये  उन्होने जो अवधारणा व्यक्त की , कि धर्म व्यैक्तिक विषय होना चाहिये, सामूहिक नही वह आज भी सर्वथा उपयुक्त है.
उनके अनुसार ” साम्प्रदायिक दंगों की जड़ खोजें तो  इसका कारण आर्थिक ही जान पड़ता है।  सभी दंगों का इलाज यदि कोई हो सकता है तो वह भारत की आर्थिक दशा में सुधार से ही हो सकता है . भूख और दुख से आतुर होकर मनुष्य सभी सिद्धान्त ताक पर रख देता है। सच है, मरता क्या न करता। कलकत्ते के दंगों में एक  अच्छी बात भी देखने में आयी। वह यह कि वहाँ दंगों में ट्रेड यूनियन के मजदूरों ने हिस्सा नहीं लिया और न ही वे परस्पर गुत्थमगुत्था हुए, वरन् सभी हिन्दू-मुसलमान बड़े प्रेम से कारखानों आदि में उठते-बैठते और दंगे रोकने के यत्न करते रहे। यह इसलिए कि उनमें वर्ग-चेतना थी और वे अपने वर्ग हित को अच्छी तरह पहचानते थे। वर्ग चेतना का यही सुन्दर रास्ता है, जो साम्प्रदायिक दंगे रोक सकता है।”
भगत सिंह की विचारधारा और उनके सपनों पर  बात कर उनको बहस के केन्द्र में लाना युवा पीढ़ी को दिशा दर्शन के लिये वांछनीय है.  भगतसिंह ने कहा था कि देश में सामाजिक क्रांति के लिये किसान, मजदूर और नौजवानो में एकता होनी चाहिए. साम्राज्यवाद, धार्मिक-अंधविश्वास व साम्प्रदायिकता, जातीय उत्पीड़न, आतंकवाद, भारतीय शासक वर्ग के चरित्र, जनता की मुक्ति के लिए क्रान्ति की जरूरत, क्रान्तिकारी संघर्ष के तौर-तरीके और क्रान्तिकारी वर्गों की भूमिका के बारे में उन्होने न केवल मौलिक विचार दिये थे बल्कि अपने आचरण से उदाहरण बने . उनके चरित्र का अनुशीलन और विचारों को आत्मसात कर आज समाज को सही दिशा दी जा सकती है . उनके विचार शाश्वत हैं , आज भी प्रासंगिक हैं .
इस दृष्टि से वर्तमान स्थितियों में युवा लेखिका अनुव्रता श्रीवास्तव की यह किताब पठनीय व अनुकरणीय है जो संस्करणात्मक तरीके से भगत सिंह को समझने में मदद करती है . यदि कभी अखण्ड भारत का पुनर्निमाण हुआ तो  लाहौर बाघा बार्डर ही वह द्वार होगा जहां दोनो ओर के जन समुदाय एक दूसरे  को गले लगाने बढ़ आयेंगे , और तब लाहौर स्वयं सजीव हो बोल पड़े जैसा इस कथा में लेखिका ने उसके माध्यम से अभिव्यक्त किया है तो किंचित आश्चर्य नही , क्योंकि सच यही है कि राजनेता कितना ही बैर पाल लें पर बार्डर पार निर्बाध आती जाती हवा , स्वर लहरी और पक्षियो की बिना पासपोर्ट आवाजाही को कोई सेना नही रोक सकती .  भगत सिंग भारत पाकिस्तान दोनो ही मुल्कों के हीरो थे हैं और सदैव रहेंगे. किताब बार बार पठनीय व मनन करने योग्य है .
चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 17 ☆ मूर्खमेव जयते युगे युगे (व्यंग्य संग्रह) ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”  शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  व्यंग्यकार श्री विनोद कुमार विक्की की प्रसिद्ध पुस्तक “मूर्खमेव जयते युगे युगे (व्यंग्य संग्रह)” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.  यह पुस्तक 43 विषयों पर लिखित व्यंग्य संग्रह है। श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 17 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – मूर्खमेव जयते युगे युगे (व्यंग्य संग्रह)  

पुस्तक – मूर्खमेव जयते युगे युगे (व्यंग्य संग्रह)

लेखक – विनोद कुमार विक्की
प्रकाशक –  दिल्ली पुस्तक सदन दिल्ली
आई एस बी एन ८३‍८८०३२‍६४‍६
मूल्य –  ३९५ रु प्रथम संस्करण २०१९

☆ मूर्खमेव जयते युगे युगे (व्यंग्य संग्रह)– चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ऐसे समय में जब पुस्तक प्रकाशन का सारा भार लेखक के कंधो पर डाला जाने लगा है, दिल्ली पुस्तक सदन ने व्यंग्य, कहानी, उपन्यास , जीवन दर्शन आदि विधाओ की अनेक पाण्डुलिपियां आमंत्रित कर, चयन के आधार पर स्वयं प्रकाशित की हैं.

दिल्ली पुस्तक सदन का इस  अभिनव साहित्य सेवा हेतु अभिनंदन. इस चयन में जिन लेखको की पाण्डुलिपिया चुनी गई हैं, विनोद कुमार विक्की युवा व्यंग्यकार इनमें से ही एक हैं, उन्हें विशेष बधाई. अपनी पहली ही कृति भेलपुरी से विनोद जी नें व्यंग्य की दुनियां में अपनी सशक्त  उपस्थिति दर्ज की थी.

आज लगभग सभी पत्र पत्रिकाओ में उन्हें पढ़ने के अवसर मिलते हैं. उनकी अपने समय को और घटनाओ को बारीकी से देखकर, समझकर, पाठक को गुदगुदाने वाले कटाक्ष से परिपूर्ण लेखनी, अभिव्यक्ति हेतु  उनका विषय चयन, प्रवाहमान, पाठक को स्पर्श करती सरल भाषा विनोद जी की विशिष्टता है.

मूर्खमेव जयते युगे युगे प्रस्तुत किताब का प्रतिनिधि व्यंग्य है. सत्यमेव जयते अमिधा में कहा गया शाश्वत सत्य है, किन्तु जब व्यंग्यकार लक्षणा में अपनी बात कहता है तो वह मूर्खमेव जयते युगे युगे लिखने पर मजबूर हो जाता है. इस लेख में वे देश के वोटर से लेकर पड़ोसी पाकिस्तान तक पर कलम से प्रहार करते हैं और बड़ी ही बुद्धिमानी से मूर्खता का महत्व बताते हुये छोटे से आलेख में बड़ी बात की ओर इंगित कर पाने में सफल रहे हैं. इसी तरह के कुल ४३ अपेक्षाकृत दीर्घजीवी विषयो का संग्रह है इस किताब में. अन्य लेखो के शीर्षक  ही विषय बताने हेतु उढ़ृत करना पर्याप्त है, जैसे कटघरे में मर्यादा पुरुषोत्तम, आश्वासन और शपथ ग्रहण, चुनावी हास्यफल, सोशल मीडिया शिक्षा केंद्र, मैं कुर्सी हूं, सेटिंग, पुस्तक मेला में पुस्तक विमोचन, हाय हाय हिन्दी, अरे थोड़ा ठहरो बापू, जिन्ना चचा का इंटरव्यू, फेसबुक पर रोजनामचा जैसे मजेदार रोजमर्रा के सर्वस्पर्शी विषयो पर सहज कलम चलाने वाले का नाम है विनोद कुमार विक्की. आशा है कि किताब पाठको को भरपूर मनोरंजन देगी, यद्यपि जो मूल्य ३९५ रु रखा गया है, उसे देखते हुये लगता कि प्रकाशक का लक्ष्य किताब को पुस्तकालय पहुंचाने तक है.

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 16 ☆ कर्मभूमि के लिए बलिदान ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”  शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  प्रो सी बी श्रीवास्तव जी की प्रसिद्ध पुस्तक “कर्म भूमि के लिये बलिदानपर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.  यह किताब ८ रोचक बाल कथाओ का संग्रह है। श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 16 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – कर्म भूमि के लिये बलिदान  

पुस्तक – कर्म भूमि के लिये बलिदान

लेखक – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध

मूल्य –  30 रु

प्रकाशक –  बी एल एण्टरप्राईज जयपुर
ISBN 978-81-905446-1-0

 

☆ कर्म भूमि के लिये बलिदान – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

 

बच्चो के चरित्र निर्माण में अच्छे बाल साहित्य की भूमिका निर्विवाद है.  बाल कवितायें जहां जीवन पर्यंत स्मरण में रहती हैं व किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में पथ प्रदर्शन करती हैं वहीं बचपन में पढ़ी गई कहानियां अवचेतन में ही व्यक्तित्व बनाती हैं. बाल कथा के नायक बच्चे के संस्कार गढ़ते हैं.  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ‘एक शिक्षा शास्त्री व बाल मनोविज्ञान के जानकार विद्वान मनीषी हैं. उनकी यह किताब ८ रोचक बाल कथाओ का संग्रह है.

नन्हें बच्चो के मानसिक धरातल पर उतरकर उन्होंने सरल शब्द शैली में कहानियां कही हैं.  बच्चे ही नही बड़े भी इन्हें पढ़ते हैं तो  पूरी कहानी पढ़कर ही उठ पाते हैं. कारगिल युद्ध के अमर शहीद हेमसिंह की शहादत की कहानी कर्मभूमि के लिये बलिदान के आधार पर पुस्तक का नाम दिया गया है. सभी कहानियां सचित्र प्रस्तुत की गई हैं. पुस्तक विशेष रूप से बच्चो के लिये पठनीय व संग्रहणीय है.

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 15☆ बुन्देलखण्ड की लोक कथायें ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”  शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री अजित श्रीवास्तव जी की प्रसिद्ध पुस्तक “बुन्देलखण्ड की लोक कथायें” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा .  किसी भी भाषा या प्रदेश की लोककथाएं एक पीढ़ी के साथ ही जा रही हैं। ऐसे में उन्हें इस प्रकार के लोककथा संग्रह के रूप में संजो कर रखने की महती आवस्यकता है।  लोक कथाएं हमें अगली पीढ़ी को विरासत में  देने का दायित्व हमारी पीढ़ी को है इसके लिए श्री अजीत श्रीवास्तव जी को साधुवाद।  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 15  ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – बुन्देलखण्ड की लोककथायें  

 

पुस्तक – बुन्देलखण्ड की लोक कथायें (लोककथा संग्रह)

संग्रहकर्ता  – अजीत श्रीवास्तव

प्रकाशक –  रवीना प्रकाशन दिल्ली

आई एस बी एन – 9789388346597

मूल्य –  २०० रु प्रथम संस्करण २०१९

 

☆ बुन्देलखण्ड की लोककथायें – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

 

हाल ही में “कौन बनेगा करोड़पति” के एक एपीसोड में बुन्देलखण्ड की एक महिला पहुंची थीं. होस्ट अमिताभ बच्चन से वार्तालाप में उन्होनें बुंदेलखण्डी का प्रयोग किया, प्रतिसाद में  सहज अमिताभ जी ने भी उनसे बुंदेलखण्डी की मधुरता को सम्मान देते हुये ” काय का हो रऔ ”  का जुमला कहा. इस तरह मीडिया में बुंदेलखण्डी भाषा का लावण्य चर्चित रहा. बोलिया और भाषाये  भारत की थाथियां हैं. लोक भाषा में सदियों के अनुभवो का निचोड़ लोक कथा, मुहावरो, कहावतो के जरिये पीढ़ी दर पीढ़ी विस्तार पाता रहा है.

टीकमगढ़ के अजीत श्रीवास्तव पेशे से एक एड्वोकेट हैं. उनका रोजमर्रा के कामो में  ग्रामीण अंचल के किसानो व ठेठ बुंदेलखण्ड के आम लोगों से नियमित वास्ता पड़ता रहता है. इस दिनचर्या का लाभ उठाते हुये उन्होनें बुंदेली लोककथायें जिन्हें स्थानीय लोग “अहाने ” कहते हैं, सुनकर लिख डाले हैं. फिर इन अहाने अर्थात बातचीत में कोट किये जाने वाले लघु दृष्टांत या कथानक को सबके उपयोग हेतु इनका हिन्दी  भाष्य रूपान्तर तैयार कर इस पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है.

पुस्तक में कुल ११० ऐसी लघु लोककथायें हैं, जो पहले बुंदेली और उसके नीचे ही हिन्दी में प्रकाशित हैं. हर लोककथा कोई संदेश देती है. उदाहरण के लिये एक कथा में कल्पना है कि एक व्यक्ति जो अपने भाग्य को दोष देते परेशान था, पोटली बांधकर किसी दूसरे गांव में जाने की सोचता है, तो उसे उसके साथ जाने को तैयार एक महिला मिली, वह पूछता है तुम कौन, महिला उत्तर देती मैं तुम्हारा भाग्य, तब वह मनुष्य कहता है कि जब तुम्हें साथ ही चलना है तो फिर मैं इसी गांव में क्यो न रहूं ? निहितार्थ स्पष्ट है, जगह बदलने या भाग्य को दोष देने की अपेक्षा जहां है जिन परिस्थितियो में हैं वही मेहनत की जावे तो ही प्रगति हो सकती है.

एक अन्य कथा में बताया गया है कि एक बार घुमते हुये एक राजा किसी किसान के पास पहुंचते हैं, वह गन्ने का रस निकाल रहा था, राजा एक गिलास रस पीते हैं, उन्हें वह बहुत अच्छा लगता है, तो राजा के मन में ख्याल आता है कि किसान इतने अच्छै गन्ने की फसल का लगान कम अदा करता है, लगान बढ़ानी चाहिये. जब राजा अगला गिलास रस पीता है तो उन्हें वह रस अच्छा नही लगता, यह बात राजा किसान से कहता है, तो किसान बोलता है कि महाराज आपने जरूर कुछ बुरा सोचा रहा होगा. राजा मन ही मन सब समझ गये. ” जैसी राजा की नीयत होती है वैसी प्रजा की बरकत ” क्या यह लोककथा आज भी प्रासंगिक नही लगती ?

ऐसी ही रोचक छोटी छोटी कहानियां जो जन श्रुति से अजीत श्रीवास्तव जी ने एकत्रित की हैं बिना तोड़ मरोड़ के यथावत किताब में प्रस्तुत की गई हैं. इस प्रकार किताब लोक के सामाजिक  अध्ययन हेतु भी संदर्भ ग्रंथ बन गई है. मेरी जानकारी में ऐसा कार्य दूसरा देखने को नही मिला है. पुरानी पीढ़ी के साथ ही गुम हो रही इन कहानियो को संग्रहित कर बुंदेली भाषा के प्रति एक बड़ा कार्य किया गया है. जिसके लिये लेखक व प्रकाशक बधाई के सुपात्र हैं.

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर

मो ७०००३७५७९८

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