मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 16 ☆ दिवाना ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है ।आज प्रस्तुत है उनकी एक  श्रृंगारिक कविता “दिवाना“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 16 ☆

☆ दिवाना

अगं मी तुझा दिवाना, आता नको बहाना

खुणवूनी दूर जाशी, ये बाहूपाशी ये नां !!

 

तुझी ती मयुरचाल, अन् ते हेलकावे

एका लयीत हलती, कानातली ती बाळे

घायाळ मजशी केले, फेकून नयनबाणा

अगं मी तुझा दिवाना…..!!

 

रसदार ओठ दोन्ही, अन् केस रेशमाचे

गालातली खळी ती, नयनात मोर नाचे

किती वेळ खेळशी गं, हा खेळ जीवघेणा

अगं मी तुझा दिवाना……..!!

 

तू रात्रभर पौर्णिमेची, दुग्धात नाहलेली

तू शुक्रतारका गं, पहाटेस चिंब ओली

तुज संगमरवरीला, बिलगून राहू दे नां

अगं मी तुझा दिवाना……..!!

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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मराठी साहित्य – कविता ☆ केल्याने होतं आहे रे # 38 – वसुंधरा ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी की  वर्षा ऋतू पर आधारित रचना  “वसुंधरा ”।  उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ केल्याने होतं आहे रे # 38 ☆

☆ वसुंधरा ☆ 
 

आला पाऊस आला पाऊस !

जलधारांच्या माळा घेऊन !!

 

भिजली धरणी जलधारांनी !

हरित तृणांचे लेणे लेऊनी !!

 

सजली जणू नववधू लाजरी !

हिरवा रेशमी शालू लेऊनी !

दिसते किती छान गोजिरी !!

 

ढगाआडुनी सखा डोकवी !

दिसते कशी मज सखी साजणी !

 

पाहुनी ही सुंदरा वसुंधरा !

सखा झाला कावरा बावरा !!

सखा झाला कावरा बावरा!!

 

©️®️उर्मिला इंगळे

सातारा

दिनांक:१७-६-२०

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु!!

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य – अगरबत्ती ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी  कामगारों के जीवन पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “अगरबत्ती )

☆ विजय साहित्य – अगरबत्ती ☆

 

गंध अगरबत्तीचा

मांगल्याचा सहवास

शांत चित्त करण्याला

सुगंधित  एक श्वास. . . !

 

देह अगरबत्तीचा

क्षण क्षण देह जळे

कसे हवे जगायला

जळताना दरवळे.. . !

 

ठेवा अगरबत्तीचा

जीवनाचे सारामृत

राख होता जीवनाची

तन मन सेवाश्रृत . . . !

 

कार्य अगरबत्तीचे

प्रकाशाची दावी वाट

तिच्या विना अधुरेच

देव पुजेचे हे ताट.. . !

 

स्थान अगरबत्तीचे

दरवळे काळजात

पूजा, प्रार्थना, आरती

निनादते अंतरात.. . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – कविता ☆ अव्यक्त !! ☆ श्री शेखर किसनराव पालखे

श्री शेखर किसनराव पालखे

( मराठी साहित्यकार श्री शेखर किसनराव पालखे जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है।  आप लगातार स्वान्तः सुखाय सकारात्मक साहित्य की रचना कर रहे हैं । आपकी रचनाएँ ह्रदय की गहराइयों से लेखनी के माध्यम से कागज़ पर उतरती प्रतीत होती हैं। हमारे प्रबुद्ध पाठकों का उन्हें प्रतिसाद अवश्य मिलेगा इस अपेक्षा के साथ हम आपकी रचनाएँ साझा कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  “अव्यक्त !!”)

☆ कविता – अव्यक्त !! ☆

आतमधून, अगदी आतमधून

उचंबळून आल्याशिवाय….

भावनांच्या लाटेवर उंचच उंच

स्वार झाल्याशिवाय …

शब्दांचा कोंडमारा मनात

असह्य होत असला तरीही

उतरत नाही एखादी कविता

कागदावर अलगद हळुवारपणे

मी वाट पाहतोय तिच्या जन्माची

सहन होईनाशा झाल्यात आताशा

या कळा…. किती काळ????

मी अव्यक्त राहतोय अजूनही..

तिच्यासाठी नाही निदान

माझ्यासाठी तरी प्रसवावं

तिनं स्वतःला लवकरच

म्हणजे मी होईन रिकामा

एखाद्या नव्या कवितेच्या वेणांसाठी…

 

© शेखर किसनराव पालखे 

पुणे

06-04-2020

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 50 –एकांताची करतो सोबत…. ☆ सुजित शिवाजी कदम

सुजित शिवाजी कदम

(सुजित शिवाजी कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण कविता  “एकांताची करतो सोबत….”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #50 ☆ 

☆ एकांताची करतो सोबत…. ☆ 

 

एकटाच रे नदीकाठी या वावरतो मी

प्रवाहात त्या माझे मी पण घालवतो मी

 

सोबत नाही तू तरीही जगतो जीवनी

तुझी कमी त्या नदीकिनारी आठवतो मी

 

हात घेऊनी हातात तुझा येईन म्हणतो

रित्याच हाती पुन्हा जीवना जागवतो मी

 

घेऊन येते नदी कोठूनी निर्मळ पाणी

गाळ मनीचा साफ करोनी लकाकतो मी.

 

एकांताची करतो सोबत पुन्हा नव्याने

कसे जगावे शांत प्रवाही सावरतो मी .

 

© सुजित शिवाजी कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

दिनांक  16/2/2019

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 54 – पंढरीची वारी ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  एक भावप्रवण कविता  “पंढरीची वारी”।  यह कैसी विडम्बना है कि आज भक्त अपने हृदय में भक्तिभाव के रहते हुए भी प्रभु के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं और प्रभु भी अपने भक्तों को दर्शन नहीं दे पा रहे हैं। आज सब के पैर महामारी के प्रकोप से बंधे हुए हैं । बरसों  पुरानी परंपरा थम सी गई है मानों प्रभु कह रहे हों आज पंढरपुर बंद है, अपने घरों में ही मुझे स्मरण करो। मैं स्वयं तुम्हारे घर पर ही दर्शन दूंगा। एक अप्रतिम रचना । सुश्री प्रभा जी द्वारा रचित  भक्तिभावपूर्ण रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 54 ☆

☆ पंढरीची वारी ☆ 

पंढरीच्या राया

नाही आता वारी

तूच ये सत्वरी

घरी माझ्या!

केली ज्यांनी वारी

सदोदित पायी

घेई हृदयाशी

देवा त्यांना

 एकदाच गेले

वारी मध्ये तुझ्या

 केली मनोमन

नित्य  पूजा

थकले पाऊल

अवेळीच माझे

नाही आले पुन्हा

तुझ्या भेटी

 आली महामारी

जगतात सा-या

पंढरीच्या फे-या

बंद आता

तूच माझी भक्ती

तूच माझी शक्ती

देई बळ फक्त

जगण्याचे

 सांग आता भक्ता

येऊ नको दूर

रे पंढरपूर

बंद आता

 हे लाॅकडाऊन

सर्वांनी पाळावे

घरीच रहावे

सुरक्षित

 पांडुरंग ध्यानी

पांडुरंग मनी

झाले मी हो जनी

अंतर्बाह्य

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 8 – ऐन थंडीत ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘ऐन थंडीत’ एवं इस मूल कविता का  श्री भगवान् वैद्य ‘प्रखर’ जी द्वारा  ऐन सर्दियों में  शीर्षक से हिंदी  भावानुवाद किया गया है जिसे आप निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

कविता का लिंक  >>>>   ☆ ऐन सर्दियों में ☆

साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 8 ☆ 

☆ ऐन थंडीत 

या आश्वस्त वृक्षांनीच

विश्वासघात केला आमचा

ऐन थंडीत.

आसरा अव्हेरणं

त्यांना अशक्य झालं,

तेव्हा त्यांनी

विटा काढून घेतल्या

आपल्या घराच्या भिंतींच्या

आता उघडे पडलेले आम्ही

वाट बघतोय

पिसे झडण्याची

किंवा

कुणा शिका-याच्या

मर्मभेदी बाणाची.

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 53 ☆ पावसाचे थेंब ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक अत्यंत मार्मिक, ह्रदयस्पर्शी एवं भावप्रवण कविता  “पावसाचे थेंब।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 53 ☆

☆ पावसाचे थेंब☆

 

असंख्य पावसाचे थेंब

डोकं आपटून घेतात

रस्त्यावर, खडकावर,

ओघळ होऊन वाहतात,

खड्ड्यांची तळी निर्माण करतात,

डोंगरावरून कोसळतात,

नदीत धावतात,

धरणात साटतात,

मातीला सुखावतात,

अन्नाच्या निर्मितीत योगदान देतात,

सजीवांत जगवण्याची उमेद निर्माण करतात,

समुद्रात माशांना जगवतात,

भूतलावर प्राण्यांना वाढवतात,

कधी पानांच्या कुशीत

मोत्यांचं रूप घेऊन विसावतात,

कधी गोठून घेतात स्वतःचंच अस्तित्व

कधी आग झेलतात, बाष्प होतात,

बहुरुप्यासारखी रुपं बदलतात

पावसाचे थेंब

या साऱ्या उपकाराच्या बदल्यात

काय मागतात ते तुमच्याकडे

पाणी वाचवा पाणी जिरवा

इतकच ना ?

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 4 ☆ माझ्या आईचे गुणवर्णन..☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है उनकी भावप्रवण कविता “माझ्या आईचे गुणवर्णन.. ”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 4 ☆ 

☆ माझ्या आईचे गुणवर्णन.. ☆

माझ्या आईचे गुणवर्णन

मी कसे ते करावे

शब्दात कसे तोलावे.. ०१

 

माझ्या आईचे गुणवर्णन

शब्दातीत आहे आई

बहुगुणी प्रेमळ माई..०२

 

माझ्या आईचे गुणवर्णन

असह्य वेदना तिला झाल्या

न मी पहिल्या, न अनुभवल्या..०३

 

माझ्या आईचे गुणवर्णन

आई प्रेमाचा निर्झर

आई सौख्याचा सागर..०४

 

माझ्या आईचे गुणवर्णन

कोणते कोणते दाखले द्यावे

ऋणातून कैसे मुक्त व्हावे..०५

 

माझ्या आईचे गुणवर्णन

पवित्र तुळस अंगणातली

मंदिरात समई तेवली..०६

 

माझ्या आईचे गुणवर्णन

मजला न करवे आता

देवा नंतर, तीच खरी माता ..०७

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

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हिन्दी / मराठी साहित्य – कविता ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर की मराठी कविता ‘तेव्हा’ एवं हिन्दी भावानुवाद ‘तब’ ☆ श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’

श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’

( श्री भगवान् वैद्य ‘ प्रखर ‘ जी  हिंदी एवं मराठी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपका संक्षिप्त परिचय ही आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का परिचायक है।

संक्षिप्त परिचय : 4 व्यंग्य संग्रह, 3 कहानी संग्रह, 2 कविता संग्रह, 2 लघुकथा संग्रह, मराठी से हिन्दी में 6 पुस्तकों तथा 30 कहानियाँ, कुछ लेख, कविताओं का अनुवाद प्रकाशित। हिन्दी की राष्ट्रीय-स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में विविध विधाओं की 1000 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी से छह नाटक तथा अनेक रचनाएँ प्रसारित
पुरस्कार-सम्मान : भारत सरकार द्वारा ‘हिंदीतर-भाषी हिन्दी लेखक राष्ट्रीय पुरस्कार’, महाराष्ट्र राजी हिन्दी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा कहानी संग्रहों पर 2 बार ‘मूषी प्रेमचंद पुरस्कार’, काव्य-संग्रह के लिए ‘संत नामदेव पुरस्कार’ अनुवाद के लिए ‘मामा वारेरकर पुरस्कार’, डॉ राम मनोहर त्रिपाठी फ़ेलोशिप। किताबघर, नई दिल्ली द्वारा लघुकथा के लिए अखिल भारतीय ‘आर्य स्मृति साहित्य सम्मान 2018’

हम आज प्रस्तुत कर रहे हैं श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’ जी द्वारा सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  की एक भावप्रवण अप्रतिम मराठी कविता ‘तेव्हा’ काअतिसुन्दर हिंदी भावानुवाद ‘तब’ 

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  

आज प्रस्तुत है  सर्वप्रथम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी की  मूल मराठी कविता  ‘तेव्हा ‘ तत्पश्चात श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’ जी  द्वारा हिंदी भावानुवाद ‘तब ‘ 

❃❃❃❃❃❃❃❃❃❃

☆ तेव्हा

किती रिक्त एकाकी

असते मी

तुला भेटते

तेव्हा.

माझा सारा पदर

पसरते

झोळी म्हणून

पण, तू तर

माझ्यापेक्षाही

कंगाल निघालास

माझ्या पदराला जडवलेले

संकेतांचे मणी

स्वप्नांच्या चमचमत्या

टिकल्या

आशा-आकांक्षांचे मोती

तू अलगद उचललेस

तू घेतलंस सारंच

तुला हवं ते

आणि  दिलंस भिरकावून

माझ्या फाटक्या पदरात

एक नि:संग झपातलेपण.

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

❃❃❃❃❃❃❃❃❃❃

☆ तब 

कितनी रिक्त

एकाकी होती हूं मैं

तुमसे मिलती हूं तब !

 

अपना समूचा आंचल

फैलाती हूं

झोली के रूप में

 

पर तुम तो

मुझसे भी कंगाल निकले !

मेरे आंचल में जड़े

संकेतों के मणिं

सपनों की दमकती बिंदियां

आशा-आकांक्षाओं के मोतीं

तुमने  सहज उठा लिये…

 

तुमने ले लिया सबकुछ

जो तुम्हें चाहिये

और उछाल दी

एक निर्लज्ज आसक्ति

मेरे विदीर्ण आंचल की ओर ।

 

© श्री भगवान् वैद्य ‘प्रखर’ 

30 गुरुछाया कॉलोनी, साईं नगर अमरावती – 444 607

मोबाइल 9422856767

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