हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 27 – भारत का आखिरी गांव माणा गांव ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनका अविस्मरणीय  संस्मरण  “भारत का आखिरी गांव माणा गांव”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) \

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 27 ☆

☆ भारत का आखिरी गांव माणा गांव 

सरस्वती नदी का उदगम स्थल भीमपुल माणा गांव भारत का अंतिम गांव कहलाता है बहुत दिनों से भारत चीन सीमा में बसे इस गाँव को देखने की इच्छा थी जो जून 2019 में पूरी हुई। यमुनेत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन के बाद माणा गांव जाना हुआ। 20 जून 2019 को उत्तराखंड की राज्यपाल माणा गांव आयीं थीं ऐसा वहां के लोगों ने बताया। हम लोग उनके प्रवास के तीन चार दिन बाद वहां पहुंचे। हिमालय की पहाड़ियों के बीच बसे इस गांव के चारों तरफ प्राकृतिक सौंदर्य देखकर अदभुत आनंद मिलता है पर गांव के हालात और गांव के लोगों के हालात देखकर दुख होता है अनुसूचित जाति के बोंटिया परिवार के लोग गरीबी में गुजर बसर करते हैं पर सब स्वस्थ दिखे और ओठों पर मुस्कान मिली।

बद्रीनाथ से 4-5 किमी दूर बसे इस गांव से सरस्वती नदी निकलती है और पूरे भारत में केवल माणा गांव में ही यह नदी प्रगट रूप में है इसी नदी को पार करने के लिए  भीम ने एक भारी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीमपुल कहते हैं। किवदंती है कि भीम इस चट्टान से स्वर्ग गए और द्रोपदी यहीं डूब गयीं थी।

कलकल बहती अलकनंदा नदी के इस पार माणा गांव है और उस पार आईटीबीपीटी एवं मिलिट्री का कैम्प हैं जिसकी हरे रंग की छतें माणा गांव से दिखतीं है।

माणा गांव के आगे वेदव्यास गुफा, गणेश गुफा है माना जाता है कि यहीं वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था। माणा गांव के आगे सात किमी वासुधारा जलप्रपात है जिसकी एक बूंद भी जिसके ऊपर पड़ती है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। कहते हैं यहां अष्ट वसुओं ने तपस्या की थी। थोड़ा आगे सतोपंथ और स्वर्ग की सीढ़ी पड़ती हैं जहां से राजा युधिष्ठिर सदेह स्वर्ग गये थे।

हालांकि इस समय भारत का ये आखिरी गांव बर्फ से पूरा ढक गया होगा और बोंटिया परिवार के 300 परिवार अपने घरों में ताले लगाकर चले गए होंगे पर उनकी याद आज भी आ रही है जिन्होंने अच्छे दिन नहीं देखे पर गरीबी में भी वे मुस्कराते दिखे।।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # ग्यारह ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध किया था और यह अंतिम कड़ी है।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # ग्यारह ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

 

हम जब नर्मदा की द्वितीय यात्रा पर चले तो मन में श्रद्धा और भक्ति के साथ साथ कुछ सामाजिक सरोकारों को पूरा करने की इच्छा भी थी। हमने तय किया था कि रास्ते में पड़ने वाले विद्यालयों में छात्र छात्राओं से गांधी चर्चा और चरित्र निर्माण की चर्चा करेंगे। हम अपने अनुभवों से उन्हें शैक्षणिक उन्नति हेतु मार्गदर्शन देने का प्रयास करेंगे।स्कूलों में गांधी साहित्य की पुस्तकें यथा रचनात्मक कार्यक्रम, मंगल प्रभात, रामनाम और आरोग्य1 की कुंजी बाटेंगे। किसी एक आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों की कविता संग्रह ‘अनय हमारा’ भेंट करेंगे।बरमान घाट पर हम सभी सहयात्री अपने अपने पुरखों की स्मृति में दो दो पौधे रोपेंगे।आम जन को कूरीतियों के बारे में चेतायेंगे।

वेगड़ जी की किताब से हमने घाट की सफाई का प्रण लिया तो श्री उदय सिंह टुन्डेले के आग्रह पर गांवों में छुआ-छूत की बुराई को समझने का प्रयास भी किया।

हमारे समूह के लोग अलग-अलग विचारों के हैं, आप कह सकते हैं कि यह heterogeneous समूह है।

प्रयास जोशी, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स से सेवानिवृत्त 67 वर्षीय कवि है और भावुकता से भरे हुए हैं। शायद ट्रेड यूनियन गतिविधियों से जुड़े रहे होंगे। उनकी रुचि महाभारत और मानस की कथा सुनने सुनाने में नहीं है। पटवाजी को पुराणादि की कहानियां सुनाने में आन्नद का अनुभव होता है। जोशी जी मानते हैं कि रामायण-महाभारत की कहानियां रोजगारपरक नहीं हैं। वे गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रम के हिमायती हैं। जब कभी मैं स्कूली बच्चों के साथ गांधी चर्चा करता हूं जोशीजी मेरे बगल में बैठ कुछ न कुछ जोड़ते हैं। तेहत्तर वर्षीय  जगमोहन अग्रवालजी के पिता स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी थे, अपने गांव कौन्डिया के सरपंच रहे और गांधीजी के सिद्धांतों के अनुसार गांव के विकास में संलिप्त रहे। पर जगमोहन अग्रवाल को संघ की विचारधारा अधिक आकर्षक लगती हैं। अनेक बार वे गांधीजी की आलोचना करने लगते हैं पर तर्कों का अभाव उन्हें चुप रहने विवश कर देता है। श्री अग्रवाल बवासीर से पीड़ित हैं फिर भी यात्रा कर रहे हैं। यह कमाल शायद अमृतमयी नर्मदा पर गहरी आस्था का परिणाम है‌। मां नर्मदा की कृपा से उनकी इस व्याधि के कारण हमारी यात्रा में विचरने न पड़ा। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से सेवानिवृत्त अविनाश दवे मेरे हम उम्र हैं। उनके पिता, स्व नारायण शंकर दवे, त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाषचंद्र बोस की सेवा में थे तो दमोह निवासी ससुराल पक्ष के लोग गांधीजी की विचारधारा विशेषकर खादी ग्रामोद्योग को बढ़ावा देने वाले।गांधी साहित्य से मेरा पहला परिचय अविनाश के स्वसुर स्व ज्ञान शंकर धगट के निवास पर ही हुआ था। मुंशीलाल पाटकर पेशे से एडव्होकेट सबकी सहमति से चलते हैं और मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। कभी कभी लगता है कि सुरेश पटवा और मुंशीलाल पाटकार  के बीच गुरु शिष्य सा संबंध है। पटवा जी तो बैंक में आने से पहले पहलवान थे अतः शिष्य बनाने में उन्हें महारत हासिल है। ग्रामीणों के बीच उन्हीं के तौर-तरीकों से बातचीत करने में वे निपुण हैं। कभी कभी वे लट्ठ घुमाकर सबका मनोरंजन भी करते रहते हैं।

हम सबने मतवैभिन्य के साथ  निष्काम भाव से यह यात्रा आंनद के साथ संपन्न की। यात्रा के दौरान लोगों से हमें भरपूर स्नेह मिला। कहीं हमें बाबाजी तो कहीं मूर्त्ति का संबोधन मिला। हम अनायास ही लोगों के बीच श्रद्धा का पात्र बन गये। जबकि हमारी यात्रा तो मौज-मस्ती से भरी हुई उम्र के इस पड़ाव का एडवेंचर ही है।

हमें नर्मदा तट पर केवल करहिया स्कूल में जाने का अवसर मिला क्योंकि शेष गांव तट से दूर थे या सुबह सबेरे निकलने की वजह से स्कूल बंद। फिर भी जहां कहीं अवसर मिला गांधी चर्चा हुई। गांव के लोग आज भी गांधीजी को जानते हैं, मानते हैं वे श्रद्धा रखते हैं। बापू का नाम सुन उनकी आंखों में चमक आ जाती है। अविनाश ने प्रायमरी स्कूल के बच्चों से राजीव गांधी की फोटो दिखाकर पूंछा क्या यह गांधीजी हैं, बच्चों ने ज़बाब दिया नहीं गांधी जी आपके पर्स में हैं। छुआ-छूत तो अभी भी है। बस यह है कि अब दलित असहजता महसूस नहीं करते। प्रदूषण कम है, नर्मदा जल साफ है पर खतरा तो है। शिवराज सिंह ने  नमामि देवी नर्मदे यात्रा की थी,  उम्मीद जागी कि नर्मदा प्रदूषण से बचेगी, नर्मदा पथ का निर्माण होगा, पेड़ पौधे लगेंगे, गांव बाह्य शौच से मुक्त होंगे, स्वच्छता कार्यक्रम, जैविक खेती बढ़ेगी तो गांवों में खुशहाली जल्द ही देखने को मिलेगी। यात्रा पूरी हुये अरसा बीत गया। कहीं पेड़ पौधे लगे नहीं दिख रहे हैं। नर्मदा में रेत उत्खनन तो अब पहले से ज्यादा हो रहा है, इसलिए शायद गांव के  लोगों को नमामि देवी नर्मदे यात्रा की बातें बेमानी लगने लगी हैं। तट की सफाई को लेकर जागरूकता कुछ ही लोगों में दिखी। हमें सफाई करता देख कोई आगे न आया बस हमारी प्रसंशा कर वे आगे बढ़ गये। रासायनिक खाद का प्रयोग करते किसान न दिखे पर कीटनाशकों का छिड़काव होता कहीं कहीं दिखाई दिया तो कहीं उसकी गंध ने हमें परेशान भी किया। यद्यपि घरों में शौचालय बने हैं तथापि तट पर खुले में शौंच आज भी जारी है। वृक्षारोपण तो अब शायद सरकार की जिम्मेदारी रह गई है। आश्रम में पेड़ लगे हैं लेकिन गांव के टीले, डांगर वृक्ष विहीन हैं। शासन और आश्रम  अगर परिक्रमा मार्ग में नर्सरी संचालित करें तो शायद वृक्षारोपण को बढ़ावा मिलेगा। कुल मिलाकर नौ दिवसीय यह एक सौ पांच किलोमीटर की यात्रा कहीं-कहीं आशा का संचार भी करती है तो दिल्ली और भोपाल से आती खबरें मन को उत्साहित नही करती। हमारी यात्रा के दौरान ही अयोध्या पर फैसला आया लेकिन कहीं भी हमें अतिरेक न दिखा। शांति सब चाहते हैं। यह सूकून देने वाली बात है।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # दस ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # दस  ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

 

14.11.2019की सुबह मैं,  अविनाश, अग्रवालजी और मुंशीलाल पाटकर छोटा धुआंधार देखने चल दिए। नर्मदा यहां चट्टानों के बीच शोर मचाती बहती है। कोई जल प्रपात तो नहीं बनाती पर जल प्रवाह इतना तेज है कि अक्सर कुछ उंचाई तक धुंध छा जाती है। इसलिए नाम पड़ा छोटा धुआंधार। रमणीकता लिए यह बड़ा मोहक स्थल है। आसपास बड़ी बड़ी चट्टानें हैं जिन पर जल कटाव ने तरह तरह की आकृतियां बनाई हैं। आवागमन की सुविधा नहीं है अतः तट पर भरपूर रेत है जो रेगिस्तान का एहसास देती है। यहां कोई आधा घंटा रुककर हम आश्रम वापस आ गये और सामान लाद कर गांव से होते हुए आगे बढ़ते रहे।

हमने मोर पंखों से सुसज्जित, काफी ऊंची ढाल या मड़ई देखी। यह उन घरों में दीपावली पर रखी जाती है जहां इसी वर्ष विवाह होने वाला है। आगे हमें पानी की कसैडीं लिए दो स्त्रियां दिखी और थोड़ी ही दूर एक घर के दरवाजे से टिकी नवयौवना। हमने दोनों से फोटो खींचने की अनुमति मांगी। वे सहर्ष तैयार हो गई। यह नया परिवर्तन गांवों में आया है। दस बरस पहले तक ग्रामीण महिलाओं से ऐसी अपेक्षा करना खतरे से खाली न था।

पिपरहा गांव में नदी अर्ध वृत बनाकर पश्चिम की ओर मुड़ती हुई बहुत सुन्दर दिखती है। कोई दस बजे के आसपास हम शेर नदी संगम स्थल पर पहुंचे। दक्षिण तट पर गुवारी गांव है तो उत्तर दिशा में सगुन घाट है। शेर  नर्मदा की शाम तटीय प्रमुख सहायक नदियों में शामिल हैं और सिवनी जिले के सतपुड़ा पर्वत माला में  स्थित पाटन इसका उद्गम स्थल है, वहां से उत्तर पश्चिम दिशा में बहते हुए 129 किमी की दूरी तय कर  यह नर्मदा को अपना अस्तित्व समर्पित करती है । घने जंगलों के बीच से बहती कभी यह बारहमासी नदी थी अब गर्मी आते आते यह सूखने लगती है।

नदी के किनारे शक्कर मिल है अपना औद्योगिक कचरा शेर नदी में फेंकती है। संगम को हमने नाव से पार किया और आगे चले मार्ग में ही चौगान किले वाले बाबाजी का आश्रम था। यहां दोपहर विश्राम किया और  रोटी-सब्जी, दाल चावल का भोजन किया। आश्रम में गौशाला है, विश्वंभर दास त्यागी इसके संचालन में लगे हैं तथा जैविक खेती-बाड़ी को बढ़ावा देते हैं। वे गौमूत्र के अर्क से आयुर्वेदिक पद्धति से लोगों का उपचार भी करते हैं।

वसंत पंचमी पर प्रतिवर्ष 108 कुंडीय महारूद्र यज्ञ आयोजन भी इस आश्रम में होता है। दो बजे के आसपास हम पांच फिर आगे चले। सतधारा का पुल अब नजदीक ही दिखाई दे रहा था। कोई डेढ़ घंटे चलकर हम यहां पहुंचे स्नान किया और मां नर्मदा को प्रणाम कर अपनी नौ दिन की यात्रा समाप्त की।

इन नौ दिनों में हम सब 105 किलोमीटर पैदल चले। ग्रामीणों के सद्व्यहार के अच्छे अनुभव हुए तो कुछ आश्रमों से बैंरग वापिस भी हुये। कहीं हमारी भेष-भूषा देख लोग आश्चर्य से हमें ताकतें और पिकनिक मनाने आया हुआ समझते। चार बजे हमने बस पकड़ी और करेली स्टेशन से इंटरसिटी ट्रेन में सफर कर भोपाल आ गये।

कल के अंक में इस पूरी यात्रा के मुख्य अनुभव पढ़ना न भूलें।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # नौ ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # नौ ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

13.11.2019 को सुबह-सुबह समनापुर से चलकर कोई पच्चीस मिनट में एक रमणीक स्थान पर पहुंच गए। यह हथिया घाट है।  बीचों-बीच टापू है तो नदी दो धाराओं में  बट गई है फिर चौड़े पाट में अथाह जलराशि समाहित कर नदी पत्थरों के बीच तीव्र  कोलाहल करते कुछ क्षण बहती है। अचानक आगे पहाड़ी चट्टानों को बड़े मनोयोग से एकाग्रता के साथ काटती है। पहाड़ काटना मेहनत भरा है और नदी ने पहले अपनी सारी शक्ति एकत्रित की फिर शान्त चित्त होकर यह दूरूह कार्य संपादित किया।आगे चले चिनकी घाट पर त्यागी जी के आश्रम में रुके, कल मेले में लोगों ने बड़ी गंदगी फैलाई,  मैंने, पाटकर और अविनाश ने सफाई करी। दो पति पत्नी पुरुषोत्तम और ज्योती गड़रिया परकम्मावासी केरपानी गांव के मिले सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर पूजन कर रहे थे।वे सस्वर भजन गा रहे थे।

“मैया अमरकंटक वाली तुम हो भोली भाली। तेरे गुन गाते हैं साधु बजा बजा के ताली।”

बाबा ने हमें पास बुलाया और  बताया कि कल्पावलि में सारा वर्णन है। यह च्वयन ऋषि तप स्थली है और उस पार रमपुरा गांव में मंदिर अब खंडहर हो गया ।  चिनकी घाट में नर्मदा संगमरमर की चट्टानों के बीच बहती है और इसे लघु भेड़ा घाट भी कहते हैं। चाय आदि पीकर हम आगे बढ़ चले। आगे सड़क मार्ग से चले रास्ते में पटैल का घर पड़ा। उसने पानी पिलाया पर गुड़ मांगने पर मना कर दिया। इतने में पटवाजी ने उसका नया ट्रेक्टर देखा तो मिठाई मांग बैठे। फिर क्या था जहां कुछ नहीं था वहां थाल भर कर मिठाई आ गई और हम सबने जीभर कर उसका स्वाद लिया।

आगे झामर होते हुए कोई साढ़े चार किलोमीटर चलकर घूरपूर पहुंचे। दोपहर के समय भास्कर की श्वेत धवल किरणें नर्मदा के नीले जल से मिलकर उसे रजत वर्णी बना रही थी। यहां फट्टी वाले बाबाजी के आश्रम में डेरा जमाया, घाट पर जाकर स्नान किया और फिर भोजन।

यहां महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले से एक साधु चौमासा कर रहे थे। उनके भक्तों ने भंडारा आयोजित किया था सो पूरन पोली, हलुआ, लड्डू, पूरी, सब्जी, दाल, चावल सब कुछ भरपेट खाया। भोजन के पूर्व हम सभी को फट्टी वाले बाबाजी ने प्रेम से अपने पास बैठाया। मैंने सौन्दर्य वर्णन करते हुए नर्मदा को नदी कहा तो वे तुरंत बोले नदी नहीं मैया कहो। बाबाजी विनम्र हैं, उनका घंमड नर्मदा के जल में बह गया है।

अविनाश ने उन्हें सर्दी खांसी-जुकाम की कुछ गोलियां दी। फिर क्या था अविनाश को ग्रामीणों ने डाक्टर साहब समझ अपनी-अपनी बिमारियों के बारे में बताना शुरू कर दिया। घूरपूर का घाट साफ सुथरा है। आश्रम के सेवक गिरी गोस्वामी व उदय पटैल प्रतिदिन घाट की सफाई करते हैं।

भोजनावकाश के बाद हम फिर चल पड़े और नदी के तीरे तीरे एक दूरूह मार्ग पर पहुंच गए। यहां से हम बड़ी कठिनाईयों से निकलने में सफल हुये। पतली पगडंडी, बगल में मिट्टी का ऊंचा लंबा टीला और नीचे नर्मदा का दलदल। पैरों का जरा सा असंतुलन सीधे नीचे नदी में बहा ले जाता। खैर जिसे चंद मिनटों में पार करना था उसे पार करने कोई आधा घंटा लग गया। हम सबने अपना अपना सामान पहले नीचे फेंका फिर पगडंडी पार की और सामने की चढ़ाई पर सामान चढ़ाकर थोड़ी देर सुस्ताने बैठे। आगे मैं, अविनाश और अग्रवाल जी गांव के अपेक्षाकृत सरल मार्ग से पिपरहा गांव पहुंचे और पटवाजी व पाटकर जी कठिन मार्ग से छोटा धुआंधार देखते हुए गांव आ गये। यहां रात संचारेश्वर महादेव मंदिर की कुटी में बिताई।बरगद वृक्ष की छांव तले हनुमान जी व शिव मंदिर है और कुटी में कोई बाबा ने था।  करण सिंह ढीमर ने दरी व भोजन  की व्यवस्था कर दी और हम सबने आलू भटा की सब्जी,  रोटी का भोग लगाया।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 2 ☆ घर/नवगीत ☆ – श्री प्रयास जोशी

श्री प्रयास जोशी

(श्री प्रयास जोशी जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आदरणीय श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स  लिमिटेड भोपाल से सेवानिवृत्त हैं।  आपको वरिष्ठ साहित्यकार  के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल  के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है। 

ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  करेंगे ।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने यात्रा संस्मरण श्री सुरेश पटवा जी की कलम से आप तक पहुंचाई एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक सतत पहुंचा रहे हैं।  हमें प्रसन्नता है कि  श्री प्रयास जोशी जी ने हमारे आग्रह को स्वीकार कर यात्रा  से जुडी अपनी कवितायेँ  हमें,  हमारे  प्रबुद्ध पाठकों  से साझा करने का अवसर दिया है। इस कड़ी में प्रस्तुत है उनकी कविता  “घर/नवगीत”। 

☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 2 – घर/नवगीत ☆

 

मेरा घर तो, कच्चा घर था

यह पक्का घर, मेरा नहीं है..

–मेरा घर तो, नदी किनारे

घने नीम की, छाया में था

जिस में बैठ, परिंदे दिन भर

गाना गाते थे..

–इस घर में वह, छांव कहां है?

लिपा-पुता, आँगन था मेरा

धूप, हवा, पानी की जिसमें

कमी नहीं थी..

मेरा घर तो, फूलों वाला

खुशबू वाला, कच्चा घर था

यह पक्का घर, मेरा नहीं है..

–हंस-हंस कर हम, सुबह-शाम

मिलते थे खुल कर

बिना बात की, बात नहीं थी

मेरे घर में…

मेरा घर तो, कच्चा घर था

यह पक्का घर, मेरा नहीं है

 

(नर्मदा की वैचारिक यात्रा में गरारूघाट पर लिखा गीत)

 

©  श्री प्रयास जोशी

भोपाल, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # आठ ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # आठ  ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

12.11.2019 आज कार्तिक पूर्णिमा है और हम गरारू घाट पर हैं, कहते हैं कि इसी घाट पर गरुड़ ने तपस्या की थी।

सुबह-सुबह उठकर गांव की ओर निकल गये दो पुराने मंदिरों का अवलोकन किया। शिव मंदिर इन्डो परसियन शैली में मकबरानूमा इमारत है। इसे सम्भवतः चौदहवीं पन्द्रहवीं सदी में गौड़ राजाओं ने बनवाया था और बाद में सत्रहवीं शताब्दी में गौड़ नरेश बलवंतसिंह ने इनका जीर्णोद्धार किया। चौकोर गर्भगृह में शिव  पिंडी विराजित है। दूसरा गरुड़ मन्दिर मूर्त्ति विहीन है। यह इन्डो इस्लामिक शैली में बना है। इसका भी जीर्णोद्धार राजा बलवंतसिंह ने कराया था।  हमने, पाटकर जी व अविनाश ने मंदिर में फैले कचरे को साफ करने की एक कोशिश की।

लौटकर आए तो पंडाल में कथा व्यास सुन्हैटी के पं ओम प्रकाश शास्त्री मिल गये। उनसे हमें ज्ञात हुआ कि नर्मदा पुराण कथा सबसे पहले मार्कंडेय ऋषि ने पांडवों को सुनाई थी। गरारु घाट पर कार्तिक पूर्णिमा पर मड़ई मेला भरता है। दुकानदारों के बीच आपस में दुकान की जगह को लेकर वाद विवाद होता है पर शीघ्र  मेल-मिलाप भी हो जाता है। वे सब वर्षों से उसी जगह पर दुकान लगाते हैं। सरस्वती बाई कोरी, जमुना चौधरी  की जनरल स्टोर्स की, तो दशरथ अग्रवाल की मिठाई दुकान है वे कागज में मिठाई देते हैं। अंकित पटवा और अन्य की मनिहारी की दुकान।

आगे बढ़े नर्मदा के तीरे तीरे चलते बम्हौरी गांव पहुंचे। वहां से गांव के अंदर होते हुए दोपहर को केरपानी पुल के पास पहुंचे। केरपानी गांव नर्मदा के उत्तरी तट पर है। दूर से ही एक किले के भग्नावशेष दीखते हैं। यह किला पिठौरा गांव के शासक मंगल सिंह गौड़ ने केरपानी पर आक्रमण उपरांत बनाया था। यहां केरपानी गांव के दो लोग भूपत सेन और कनछेदी लाल नौरिया परिक्रमा उठा रहे हैं। कनछेदी लाल तो चौथी बार परिक्रमा कर रहे हैं और पांचवीं परिक्रमा की आशा करते हैं।

हमने पूरे कर्मकांड को ध्यान से देखा। मुंडन उपरांत गणेश पूजन, नवग्रह पूजन, नर्मदा जल , शंकरजी आदि का पूजन हुआ, नर्मदा को झंडा चढ़ाया गया। मां नर्मदा की आरती गाई “ॐ जय जगदानंदी, मैया जय आनंदकंदी, ब्रह्मा-हरि-हर-शंकर, रेवा हरि हर शंकर, रुद्री पालन्ती।।”  फिर कन्या भोजन हुआ तत्पश्चात  ग्रामीणों के साथ हम सबने दाल, बाटी, भरता, सूजी हलुआ का भोग लगाया। सभी ने दोनों परकम्मावासियों को रुपये नारियल से विदाई दी। दोनों के परिवारों के लोगों ने अश्रुपूरित नेत्रों से विदाई दी। ग्रामीणों ने दोने पत्तल एकत्रित कर उसमें आग लगा दी। नदी को प्रदूषणमुक्त रखने की कोशिश सराहनीय है। यहां प्रभुनारायण गुमास्ता मिले। बताते हैं कि गुमास्ता, लिखा-पढ़ी के काम की एवज,   अंग्रेजी शासन से मिली पदवी है।

यहां से हमारे साथी प्रयास जोशी भोपाल चले गए और हम पांच नदी के तीरे तीरे चलकर समनापुर पहुंचे। कार्तिक पूर्णिमा के स्नान हेतु नरसिंहपुर जिले के विभिन्न स्थानों से लोग आये थे घाट पर भीड़ थी और नदी का प्रवाह धीमा और शांत था। पास ही श्री श्री बाबाश्री जी का आश्रम था। यहां रात्रि विश्राम तय किया। बाबाश्री के सेवक को परिचय देते हुए पटवाजी के मुंह स्टेट बैंक का पदनाम निकल गया। बाबाश्री के सेवक ने फौरन टोका आप मां नर्मदा के परिक्रमावासी हैं और यही आपकी पहचान है।

शाम को निर्विकारेश्वर महादेव की आरती में सम्मिलित होने मंदिर गये तो नर्मदा की कल-कल ध्वनि सुनाई दी। लगा कि मां अपने पुत्रों को सुलाने मधुर कंठ में धीमे-धीमे लोरी सुना रही है। रात कोई नौ बजे सेवक आरती से फुर्सत हुए और फिर हम सबने खिचड़ी का सेवन कर रात्रि विश्राम इसी आश्रम में किया।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 1 ☆ नर्मदा की आवहवा ☆ – श्री प्रयास जोशी

श्री प्रयास जोशी

(श्री प्रयास जोशी जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आदरणीय श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स  लिमिटेड भोपाल से सेवानिवृत्त हैं।  आपको वरिष्ठ साहित्यकार  के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल  के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है। 

ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  करेंगे ।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने यात्रा संस्मरण श्री सुरेश पटवा जी की कलम से आप तक पहुंचाई एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक सतत पहुंचा रहे हैं।  हमें प्रसन्नता है कि  श्री प्रयास जोशी जी ने हमारे आग्रह को स्वीकार कर यात्रा  से जुडी अपनी कवितायेँ  हमें,  हमारे  प्रबुद्ध पाठकों  से साझा करने का अवसर दिया है। इस कड़ी में प्रस्तुत है उनकी कविता  “नर्मदा की आवहवा”। 

☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 1 – नर्मदा की आवहवा ☆

बेटे ने,

सामान उठाते हुये कहा-

पापा! अपनी आदत के बोझ को

थोड़ा कम करिये

—पिता ने, हंसते हुये कहा-

बेटा! समय के उधड़े होने के बावजूद

इस झोले में मुझे

यादों का भार बिल्कुल नहीं लगता…

—मैं, तो सिर्फ इसलिये कह रहा हूँ पापा

कि जब आप पिछली बार आये थे

तो होशंगाबाद, इटारसी की

कितनी सारी सब्जियाँ लाद लाये थे

परेशानी उठाने की कोई

फालतू जरूरत नहीं है पापा

यहां बेंगलौर में,

सब मिलता है

इस बार मम्मी ने कहा-

लेकिन बेटा ! इस बार हम

करेली का गुड़,

नरसिंहपुर की मटर

और

जबलपुर के सिंघाड़े लाये हैं…

—बेटा, हँसा….

— पिता ने कहा-

मैं, क्या यह नहीं जानता कि

दुनिया में हर जगह,

हर चीज मिलती है?

लेकिन इन में नर्मदा का पानी

मिट्टी और आवहवा है

जिसके दम पर तुम

दुनिया भर में उड़ते-फिरते हो,

समझे …

पापा! आप भी बस..

—पापा ने बहू से कहा—

मेरे इस झोले को

संभाल कर रखना, संध्या!

लौटते समय मैं/

इसी झोले में

कावेरी का पानी

मिट्टी और आवहवा लेकर

भोपाल जांउगा मैं…

 

©  श्री प्रयास जोशी

भोपाल, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # सात ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # सात ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

11.11.2019 सुबह-सुबह घुघरी से यात्रा पुनः प्रारंभ हुई। नदी किनारे रास्ता सफर करने लायक न था सो गांव से होकर निकले।

कोई दो किलोमीटर दूर एक गौड़ परिवार के आशियाने में रुके। उसने सीताफल खाने को दिया और भैंस का ताजा दूध पीने को। उनके भोजन में शाकाहार और मांसाहार दोनों हैं। बटेर, खरगोश और मछली भोजन हेतु आसानी से मिल जाते हैं। आगे बढ़े  तो अन्नीलाल लोधी पत्नी व दो पुत्रों के साथ अपने खेत में आलू बोते दिखे।  उन्होंने नर्मदे हर के साथ हमारा स्वागत किया और चाय पिलाई ।

डांगर टीले पार करते हुए महादेव पिपरिया गांव पहुंचे। गांव में नर्मदा तट पर भगवान शंकर की विशालकाय लिंग है और यह  शिव मंदिर इस गांव की पहचान बन गया है।  लोग इसे मोटा महादेव भी कहते हैं। अन्य देवी देवताओं के  भी मंदिर हैं पर वे अपेक्षाकृत नये हैं।

यहां से हमें पुनः नदी के किनारे पर चलने का मौका मिला। उत्तरी तट की ओर एक छोटी पर्वत माला ने हमें आकर्षित किया। ग्रामीणों ने बताया यह झिल्पी ढाना है, भोपाल तक गई है। हमें मैकलसुता के दादा विन्ध्य पर्वत की एक और श्रृंखला के दर्शन हो गये। पौराणिक कथाओं के अनुसार नर्मदा का उद्गम स्थल मैकल, विन्ध्य पर्वत का पुत्र है।  कुछ दूर चले होंगे कि एक अद्भुत चट्टाननुमा आकृति ने आकृष्ट किया। समीप जाकर देखा तो समझ में आया कि यह करोड़ों वर्ष पूर्व किसी प्राकृतिक हलचल का साक्षी वृक्ष का जीवाश्म है।

नदी किनारे खेती-बाड़ी की तैयारियों में अब तेजी दिखने लगी है। जगह जगह किसानों ने तट पर बबूल आदि कंटीले वृक्षों की बारी लगा दी है तो कहीं कहीं बोनी के पहले स्प्रिकंलर से सिंचाई भी  हो रही है। रास्ता फिसलन भरा होने से सम्भल कर चलना पड़ता है। कहीं कहीं छोटे छोटे नाले भी हैं वहां जमीन दलदली है, हमारे एक साथी असावधानी वश ऐसे ही दलदल में फंस गये और किसी तरह बाहर निकलने में सफल हुए।

नदी किनारे चलते चलते-चलते हम करहिया गांव पहुंचे। नदी का तट रेतीला था अतः हम सबने स्नान किया और समीप ही  ग्राम पंचायत द्वारा निर्मित सामुदायिक भवन में विश्राम हेतु व्यवस्था की। गांव का मिडिल स्कूल भी सामने था व स्कूल की शिक्षिका रजनी मेहरा से अपना प्रयोजन बता बच्चों से गांधी चर्चा की इच्छा जताई वे सहर्ष तैयार हो गई। मैंने और प्रयास जोशी ने मोर्चा संभाला बच्चों को गांधी जी की जीवनी और संस्मरण सुनाए। सामने प्राथमिक शाला के बच्चों ने अविनाश को घेर लिया और पढ़ाने का आग्रह किया। बच्चों की बात भला कौन टालता है। हमने स्मार्ट कक्षा का टीव्ही देखा। कमलेश पटैल, शिक्षक ने बताया कि बच्चे स्कूल आते नहीं हैं और वे स्मार्ट टीवी से कार्टून आदि दिखाकर बच्चों को स्कूल आने आकर्षित करते हैं।

मेरे पास गांधी जी एक पुस्तक ‘ रचनात्मक कार्यक्रम’ बची थी वह मैंने कमलेश पटेल को दे दी।  उधर सामुदायिक भवन में हमें मुन्नालाल लोधी मिल गये, उन्होंने दोपहर के भोजन दाल बाटी की व्यवस्था कर दी। हमने कुछ देर आराम किया और नदी किनारे चलते चलते गरारु घाट पहुंचे। यहां तट पर नरेश लोधी मिल गये। वे गांव में नर्मदा पुराण कथा के आयोजन में शामिल हैं। हमें आग्रह पूर्वक चांदनी पंडाल के नीचे रात्रि विश्राम हेतु रोक लिया। बिछाने को गद्दे लेकर हम लेट गये। जब करहिया में दाल बाटी बनी तो अविनाश के पास घी था उसे गुड़ में मिलाकर चूरमा बना लिया था। यहीं चूरमा हमारा डिनर था ।

गरारू तट से नर्मदा की कल-कल करती प्रवाहमान थी, कल-कल की यह ध्वनि केवल घाट पर ही सुनाई देती थी। उधर आकाश में चौदहवीं का चांद अपनी छटा बिखेरते हुए दर्शन दे रहा था। हमने कोई एक बजे रात उसे अपने कैमरे में कैद किया।आज परिक्रमा में तट पर सोने का आनंद लिया।

 

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # छह ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # छह ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

10.11.2019 सुबह अविनाश भाई दवे जबलपूर से चलकर नरसिंहपुर होते हुए सांकल आने वाले थे, अतः हम सभी साहू जी से विदा लेकर बस स्टैंड आ गये गुड़ की जलेबी और समोसे का नाश्ता किया और उस चबूतरे पर बैठ गए जहां कल सायंकाल ग्रामीण जन चौपड़ खेल रहे थे।

पैंट शर्ट धारी परिक्रमावासियों के विषय में कल से ही गांव में चर्चा थी अतः हमें देखते ही ग्रामीण एकत्रित हो गए। पटवाजी ने पुनः महाभारत की कथा सुनाना शुरू कर दिया। यह जोशी जी को पसंद नहीं आया और उन्होंने धीरे से इसे रोजगारपरक शिक्षण-प्रशिक्षण की दिशा दी, गांधी चर्चा भी हुई और कुछ प्रतीकात्मक सफाई भी। बस स्टैंड के दुकानदारों ने कचरा संग्रहण हेतु डब्बे रखें हैं पर इसका सार्वजनिक डिस्पोजल नहीं होता है अतः यह कचरा दुकानों के पीछे फेंक दिया जाता है।

मेरी इच्छा हुई कि सरपंच से इस संबंध में बात करनी चाहिए पर उनसे मुलाकात असंभव ही रही। यहां संतोष सेन मिले, वे पेशे से नाई हैं, और दंबगों से उन्होंने बैर लिया, जिससे रुष्ट हो दंबगों ने उन पर तेजाब फेंक दिया था। लेकिन इस दुर्घटना के बाद वहां दंबगई खत्म हुई और लोगों की दुकानें खुली।

धानू सोनी मिले। वे परिक्रमा करने वालों को चाय नाश्ता उपलब्ध कराते हैं। हमें भी उन्होंने चाय पिलाई पर मूल्य न लिया। हमने उनकी पुत्री के हाथ कुछ रुपये रख विदा ली। यहीं सिलावट परिवार से मुलाकात हो गई,  उन्होंने मुआर घाट से परिक्रमा उठाई थी। मैंने उनसे पुश्तैनी पेशा के बारे में पूंछा, वे न बता सकें, खेती-बाड़ी करते हैं, ऐसा बताया। शरद तिवारी, सोशल वर्कर हैं, नर्मदा में प्रदूषण, अतिक्रमण, तराई में फसल आदि को लेकर चिंतित दिखाई दिये।

कोई साढ़े नौ बजे अविनाश की बस आ गई और हम नहर मार्ग से अगले पड़ाव की ओर चल पड़े। थोड़ी दूर चले होंगे कि राजाराम पटैल मिल गये, उन्होंने प्रेम के साथ अपने खेत का गन्ना हमें चूसने को दिया। हम लोगों में से केवल पटवाजी ही गन्ने को दांत से छीलकर चूस सके बाकी ने उसे पहले हंसिया से चिरवाया फिर चूसा।  रास्ते भर गन्ने के खेत और बेर की झाड़ियां मिली। पके मीठे बेर खूब तोड़ कर खाते हुए हम आगे बढे।

गुढवारा के रास्ते में हमें आठवीं फेल कैलाश लोधी मिल गये। वे बड़े प्रेम से हम सबको घर ले आए चाय पिलाई और अपने पुत्र रंजीत लोधी से मिलवाया। रंजीत ने इंदौर के निजी कालेज से बी ई किया है और पीएससी की तैयारियों में लगे हैं। कहते हैं कि जनता की सेवा करने शासकीय सेवा में जाना चाहते हैं। पटवाजी ने उन्हें अपनी पुस्तक गुलामी की कहानी से कुछ उद्धरण सुनाये।

गांव से निकलकर हम पुनः नर्मदा के किनारे आ गये। तट पर रेत पत्थर न थे सो नहाया नहीं और आगे बढ़ चले।  कुछ दूर चले होंगे कि नर्मदा की कल-कल ध्वनि सुनाई देने लगी। आश्चर्य हुआ, झांसी घाट से अभी तक हमने शांत होकर बहती नर्मदा के दर्शन किये थे, यहां नर्मदा संगीतमय लहरियों के साथ बह रही थी। यह घुघरी घाट है। यहां नर्मदा पत्थरों के बीच कोलाहल करती प्रवाहमान है। उत्तरी तट की ओर से विन्ध्य पर्वत माला की हीरापुर श्रृंखला के दर्शन होते हैं। तट पर हम सबने विश्राम किया और नहाया। कल-कल ध्वनि इतनी मधुर थी कि उठने का मन ही न हुआ।

हम सबने अविनाश भाई के द्वारा लाई गई मेथी की भाजी की पूरियां, आवलें के अचार और घी के साथ खाई और कुछ विश्राम किया। अविनाश स्वादिष्ट भोजन के प्रेमी हैं। यह गुण उन्हें उनके माता व पिता से विरासत में मिला है। बाबूजी बताते थे कि हमारे फूफा, अविनाश के पिता, स्वादिष्ट खेडावाडी व्यंजनों के बड़े प्रेमी थे। अविनाश के बैग का एक खंड खाद्य सामग्री से भरा है। उसके पास चाय काफी से लेकर पोहा,नमकीन, अचार, मैगी मसाला लड्डू सब मिल जायेगा। हमने घुघरी घाट में नर्मदा के साथ कोई दो घंटे बिताए और फिर  रात्रि विश्राम के लिए ठौर ढूंढने घुघरी गांव की ओर चल पड़े। यहां चढ़ाई सांकल घाट की तुलना में कम थी।

एक जगह टीलों के कटाव की मैं फोटो खींचने लगा। इतने में एक गौड़ अधेड़ दिखा चर्चा चली कि पेड़ लगे होते तो यह टीले ऐसे न कटते। उसने बताया कि यह नदी की बाढ का नहीं मनुष्य की लालच का फल है। नहर में मिट्टी भराई कार्य हेतु जेसीबी मशीनों के तांडव का नतीजा है। दुःखी मन ने सोचा कि हम ईशोपनिषद के श्लोकों को भी भूल गये हैं। गांधीजी ने हिंद स्वराज में मशीनों का उपयोग सोच समझकर करने कहा था। उनकी चेतावनी हमने नहीं मानी और यह  अब पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रही है। थोड़ी दूर पर बम-बम बाबाजी द्वारा संचालित श्री राधाकृष्ण मंदिर धर्मशाला है। बाबा की उम्र अस्सी के आसपास है और परिक्रमा पश्चात घर-बार छोड़कर यहां बस गये हैं। परिजन व पत्नी अक्सर मिलने आते रहते हैं। वहीं रात कटी बाबा ने भोजन व्यवस्था की और हम लोगों ने मोटे-मोटे टिक्कड मूंग की दाल के साथ उदरस्त किये।

आश्रय स्थल  के सामने स्थित विशालकाय बरगद वृक्ष देखा। पेड़ काफी पुराना है और लगभग सात आठ स्तंभ हैं। नर्मदा तट के निवासियों ने जगह जगह बट, पीपल, इमली आदि के वृक्ष लगाए हैं इससे कटाव रूकता है। पर यह वृक्षारोपण दो पीढ़ियों के पहले का है अब तो युग अपना और केवल अपना भला सोचने का है। परहित सरिस धर्म नहिं भाई का जमाना हम बहुत पीछे छोड़ आए हैं।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # पाँच ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # पाँच ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

09.11.2019 कल शाम को लगभग पांच सौ मीटर की चढ़ाई चढ़कर जब ब्रह्म कुंड पहुंचे तो खाने और सोने के अलावा कुछ न सूझा।

सुबह उठकर एक नजर दौड़ाई ।  सामने विशाल बरगद का वृक्ष आकर्षित कर रहा था तो कुटी के आसपास पालिथीन की थैलियां,  गिलास और थर्मोकोल की खाने की प्लेटों का अंबार लगा था। मैंने और मुंशीलाल पाटकर ने  सफाई अभियान शुरू किया तो आधे घंटे में ही आश्रम के आसपास से गंदगी साफ हो गई। निवृत हुए ही थे कि मनोज पाराशर दूध लेकर आ गये हम सबने  चाय पी और वहां से एक किलोमीटर चलकर सिद्ध घाट पहुंचे, रमणीय स्थल है और नर्मदा नदी काफी गहरी है व बहाव कुछ इस तरह का है कि आकृति गोलाकार होकर कुंड का आभास देती है।

यही स्थल ब्रह्म कुंड है जहां देवासुर संग्राम के पहले देवताओं ने तपस्या की थी। चारों ओर सघन वन हैं और उनसे मंद मंद बहती सुगन्धित वायु मन को शांति देती है। यहां प्राचीन शिव मंदिर और राम जानकी मंदिर है। मूर्तिया आकर्षक हैं। पुजारी के परिवार ने कल एकादशी का पूजन किया था और पूजा स्थल को बड़ी सुंदरता से सजाया था। आगे नदी के तीरे तीरे मार्ग कठिन था तो गांव से बाहर निकल नहर के किनारे किनारे आगे बढ़े। मार्ग संगम पर दाहिने हाथ की ओर मुड़ गये और बुध गांव से होते हुए घाट  पहुंचे।

बुध घाट के बारे में ख्याति है बुध ग्रह ने यहां तपस्या की थी। यहां एक आश्रम काफी ऊंचाई पर स्थित है और चढ़ाई कठिन। बाबा ने किसी भी प्रकार का सहयोग न किया। बाबा आश्रम में निर्माण कार्य की माया में लिप्त थे। हमने नहाने की इच्छा जताते हुए अनुमति मांगी तो अपने सेवक को बोलकर पंप बंद करा दिया। चाय बनाई पर केवल अग्रवालजी को दी। भोजन के लिए तो साफ मना कर दिया।

दुःखी हो हम आश्रम से नीचे उतरे और कोई तीन बजे नदी के किनारे चलते चलते सांकल घाट पहुंचे। सांकल गांव दक्षिणी तट पर है और उत्तरी तट पर शंकराचार्य की तपोस्थली की साक्षी एक गुफा है।  शायद यहीं पद्मासन में विराजमान शंकराचार्य ने नर्मदाष्टक की रचना की होगी।सांकल गांव भी काफी ऊंचाई पर है और कोई एक किलोमीटर की कठिन चढ़ाई चढ़कर, पीपल वृक्ष के नीचे स्थित शिव व शनि मंदिर के दर्शन करते हुए हम और पटवाजी साहू जी की धर्मशाला में विश्राम हेतु पहुंच गये। स्नानादि से निवृत्त हुए ही थे कि शेष साथी भी धर्मशाला पहुंच गये। हमने दोपहर को लौकी की सब्जी और रोटी  आम के अचार के साथ खाई। पहले तो साहू परिवार की महिलाओं ने पका पकाया भोजन देने से मना कर दिया। यहां तक कि अस्सी वर्षीय स्वसुर सिब्बू साहू के आदेश को भी न माना पर जब हमें अनाड़ीपन के साथ सब्जी काटते देखा तो वे भोजन पकाने तैयार हो गई। भोजन बनने में देरी थी तो मैं गांव का चक्कर लगाने निकल पड़ा।

स्कूल वगैरह बंद थे पता चला कि अयोध्या के मामले फैसला आ गया है। हम चिंता ग्रस्त हो गये। घर पर फोन से संपर्क किया और राजी खुशी के समाचार प्राप्त किये।

यहीं बरगद के पेड़ के नीचे मेरी मुलाकात राजाराम पटैल से हो गई। मैंने उन्हें नर्मदा यात्रा के दौरान हम लोगों के सामाजिक सरोकारों के विषय में बताया और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तथा सरपंच से मुलाकात की इच्छा जताई। सरपंच से तो मुलाकात न हो सकी पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सावित्री मेहरा से मुलाकात हो गई। मैंने उन्हें श्री ए डी खत्री द्वारा रचित बाल कविताओं की पुस्तक ‘अनय हमारा’ भेंट की और अनुरोध किया कि छोटे छोटे बच्चों को इससे कविताएं सुनाकर पढायें। सावित्री ने एक दो कविताएं बच्चों को सुनाई जिसे सुनकर बच्चे प्रसन्न हो गए। मैंने श्री खत्री से तुरंत फोन पर बात की व उनसे कुछ कहने का आग्रह किया। श्री खत्री ने मुझ अपरिचित का यह अनुरोध तत्काल स्वीकार कर लिया।

रात्रि में हमने दूध पिया कुछ नवयुवकों के साथ पढ़ाई लिखाई के अपने व उनके अनुभव साझा किये और साहू परिवार को पटवाजी ने रामचरित मानस की कथा सुनाई। सिब्बू साहूजी की धर्मशाला, जहां हम रुके थे, वह  उनके बड़े भाई कनछेदी साहू ने सन् 2000 में बनवाई थी। धर्मशाला में पानी की व्यवस्था नहीं है कारण साहू परिवार के अनेक प्रयासों के बाद भी  गांव के लोगों ने वहां हैंडपंप न लगने दिया। रात अच्छी कटी पहली बार गेंहू  से भरे बोरों के बीच सोते हुये चूहों और सांपों का डर न लगा।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

Please share your Post !

Shares