हिंदी साहित्य – कविता ☆ || समय || ☆ डॉ जसवीर त्यागी ☆

डॉ जसवीर त्यागी

(ई-अभिव्यक्ति में  प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ जसवीर त्यागी जी का स्वागत। प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ,आजकल, कादम्बिनी,जनसत्ता,हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा,कृति ओर,वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।  अभी भी दुनिया में- काव्य-संग्रह। कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी,नेपाली भाषाओं में अनुवाद। सचेतक और डॉ. रामविलास शर्मा (तीन खण्ड)का संकलन-संपादन। रामविलास शर्मा के पत्र- का डॉ विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन। सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।)

☆ कविता ☆ || समय || डॉ जसवीर त्यागी 

पातहीन पेड़

हरा हो उठता है एक दिन

 

सूखी नदी में

चमकने लगता है जल

 

भटके हुए राहगीर को

मिल जाती है मंजिल

 

सुनसान रास्तों पर

बसने लगती है आबादी धीरे-धीरे

 

समय आने पर

बंजर पड़े खेतों में

मुस्कुराने लगते हैं अंकुर

 

अंधेरे घर में

जगमगाता है दीया किसी रोज

 

असंभव और निराशा शब्दों में

छुपे होते हैं संभव और आशा

 

समय एक जैसा रहता नहीं सदा

करवट बदलता है

नींद से जागता है वह भी एक दिन।

©  डॉ जसवीर त्यागी  

सम्प्रति: प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015

संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018, मोबाइल:9818389571, ईमेल: [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 234 – नौ दोहा दीप ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – हे नारी!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 234 ☆

☆ नौ दोहा दीप  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

दिन की देहरी पर खड़ी, संध्या ले शशि-दीप

गगन सिंधु मोती अगिन, तारे रजनी सीप

*

दीप जला त्राटक करें, पाएँ आत्म-प्रकाश

तारक अनगिन धरा को, उतर करें आकाश

*

दीप जलाकर कीजिए, हाथ जोड़ नत माथ

दसों दिशा की आरती, भाग्य देव हों साथ

*

जीवन ज्योतिर्मय करे, दीपक बाती ज्योत

आशंका तूफ़ान पर, जीते आशा पोत

*

नौ-नौ की नव माल से, कोरोना को मार

नौ का दीपक करेगा, तम-सागर को पार

*

नौ नौ नौ की ज्योति से, अन्धकार को भेद

हँसे ठठा भारत करे, चीनी झालर खेद

*

आत्म दीप सब बालिये, नहीं रहें मतभेद

अतिरेकी हों अल्पमत, बहुमत में श्रम – स्वेद

*

तन माटी माटी दिया, लौ – आत्मा दो ज्योत

द्वैत मिटा अद्वैत वर, रवि सम हो खद्योत

*

जन-मन वरण प्रकाश का, करे तिमिर को जीत

वंदन भारत-भारती कहे, बढ़े तब प्रीत

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ युद्ध, सैनिक और हम… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ युद्ध, सैनिक और हम… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

इतिहास में

युद्ध होते थे

युद्ध हो रहे हैं

युद्ध होते रहेंगे

 

प्रतिशोध वर्चस्व द्वेष और

शान्ति समाधान के नाम पर

रक्त की नदियां बहती रहेंगी

दिवंगत/दिव्यांग हुये

 फौजियों के घर पर

पसरा अकाल सन्नाटा

दर्द और बेबसी 

 बाँटेगा  कौन?

 

गर्व देशभक्ति एवं झंडे

लहराने का जुनून

दिखाते हुये लोग

 

लाल कालीन पर

चलनेवाले

ए सी कक्ष से निर्देश देने वाले

नाम की बाजी

मार ले जाते हैं

तब

संख्या बन जाते हैं फौजी !

 

दुनिया में कुछ भी

एकाकी नहीं है

जंग के समानान्तर चलती हैं

कई बेगुनाह पीढ़ियों की

तबाही

यह श्रृंखला जीत के

नशे में चूर

ब्रह्माण्ड में बहुत दूर

हल्की सी झिलमिल

बिखेरते तारे की तरह

नजर से  ओझल ही

रही आती है।

 

हैरानी है

न आज तक

युद्ध रोक पाये बुद्ध

और न

बुद्ध को रोक पाया

युद्ध !!

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अभिमन्यु ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अभिमन्यु ? ?

घूमता रहा ताउम्र

अपने ही घेरों में,

घुमक्कड़ी ऐसी

कि भुलभुलैया का

ओर-छोर

पता होने पर भी

अभिमन्यु होने का

भ्रम पाले रहा,

माँ से सच कहा था

उस ज्योतिषी ने-

इसके पैर में चक्कर है..!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 159 ☆ गीत – ।। वक्त बहुत बलवान सही वक्त पर जवाब देता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 159 ☆

☆ गीत – ।। वक्त बहुत बलवान सही वक्त पर जवाब देता है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

वक्त बहुत बलवान सही वक्त पर जवाब देता है।

समय जब भी जवाब देता बस  लाजवाब ही देता है।।

****

हमेशा ही वक्त से डरना  नहीं मजबूरी    होता है।

समयउपयोग भरपूरी करना बहुत जरूरी होता है।।

बुद्धि विवेक कर्म सेआदमी हल कर सवाल लेता है।

वक्त बहुत बलवान सही वक्त पर जवाब देता है।।

****

वक्त से बैर का मतलब सफलता से ही दूरी होती है।

समय का सम्मान नहीं करना तो मगरूरी होती है।।

वक्त जब अपने पर आता तो जवाब नायाब देता है।

वक्त बहुत बलवान सही वक्त पर जवाब देता है।।

****

समय के साथ कदम मिला चलो तो मंजिल मिलती है।

समय की कद्र वालों की जिंदगी फूल सी खिलती है।।

समय पर करते काम वक्त उन्हें हजारों ख्वाब देता है।

वक्त बहुत बलवान सही वक्त पर जवाब देता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #224 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – हमारा देश… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – हमारा देश..। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 224

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – हमारा देश…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

जग के सब देशों से न्यारा प्यारा भारत देश हमारा

अपने में अपने ढंग का है इसका हर एक अंचल प्यारा

*

उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम दूर-दूर इसकी सीमायें

प्रकृति प्रेम करती है इससे हरती सब संकट

*

पर्वतराज हिमाचल रक्षक सागर करते हैं रखवाली

नियमित सब ऋतुएँ आकर के भर जाती हम सबकी थाली

*

खेतों में कई अन्न उपजते, कई सरस फल मीठे होते

सघन वनों में वृक्ष अनेको शहद-चिरोंजी, जिनसे सजते

*

नदियाँ देती जल अमृत सा, खदानें देती संपत्ति सोना

सुन्दरता से आकर्षक है इसका हरा-भरा हर कोना

*

हमें गर्व इस सुखद देश पर, सत्य प्रेम के हम अनुचर

ईश्वर नित्य सुबुद्धि हमें दें, बनें देशहित हम सब रहबर।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #48 – नवगीत – ललकार… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम प्रेरक गीतललकार

? रचना संसार # 48 – गीत – ललकार…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

दमन करें रिपुओं का हरदम ,

मान मर्द कर ललकारें।

घर में बैठे जयचंदों को ,

निष्कासित कर दुत्कारें।।

 *

वीर शिवा के हम हैं वशंज,

फैला तिमिर हटाना है।

विपदाओं को दूर भगाकर,

संकट हमें मिटाना है।।

तोड़ धर्म की सब दीवारें,

रूठों को चल पुचकारें।

 *

दमन करें रिपुओं का हरदम,

मान मर्द कर ललकारें।।

 **

राग-द्वेष या भेदभाव हो,

हिय से दूर भगाना है।

समरसता का दीप जला ,जग,

ज्योतिर्मान बनाना है।।

संयम से निज को विजित करो ,

होगीं फिर तो जयकारें।

 *

दमन करें रिपुओं का हरदम,

मान मर्द कर ललकारें।।

 **

चारित्रिक उत्थान जगत में ,

राम-राज्य ले आएगा।।

स्वर्णिम आभा नव प्रभात की,

व्योम अमिय बरसाएगा।

सकल विश्व में गूँजेंगी तब

सुख की निशदिन किलकारें।

 *

दमन करें रिपुओं का हरदम,

मान मर्द कर ललकारें।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अस्तित्व ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अस्तित्व ? ?

पहाड़ की ऊँची चोटियों के बीच

अपने कद को बेहद छोटा पाया,

पलट कर देखा,

काफ़ी नीचे सड़क पर

कुछ बिंदुओं को हिलते डुलते पाया,

ये वही राहगीर थे,

जिन्हें मैं पीछे छोड़ आया था,

ऊँचाई पर हूँ, ऊँचा हूँ,

सोचकर मन भरमाया,

एकाएक चोटियों से साक्षात्कार हुआ,

भीतर और बाहर एकाकार हुआ,

ऊँचाई पर पहुँच कर भी,

छोटापन नहीं छूटा

तो फिर क्या छूटा?

शिखर पर आकर भी

खुद को नहीं जीता

तो फिर क्या जीता?

पर्वतों के साये में,

आसमान के नीचे,

मन बौनापन अनुभव कर रहा था,

पर अब मेरा कद

चोटियों को छू रहा था..!

?

 

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #275 ☆ भावना के दोहे – प्रतिशोध ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – प्रतिशोध)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 275 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – प्रतिशोध ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

आतंकी की दुष्टता, हमने दिया जवाब।

हिंदुस्तानी फौज ने, जमकर लिया हिसाब।।🇮🇳

 *

ठान लिया है पाकियो, करना है संहार।

मातृ शक्ति को नमन है, रोका जल संचार।।🇮🇳

 *

भारत अब तो कर रहा, हर आतंकी चूर।

आँसू जिनके बह रहे, क्रोधित है सिन्दूर।।🇮🇳

 *

धधक रहा हर साँस में, लक्ष्य सकल प्रतिशोध।

घर में घुसकर मारिए, झलक रहा है क्रोध।।🇮🇳

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #257 ☆ संतोष के दोहे – नीति संबंधी ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  संतोष के दोहे – नीति संबंधी  आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 257 ☆

☆ संतोष के दोहे – नीति संबंधी ☆ श्री संतोष नेमा ☆

साथ कभी जाता नहीं, कोई भी सामान

याद रहे बस कर्म से, था कैसा इंसान

*

मैं मेरा के फेर में, उम्र गई सब बीत

काम न आया जरा कुछ, समझो मेरे मीत

*

पैसों का चक्कर बुरा, जिसका कभी न अंत

रख यह भौतिक सम्पदा, ले न गए धनवंत

*

खुलते कभी न भोग से, यह मोक्ष के द्वार

नेकी से सुख सम्पदा, जिससे सुख संसार

*

सुख शांति उनको मिले, जो करते उपकार

बिन नेकी यह जिंदगी, होती है बेकार

*

कलियुग में जो मानते, मात-पिता को भार

कैसी बिगड़ी सोच यह, सुन मेरे करतार

*

लाज – शर्म सब छोड़ कर, जिनके बिगड़े बोल

समय सीख देता उन्हें, देता आँखें खोल

*

क्रोध कभी मत कीजिए, लाता यह प्रतिशोध

सूझ -बूझ से हम करें, संयम संग विरोध

*

होते हैं घातक बहुत, क्रोध जनित परिणाम

क्रोध कभी मत पालिए, अंत रचे संग्राम

*

रिश्तों को भी फूँकती, तेज क्रोध की आग

जीवन में खलते सदा, इन जख्मों के दाग

*

तुलसी बाबा कह गए, क्रोध पाप का मूल

कहता है संतोष यह, क्रोध चुभे ज्यों शूल

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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