हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 79 ☆ धूप स्वेटर पहन कर आई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “धूप स्वेटर पहन कर आई…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 79 ☆ धूप स्वेटर पहन कर आई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

हवाओं में

घुल रही ठिठुरन

धूप स्वेटर पहनकर आई।

 

ओस ने गीला किया

लो फूलों का तन

कँपकँपी के पाँव ने

जकड़ा है तन मन

 

शिराओं में

दौड़ती सिहरन

धुँध कुहरे को पकड़ लाई।

 

खेत में फैली ख़ुशी

अँकुराए हैं दिन

मेंड़ कहती कान में

धरती बनी दुल्हन

 

मचानों पर

बैठ अपनापन

फूँकता है सगुन शहनाई।

 

नदी बैठी घाट पर

सुड़कती है चाय

रात लेकर चाँद को

कहे टाटा बाय

 

कुनकुनी सी

सूरज की किरन

चुभ रही काँटे सी पुरवाई।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

११.११.२४

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 83 ☆ अक्लमंदी नहीं ये आपकी है नादानी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “अक्लमंदी नहीं ये आपकी है नादानी“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 83 ☆

✍ अक्लमंदी नहीं ये आपकी है नादानी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

ज़ख्म दिल का ये हरा रोज़ कर दिया जाए

और ऊपर से नमक इसमें भर दिया जाए

 *

फिक्र क्यों करते हो जो बेचना उसे बेचो

इसका इल्जाम विदेशों पे धर दिया जाए

 *

अक्लमंदी नहीं ये आपकी है नादानी

जो मुसीबत में स्वयं अपना सर दिया जाए

 *

मुफ़लिसो को दो निवाले छुपाने सर को घर

मेरी पूजा का शरफ़ कुछ अगर दिया जाए

 *

कोई मायूस न हो कर रहा है जो मेहनत

काम का उसके मुताबिक समर दिया जाए

 *

माँगते वक़्त रखो ध्यान माँग जो मुमकिन

किस तरह हाथ में बोलो क़मर दिया जाए

 *

काटना चैन से तुमको अगर बुढ़ापे  को

खेत घर नाम न बच्चों के कर दिया जाए

 *

है अरुण तंग लगा योनियों के अब फेरे

हो करम तेरा जो आसां सफ़र दिया जाए

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 79 – उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 79 – उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

जुर्म है मंजूर मुझको आशिकाना दोस्तो 

उनकी आँखों का मिले यदि कैदखाना दोस्तो

 *

छोड़ना मत, तुम मुहब्बत में वफा की राह को

चाहे, दुनिया का मिले, कोई खजाना दोस्तो

 *

गहरी, अमृत की लबालब झील-सी आँखें हैं वो 

आशिकी की आग, उनमें है बुझाना दोस्तो

 *

कौन बच पाया है, उन कातिल निगाहों से भला 

कब गया है, हुस्न का खाली निशाना दोस्तो

 *

जान देने को भी, मैं आ जाऊँगा आवाज पर 

वार मुझ पर वो करें यदि शायराना दोस्तो

 *

जश्न, रूमानी गजल के, हों हमारी मौत पर 

चाहता हूँ, मौत का जलसा मनाना दोस्तो

तुम जहाँ चाहो, वहाँ महबूब को आना पड़े 

पर इबादत की तरह उसको बुलाना दोस्तो

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 152 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 152 – मनोज के दोहे ☆

रहा जगत में सत्य ही, हुआ झूठ का अंत।

वेद पुराणों में लिखा, कहते ऋषि मुनि संत।।

 *

जीवन अद्भुत मंच है, भिन्न-भिन्न हैं पात्र।

अभिनय अपना कर रहे, बने सभी हैं छात्र।।

 *

कठपुतली मानव हुआ, डोर ईश के हाथ।

कब रूठे सँग छोड़ दे, यह नश्वर तन साथ।।

 *

जीवन तक ही साथ है, बँधी स्वाँस की डोर।

जितना जीभर जी सको, होती नित है भोर।।

 *

मन बहलाने के लिए, दिया खिलौना साथ।

टूटे फिर हम रो दिए, बैठ पकड़ कर माथ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समानता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – समानता ? ?

?

यह अनपढ़,

वह कथित लिखी-पढ़ी,

यह निरक्षर,

वह अक्षरों की समझवाली,

यह नीचे ज़मीन पर,

वह बैठी कुर्सी पर,

यह एक स्त्री,

वह एक स्त्री,

इसकी आँखों से

शराबी पति से मिली पिटाई

नदिया-सी प्रवाहित होती,

उसकी आँखों में

‘एटिकेटेड’ पति की

अपमानस्पद झिड़की,

की बूँद-बूँद एकत्रित होती,

दोनों ने एक दूसरे को देखा,

संवेदना को

एक ही धरातल पर अनुभव किया,

बीज-सा पनपा मौन का अनुवाद

और अब, उनके बीच वटवृक्ष-सा

फैला पड़ा था संवाद..!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘उत्सवधर्मी’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Celebrant…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poetry “उत्सवधर्मी.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – उत्सवधर्मी  ? ?

?

जीवन की अंतिम घड़ी

श्यामल छाया सम्मुख खड़ी,

चित्र चक्र-सा घूमा,

क्षण भर विहँसा,

छाया के संग चल पड़ा,

छाया विस्मित!

जीवन से वितृष्णा

या जीवन से प्रीत?

न वितृष्णा न प्रीत,

ब्रह्मांड की सनातन रीत,

अंत नहीं तो आरंभ नहीं,

गमन नहीं तो आगमन नहीं,

मैं आदि सूत्रधार हूँ,

आत्मा का भौतिक आकार हूँ,

सृष्टि के मंच का रंगकर्मी हूँ,

सृजन का सनातन उत्सवधर्मी हूँ!

?

© संजय भारद्वाज  

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Nirvana ~??

With an immense thirst to know the infinite,

I kept crossing doors after doors,

many doors,

infinite doors,

Finally reached Muktidwar, the door of salvation…,

I cannot see the fruits of thirst disappearing,

Driven by the eternal inquisitiveness, I turned back,

I don’t want the liberation,

I want contentment.

I want creation, not the Nirvana!

??

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 214 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 214 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

श्यामकर्ण अश्व

और माधवी

सभी रख दिये

एक तुला पर ।

धन्य कहूँ या धिक्कार ।

ऋषिवर्य !

जानता हूँ आपकी शक्ति, सामर्थ्य

और

तपबल ।

किन्तु

समझ नहीं पाया

श्याम कर्ण अश्वों की

गुरु दक्षिणा का अर्थ |

क्या कहीं दबी छिपी थी

रजोगुणी राजलिप्सा ।

माना

शिष्य के

हठाग्रह ने

कर दिया था

कुपित

किन्तु

आपकी क्रोधाग्नि ने

क्या क्या किया

भस्म ?

सोचा आपने ?

शिष्यत्व की शुचिता,

पिता की मर्यादा

नरेशों की प्रतिष्ठा ।

किलकारियाँ

ममतालुस्पर्श

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 214 – “पत्तों की ठहरी आवाज…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत पत्तों की ठहरी आवाज...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 214 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “पत्तों की ठहरी आवाज...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

सिमट गये

सारे अहसास

लिपट गये

तने से सायास

बिम्ब नदी की

उदास लहरों के ।

 

हरियाली

जैसे हो सर्द

बिखरी है

पेडों के गिर्द

टहनियाँ डालियों

के पास

बुनती हैं

ढेरो प्रयास

गाँवो से लौट

चुके शहरों के ।

 

पत्तों की

ठहरी आवाज

खोज रही

जंगल का राज

गायन करती

हवा लगती है

गाती है द्रुत

में खम्माज

जूड़े में बँधे हुये

गजरों के ।

 

बगुलों की

भागती कतार

लगती है जैसे

सरकार किसी

नये शाश्वत

अभियान पर

जता रही

सबका आभार

लोकतंत्र के

सुसुप्त बहरों के ।

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

17-11-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – उत्सवधर्मी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – उत्सवधर्मी ? ?

?

जीवन की अंतिम घड़ी

श्यामल छाया सम्मुख खड़ी,

चित्र चक्र-सा घूमा,

क्षण भर विहँसा,

छाया के संग चल पड़ा,

छाया विस्मित!

जीवन से वितृष्णा

या जीवन से प्रीत?

न वितृष्णा न प्रीत,

ब्रह्मांड की सनातन रीत,

अंत नहीं तो आरंभ नहीं,

गमन नहीं तो आगमन नहीं,

मैं आदि सूत्रधार हूँ,

आत्मा का भौतिक आकार हूँ,

सृष्टि के मंच का रंगकर्मी हूँ,

सृजन का सनातन उत्सवधर्मी हूँ!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ कविता – देव उठनी एकादशी पर मेरी कविता… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता देव उठनी एकादशी पर मेरी कविता…।)

☆ कविता – देव उठनी एकादशी पर मेरी कविता… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

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देव उठो, अब उठ जाओ,

सोते क्यों हो बतलाओ,

सोने से तुम्हारे, इस जग में,

जाने क्या क्या हो जाता है,

हो जाते त्रस्त, तुम्हारे जन,

अत्याचार बहुत बढ़ जाता है,

कर्म तुम्हीं ने सिखलाया,

कर्म क्षेत्र भी बतलाओ,

देव उठो, अब उठ जाओ,

सोते क्यों हो बतलाओ,

स्वागत अभिनंदन, बहुत हुआ,

अब धरणी की बात करो,

तम और कोहरा छाया है,

प्रकाश पुंज से साफ करो,

गीता का तुमने ज्ञान दिया था,

फिर से उठकर दोहराओ,

देव उठो, अब उठ जाओ,

सोते क्यों हो बतलाओ,

जन जन का आभास तुम्हीं हो,

इस जग का विश्वास तुम्ही हो,

नफरत, हिंसा, मिट जाएगी,

इस श्रद्धा का एहसास तुम्हीं हो,

समय नहीं है, सोने का,

लोगों को जगाने आ जाओ,

देव उठो, अब उठ जाओ,

सोते क्यों हो बतलाओ.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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