हिन्दी साहित्य – कविता ☆ वंदे मातरम्,वंदे मातरम्…. ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘वंदे मातरम्,वंदे मातरम्….’।)

☆ कविता – वंदे मातरम्,वंदे मातरम्…. ☆

सिर पर ताज हिमालय का है,

 सागर चरण पखारता,

गंगा यमुना की बाहों की,

 अंबर चमक निहारता,

 देश के हर कोने से उठता,

 हर स्वर यही पुकारता,

 वंदे मातरम्,वंदे मातरम्

 

 राम कृष्ण की भूमि है ये,

इस मिट्टी की शान है,

सभी देवता गोद में खेले,

 भारत भूमि महान है,

एक बंधन में हम सब आएं

एक ही सुर में मिलकर गाएं,

वंदे मातरम्,वंदे मातरम्

 

आओ मिलकर शपथ उठाएं,

भारत मां की आन की,

कभी शान ना झुकने पाए,

भारत मां की शान की,

भारत मां का दर्शन पाएं

सभी देवता सस्वर गाएं,

वंदे मातरम्,वंदे मातरम्

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 179 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 179 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 179) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 179 ?

☆☆☆☆☆

नज़र जिसकी समझ सके,

वही दोस्त है, वरना…

खूबसूरत चेहरे तो,

दुश्मनों के भी होते हैं..🌺

☆☆

Just a glance of whose…

Perceives you, is your friend,

Otherwise, even enemies

Too have pretty faces…!

☆☆☆☆☆

ना इलाज है,

ना है दवाई….

ए इश्क, तेरे टक्कर

की बला है आई…

☆☆

Neither exists any cure,

Nor is there any medicine,

O’ love, ailment matching you

Has emerged on the earth…!

☆☆☆☆☆

ये जब्र भी देखा है

तारीख की नज़रों ने

लम्हों ने खता की थी,

सदियों ने सजा पाई…!

☆☆

Have seen such constraints, too

Through the eyes of the time

Moments had committed mistake

But the centuries were punished!

☆☆☆☆☆

हर बार उड़ जाता है

मेरा कागज़ का महल…!

फ़िर भी हवाओं की

आवारगी पसंद है मुझे…🌺

☆☆

Flies away every time

My paper palace …!

Still I adore the winds

Loafing around freely…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 178 ☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है दोहा सलिला।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 178 ☆

☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

तज कर वाद-विवाद कर, आँसू का अनुवाद.

राग-विराग भुला “सलिल”, सुख पा कर अनुराग.

.

भट का शौर्य न हारता, नागर धरता धीर.

हरि से हारे आपदा, बौनी होती पीर.

.

प्राची से आ अरुणिमा, देती है संदेश.

हो निरोग ले तूलिका, रच कुछ नया विशेष.

.

साँस पटरियों पर रही, जीवन-गाड़ी दौड़.

ईधन आस न कम पड़े, प्यास-प्रयास ने छोड़.

.

इसको भारी जिलहरी, भक्ति कर रहा नित्य.

उसे रुची है तिलहरी, लिखता सत्य अनित्य.

.

यह प्रशांत तर्रार वह, माया खेले मौन.

अजय रमेश रमा सहित, वर्ना पूछे कौन?

.

सत्या निष्ठा सिंह सदृश, भूली आत्म प्रताप.

स्वार्थ न वर सर्वार्थ तज, मिले आप से आप.

.

नेह नर्मदा में नहा, कलकल करें निनाद.

किलकिल करे नहीं लहर, रहे सदा आबाद.

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२८.११.२०१७

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #227 – 114 – “राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है…” ।)

? ग़ज़ल # 114 – “राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

शायरों ने कहा दिलों में मुहब्बत होती है,

हमने कहा जनाब इंसानी क़ुदरत होती है।

*

आती है जवानी जिस्म परवान चढ़ता है,

दिलफ़रेब अन्दाज़ उनकी ज़रूरत होती है।

*

राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है,

बहकना-बहकाना मजबूर फ़ितरत होती है। 

*

जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े,

अरमानों की खुलेआम बग़ावत होती है।

*

मुहब्बतज़दा दिलों में झाँकता है ‘आतिश’

आशिक़ी फ़रमाना सबकी क़ुदरत होती है।

*

दिलों में मुहब्बत का खेल शुरू होता है,

ज़हन में ग़ुलाम परस्त हसरत होती है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विचार (2) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – विचार (2) ? ?

तुम सहमत मत होना

मेरे विचार से,

यदि हो भी जाओ

तो मत करना समर्पण,

बचा रखना

झीनी-सी अंतर-रेखा..,

अंतर-रेखा के इस पार मैं,

अंतर-रेखा के उस पार तुम,

मनन करना, मंथन करना,

मेरे-तुम्हारे

विचारों की बिलोई

उत्पन्न करेगी नया आविष्कार..,

आविष्कार उस आग का

जो चकमक के आपसी घर्षण से

जन्मती है और सचमुच

गलानेे लगती है दाल,

सेंकने लगती है रोटियाँ,

उन अर्थों में नहीं

जिन्हें मुहावरों के आवरण में

बदनाम कर रखा है शब्दकोशों ने,

आग से सचमुच

भरता है भूख का कुआँ;

बुझती है पेट की आग..,

आग को, अंतर्भूत अग्नि को

सदैव जलाये और

जिलाए रखना मित्रो!

© संजय भारद्वाज  

(14 जुलाई 2017, प्रातः 9:04 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण का 51 दिन का प्रदीर्घ पारायण पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। 🕉️

💥 साधको! कल महाशिवरात्रि है। कल शुक्रवार दि. 8 मार्च से आरंभ होनेवाली 15 दिवसीय यह साधना शुक्रवार 22 मार्च तक चलेगी। इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा। साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे।💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 106 ☆ मुक्तक – ।।वंदना, मां सरस्वती, मां शारदे, मां वीणापाणी, की।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 106 ☆

☆ मुक्तक – ।।वंदना, मां सरस्वती, मां शारदे, मां वीणापाणी, की।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

हे मां ,हंसवाहिनी, मां शारदे आए तेरी शरण में,

कल्याण कर हमारा, हम सबको तार दे।

 *

हे मां विद्या की देवी मानवता ज्ञान की पुकार है,

स्नेह से दुलार दे, सब के लिए सरोकर दे।

 *

तू ही मां सरस्वती, है बुद्धि प्रदाती,

आए हम तेरे द्वारे, सबको ज्ञान का नव प्रकाश दे।

 *

हे मां वीणापाणी तू निकाल हर विकार दे,

हर मन में भाव परोपकार दे, ऐसा विचारों में उद्धार दे।

 *

तू जगतारिणी, तू है दया प्रेम की देवी,

महिमा आपार तेरी, इस भवसागर से पार दे।

 *

हे मां वागेश्वरी, जगतपालिनी, कमल पर तू विराजित,

कष्ट सबका उतार दे, अपने आशीष का हमें उपहार दे।

 *

हे मां श्वेतवस्त्र धारण, पुस्तकें तेरे ही तो कारण,

आए तेरे वंदन को, अंतर्मन को तू झंकार दे।

 *

हे मां मधुरभाषिणी, वीणावादिनी, ह्रदय के अंधेरे को,

तू सूर्य का उज्जवल प्रकाश दे।

 *

हे मां भुवनेश्वरी, तेज तेरा असीम अनंत आपार,

तुझसे होता है आलोकित सम्पूर्ण संसार, हर शत्रु को तू संहार दे।

 *

तुझको शीश वंदन करते हैं, पूजा अर्चना तेरी करते हैं,

हे मातेश्वरी, बस अपना हाथ शीश पर वार दे।

हम सब को सुधार दे। बस ये एक उपकार कर।।

बस ये एक उपहार दे।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 168 ☆ बदलते मौसम में घिर रही हैं… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक अप्रतिम रचना  – “बदलते मौसम में घिर रही हैं ..। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘बदलते मौसम में घिर रही हैं  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

मुसीबतों से बचा वतन को जो अपने खुद को बचा न पाये

उन्हीं की दम पै हैं दिख रहे सब ये बाग औ’ घर सजे सजाये

तुम्हारे हाथों है अब ये गुलशन सब इसकी दौलत भरा खजाना

जिसे ए बच्चों बचा के रखना तुम्हें औ’ आगे इसे बढ़ाना ॥

 *

बदलते मौसम में घिर रही हैं घने अंधेरों से सब दिशाएँ है

तेज बारिश कड़कती बिजली कँपाती बहती प्रबल हवाएँ भची है

भगदड़ हरके दिशा में समाया मन में ये भारी डर है

न जाने कल क्या समय दिखाये, मुसीबतों से भरा सफर है।

 *

मगर न घबरा, कदम-कदम बढ़ निराश होके न बैठ जाना

बढ़ा के साहस, समझ के चालें, तुम्हें है ऐसे में पार पाना।

चुनौतियों को जिन्होंने जीता उन्हीं का रास्ता खुला रहा है

बहादुरों, तुम बढ़ो निरन्तर, जमाना तुमको बुला रहा है।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विचार (1) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – विचार (1) ? ?

मेरे पास एक विचार है

जो मैं दे सकता हूँ,

पर खरीदार नहीं मिलता..,

फिर सोचता हूँ

विचार के

अनुयायी होते हैं;

खरीदार नहीं..,

विचार जब बिक जाता है

तो व्यापार हो जाता है

और व्यापार

प्रायः खरीद लेता है

राजनीति, कूटनीति,

देह, मस्तिष्क और

विचार भी..,

विचार का व्यापार

घातक होता है मित्रो!

© संजय भारद्वाज  

(प्रातः 9 बजे, दि. 14.7.2017)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण का 51 दिन का प्रदीर्घ पारायण पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। 🕉️

💥 साधको! कल महाशिवरात्रि है। कल शुक्रवार दि. 8 मार्च से आरंभ होनेवाली 15 दिवसीय यह साधना शुक्रवार 22 मार्च तक चलेगी। इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा। साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे।💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #223 ☆ – हाइकू … – ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  हाइकू)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 223 – साहित्य निकुंज ☆

हाइकू… ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

जीना दुश्वार

होता रहा उनका

वक्त की मार

 बुद्धि से काम

राजनीति के दांव 

होगा संग्राम

होता अन्याय

अदालत में मिले

बच्ची को न्याय।

मासूमों पर

बलात्कार है होता

जीना दुश्वार

  होती नादानी

दिखता आकर्षण

जान गवानी।

ऐसी संतान

माता पिता लगते

बोझ समान।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #206 ☆ एक बाल गीत – बरखा रानी बड़ी सुहानी ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बाल गीत – बरखा  रानी  बड़ी  सुहानीआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 205 ☆

☆ एक बाल गीत – बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी

छम छम बरसाती  है पानी

बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी

*

बरसे जब आती  हरियाली

खुशी किसान झूमते माली

प्यासे  पपीहे झूम के  बोलें

आगई  अब  रुत  मस्तानी

बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी

*

मेढक टर टर कर चिल्लायें

पशु – पक्षी   झूमें   इतराएं

गाँवों में खेलते खूब गपन्नी

नानी  सुनाती  नई  कहानी

बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी

*

इक कागज की नाव बनाते

पानी  में  जब  उसे   बहाते

चली हवा बादल जब गरजे

पानी  में  तब  नाव  समानी

बरखा  रानी   बड़ी  सुहानी

*

कोयल  मीठे  गीत  सुनाती

पक्षी कलरव  सबको भाती

कारे  बदरा  झूम- झूम कर

बरसें   खूब  जमीं   हर्षानी

बरखा  रानी  बड़ी  सुहानी

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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