हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 214 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 214 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

श्यामकर्ण अश्व

और माधवी

सभी रख दिये

एक तुला पर ।

धन्य कहूँ या धिक्कार ।

ऋषिवर्य !

जानता हूँ आपकी शक्ति, सामर्थ्य

और

तपबल ।

किन्तु

समझ नहीं पाया

श्याम कर्ण अश्वों की

गुरु दक्षिणा का अर्थ |

क्या कहीं दबी छिपी थी

रजोगुणी राजलिप्सा ।

माना

शिष्य के

हठाग्रह ने

कर दिया था

कुपित

किन्तु

आपकी क्रोधाग्नि ने

क्या क्या किया

भस्म ?

सोचा आपने ?

शिष्यत्व की शुचिता,

पिता की मर्यादा

नरेशों की प्रतिष्ठा ।

किलकारियाँ

ममतालुस्पर्श

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 214 – “पत्तों की ठहरी आवाज…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत पत्तों की ठहरी आवाज...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 214 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “पत्तों की ठहरी आवाज...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

सिमट गये

सारे अहसास

लिपट गये

तने से सायास

बिम्ब नदी की

उदास लहरों के ।

 

हरियाली

जैसे हो सर्द

बिखरी है

पेडों के गिर्द

टहनियाँ डालियों

के पास

बुनती हैं

ढेरो प्रयास

गाँवो से लौट

चुके शहरों के ।

 

पत्तों की

ठहरी आवाज

खोज रही

जंगल का राज

गायन करती

हवा लगती है

गाती है द्रुत

में खम्माज

जूड़े में बँधे हुये

गजरों के ।

 

बगुलों की

भागती कतार

लगती है जैसे

सरकार किसी

नये शाश्वत

अभियान पर

जता रही

सबका आभार

लोकतंत्र के

सुसुप्त बहरों के ।

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

17-11-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – उत्सवधर्मी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – उत्सवधर्मी ? ?

?

जीवन की अंतिम घड़ी

श्यामल छाया सम्मुख खड़ी,

चित्र चक्र-सा घूमा,

क्षण भर विहँसा,

छाया के संग चल पड़ा,

छाया विस्मित!

जीवन से वितृष्णा

या जीवन से प्रीत?

न वितृष्णा न प्रीत,

ब्रह्मांड की सनातन रीत,

अंत नहीं तो आरंभ नहीं,

गमन नहीं तो आगमन नहीं,

मैं आदि सूत्रधार हूँ,

आत्मा का भौतिक आकार हूँ,

सृष्टि के मंच का रंगकर्मी हूँ,

सृजन का सनातन उत्सवधर्मी हूँ!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ कविता – देव उठनी एकादशी पर मेरी कविता… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता देव उठनी एकादशी पर मेरी कविता…।)

☆ कविता – देव उठनी एकादशी पर मेरी कविता… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

********

देव उठो, अब उठ जाओ,

सोते क्यों हो बतलाओ,

सोने से तुम्हारे, इस जग में,

जाने क्या क्या हो जाता है,

हो जाते त्रस्त, तुम्हारे जन,

अत्याचार बहुत बढ़ जाता है,

कर्म तुम्हीं ने सिखलाया,

कर्म क्षेत्र भी बतलाओ,

देव उठो, अब उठ जाओ,

सोते क्यों हो बतलाओ,

स्वागत अभिनंदन, बहुत हुआ,

अब धरणी की बात करो,

तम और कोहरा छाया है,

प्रकाश पुंज से साफ करो,

गीता का तुमने ज्ञान दिया था,

फिर से उठकर दोहराओ,

देव उठो, अब उठ जाओ,

सोते क्यों हो बतलाओ,

जन जन का आभास तुम्हीं हो,

इस जग का विश्वास तुम्ही हो,

नफरत, हिंसा, मिट जाएगी,

इस श्रद्धा का एहसास तुम्हीं हो,

समय नहीं है, सोने का,

लोगों को जगाने आ जाओ,

देव उठो, अब उठ जाओ,

सोते क्यों हो बतलाओ.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 198 ☆ # “टूटे दिल की पुकार…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता टूटे दिल की पुकार…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 198 ☆

☆ # “टूटे दिल की पुकार…” # ☆

जिंदगी में मुझे मिली

मात बार बार

वो जीतते रहे

हम देखते रहे हार

 

वो हुनरमंद हैं  

पर रूढ़ियों में बंद हैं

तोड़ना दिलों को

उनका है कारोबार

 

वो नभ में उड़ रहे हैं

सितारों से जुड़ रहे हैं

उन्हें धरा पर बसने वालों से

नहीं कोई सरोकार

 

कभी कलियां मिलीं  

कभी सूनी गलियां मिलीं

हम ढूंढते रहे उनको

जिनपर था ऐतबार

 

उनको पाने के लिए

प्यार जताने के लिए

अपना बनाने के लिए

बेच दिया घर-बार

 

ना वो हमे पा सके

ना हम उनको पा सके

हमारी बेबसी पर

हंस रहा संसार

 

जीवन के इस मोड़ पर

सब गये छोड़कर

यादों के सहारे

जीना कितना है दुश्वार

 

नहीं किसी से गिला   

जो था नसीब में वो मिला

पतझड़ के मौसम में

मौत का है इंतज़ार

 

माशूक को दिल तोड़ने की अदा ना देना

प्यार में किसी को ऐसी सजा ना देना

जो तड़पते रहे उम्र भर

ऐ मेरे परवरदिगार  /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 212 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 212 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 212) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 212 ?

☆☆☆☆☆

वो मेरे दिल से बाहर

निकलने का रास्ता न ढूंढ़ सके

दावा करते थे जो मेरी

रग-रग से वाक़िफ़ होने का…

☆☆

Couldn’t even find a way 

to get out of my heart

One who used to claim

of knowing me inside out…

☆☆☆☆☆

हिचकियों को ना भेजो

अपना मुखबिर बनाकर

हमें और भी काम है

तुम्हें याद करने के सिवाय…

☆☆

Do not send hiccups as

your snooping informer

Have got plenty of other work

than remembering you…!

☆☆☆☆☆

पुरानी होकर भी खास 

होती जा रही है…

मोहब्बत बेशर्म है जनाब     

बेहिसाब होती जा रही है…!

☆☆

Getting older but becoming 

Distinctively  more special…

Love is brazenly shameless sir!

Growing incalculably day by day!

☆☆☆☆☆

सिमटते जा रहे हैं दिल

और ज़ज्बातों के रिश्ते..

सौदा करने में जो माहिर है

बस वही कामयाब है…

☆☆

Shrinking are the relationships

of the hearts and emotions…

Just the experts in bargaining,

Are the ones who’re successful!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ स्पष्टता… ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे ☆

डॉ प्रेरणा उबाळे

☆ कविता – स्पष्टता…  ☆  डॉ प्रेरणा उबाळे 

निर्मल, पारदर्शी

बहते झरने, कलकल नदियाँ

उछलती सागर लहरें

कांच की तरह आर-पार।

 

ओस की  बूंदे

पत्तों पर तरल

मनुष्य का मन

क्यों नहीं इतना

तरल स्पष्ट ?

 

भीतर ही भीतर

गूढ से गूढ

समझ-बूझ से परे

कभी लगे सुंदर

कभी अति क्रूर

 

पढ़ पाते तो

हो जाता सब सरल

या रह जाता वैसे ही ?

है ना उत्तर पाना कठिन ?

तो बेहतर यही कि

उत्तर ही न मिले कभी ll

■□■□■

© डॉ प्रेरणा उबाळे

रचनाकाल  : 19.05.2017 

मराठी से हिंदी अनुवाद – डॉ. प्रेरणा उबाळे : 16.11.2024 

सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर,  पुणे ०५

संपर्क – 7028525378 / [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 212 ☆ गीत – समा गया तुम में  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय गीत – समा गया तुम में )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 212 ☆

☆ गीत – समा गया तुम में ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

समा गया है तुममें

यह विश्व सारा

भरम पाल तुमने

पसारा पसारा

*

जो आया, गया वह

बचा है न कोई

अजर कौन कहिये?

अमर है न कोई

जनम बीज ने ही

मरण बेल बोई

बनाया गया तुमसे

यह विश्व सारा

भरम पाल तुमने

पसारा पसारा

*

किसे, किस तरह, कब

कहाँ पकड़ फाँसे

यही सोच खुद को

दिये व्यर्थ झाँसे

सम्हाले तो पाया

नहीं शेष साँसें

तुम्हारी ही खातिर है

यह विश्व सारा

वहम पाल तुमने

पसारा पसारा

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१७-२-२०१७

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जीवन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – जीवन ? ?

?

अलग-अलग स्थितियाँ,

अलग-अलग प्रयोजन,

समय की चाल कुटिल है,

यात्रा पग-पग जटिल है,

बार-बार वही कथानक,

हर बार पात्रों का परिवर्तन,

अनादि काल से पारदर्शन है,

जीवन सुलझा समीकरण है।

?

© संजय भारद्वाज  

9:31 बजे प्रातः, 23 जनवरी 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 138 ☆ मुक्तक – ।। किसीके अंधेरे का चिराग बनके देखो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 138 ☆

☆ मुक्तक – ।। किसीके अंधेरे का चिराग बनके देखो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

किसी के अंधेरे  का चिराग बन  कर देखिए।

किसी की आँखों का ख्वाब बन कर  देखिए।।

दर्द दूसरों का  भी    अपना कर   जरा देखो।

किसी   मुश्किल का  जवाब बन  कर देखिए।।

[2]

गिरते हुए को जरा   संभाल कर    देखो  तुम।

अपनी नज़र के  जरा    पार  भी   देखो  तुम।।

हाथ बढ़ाओगे तो  आँसुओं में मुस्कान मिलेगी।

किसी का दर्द  लेकर    जरा उधार देखो तुम।।

[3]

दूसरों के गमों को जो समझें वो इंसान होता है।

तकलीफ में दे  साथ    वही  एहसान  होता है।।

नेकी कर   दरिया  में   डाल देना ही है   जरूरी।

जला कर  हाथ जो बचाए वो भगवान होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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