श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर रचित एक गीत “आन विराजे राम लला”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 178 ☆
☆ 🌹 आन विराजे राम लला 🌹 ☆
[1]
हे रघुकुल नायक, हो सुखदायक, पावन सुंदर, राम कथा।
जो ध्यान धरें नित, काज करें हित, राम सिया प्रभु, हरे व्यथा ।।
ये जीवन नैया, पार लगैया, आस करें सब, शीश नवा।
सुन दीनदयाला, जग रखवाला, राम नाम की, बहे हवा।।
[2]
बोले जयकारा, राम हमारा, वेद ग्रंथ में, लिखा हुआ।
लड़- लड़ के हारे, झूठे सारे, हार गये जब, करे दुआ।।
है सत्य सनातन, धर्म रहे तन, बीते दुख की, अब बेला।
उठ जाग गये सब, मंगल हो अब, राम राज्य की, है रेला। ।
[3]
हे ज्ञान उजागर, वंशज सागर, दशरथ नंदन, ज्ञान भरो।
हे भाग्य विधाता, जन सुखदाता, इस जीवन के, पाप हरो।।
ले बाम अंग सिय, धनुष बाण प्रिय, शोभित सुंदर, मोह कला।
शुभ सजे अयोध्या, बजे बधैया, आन विराजे, राम लला।।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈