प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ – दोहों में स्वामी विवेकानंद – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
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प्रखर रूप मन भा रहा, दिव्य और अभिराम।
स्वामी जी तुम हो सदा, लिए विविध आयाम।।
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स्वामी जी तुम चेतना, थे विवेक-अवतार।
अंधकार का तुम सदा, करते थे संहार।।
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जीवन का तुम सार थे, दिनकर का थे रूप।
बिखराई नव रोशनी, दी मानव को धूप।।
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सत्य, न्याय, सद्कर्म थे, तेज अपरिमित माप।
काम, क्रोध, मद, लोभ हर, धोया सब संताप।।
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गुरुवर तुमने विश्व को, दिया ज्ञान का नूर।
तेज अपरिमित संग था, शील भरा भरपूर।।
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त्याग, प्रेम, अनुराग था, धैर्य, सरलता संग।
खिले संत तुमसे सदा, नवजीवन के रंग।।
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था सामाजिक जागरण, सरोकार, अनुबंध।
नित्य, सतत् आती रही, कर्मठता की गंध।।
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सुर, लय थे, तुम ताल हो, बने धर्म की तान।
गुरुवर तुम तो शिष्य का, हो नित ही यशगान।।
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मधुर नेह थे, प्रीति थे, अंतर के थे भाव।
गुरुवर तुमसे धर्म को, सौंपा पावन ताव।।
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वंदन, अभिनंदन करूँ, थे गुरुवर तुम नित्य।
थे तुम खिलती चाँदनी, दमके बन आदित्य।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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