हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 211 ☆ # “इस होली में…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता इस होली में…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 211 ☆

☆ # “इस होली में…” # ☆

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

गीत खुशी के गाओ इस होली में

 

अमराई में कोयल गाती

भ्रमरों को कलियाँ मदमाती

आम्र वृक्ष सा बौराओ इस होली मे

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

 

भीगी है रंगों से चोली

फूट रही अंगों से बोली

कामबाण से देह बचाओ इस होली में

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

 

दया नहीं अधिकार चाहिए

तिरस्कार नहीं प्यार चाहिए

मानवता का अलख जगाओ इस होली में

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

 

बिखर गए हैं सारे सपने

बिछड़ गए हैं हमसे अपने

नफरत की दीवार गिराओ इस होली में

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में     

 

तपिश सूर्य की पी जाओ

मधुर चांदनी जग में लाओ

धरती को ही स्वर्ग बनाओ इस होली में

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

 

अबीर गुलाल लगाओ इस होली में

गीत खुशी के गाओ इस होली में /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अद्भुत है फागुन… ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ अद्भुत है फागुन… ☆  डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

मधुमक्खियाँ

कितनी व्यस्त हैं इन दिनों

उन्हें ठहरने की

बात करने की

भी फ़ुर्सत नहीं है

उन्हें तो लाना  है  पराग

उन्हें आकर्षित करते हैं

महकते हुए बाग

वह कर रही हैं

अपना  काम  निस्वार्थ भाव से

हँसी  ख़ुशी  से  चाव-चाव  से

महुए के फूलों की मादकता

अंकुरित आम मंजरियों की कोमलता

पलाश की आभा

गेहूँ की गंध

अलसी के फूलों का रंग

 

टेसू की महक

सरसों के फूलों के खेत

धनिये के फूलों की क्यारियाँ

अद्भुत है यह फागुन

महक उठा है मन का आँगन

मंडराती तितलियाँ

गुंजायमान भँवरे

आम के पेड़ों पर निकलती

नव पत्तियाँ

करती हैं

प्रकृति को नमन

हवा में छिटक रहे हैं

रंग, गंध,रस के कण

 

हैं पुलकित दिशायें

सुगंधित हवायें

महकते वन-फूल,फलियाँ

ओस में भीगी-भीगी कलियाँ

हरितिम वसुंधरा

नन्हीं कोपलों पर

लाज की लालिमा

जगा  रही  है  मन  में  नये-नये अहसास

यूँ  ही  महकते  रहना हे! मधुरिम मधुमास

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 227 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 227 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 227) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 227 ?

☆☆☆☆☆

एक नफरत ही नहीं

दुनिया में  दर्द का सबब ….

मोहब्बत भी सकूँ वालों को

बड़ी तकलीफ़ देती है….

☆☆

Hatred  is  not  only  the

Cause of pain in this world

Love  also  hurts  a lot to

those who live in peace…!

☆☆☆☆☆

हर किसी के नसीब में

कहाँ लिखी होती हैं चाहतें

कुछ लोग दुनिया में आते हैं

सिर्फ तन्हाइयों के लिए…

☆☆

When do the wishes ever get

materialised in everyone’s fate

Some  people  just  come to

the world to be  loners only…

☆☆☆☆☆

कोई तो जुर्म रहा होगा…

जिस में हर शख़्स था शामिल

तभी  तो  हर  शख़्सियत

मुँह छुपाए फिर रही है..!

☆☆

There musta been some crime

Which had everyone  involved

Why  else  every person here

would  be  hiding  his  face ..!

☆☆☆☆☆

वक़्त के नाखून

बहुत गहरा नोंचते हैं दिल को

तब जाके कुछ जख़्म

तज़ुर्बा बनके नज़र आते हैं…

☆☆

Talons of the time tear up

The heart too deep then only

Some wounds manifest as

An experienced wisdom…

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 226 – जोगी जी! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – जोगी जी!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 226  ☆

☆ जोगी जी! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

सदाचार का डालिए,

चौक रंगीला द्वार।

सद्भावों की फाग गा,

मेटें सब तकरार।।

जोगी जी सा रा रा रा

बाधाओं की लकड़ियाँ,

दें होरी में बार।

पीर गुलेरी सब जलें,

बचे न एकऊ खार।।

जोगी जी सारा रा रा

राजनीति की होलिका,

करे नहीं तकरार।

नेता-अफसर कर सकें,

लोकनीति से प्यार।।

जोगी जी सारा रा रा

भुज भरकर मिलिए गले,

बढ़े खूब अपनत्व।

संसद से दूरी मिटे,

बढ़े खूब बंधुत्व।।

जोगी जी सा रा रा रा

सुख पिचकारी दें भिगा,

रंग हर्ष का, डाल।

मस्तक पर शोभित रहे,

यश का लाल गुलाल।।

जोगी जी सा रा रा रा

हिंदी मैदा माढ़िए,

उर्दू मोयन डाल।

देशज मेवाएँ भरें,

गुझिया बने कमाल।।

जोगी जी सा रा रा रा

परंपरा बेसन बने,

नवाचार हो तेल।

खांय-खिलाएँ पपड़ियाँ,

जी भर होली खेल।।

जोगी जी सा रा रा रा

कविता पिचकारी बना,

भरें छंद का रंग।

रस-लय की ठण्डाई पी,

करें गीत गा जंग।।

जोगी जी सा रा रा रा

फाग कबीरा गाइए,

भर मस्ती में झूम।

ढोल-मँजीरा बजाएँ,

खूब मचाएँ धूम।।

जोगी जी सा रा रा रा

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१३.३.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दोहे  – सरहद पर होली ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ दोहे  – सरहद पर होली ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

सरहद पर होली हुई, रक्षा की हुंकार।

बहे ख़ून पर देश की, करते हैं जयकार।।

खेलें सारे देश के, लोग आज तो रंग।

सरहद पर है शौर्य बस, घुसपैठी से जंग।।

 *

सरहद पर सैनिक डटे, लेकर शौर्य अबीर।

रँग-गुलाल बलिदान का, खेलें सारे वीर।।

 *

वतनपरस्ती हँस रही,  सम्मानित है तेज।

सरहद पर हर वीर है, क़ुर्बानी लबरेज।।

 *

याद आ रहे दोस्त सब, यादों में है गाँव।

होली पर सरहद डटे, बंकर की है छाँव।।

 *

भेजो मंगलकामना, हर सैनिक की ओर।

दूरी है परिवार से, होली है बिन शोर।।

 *

बंदूकों की है गरज, शौर्य गा रहा फाग।

बम्म-धमाके, टेंक ही, होली का अनुराग।।

 *

इक-दूजे के माथे पर , मल दी नेह-गुलाल।

सरहद पर सैनिक सदा, करते शौर  यह कमाल।।

 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पुण्य स्मरण…  – मराठी कवयित्री : सौ. उज्ज्वला केळकर ☆  भावानुवाद – श्री भगवान वैद्य “प्रखर” ☆

श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर

? कविता ?

☆ पुण्य स्मरण…  – मराठी कवयित्री : सौ. उज्ज्वला केळकर ☆  भावानुवाद – श्री भगवान वैद्य “प्रखर”

सौ. उज्ज्वला केळकर

उस महापुरुष का पुण्यस्मरण…

पुतले का अनावरन

चरित्र का गुणगान,

‘पिछले कई शतकों में

नहीं हुआ ऐसा महामानव

न होगा अगले कई शतकों में’

 

भीगे स्वर…

पनीली आंखें…

अभिभूत मन …

 

‘उनके बतलाये मार्ग पर चलने का

करें संकल्प…’

तालियां…जोरदार तालियां…

 

‘उनके कार्य की ज्योत

जलाये रखने का करें संकल्प…’

 

फिर एक बार जोरदार तालियां …

 

अनेक शब्द…

अनेक संकल्प

पुतले के चरणों में करके अर्पण,

निकल गये सारे रिक्त नैनों से,

खुले मन से।

 

महापुरुष का पुतला

समेटता रहा उनके संकल्पों के कफन ।

मूल मराठी कविता – सौ. उज्ज्वला केळकर

संपर्क – निलगिरी, सी-५ , बिल्डिंग नं २९, ०-३  सेक्टर – ५, सी. बी. डी. –  नवी मुंबई , पिन – ४००६१४ महाराष्ट्र

मो. 836 925 2454, email-id – [email protected] 

हिन्दी भावानुवाद – श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर

संपर्क : 30 गुरुछाया कालोनी, साईंनगर, अमरावती-444607

मो. 9422856767, 8971063051  * E-mail[email protected] *  web-sitehttp://sites.google.com/view/bhagwan-vaidya

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अनहद ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अनहद ??

एक लहर आती है,

एक लहर लौटती है,

फिर नई लहर आती है,

फिर नई लहर लौटती है,

आना, लौटना,

काया पाना,

काया तजना,

समय के प्रवाह में

नित्य का चोला बदलना,

लहरों के निनाद में

सुनाई देता अनहद नाद,

अनादि काल से

समुद्र कर रहा

श्रीमद्भगवद्गीता का

सस्वर पाठ…!

?

© संजय भारद्वाज  

11:07 बजे , 3.2.2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री शिव महापुराण का पारायण सम्पन्न हुआ। अगले कुछ समय पटल पर छुट्टी रहेगी। जिन साधकों का पारायण पूरा नहीं हो सका है, उन्हें छुट्टी की अवधि में इसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ अहं एक वहम ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆

श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

☆ कविता – अहं एक वहम☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

किसी को कोई जानता है,

किसी को कोई जानता है l

 

किसी को कोई कोई जानता है,

किसी को सब कोई जानता है l

 

जिसको सब कोई जानता है,

उसको भी हर कोई नहीं जानता है l

 

वह जानता है कि उसको हर कोई जानता है

लेकिन उसे क्या पता है कि

उसे कोई कोई नहीं भी जानता है l

 

यहाँ हर कोई सिर्फ वहम पालता हैl

 इसी वहम मे अहम् पालता है कि

मेरा अपना संसार है l

 

सबका अपना संसार है

किसी का छोटा संसार है

किसी का बड़ा संसार है l

किसी का कई संसारो का संसार है,

किसी का कई कई संसारों का संसार है l

 

सबका अलग-अलग आकार है l

कोई कहता कि हमारा बड़ा संसार हैl

कोई कहता है हमारा बड़ा संसार है l

 

लोग यह क्यों नहीं समझते कि

सभी संसारों से भी एक बड़ा संसार है l

इन सबमें आपके संसार का अति सूक्ष्मतम आकार है l

यहां तो अनंत संसार है l

इस अनंत संसार का एक ब्रह्मांड है l

 

इस ब्रह्मांड का पिता परम ब्रह्मः है l

वही सबसे बड़ा है

जिसका न आदि है न अंत है l

न आकार है न प्रकार l

वह साकार स्वरूप का भी प्रकार है l

 

लेकिन

आपका अपनी इस सूक्ष्मतम दुनिया को लेकर

इतना बड़ा अहं पालन बेकार है l

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 22-02-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 151 ☆ गीत – ।मानवता को महका दे भारत का गर्व होली है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 151 ☆

☆ गीत – ।मानवता को महका दे भारत का गर्व होली है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

दिलों को जो प्रेम से रंगा दे वह त्यौहार होली है।

नफरत को मिटा दे और मीठी हो जाती बोली है।।

*

लोग छूटे भूले बिसरे भी मिल जाते हैं होली में।

पत्थर में भी प्रेम के फूल खिल जाते हैं होली में।।

छोटे बड़े का भेद मिटा दे   वह त्यौहार होली है।

दिलों को जो प्रेम से रंगा दे वह त्यौहार होली है।।

*

रंगारंग रंगोली के रंग   गिरते हैं सबकी झोली में।

काले नीले पीले सब चलते हैं मिल कर टोली में।।

भांग ठंडाई जो दुनिया भुला दे वो त्यौहार होली है।

दिलों को जो प्रेम से रंगा दे वह त्यौहार होली है।।

*

होलिका दहन में भस्म हो जातें हैं सब ही राग द्वेष।

बन जाती सब की एक बोली और एक जैसा भेष।।

दूरियों की दीवारों कोआग लगा दे वो त्यौहार होली है।

दिलों को जो प्रेम से रंगा दे वह त्यौहार होली है।।

*

गले से गले दिल से दिल मिलाने का पर्व होली है।

सदियों से चला आ रहा भारत का गर्व होली है।।

जो सारी मानवता को महका दे वो त्यौहार होली है।

दिलों को जो प्रेम से रंगा दे वह त्यौहार होली है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #218 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – अपना भारत… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – अपना भारत। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 218

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – अपना भारत…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

अपना भारत है सबसे पुराना

दुनिया का एक अद्भुत खजाना

*

पेड़, पर्वत, नदी और नाले,

खेत, खलिहान वन सब निराले

यहीं गंगा है औ’ वह हिमालय

जिसको दुनिया ने बेजोड़ माना ॥

*

इसकी धरती उगलती है सोना

कला हाथों का मानो खिलौना

आज नई रोशनी में भी दिखता

इसका इतिहास सदियों पुराना ॥

*

जो विदेशों से भी यहाँ आये,

वे भी बस गये, रहे न पराये

 लोगों में है मोहब्बत कुछ ऐसी

जानते सबको अपना बनाना ॥

*

गाँवों में आज भी है सरलता,

 नगरों में तो है नव युग मचलता ।

बढ़ते – विज्ञान को भी हमें ही

प्रेम का रास्ता है दिखाना

*

 सेनानियों ने था देखा जैसा सपना,

 बनाना वैसा भारत है अपना ।

 हमें मिल जुल के बढ़ना है आगे,

देखकर के बदलता जमाना ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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