हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मुखौटे ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मुखौटे ? ?

मुखौटों की

भीड़ से घिरा हूँ,

किसी चेहरे तक

पहुँचूँगा या नहीं

प्रश्न बन खड़ा हूँ,

मित्रता के मुखौटे में

शत्रुता छिपाए,

नेह के आवरण में

विद्वेष से झल्लाए,

शब्दों के अमृत में

गरल की मात्रा दबाए,

आत्मीयता के छद्म में

ईर्ष्या से बौखलाए,

बार-बार सोचता हूँ

मनुष्य मुखौटे क्यों जड़ता है..

भीतर-बाहर अंतर क्यों रखता है..?

मुखौटे रचने-जड़ने में

जितना समय बिताता है,

जीने के उतने ही पल

आदमी व्यर्थ गंवाता है,

श्वासोच्छवास में मत्सर

मानो विष का घड़ा है,

गंगाजल-सा जीवन रखो मित्रो,

पाखंड में क्या धरा है..?

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 11.52 बजे, 15.10.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 113 – सड़कों पर उड़ती है धूल… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  आपकी भावप्रवण कविता “सड़कों पर उड़ती है धूल…” । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 113 – सड़कों पर उड़ती है धूल…

सड़कों पर उड़ती है धूल।

खिला बहुत कीचड़ में फूल।।

मजहब का बढ़ता है शोर,

दिल में चुभे अनेकों शूल।

मँहगाई का है बाजार,

खड़ी समस्या कबसे मूल।

नेताओं की बढ़ती फौज,

दिखे कहाँ कोई अनुकूल।

सीमाओं पर खड़े जवान,

बँटवारे में कर दी भूल।

हुए एक-जुट भ्रष्टाचारी,

राजनीति में उगा बबूल।

जाति-पाँति की फिर दीवार,

हिली एकता की है चूल।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 178 – आन विराजे राम लला – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर रचित एक गीत “आन विराजे राम लला”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 178 ☆

🌹 आन विराजे राम लला 🌹 

[1]

हे रघुकुल नायक, हो सुखदायक, पावन सुंदर, राम कथा।

जो ध्यान धरें नित, काज करें हित, राम सिया प्रभु, हरे व्यथा ।।

ये जीवन नैया, पार लगैया, आस करें सब, शीश नवा।

सुन दीनदयाला, जग रखवाला, राम नाम की, बहे हवा।।

[2]

बोले जयकारा, राम हमारा, वेद ग्रंथ में, लिखा हुआ।

लड़- लड़ के हारे, झूठे सारे, हार गये जब, करे दुआ।।

है सत्य सनातन, धर्म रहे तन, बीते दुख की, अब बेला।

उठ जाग गये सब, मंगल हो अब, राम राज्य की, है रेला। ।

[3]

हे ज्ञान उजागर, वंशज सागर, दशरथ नंदन, ज्ञान भरो।

हे भाग्य विधाता, जन सुखदाता, इस जीवन के, पाप हरो।।

ले बाम अंग सिय, धनुष बाण प्रिय, शोभित सुंदर, मोह कला।

शुभ सजे अयोध्या, बजे बधैया, आन विराजे, राम लला।।

🙏 🚩🙏

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – गीत – राम अवध हैं लौटते – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ – गीत – राम अवध हैं लौटते  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

वायु सुगंधित हो गई, झूमे आज बहार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

सरयू तो हर्षा रही, हिमगिरि है खुश आज।

मंगलमय मौसम हुआ, धरा कर रही नाज़।।

सबके मन नर्तन करें, बहुत सुहाना पर्व।

भक्त कर रहे आज सब, इस युग पर तो गर्व।।

सकल विश्व को मिल गया, एक नवल उपहार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

जीवन में आनंद अब, दूर हुई सब पीर।

नहीं व्यग्र अंत:करण, नहीं नैन में नीर।।

सुमन खिले हर ओर अब, नया हुआ परिवेश।

दूर हुआ अभिशाप अब, परे हटा सब क्लेश।।

आज धर्म की जीत है, पापी की तो हार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

आज हुआ अनुकूल सब, अधरों पर है गान।

आज अवध में पल रही, राघव की फिर आन।।

आतिशबाज़ी सब करो, वारो मंगलदीप।

आएगी संपन्नता, चलकर आज समीप।।

बाल-वृद्ध उल्लास में, उत्साहित नर-नार।।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

जीवन अब अनुरागमय, सधे सभी सुर आज।

प्रभु राघव का हो गया, हर दिल पर तो राज।।

भक्तों ने हनुमान बन, किया राम का काज।

दुष्टों पर आवेग में, गिरी आज तो गाज।।

साँच और शुभ रीति से, चहके हैं घर-द्वार।।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

तुलसी बाबा खुश हुए, त्रेता का यह दौर।

सारे सब कुछ भूलकर, करें राम पर गौर।।

दौड़ रहे साकेत को, बोल रहे जय राम।

प्रभुदर्शन में बस गया, दिव्य ललित आयाम।।

आओ राघव! आपका, बार-बार सत्कार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – khare.sharadnarayan@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 173 – गीत – हे राम…. ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका एक अप्रतिम वंदना – हे राम।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 173 – गीत  –  हे राम…  ✍

 राम राम  जय जय राम

राम राम  जय सीता राम

दशरथ नंदन

दनुज निकंदन

टेर लगाते चातक वंशी

लेकर तेरा नाम

हे राम । हे राम हे राम।

*

पंकज लोचन

हे दुख मोचन

रोम रोम में रचा हुआ है

एक तुम्हारा नाम।

हे राम । हे राम हे राम।

*

हे रघुनंदन

अलख निरंजन

तुम ही हो सुखधाम

हे राम हे राम

जय राम जय राम।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 171 – “सुरमई तम का कलश छलका है…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  सुरमई तम का कलश छलका है...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 171 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “सुरमई तम का कलश छलका है...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

बैठी है झोंपड़ी में

फूस की ।

मूरत कोई जैसे

आबनूस की ।।

 

लगती है शहद में

नहाई सी ।

होंठों पर ठहरी

शहनाई सी ।

 

बेशक़ मीठी-मीठी

दिखती है ।

गोली जैसे लेमन-

चूस की ।।

 

सुरमई तम का कलश छलका है।

कुहरीला-रंग तनिक

हलका है ।

 

ब्याकुल ठिठुरती

अमावस को

रात विकट जैसे

हो पूस की ।।

 

काँपी पत्तों की

वंदनवारें ।

टिटहरियाँ मंत्रों

को उच्चारें ।

 

घोंसला बया का

था लटक रहा ।

फीकी कर रंगत

फानूस की।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

18-19-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पराकाष्ठा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पराकाष्ठा ? ?

अच्छा हुआ

नहीं रची गई

और छूट गई

एक कविता,

कविता होती है

आदमी का आप,

छूटी रचना के विरह में

आदमी करने लगता है

खुद से संवाद,

सारी प्रक्रिया में

महत्वपूर्ण है

मुखौटों का गलन,

कविता से मिलन,

और उत्कर्ष है

आदमी का

शनैः-शनैः

खुद कविता होते जाना,

मुझे लगता है

आदमी का कविता हो जाना

आदमियत की पराकाष्ठा है!

© संजय भारद्वाज 

(संध्या 7:15 बजे, दि. 30.5.2016)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “सुनो संसार-वालो, राम फिर घर लौट आये हैं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “सुनो संसार-वालो, राम फिर घर लौट आये हैं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(श्री राम लला की अयोध्या मे प्राण प्रतिष्ठा २२ जनवरी २०२४ पर)

सुनो संसार-वालो, राम फिर घर लौट आये हैं

उन्हें सब लोग प्यारे हैं ,अयोध्या गये बुलाये हैं।

उन्हें है चाह ममता ,न्याय, मन की समझदारी से

उन्हें सब लोग अपने है नहीं कोई पराये हैं।।

*

उन्हें कर्ततव्य अपना धर्म से भी अधिक प्यारा है

सदाचारी, निरभिमानी सदा उनका दुलारा है।

उन्हें भाता, जो जीता जिन्दगी, ईमानदारी से –

उन्हें श्री राम का मिलता सदा पावन सहारा है।

*

अलौकिक शक्ति हैं श्री राम  जो रिश्ता निभाते हैं

जहां दिखती जरूरत वहां पै काम आते हैं ।

सदा म‌र्यादाए रखते वे, जगत उनका पुजारी है-

इसी से राम राजा विश्व पुरुषोत्तम कहाते हैं।

*

भजो श्री राम, जय श्री राम, जय जय श्री राम जगत के राम जय श्री राम जय जय श्री राम

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

vivek1959@yahoo.co.in

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #197 ☆ आ गए आ गए आज मेरे प्रभु… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर प्रस्तुत है आ गए आ गए आज मेरे प्रभु…आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 198 ☆

☆ आ गए आ गए आज मेरे प्रभु… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

(22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर)

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु, आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु, आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

*

ए भक्तों जरा काम इतना करो

ए भक्तों जरा काम इतना करो

प्रभु राम की तुम आज पूजा करो

प्रभु राम की तुम आज पूजा करो

एक मंदिर बना ढल गया शाम -ए-गम

एक मंदिर बना ढल गया शाम -ए-गम

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु,

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

*

देख नजारा बहुत लोग हैरान है

देख नजारा बहुत लोग हैरान है

सदियों से जिनमें बसी जान है

सदियों से जिनमें बसी जान है

ऐसे मौके जमाने में मिलते हैं कम

ऐसे मौके जमाने में मिलते हैं कम

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु,

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

*

सदियों की तड़फ को करार आ गया

सदियों की तड़फ को करार आ गया

उनके दर्शन हुए,हमको प्यार आ गया

उनके दर्शन हुए,हमको प्यार आ गया

याद करता रहा,मैं उन्हे हर-कदम

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु,

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

संतोष याद करता रहा हर कदम

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

आ गए आ गए आज मेरे प्रभु,

आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “अवध में राम आए हैं…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ “अवध में राम आए हैं…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल

मच रही धूम अभिनंदन की

कलियुग में राम आए हैं।

झूम रही धरा अयोध्या की

त्रेता युग राम आए हैं।

*

संग खुशियां समुंदर सी

शांति की लहरें लाए हैं

जन्मभूमि को गुलशन सी

राम महकाने आए हैं

भाग्य चमकाने आए हैं

मच रही धूम अभिनंदन की

अवध में राम आए हैं।

*

सनातन धर्म की आस्था

जग में जगाने आए हैं

हिंदुत्व और एकता का ये

दीप जलाने आए हैं

ये रौशन करने आए हैं

मच रही धूम अभिनंदन की

कलियुग में राम आए हैं

*

यज्ञ, तप, जप, साधना कर

मानव धर्म साथ लाए हैं

अंधेरों का वक्ष चीर कर

ये सूरज साथ लाए हैं

अवध में राम आए हैं

मच रही धूम अभिनंदन की

अवध में राम आए हैं।

*

कलियुग के हनुमानों ने आज

ताकत दुनिया को दिखाई है

खत्म किया राम का बनवास

अवध में राम अगुवाई है

अब गूंज उठी शहनाई है

मच रही धूम अभिनंदन की

अवध में राम आए हैं।

*

संत, महंत, बालक,नर नारी

मन है सबके खिले हुए

आर्यवर्त के मन आंगन में

रामराज्य हैं उदित हुए

खुशियों से मन मुदित हुए

मच रही धूम अभिनंदन की

अवध में राम आए हैं।

*

भंवर में अटकी थी नैया

तारने राम आए हैं

बजाओ शंख मृदंग डमरू

विष्णु अवतार आए हैं

अवध में राम लला आए हैं

मच रही धूम अभिनंदन की

अवध में राम आए हैं।

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares