हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बाल कविता – “परी…” ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆

श्री सुनील देशपांडे

☆ बाल कविता – “परी…” ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆

छमछम छमछम छमछम री,

चमचम चमचम चमचम री।

चांद के किरनों पे करके सवारी,

 परियों की दुनिया से आई परी।

 *

परियों की दुनिया मे चल मेरे साथ,

जादू की छड़ियों पे रख दे तू हाथ।

परियों की दुनिया कितनी थी न्यारी,

अपनी दुनिया से कितनी थी प्यारी।

 *

ठंडी हवाए, था मौसम सुहाना,

डाली पे पंछी, गाते थे गाना।

पेडो पे फल और पौधों पे फूल,

हरियाली नीचे, ना आती थी धूल।

 *

रुचि फलों की और फूलों का गंध,

कितनी में लालचाई, रह गई दंग।

बोली मे परी से जादू कर दे

मेरी भी दुनिया ऐसी कर दे।

 *

छमछम छमछम छमछम री,

चमचम चमचम चमचम री।

चांदके किरनोंपे करके सवारी

 परियों की दुनिया से आई परी।

 *

जादू नहीं है ये बोली परी, 

आदत ही अपनी है जादूगिरी ।

ना केक, ना कोक, ना बर्गर मांगो,

होटल ना जाओ, ना बिस्कुट मांगो।

 *

फल खाओ, तरकारी हरी भरी,

प्लास्टिक ना हो तो, दुनिया हरी।

कुंडी में पौधे और कचरे का खाद,

फूलों के गंधों का फैलेगा स्वाद।

 *

सिखाओ जादू ये सबको रानी,

शुरू में थोड़ी सी होगी हैरानी ।

सिखाओ मम्मी को, डैडी को भी।

टीचर को, दोस्तों को, औरों को भी।

 *

दुनिया तुम्हारी अब आए यहां,

ध्यान में रख्खो जो मैंने कहा।

चांद गगन में जब तक रहेगा।

वापस मुझे भी जाना ही होगा।

 *

छमछम छमछम छमछम री,

चमचम चमचम चमचम री।

चांद के किरणों पे करके सवारी

परियों की दुनिया मे गई परी।

 *

लगती ना तुमको सच्ची ये बात?

करो ना जादू तुम मेरे साथ।

© श्री सुनील देशपांडे

मो – 9657709640

email : [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #209 ☆ भावना के दोहे … ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 209 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे …  डॉ भावना शुक्ल ☆

हवाएं धीमी बह रही, बजे मधुर संगीत।

नई कहानी वो कहे, है जीवन की  रीत।।

कलियां कैसे मिल रही, जैसे मिलती बाह।

मन ह्रदय की खिली कली, है आपस में चाह।।

पत्ते – पत्ते झर रहे, झरता है संगीत।

सुख -दुख के वो गा रहे, गाए प्यार का गीत।।

हौले- हौले चल रही, पकड़े ठंडक हाथ।

मौसम करवट बदलता, ठंडी हवा के साथ।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धरना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – धरना ? ?

वह चलता रहा

वे हँसते रहे..,

वह बढ़ता रहा

वे दम भरते रहे..,

शनै:-शनै: वह

निकल आया दूर,

इतनी दूरी तय करना

बूते में नहीं, सोचकर

सारे के सारे ऐंठे हैं..,

कछुए की सक्रियता के विरुद्ध

खरगोश धरने पर बैठे हैं.!

© संजय भारद्वाज 

(प्रात: 4:35 बजे, 3.1.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #192 ☆ संतोष के दोहे  – मत की कीमत ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – मत की कीमतआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 192 ☆

☆ संतोष के दोहे  – मत की कीमत ☆ श्री संतोष नेमा ☆

गारंटी पर दे रहे, फिर गारंटी लोग

आपके एक वोट से, बदल गये सब योग

मत की कीमत जानिए, ये जीवन आधार

इसे कभी मत बेचिये, विधि की यही पुकार

जात-पात को छोड़कर, देखें काबिल लोग

उनको ही चुनिये सदा, जिन्हें न कुर्सी रोग

देकर लालच मुफ्त का, चाह रहे सब जीत

सोच समझ कर दीजिये, मत मेरे प्रिय मीत

करे कोई तुष्टिकरण, कोई फेके जाल

करें प्रश्न खुद से जरा, समझें तब सच हाल

राष्ट्र-धर्म सबसे बड़ा, कहता यह “संतोष”

भारत माँ की शान ही, जीवन का सच कोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जीवन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –  जीवन  ? ?

जुग -जुग जीते सपने 

थोड़े-से पल अपने,

सूक्ष्म-स्थूल का

दुर्लभ संतुलन है,

नश्वर और ईश्वर का

चिरंतन मिलन है,

जीवन, आशंकाओं के पहरे में

संभावनाओं का सम्मेलन है!

(रात्रि 8.11 बजे, 30.3.2019)

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #24 ☆ कविता – “मौत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 24 ☆

☆ कविता ☆ “मौत…☆ श्री आशिष मुळे ☆

ए मेरी दिलरुबा, किसी दिन तो मिलोगी

मेरे इश्क की कयामत, कभी तो लाओगी ।

वैसे लोग बहुत डरते है तुझसे

लेकिन इश्क करते है तेरी बहन से ।

 

बहन से बहन कब तक अलग रहेगी

आज नहीं तो कल जरूर मिलेगी ।

शायर हूँ मै, प्यार करता हूँ तुम दोनों से

जानता हूँ कीमत दोनों की, तुम रूठो ना मुझसे ।

 

अगर समय पे तुम ना आओ,

 तो तुम्हारी बहन बेकाबू होती है

तुम्हारे हवाले मुझे, वही तो सौंपती है ।

वैसे जुनून पैदा तो, वो करती है

मगर समझदार तो, तुम्हारी याद बनाती है ।

 

जो कमिया बदली नहीं जाती

उन्हें समाप्त तुम ही करती हो ।

तुम्हारी बहन की गलतियां

माफ़ तो तुम ही करती हो ।

 

तुम दोनों जरूरी हो

असल मे जीने के लिए

वक्त पर आ जाना

मेरी हयात अमीर बनाने के लिए ।

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 184 ☆ बाल कविता – शक्ति खुद की जानो जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 184 ☆

☆ बाल कविताशक्ति खुद की जानो जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

मुश्किल में जो ना घबराए

     उसे कहें हिम्मतवाला।

धैर्य रखे जो मुसीबतों में

      होता विजयी मतवाला।।

 

इन्द्रियों पर करे नियंत्रण

      उसे कहें संयमवाला।

अलख जगाए अन्नकोश की

      कभी न पीए वह हाला।।

 

करता शाकाहार सदा ही

       प्रेम पगा भोजन खाए।

खूब चबाकर शांत चित्त से

      सदा ईश के गुण गाए।।

 

सिद्धान्तों पर जीने वाले

    यश वैभव को पाते हैं।

मीठी वाणी हो विवेक यदि

     वे महान कहलाते हैं।।

 

मन, मस्तिष्क से अच्छा सोचो

     अच्छा ही अच्छा करना।

जीवन को सार्थक ही करके

        मन में मैल नहीं भरना।।

 

इसको कहते प्राणकोश हम

      जो भी सबल बना लेते।

चले सफलता साथ उन्हीं के

       जो चाहें सो पा लेते।।

 

मन भागेगा इधर – उधर को

      उसको वश में तुम रखना।

द्वेष ,कपट , ईर्ष्या से बचना

       लोभ लालची मत बनना।।

 

जो भी रखते मन को वश में

    उनका देव साथ हैं देते।

मनोकोश को प्रबल बनाकर

     जीवन सुंदर कर लेते।।

 

सभी देवता अपने अंदर

     उनको खुद पहचानो जी।

दूर न जाओ इन्हें देखने

       शक्ति अपनी जानो जी।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #207 – कविता – ☆ हाथ मिलाये फसलों ने… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके हाथ मिलाये फसलों ने…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #207 ☆

हाथ मिलाये फसलों ने☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(फेसबुक के स्मृतिकोष से 2011में लिखा एक गीत)

हाथ मिलाये फसलों ने

खरपतवारों से

मठों, आश्रमों ने

राजा के दरबारों से।

 

सजा मिली सच्चाई को

तो झूठ हँसा

मुफ़्त गवाही दी,सच की

ईमान फँसा,

बिका हुआ हाकिम

फरेबी उपकारों से। हाथ मिलाए……….

 

विद्या ने वैभव से मिलकर

जुगत भिड़ाई

और कलम ने लफ्फाजों से

प्रीत बढ़ाई,

भटक रहा इंसान

भ्रमित हो बाजारों से। हाथ मिलाए………

 

संत, मौलवी अभ्यासी

सब भोगों के

अस्पताल में रोगाणु

सब रोगों के,

अमन शांति के हैं प्रयास

अब हथियारों से।

 

हाथ मिलाये फसलों ने

खरपतवारों से।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 32 ☆ शहर के मकान… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “शहर के मकान…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 32 ☆ शहर के मकान… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

आँगन को तरस गए

शहर के मकान।

 

खिड़कियों पर लेटी

थोड़ी सी धूप

दरवाज़े पर ठिठके

सूरज के रूप

 

छज्जों पर झुलस गए

लतिका के प्रान।

 

सटे-सटे घर हैं पर

दूर-दूर मन

अपने अपनेपन में

सभी हैं मगन

 

प्रीति गंध बिना छुए

फूलों के गान।

 

भटकता सा हर दिन

फ़ुरसत की रात

परिचित सी चुप्पियाँ

बहरे हालात

 

बोझिल से पंख लिए

हवा पर उड़ान ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विलोम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – विलोम ? ?

विद्यालय में विलोम का पाठ ठीक से नहीं पढ़ पाया था। फिर जीवनभर पढ़ना पड़ा विलोम का पाठ।

जिससे सुख की आस रही, उसने पीड़ा दी। जिस पर विश्वास किया, उसने विश्वासघात किया। जिनसे अपनापन अपेक्षित था, वे व्यवहार करते रहे परायों-सा। जीने ने भी साथ नहीं दिया, सो मर-मरकर जिया।

सचमुच मरा तब तक विलोम को जीता रहा वह।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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