हिंदी साहित्य – कविता ☆ सांझ… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ सांझ ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सांझ

वापसी का उत्सव है !!

कलरव है

सौ सौ चिड़ियों का,

जो गगन नापकर लौट आती हैं

दरख्तों पर

अपने अपने नीड़  में

चूजों के पास !!

 

    रव है

उन कोमल किरणों का

जो पौ फटने से लेकर

दिन के

अंतिम क्षण तक

उड़ेलती हैं उजाले

अनथक !!

 

     अनुभव है

उनका जो एक पूरी

उम्र जैसा दिन जीकर

निविड़ कोलाहल से

थककर चूर

चले आते हैं

खुद तक !!!

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 82 ☆ इबादत सिखाता मुहब्बत की सबको… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “इबादत सिखाता मुहब्बत की सबको“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 81 ☆

✍ इबादत सिखाता मुहब्बत की सबको… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

जमीं रो रही आसमां रो रहा है

नहीं रहनुमा अम्न का दूसरा है

 *

बहे आदमी का लहू चार सू अब

ये इंसान को आज क्या हो गया है

 *

इबादत सिखाता मुहब्बत की  सबको

वही आज मज़हब लड़ाने लगा है

 *

चले थाम औरों की बैशाखियाँ जो

कहाँ अपने पैरों पे होता खड़ा है

 *

जो औरों को खोदा है गढ्ढे हमेशा

ये तय आसमां भी उसी पर गिरा है

 *

तुम्हें राजदां मैं बना कब का लेता

फ़रेबों का रुकता नहीं सिलसिला है

 *

बड़ी कीमतों और महसूल से हम

मलें हाथ क्यों तुझको नेता चुना है

 *

बड़ी स्याह है ये सियासत की गलियाँ

चला इनमें जो उसका ईमां गिरा है

 *

अरुण इश्क़ में ज़ख्म पाकर भी ख़ुश हूँ

निशानी में उसने मुझे कुछ दिया है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ ‘निर्वाण’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Nirvana…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poetry निर्वाण.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – निर्वाण  ? ?

?

असीम को जानने की

अथाह प्यास लिए,

मैं पार करता रहा

द्वार पर द्वार,

अनेक द्वार,

अनंत द्वार,

अंतत: आ पहुँचा

मुक्तिद्वार…,

प्यास की उपज

मिटते नहीं देख सकता मैं,

चिरंजीव जिज्ञासा लिए

उल्टे कदम लौट पड़ा मैं,

मुक्ति नहीं तृप्ति चाहिए मुझे,

निर्वाण नहीं सृष्टि चाहिए मुझे!

?

© संजय भारद्वाज  

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Nirvana ~??

With an immense thirst to know the infinite,

I kept crossing doors after doors,

many doors,

infinite doors,

Finally reached Muktidwar, the door of salvation…,

I cannot see the fruits of thirst disappearing,

Driven by the eternal inquisitiveness, I turned back,

I don’t want the liberation,

I want contentment.

I want creation, not the Nirvana!

??

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 78 – बोझ ज्यों सिर से उतारा हमने… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – बोझ ज्यों सिर से उतारा हमने।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 78 – बोझ ज्यों सिर से उतारा हमने… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

वक्त, ऐसा भी गुजारा हमने 

बोझ, ज्यों सिर से उतारा हमने

 *

जिसको फेंका उतार, नजरों से 

उसको देखा न दुबारा हमने

 *

अपनी इच्छाओं के हैं कातिल हम 

तेरी खातिर, उन्हें मारा हमने

 *

उसके चेहरे पे, देख मायूसी 

दाँव जीता हुआ, हारा हमने

 *

तुमने, इक बार भी नहीं देखा 

बारहा, तुमको पुकारा हमने

 *

हम तो, फूलों से बिछ गये होते

तेरा, पाया न इशारा हमने

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 151 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत हैं  “मनोज के दोहे ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 151 – मनोज के दोहे ☆

प्रत्याशा हर राष्ट्र से, हों मानव-हित काम।

हिंसा को त्यागें सभी, बढ़े देश का नाम।।

 *

नव प्रत्यूषा की किरण, बिखरी भारत देश।

जागृति का स्वर गूँजता, बदल रहा परिवेश।।

 *

करूँ प्रथमेश वंदना,गौरी तनय गणेश।

मंगलमय की कामना, कारज-सिद्धि प्रवेश।।

 *

राम प्रभु प्राकट्य हुए, पुण्य धरा साकेत।

रघुवंशी दशरथ-तनय, राम राज्य के हेत।।

विकसित भारत बढ़ रहा, सबका है उत्कर्ष।

दिल आनंदित हो उठा, होता भव्य प्रहर्ष।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – निर्वाण ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – निर्वाण ? ?

?

असीम को जानने की

अथाह प्यास लिए,

मैं पार करता रहा

द्वार पर द्वार,

अनेक द्वार,

अनंत द्वार,

अंतत: आ पहुँचा

मुक्तिद्वार…,

प्यास की उपज

मिटते नहीं देख सकता मैं,

चिरंजीव जिज्ञासा लिए

उल्टे कदम लौट पड़ा मैं,

मुक्ति नहीं तृप्ति चाहिए मुझे,

निर्वाण नहीं सृष्टि चाहिए मुझे!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  श्री लक्ष्मी-नारायण साधना सम्पन्न हुई । अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही दी जाएगी💥 🕉️   

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 213 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 212 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

✍विश्वामित्र ✍

नई सृष्टि के

स्वप्नदृष्टा,

सृष्टा

विश्वामित्र,

तुम्हें ब्रह्मर्षि कहूँ

या राजर्षि ।

कितनी वीभत्स है

नारकीय है

निन्दनीय है

तुम्हारी

गुरुदक्षिणा की परम्परा ।

द्रोण ने माँगा

अँगूठा,

और तुमने

आठ सौ श्यामकर्ण अश्व

जानते हुए भी

कि उन्हें पाना है

दुष्कर।

माना,

ये परीक्षाएँ थीं

किन्तु

परिणाम ?

और

गुरु दक्षिणा के यज्ञ में आहुति दी गई

माधवी की।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 213 – “क्षीण हो विखरी तुम्हारी…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत क्षीण हो विखरी तुम्हारी...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 213 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “क्षीण हो विखरी तुम्हारी...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

सिर्फ आडम्बर अतुल

अभिमान लेकर के चलें ।

यह तुम्हारी चाम निर्मित

बुद्धिजीवी चप्पलें ॥

 *

ढो रहीं असहज वजन को

आग की मानक सहेलीं ।

सब जुटे करने यहाँ हल

धैर्यकी उलझी पहेली ।

 *

शांत करने को निरंतर

साधती हैं श्रम अपरिमित ।

राज्य शासन की तरफ से

आ रही हैं हमकलें ॥

 *

तुम अभी अनुमान का

लेकर सहारा चल रहे हो । .

किन्तु सच हो आकलन

सारा तुम्हारा हल रहे हों ।

 *

अभी सचभी नहीं हो

पायी यहाँ पर क्या कहें ।

क्षीण हो विखरी तुम्हारी

ढेर सारी अटकलें ॥

 *

तुम बहे हो प्रकृति में

निर्वाध कैसे क्या कहूँ मैं ।

और इस आचरण को अब

क्या कहूँ कैसे सहूँ मैं ।

 *

इधर सारा शहर कैसे

चुप दिखाई देरहा है ।

और आखिर मौन हो

बैठी हमारी हलचले ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

10-11-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विदेह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – विदेह  ? ?

?

तन में जाने कैसा

आत्मघाती उन्माद भरा है,

मुझे देह से विदेह

करने पर तुला है,

 

बावरा है, क्या जाने,

मन से मेरा भीतर,

जाने कब से

विदेह हो चला है..!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 4:39 बजे, 6.11.24

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  श्री लक्ष्मी-नारायण साधना सम्पन्न हुई । अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही दी जाएगी💥 🕉️   

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 197 ☆ # “एक हसीन ख्वाब…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता एक हसीन ख्वाब…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 197 ☆

☆ # “एक हसीन ख्वाब…” # ☆

एक हसीन ख्वाब

देखते-देखते टूटा है

मेरा सफ़ीना

मंझधार में लूटा है

 

लहरों का दोष नहीं

मै ही बेहोश था

पतवार की आवाज से

मै ही मदहोश था

डगमगाती नाव देख

पतवार हाथ से छूटा है

मेरा सफ़ीना

मंझधार में लूटा है

 

कितने चंचल यह

बहते हुए धारे हैं  

कितने मनभावन यह

दूर किनारे हैं

किनारों के मोह में

अक्सर मेरा दम घुटा है

मेरा सफ़ीना

मंझधार में लूटा है

 

किरणों से चमकती

यह बूंद बूंद है

राह कठिन है

छाई हुई धुंध है

ना जाने क्यों मुझसे

 ऊपरवाला रूठा है

मेरा सफ़ीना

मंझधार में लूटा है

एक हसीन ख्वाब

देखते-देखते टूटा है /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print