हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तुम लिखो कविता! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – तुम लिखो कविता! ? ?

उन्होंने कविता और

कवित्व की हँसी उड़ाई,

मैंने कलम उनके हाथ थमाई

और कहा, अब तुम लिखो कविता!

 

उनकी हँसी अचकचाई,

दृष्टि सकुचाई,

मैंने कलम ली उनके हाथ से

लिखी पक्तियाँ उसी

अचकचाने-सकुचाने पर

और उन्हें ही प्रति थमाई।

 

सृजन यों ही नहीं जन्मता,

देखना, दृष्टि में यों ही नहीं बदलता,

कविताओं के छत्ते से

तुम भरपूर शहद

भले ही जुटा पाओगे,

स्मरण रहे,

मधुमक्खी तो तब भी नहीं हो पाओगे!

 

बाहरी जगत के विस्तार का

माइक्रोचिप बनाएगी कविता,

जब कभी भीतर देखना होगा

उन्हें रास्ता दिखायेगी कविता!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #22 ☆ कविता – “रावण तो अभी जिंदा हैं…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 22 ☆

☆ कविता ☆ “रावण तो अभी जिंदा हैं…☆ श्री आशिष मुळे ☆

पुतलों में तो वैसे ही जान नहीं

पुतला-कारों में बारूद भरा पड़ा है

आज राम है या नहीं पता नहीं

राक्षस तो अखबारों के पन्नों पर है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

जान इस रावण की

नाभि में नहीं है

इसकी जान, जिसमें नहीं

ऐसा आज कोई चिन्ह  ही नहीं है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

कहानियों और चिन्हों से

लबालब आज लंकाए हैं 

जहां खौफ से लथपथ

हृदय और मन है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

कौन दे रहा है जान

ये रावण क्या खाता है

क्या ग़लतफहमी यही

हमारे खेत का अनाज है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

तुम्हारा राम चौखट के अंदर है

चौखट के बाहर तो घना अंधेरा है

गर कभी चौखट लांघनी पड़े

समझ लो हरण तुम्हारा तय है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

गर रावण को मिटाना है

तीर हमें ही चलाने हैं 

कहानियों की चौखट लांघकर

जान चिन्हों की निकालनी है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

मानवता के दंडकारण्य में अज्ञान अंधेरा है

जिसमें अंधविश्वास यही मूल शिकारी है

इक दिन सूरज निकलेगा, मुझे ये विश्वास है

मगर आज का राम तुम्हे ही बनना है…

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 182 ☆ बालगीत – तुम बढ़े चलो ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 182 ☆

☆ बालगीत – तुम बढ़े चलो ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

शुभ कर्म करो जीवन पथ पर

तुम बढ़े चलो।

तुम बढ़े चलो।।

बनकर जन – जन के विश्वासी

तुम बढ़े चलो।

तुम बढ़े चलो।।

 

तुम फूल सरीखा महको जी।

तुम बुलबुल जैसा चहको जी।

तुम आसमान के तारे हो,

तुम मन से कभी न बहको जी।

 

तुम पुण्य धरा के हो वासी।

तुम बढ़े चलो।

तुम बढ़े चलो।।

 

तुम साथ चलो हर प्राणी के।

तुम शिखर बनो मधु वाणी के।

तुम उड़ो गगन  में पंछी बन।

तुम बन जाओ प्यारा सावन।

 

भू रहे नहीं अपनी  प्यासी।

तुम बढ़े चलो।

तुम बढ़े चलो।।

 

 

तुम को हर  बाधा से लड़ना।

हर शैल शिखर पर है  चढ़ना।

इस उर  में नई उमंग लिए

स्व: दोष नहीं तुम को मढ़ना।

 

तुम ही मथुरा तुम ही काशी

तुम बढ़े चलो।

तुम बढ़े चलो।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #205 – कविता – ☆ सही-सही मतदान करें… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके सही-सही मतदान करें”।)

☆ तन्मय साहित्य  #205 ☆

☆ सही-सही मतदान करें… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

चलो! आज कुछ बातें कर लें

जागरूक हो ज्ञान की

क्या महत्व है मतदाता का

क्या कीमत मतदान की।

 

मंदिर बना हुआ है लोकतंत्र का,

सबके वोटों से

बचकर रहना, लोभी लम्पट

नकली धूर्त मुखौटों से,

नहीं प्रलोभन, धमकी से बहकें

सौगन्ध विधान की। …

 

जाती धर्म, रिश्ते-नातों को भूल,

सत्य को अपनाएँ

सेवाभावी, निःस्वार्थी को

वोट सिर्फ अपना जाए,

मन में रहे भावना केवल

देश प्रेम सम्मान की। …

 

जिस दिन हो मतदान

भूल जाएँ

सब काम अन्य सारे

मत पेटी के वोटों से ही

होंगे देश में उजियारे,

महा यज्ञ राष्ट्रीय पर्व पर

आहुति नव निर्माण की। …

 

मतदाता सूचियों में पात्र नाम

सब अंकित हो जाये

है अधिकार वोट का सब को

वंचित कोई न रह पाए,

बजे बाँसुरी सत्य-प्रेम की

जन गण मंगल गान की

क्या महत्व है मतदाता का

क्या कीमत मतदान की।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 30 ☆ सोचता हूँ-… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सोचता हूँ- …” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 30 ☆ सोचता हूँ- … ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सोचता हूँ गीत सब,नीलाम कर दूँ

आदमी जब आदमी को छल रहा है।

 

सच के कागज पर दिखे

झूठ के अख़बार लिक्खे

हर किसी विश्वास की

लगा क़ीमत चंद सिक्के

 

छल-फ़रेबों की सजी हैं मंडियाँ

बोथरा ईमान घुटनों चल रहा है।

 

खोलते साँकल वही

हाथ में जिनके हिफ़ाज़त

जिस किसी ने पुण्य बेचा

ख़रीदी पापी शरारत

 

कौन हाथों उमर की पतवार सौंपूँ

हर किनारा ज़िंदगी का गल रहा है।

 

देखते ही टूट जाते

बिंब सारे दर्पनों में

हाथ मैले हो गए

धर्म-पूजा अर्चनों में

 

किस हथेली उजाले का दीप धर दूँ

हर किसी के मन अँधेरा पल रहा है।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भाषा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – भाषा ? ?

‘ब’ का ‘र’ से बैर है,

‘श’ की ‘त्र’ से शत्रुता,

‘द’ जाने क्या सोच

‘श’,‘म’ और ‘न’ से

दुश्मनी पाले है,

‘अ’ अनमना-सा

‘ब’ और ‘न’ से

अनबन ठाने है,

स्वर खुद पर रीझे हैं,

व्यंजन अपने मद में डूबे हैं,

‘मैं’ की मय में

सारे मतवाले हैं,

है तो हरेक वर्ण

पर वर्णमाला का भ्रम पाले है,

येन केन प्रकारेण

इस विनाशी भ्रम से

बाहर निकाल पाता हूँ,

शब्द और वाक्य बन कर

मैं भाषा की भूमिका निभाता हूँ!

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 11: 55 बजे, 16.12.18)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कहाँ आगाज़ सा अंजाम है इसका… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “कहाँ आगाज़ सा अंजाम है इसका“)

✍ कहाँ आगाज़ सा अंजाम है इसका… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

नई उम्मीद फिर उसने जगाई है

मुझे वो देख के जो मुस्कराई है

कहाँ आगाज़ सा अंजाम है इसका

मुहब्बत खूब मैंने आज़माई है

यहाँ इंसान ने तासीर जो बदली

मुसीबत खुद बुलाना अब भलाई है

न ढूढे से मिली दुनिया में अच्छाई

जहाँ देखो बुराई ही बुराई है

मरीज़ -ए -इश्क़ को केवल दुआ कीजे

कहाँ इस रोग की कोई दवाई है

ख़ुशी घर भाइयों के रोकती आना

ये जो दीवार आँगन में उठाई है

ये अंधे भक्त है रहबर के अब इनकी

बड़ी मुश्किल गुलामी से रिहाई है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 27 – कड़वे दिवस बिताये हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कड़वे दिवस बिताये हैं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 27 – कड़वे दिवस बिताये हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

जहाँ छद्म हो वहाँ

भला क्या सच्चाई दिखती 

 

उनसे पूछो जिनने 

कड़वे दिवस बिताये हैं 

मीठे फल चाहे थे 

खट्टे अनुभव पाये हैं 

धुंधले दरपन में

तस्वीरें साफ नहीं दिखती 

 

बरबस मुस्कानें चिपकाकर 

दुख सह लेती हैं 

निश्छल आँखें किन्तु हमारी 

सच कह देती हैं रोटी तो मिलती हैं

पर पहले अस्मत बिकती 

 

चलती है दरबारों में 

अब केवल लफ्फाजी 

जी हुजूर कहकर 

पुतले की सहते नाराजी 

बिकी कलम, कायरपन को तक

शौर्य रही लिखती

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 104 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 104 – मनोज के दोहे… ☆

1 नैवेद्य

ईश्वर को नैवेद्य से, खाना हो आरंभ।

यही समर्पण भाव हो, कभी न आता दम्भ।।

2 आचमन

सद्कर्मों का आचमन, करें सभी हरहाल।

कष्ट नहीं फिर घेरते, गुजरें अच्छे साल।।

3 नीराजन

पूजन नीराजन करें, भक्ति भाव से मंत्र।

सुधरेंगें हर काज तब, सफल रहेगा तंत्र।।

4 शंख

शंख-नाद कर आरती, करें भक्त गण रोज।

जयकारे हैं गूँजते, भरते मन में ओज।।

5 मंत्र

मंत्र-तंत्र की साधना, कठिन भक्ति का योग।

भवसागर से पार हों, फटकें कभी न रोग।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आहत ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – आहत ? ?

आहत हूँ

पर क्या करूँ,

जानता था

सारी आशंकाएँ मार्ग की,

सो समूह के आगे

चलता रहा,

डग भरने से चोटें

घिसटने से खरोंचेेंं,

पीछे चलनेवालों के घात,

पीछे खींचनेवालों के आघात,

रास्ता दिखाने वालों के पास

आहत होने के सिवा

कोई विकल्प भी तो

नहीं होता ना..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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