हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 165 ☆ नवगीत – प्रवहित थी अवरुद्ध है… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं – एक नवगीत – प्रवहित थी अवरुद्ध है)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 165 ☆

☆ नवगीत – प्रवहित थी अवरुद्ध है ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

प्रवहित थी अवरुद्ध है

नेह नदी की धार,

व्यथा-कथा का है नहीं

कोई पारावार।

*

लोरी सुनकर कब हँसी?

कब खेली बाबुल गोद?

कब मैया की कैयां चढ़ी

कर आमोद-प्रमोद?

मलिन दृष्टि से भीत है

रुचता नहीं दुलार

प्रवहित थी अवरुद्ध है

नेह नदी की धार

*

पर्वत – जंगल हो गए

नष्ट, न पक्षी शेष हैं

पशुधन भी है लापता

नहीं शांति का लेश है

दानववत मानव करे

अनगिन अत्याचार

प्रवहित थी अवरुद्ध है

नेह नदी की धार

*

कलकल धारा सूखकर

हाय! हो गयी मंद

धरती की छाती फ़टी

कौन सुनाए छंद

पछताए, सुधरे नहीं

पैर कुल्हाड़ी मार

प्रवहित थी अवरुद्ध है

नेह नदी की धार

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१०-६-२०१६

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #215 – 102 – “वायदों के परिंदे फुर्र से उड़ जाएँगे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल वायदों  के  परिंदे  फुर्र  से उड़  जाएँगे…” ।)

? ग़ज़ल # 102 – “वो यूँ मिलता था  कभी ना बिछड़ेगा…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

जनादेश मिला अब तो हाते खुल जाएँगे,

ख़ाली हुए ख़ज़ाने अब जल्दी भर जाएँगे।

सुचिता संहिता चुनाव होने तक ही लागू,

रेत भू माफिया अब हरकत में आ जाएँगे,

हर चुनाव के बाद ऐसा ही होता आया है,

पक्ष विपक्ष नेता पाँच साल को सो जाएँगे।

आ गये  जो चुनकर  पाल रहे  हैं सपने,

वायदों  के  परिंदे  फुर्र  से उड़  जाएँगे।

पक्ष विपक्ष खेल रहे साँप सीढ़ी का खेल,

निन्यानवे वाले दो नंबर पर उतर आयेंगे।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – अब वक़्त को बदलना होगा – भाग -8 ☆ सुश्री दीपा लाभ ☆

सुश्री दीपा लाभ 

(सुश्री दीपा लाभ जी, बर्लिन (जर्मनी) में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। हिंदी से खास लगाव है और भारतीय संस्कृति की अध्येता हैं। वे पिछले 14 वर्षों से शैक्षणिक कार्यों से जुड़ी हैं और लेखन में सक्रिय हैं।  आपकी कविताओं की एक श्रृंखला “अब वक़्त  को बदलना होगा” को हम श्रृंखलाबद्ध प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की अगली कड़ी।) 

☆ कविता ☆ अब वक़्त  को बदलना होगा – भाग – 8 सुश्री दीपा लाभ  ☆ 

[8]

हम भ्रष्टाचार का रोना रोते हैं

हर महकमे पर तंज कसते हैं

हो अफसर सरकारी बाबू

या हो कोई प्राइवेट क्लर्क

खामियों की गिनती करते हैं

हर रोज़ गालियाँ देते हैं

ये हुआ क्यों, कैसे हुआ

ऐसा विचार कब करते हैं

जड़ में जाना हो इनकी तो

घर से इसकी शुरुआत करो

समस्या कहाँ नहीं है आज

विश्लेषण करो, विचार करो

समस्या गिनाने में कैसी बहादुरी

उन्हें सुलझाने के उपाय करो

कहीं ऊँगली उठाने से पहले

अपनी गिरेबान में झाँको

हर भ्रष्ट आचरण की शुरुआत

अपने घर से तो होती है

गलत-सलत अच्छा या बुरा

सब सामने घटता रहता है

चुप्पी धर कर सहते रहना

क्या इससे मन नहीं बढ़ता है?

लाचारी का रोना बहुत हुआ

जागरूक हो फर्ज़ निभाना होगा

अब वक़्त को बदलना होगा

© सुश्री दीपा लाभ 

बर्लिन, जर्मनी 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कुंदन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – कुंदन ? ?

नित्य आग में

जलाया जाना,

तेज़ाब में रोज़

गलाया जाना,

लहुलुहान

की जाती वेदनाएँ,

क्षत-विक्षत

होती संवेदनाएँ,

अट्टहासों के मुकाबले

मेरे मौन पर चकित हैं,

कुंदन होने की प्रक्रिया से

वे नितांत अपरिचित हैं!

© संजय भारद्वाज 

(प्रात: 6:29 बजे, 25.3.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 92 ☆ मुक्तक ☆ ।।संघर्ष में तपकर ही व्यक्ति महान होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 92 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। संघर्ष में तपकर ही व्यक्ति महान होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

जब हौंसला हमारा   चट्टान  सा   होता है।

तो फिर  रास्ता भी  आसान सा  होता   है।।

जो विपरीत परिस्थितियों में धैर्य खोते नहीं।

उनके लिए संकट बस मेहमान सा होता है।।

[2]

मन में विश्वास तो कोई हरा नहीं सकता।

बिना आस के तो कोई जिता नहीं सकता।।

यदि मन से न हारे तो फिर हार होती नहीं ।

यदि ठान लो तो कोई   गिरा   नहीं सकता।।

[3]

उम्मीद से अंधेरे में भी उजाला हो जाता है।

खराब हालात प्रभु खुद रखवाला हो जाता है।।

कुदरत खुद सवाल का जवाब जाती है बन।

जोश जनून सेआदमी दिलवाला हो  जाता है।।

[4]

जो कि  हर  स्तिथि  में    धैर्यवान    होता है।

वह जाकर फिर एक  सफल इंसान होता है।।

अपनेअनमोल जीवन का मूल्य जो जानता।

वही फिर सोने सा तप   कर  महान होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 155 ☆ ‘स्वयं प्रभा’ से – “जिसके आध्यात्मिक वैभव की चर्चा देश-विदेश है” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “जिसके आध्यात्मिक वैभव की चर्चा देश-विदेश है। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘स्वयं प्रभा’ से – “जिसके आध्यात्मिक वैभव की चर्चा देश-विदेश है” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

इस दुनियाँ में सबसे सुन्दर अनुपम भारत देश है

 अपने में अपना सा प्यारा इसका हर परिवेश है ।।

 पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण बिखरा अति सौंदर्य है

 वन, मरूथल, पर्वत, नदियों मंदिरों में भी आश्चर्य है

 प्राकृत सुषमा, हरे भरे खेतों में अजब मिठास है

 हर प्रदेश का खान-पान कुछ भिन्न है, मोहक वेश है || 1 ||

 

उत्तर, ओड़ीसा, कर्नाटक अलग नृत्य संगीत है

खान पान जीवन पद्धति में सबकी अपनी रीति है

फिर भी सब हैं सरल भारतीय, संस्कृति अनुपम एक सी

गंगोत्री से रामेश्वर तक धार्मिक भाव विशेष है || 2 ||

 

इस दुनियाँ में.

राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत हर मन की पावन चाह है

प्रगति हिमालय सी संवृद्धि हो जैसे सिन्धु अथाह है

जीवन सबका निर्मल मन पावन हो कर्मठ भावना

भारत का युग युग से “बंधुता’ प्रेम रहा संदेश है ||3||

 

इस दुनियाँ में..

सकल देश में दूर छोर तक सरल सादगी व्याप्त है।

अभ्यागत का स्वागत मन से करना सबको आप्त है।

धार्मिक मर्यादाओं का सभी निर्वाह सदा हर हाल में

हरेक निवासी के मन में बैठा पूर्वज आदेश है ||4||

 

इस दुनियाँ में सबसे सुंदर अनुपम भारत देश है।

जिसके आध्यात्मिक वैभव की चर्चा देश-विदेश है ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

vivek1959@yahoo.co.in

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बाल कविता – “परी…” ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆

श्री सुनील देशपांडे

☆ बाल कविता – “परी…” ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆

छमछम छमछम छमछम री,

चमचम चमचम चमचम री।

चांद के किरनों पे करके सवारी,

 परियों की दुनिया से आई परी।

 *

परियों की दुनिया मे चल मेरे साथ,

जादू की छड़ियों पे रख दे तू हाथ।

परियों की दुनिया कितनी थी न्यारी,

अपनी दुनिया से कितनी थी प्यारी।

 *

ठंडी हवाए, था मौसम सुहाना,

डाली पे पंछी, गाते थे गाना।

पेडो पे फल और पौधों पे फूल,

हरियाली नीचे, ना आती थी धूल।

 *

रुचि फलों की और फूलों का गंध,

कितनी में लालचाई, रह गई दंग।

बोली मे परी से जादू कर दे

मेरी भी दुनिया ऐसी कर दे।

 *

छमछम छमछम छमछम री,

चमचम चमचम चमचम री।

चांदके किरनोंपे करके सवारी

 परियों की दुनिया से आई परी।

 *

जादू नहीं है ये बोली परी, 

आदत ही अपनी है जादूगिरी ।

ना केक, ना कोक, ना बर्गर मांगो,

होटल ना जाओ, ना बिस्कुट मांगो।

 *

फल खाओ, तरकारी हरी भरी,

प्लास्टिक ना हो तो, दुनिया हरी।

कुंडी में पौधे और कचरे का खाद,

फूलों के गंधों का फैलेगा स्वाद।

 *

सिखाओ जादू ये सबको रानी,

शुरू में थोड़ी सी होगी हैरानी ।

सिखाओ मम्मी को, डैडी को भी।

टीचर को, दोस्तों को, औरों को भी।

 *

दुनिया तुम्हारी अब आए यहां,

ध्यान में रख्खो जो मैंने कहा।

चांद गगन में जब तक रहेगा।

वापस मुझे भी जाना ही होगा।

 *

छमछम छमछम छमछम री,

चमचम चमचम चमचम री।

चांद के किरणों पे करके सवारी

परियों की दुनिया मे गई परी।

 *

लगती ना तुमको सच्ची ये बात?

करो ना जादू तुम मेरे साथ।

© श्री सुनील देशपांडे

मो – 9657709640

email : sunil68deshpande@outlook.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #209 ☆ भावना के दोहे … ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 209 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे …  डॉ भावना शुक्ल ☆

हवाएं धीमी बह रही, बजे मधुर संगीत।

नई कहानी वो कहे, है जीवन की  रीत।।

कलियां कैसे मिल रही, जैसे मिलती बाह।

मन ह्रदय की खिली कली, है आपस में चाह।।

पत्ते – पत्ते झर रहे, झरता है संगीत।

सुख -दुख के वो गा रहे, गाए प्यार का गीत।।

हौले- हौले चल रही, पकड़े ठंडक हाथ।

मौसम करवट बदलता, ठंडी हवा के साथ।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : bhavanasharma30@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धरना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – धरना ? ?

वह चलता रहा

वे हँसते रहे..,

वह बढ़ता रहा

वे दम भरते रहे..,

शनै:-शनै: वह

निकल आया दूर,

इतनी दूरी तय करना

बूते में नहीं, सोचकर

सारे के सारे ऐंठे हैं..,

कछुए की सक्रियता के विरुद्ध

खरगोश धरने पर बैठे हैं.!

© संजय भारद्वाज 

(प्रात: 4:35 बजे, 3.1.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #192 ☆ संतोष के दोहे  – मत की कीमत ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – मत की कीमतआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 192 ☆

☆ संतोष के दोहे  – मत की कीमत ☆ श्री संतोष नेमा ☆

गारंटी पर दे रहे, फिर गारंटी लोग

आपके एक वोट से, बदल गये सब योग

मत की कीमत जानिए, ये जीवन आधार

इसे कभी मत बेचिये, विधि की यही पुकार

जात-पात को छोड़कर, देखें काबिल लोग

उनको ही चुनिये सदा, जिन्हें न कुर्सी रोग

देकर लालच मुफ्त का, चाह रहे सब जीत

सोच समझ कर दीजिये, मत मेरे प्रिय मीत

करे कोई तुष्टिकरण, कोई फेके जाल

करें प्रश्न खुद से जरा, समझें तब सच हाल

राष्ट्र-धर्म सबसे बड़ा, कहता यह “संतोष”

भारत माँ की शान ही, जीवन का सच कोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares