हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 228 – “निर्मल आनंद की तलाश में ।” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत निर्मल आनंद की तलाश में ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 228 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “निर्मल आनंद की तलाश में ।” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

भारी गहमागहमी

ढूँडरहा आदमी

नहीं मिला मैं

मेरी लाश में ॥

 

कमियाँ रहीं किंचित

सदियो रही वंचित

यह है हठधर्मिता

जो नहीं हुई सिंचित

 

उतरा तूफान का

अधूरापन

क्या रखा

सूखते पलाश में ॥

 

राग की कोई संगत

प्रेम की चमक रंगत

खोज रही खोयासुख

देखती हुई पंगत

 

वही खड़ी खम्भे संग

छायाको ढूँडती

चौराहे के ढले

प्रकाश में ॥

 

सुधियो का मिलाजुला

टूट चला सिलसिला

बागडोर थामते

बिखर गया काफिला

 

चाही अनचाही इन

आँखो का सूनापन

सूखा सा कुँआँ है

आकाश में ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

10-03-2025

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अक्षर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अक्षर ? ?

उद्भूत भावनाएँ,

अबोध संभावनाएँ,

परिस्थितिवश

थम जाती हैं,

कुछ देर के लिए

जम जाती हैं,

दुख, आक्रोश

अपने दाह से तपते हैं,

मन की भट्टी में

अपनी आँच पर पकते हैं,

लोहे-सा पिघलते हैं,

लावे-सा उफनते हैं,

आकार, कहन लिए

कागज़ पर उतरते हैं,

भावनाओं का संभूता

चक्र पूरा होता है,

साझा किए बिना

उत्कर्ष अधूरा होता है,

सुनो मित्र!

अभिव्यक्ति का कभी

मरण नहीं होता,

अक्षर का कभी

क्षरण नहीं होता।

?

© संजय भारद्वाज  

24.12.18, रात्रि 11:07बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री शिव महापुराण का पारायण सम्पन्न हुआ। अगले कुछ समय पटल पर छुट्टी रहेगी। जिन साधकों का पारायण पूरा नहीं हो सका है, उन्हें छुट्टी की अवधि में इसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 210 ☆ # “शब्द हैं अनमोल…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता शब्द हैं अनमोल…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 210 ☆

☆ # “शब्द हैं अनमोल…” # ☆

वाणी में रस घोलिए

शब्द है अनमोल

दुनिया को भाते नहीं

कड़वे सच्चे बोल

 

चुभते हैं तीर से

शब्दों के कर्कश बाण

टीस रहती है उम्र भर

निकल जाते हैं प्राण

स्नेह के धागे होते हैं कमजोर

भावनाओं से ना तोल

दुनिया को भाते नहीं

कड़वे सच्चे बोल

 

कौन समझता है आंखों की भाषा

छुपी हुई है उसमें अभिलाषा  

जब टूटती है हर पल आशा

तब मन में जागती है निराशा

बसंत बाहें फैलाए खड़ा है

प्रियतम बस तू अपनी आंखें खोल

दुनिया को भाते नहीं

कड़वे सच्चे बोल

 

तेरी रचनाओं में धार है

विसंगतियों पर मार है

तेरे पथ में फूल नहीं है

पग पग पर विषैले खार है

भीड़ जुटा आगे बढ़

वरना है सब बेमोल

दुनिया को भाते नहीं

कड़वे सच्चे बोल

 

तू दीन दुखियों का मित्र है

गंगा जल सा तेरा चरित्र है

पाखंड से भरी इस दुनिया में

कितना आशावान तेरा चित्र है

हर आंख में रोशनी भर दे

फिर तू दुनिया से डोल

दुनिया को भाते  नहीं

कड़वे सच्चे बोल

 

वाणी में रस घोलिए

शब्द हैं अनमोल

दुनिया को भाते नहीं

कड़वे सच्चे बोल/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – होली आई रे… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता होली आई रे।)

☆ कविता – होली आई रे☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

ठंड गुलाबी सी आई है,

मौसम ने ली अंगड़ाई है,

रंगों की होगी बौछार,

कि होली आई है.

*

राधा सखियों के संग आई,

रंग,गुलाल,अबीर भी लाई,

खुशियां छाईं हजार,

कि होली आई है,

*

राधा ने पिचकारी मारी,

रंग में भीग गए बनवारी,

लगी पिचकारी की धार,

कि होली आई है,

*

श्याम रंग में मुझको रंगना,

और न कोई रंग में रंगना,

राधा करे गुहार,

कि होली आई है,

*

राधा तेरे रंग रंगा हूं,

तेरे ही तो संग बंधा हूं,

तेरा ही  त्यौहार,

कि होली आई है,

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 226 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 226 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 226) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 226 ?

☆☆☆☆☆

ये गिले-शिकवे तो सिर्फ़..

साँस लेने तक ही चलते हैं,

बाद में सिर्फ़ कमज़र्फ़ यादें

और  पछतावे  रह जाते हैं…

☆☆

Grouses and grievances 

Last only till you breathe,

Later,  faded memories 

and regrets only remain…!

☆☆☆☆☆

आईए ख्वाबों में ही

मुलाकात कर लेते हैं

पाबंदी सड़कों पर हैं

ख्यालों पर तो नहीं…

☆☆

Come let’s meet 

in the dreams only

Restrictions are on roads 

but not on the thoughts..

☆☆☆☆☆

जो ज़ाहिर हो जाए

वो दर्द कैसा और…

जो ख़ामोशी ना पढ़ पाए

वो हमदर्द ही कैसा….

☆☆

What  kind of  pain is that

That  gets  expressed and

What kind of soul mate is that

Who cannot read the silence…

☆☆☆☆☆

और कोई नहीं है जो

मुझको तसल्ली देता हो

बस तेरी यादें  ही हैं जो

दिल पर हाथ रख देती है…

☆☆

There is no one else who can

Give me comforting solace

It is just your memories that

give consolation to the heart…

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 225 – अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – महिला दिवस! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – महिला दिवस!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 225 ☆

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – महिला दिवस! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

एक दिवस क्या

माँ ने हर पल, हर दिन

महिला दिवस मनाया।

*

अलस सवेरे उठी पिता सँग

स्नान-ध्यान कर भोग लगाया।

खुश लड्डू गोपाल हुए तो

चाय बनाकर, हमें उठाया।

चूड़ी खनकी, पायल बाजी

गरमागरम रोटियाँ फूली

खिला, आप खा, कंडे थापे

पड़ोसिनों में रंग जमाया।

विद्यालय से हम,

कार्यालय से

जब वापिस हुए पिताजी

माँ ने भोजन गरम कराया।

*

ज्वार-बाजरा-बिर्रा, मक्का

चाहे जो रोटी बनवा लो।

पापड़, बड़ी, अचार, मुरब्बा

माँ से जो चाहे डलवा लो।

कपड़े सिल दे, करे कढ़ाई,

बाटी-भर्ता, गुझिया, लड्डू

माँ के हाथों में अमृत था

पचता सब, जितना जी खा लो।

माथे पर

नित सूर्य सजाकर

अधरों पर

मृदु हास रचाया।

*

क्रोध पिता का, जिद बच्चों की

गटक हलाहल, देती अमृत।

विपदाओं में राहत होती

बीमारी में माँ थी राहत।

अन्नपूर्णा कम साधन में

ज्यादा काम साध लेती थी

चाहे जितने अतिथि पधारें

सबका स्वागत करती झटपट।

नर क्या,

ईश्वर को भी

माँ ने

सोंठ-हरीरा भोग लगाया।

*

आँचल-पल्लू कभी न ढलका

मेंहदी और महावर के सँग।

माँ के अधरों पर फबता था

बंगला पानों का कत्था रँग।

गली-मोहल्ले के हर घर में

बहुओं को मिलती थी शिक्षा

मैंनपुरी वाली से सीखो

तनक गिरस्थी के कुछ रँग-ढंग।

कर्तव्यों की

चिता जलाकर

अधिकारों को

नहीं भुनाया।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.२.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

सिहर उठता हूं नारी-उत्पीड़न  देखकर। 

दहल उठता हूं नारी प्रति शोषण देखकर।। 

कहीं दहेज है / कहीं घरेलू हिंसा है

कहीं बलात्कार है,

धुँआ-धुँआ-सी नारी ज़िन्दगी।

*

कहीं जघन्यता के समाचार हैं

कहीं छेड़खानी से भरे अख़बार हैं

सिहर उठता हूं निर्भया के दर्द को लेखकर।

सिहर उठता हूं नारी-दुर्दशा को देखकर।। 

कैसा आलम है, कैसा मौसम है

चारों ओर है बस दरिंदगी।

धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी।। 

*

कोलकाता अस्पताल की भयावहता

हृदयविदारक हालात

चीखती-चिल्लाती एक नारी

तंत्र के मुँह पर तमाचा

व्यवस्था की हक़ीक़त का ख़ुलासा

भारी शोरशराबा,आंदोलन

हाथ की आई शून्य

धुआँ धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी।

*

कहते हैं देवी,पर वह पीड़ित है। 

पूजते हैं हम, पर वह शोषित है।। 

उसकी काया बनी भोग का सामान है। 

गिरता जा रहा है,सम्मान है।। 

बढ़ती जा रही है देखो ज़िन्दगी। 

धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी।। 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पल दो पल का शायर ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ पल दो पल का शायर ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

(साहिर लुधियानवी साहिब के जन्मदिन पर विशेष)

साहिर;

वह लफ़्ज़ों का जादूगर

पल दो पल का शायर

उसने सहे

वक़्त के सितम

यहीं से बन गया उसका विद्रोही क़लम

 

कौन भूल सकता है

उसकी ज़िन्दगी की “तल्ख़ियाँ”

कौन भूल सकता है

उसके तसव्वर से उभरती “परछाइयाँ”

 

हालांकि;

लुधियाना शहर ने

उसे कुछ न दिया

रुसवाई और बेरुख़ी के सिवा

फिर भी;

उसने लगा रखा अपने सीने से

इस दयार का नाम…

 

उसके गीतों की सादगी

उसकी नज़्मों की गहराई

हर एक दिल पर… आज भी है छाई

 

उसने कहाः

“आओ कोई ख़्वाब बुनें “

ज़िन्दगी के लिए…

किसी के लिये

 

उसने तमाम उम्र तल्ख़ियों का ज़हर पिया

वह जब तक जिया अपनी शर्तों पर जिया

 

वह ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया

हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया…

 

उसने मज़लूमों के हक़ में

आवाज की बुलंद

औरत पर ज़ुल्म

उसे बिल्कुल नहीं था पसंद

 

इसीलिए तो उसने कहा;

“औरत ने जन्म दिया मर्दों को

मर्दों ने उसे बाज़ार दिया”।

 

उसने गीतों को इक वक़ार बख़्शा

उसने फिल्मों को इक मैयार बख़्शा

उसे जंग से नफ़रत थी बहुत

उसे अम्नो-अमां की चाहत थी बहुत

 

तुमने लुटाये  लफ़्ज़ों के गौहर

तुम्हें कौन भूल सकता है साहिर

तुमने बुलन्द किया

शहर-ए-सुख़न का नाम

ए साहिर ! तुझे सलाम…

ए साहिर ! तुझे सलाम ।

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 150 ☆ मुक्तक – ।। नारी, तुम केंद्र, तुम धुरी, सृष्टि की रचनाकार हो ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 150 ☆

☆ मुक्तक – ।। नारी, तुम केंद्र, तुम धुरी, सृष्टि की रचनाकार हो ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆

=1=

तुम केंद्र तुम धुरी तुम सृष्टि की रचनाकार हो।

तुम   धरती  पर  मूरत प्रभु  की  साकार हो।।

तुम   जगत  जननी  हो   तुम संसार  रचयिता।

माँ   बहन   पत्नी   जीवन  में  हर  प्रकार हो।।

=2=

तुम से ही ममता स्नेह प्रेम जीवित  रहता   है।

मन सच्चा कभी कपट कुछ नहीं कहता  है।।

त्याग  समर्पण  का  जीवंत  स्वरूप  हो  तुम।

तन मन में नारी तेरे प्यार का दरिया बहता है।।

=3=

तुम   से  ही घर आँगन और  चारदीवारी  है।

हरी    भरी   जीवन   की   हर फुलवारी है।।

तुमसे  ही आरोहित संस्कार संस्कृति सृष्टि में।

तुमसे ही उत्पन्न होती बच्चों की किलकारी है।।

=4=

तुमसे  ही  बनती  हर  मुस्कान  खूबसूरत  है।

दया   श्रद्धा   की  बसती  साक्षात  मूरत   है।।

तुझसे से ही  है  मानवता का आदि और अंत।

चलाने को संसार प्रभु को भी तेरी जरूरत है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #216 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – आओ सोचें – … ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – आओ सोचें…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 216

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – आओ सोचें…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

आओ सोचें कि हम सब बिखर क्यों रहे

स्वार्थ में भूलकर अपना प्यारा वतन

क्यों ये जनतंत्र दिखता है बीमार सा

सभी मिलकर करें उसके हित का जतन ।

*

सबको अधिकार है अपनी उन्नति का

पर करें जो भी उसमें सदाचार हो

नीति हो, प्रीति हो, सत्य हो, लाभ हो

ध्यान हो स्वार्थ हित न दुराचार हो ।

*

राह में समस्याएँ तो आती ही हैं

उनके हल के लिये कोई न तकरार हो

सब विचारों का समुदार सन्मान हो

आपसी मेल सद्भावना प्यार हों ।

*

गाँधी ने राह जो थी दिखाई उसे

बीच में छोड़ शायद गये हम भटक

था अहिंसा का वह रास्ता ही सही

उसपे चलते तो होती उठा न पटक ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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