हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – मन ? ?

सार्वकालिक चर्चा है

प्रकृति की

सनातन गूढ़ता,

अध्यात्म दिखाता है

कण-कण में छिपा गूढ़,

विज्ञान दर्शाता है

सजीवों की संरचना में

अंतर्निहित दुरूहता,

दर्शन और मनोविज्ञान

गूढ़ता की सरलता और

क्लिष्टता के बीच

शोधन और

संशोधन में विचरते हैं,

ये सब

पढ़ते-सुनते-गुनते

मन जाने कहाँ-कहाँ

चक्कर लगा आया,

अपवादस्वरूप ही

देह के साथ रहा,

बाकी विदेह-सा

ब्रह्मांडका भ्रमण कर आया,

एक निष्कर्ष मेरा भी है-

कस्तूरी मृग-सा रूढ़ है,

बाहर क्या देखें

मन सबसे गूढ़ है!

© संजय भारद्वाज

(अपराह्न 4:34 बजे, दीपावली, 11.11. 2015 )

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ शब अमावस की लगती पूनम सी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “शब अमावस की लगती पूनम सी“)

✍ शब अमावस की लगती पूनम सी ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

तय नहीं जिसका भी सफ़र होता

आदमी वो ही दर-बदर होता

ठोकरें तेरे है मुक़द्दर में

क्यों नसीहत का फिर असर होता

अज़्म जिसका रहा बड़ा पुख्ता

उसको अंजाम का न डर होता

हो वजनदार सीखता झुकना

तू भी किरदार से शज़र होता

छल फरेबों के होते कब नरगे

पाक सबका अगर जिगर होता

मजहबी फिर न होते ये दंगे

बस समझदार हर बशर होता

ज़र का चश्मा उतार लेते तुम

उजड़ा दिल का नहीं नगर होता

हो मुहाजिर न काटते जीवन

छोड़ विरसे को जो इधर होता

शब अमावस की लगती पूनम सी

साथिया पास जो क़मर होता

ए अरुण प्यार है नहीं जिसमें

छत पड़ी होने से न घर होता

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 28 – बेशर्मी के ताले… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – बेशर्मी के ताले।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 28 – बेशर्मी के ताले… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

सत्ता के कानों में हैं

बेशर्मी के ताले 

 

राजनीति में छुटभैये 

बछड़े भर रहे कुलाँचें 

किसको पड़ी जरूरत 

अपना संविधान बाँचें 

कुछ तो बंद किये हैं

कुछ की आँखों में जाले 

 

जहाँ देखिये वहीं घिरे हैं 

आतंकी बादल 

होते हैं विस्फोट 

भला क्या कर लेगी सांकल 

राजनीति की गंगा में

मिल रहे अपावन नाले 

 

सारस्वत मंचों ने 

कैसी ओढ़ी फूहड़ता 

जहाँ चुटकुलेबाज 

बड़ी बेशर्मी से पढ़ता 

कवि-कवित्रियाँ, लगें कि

जीजा, साली औ’ साले

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 105 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 105 – मनोज के दोहे… ☆

1 चाँद

हाथ थाम कर चल प्रिये, प्रेम भरी सौगात।

चाँद हँसा आकाश में, शरद पूर्णिमा रात।।

2 चकोर

नयना चंद्र चकोर बन, प्रिय को रहे निहार।

विरहन-सी रातें लगें, प्रतिदिन लगते भार।।

3 चंद्रिका

शरद रात में चंद्रिका, झिलमिल लगे अनूप।

शृंगारित दुल्हन बनी, धरे मोहनी रूप।।

4 चंद्रमुखी

देख रही आकाश में, चंद्रमुखी वह चाँद।

स्वप्न सलौने बुन रही, प्रेमिल सी उन्माद।।

5 पूनम

पूनम का वह चाँद फिर, खिला आज आकाश।

पृथ्वी पर बिखरा रहा, दुधिया नवल प्रकाश।।

6 शरद

शरद ऋतु ने ठंड की, बिखराई सौगात।

ओढ़ दुशाला काँपते, बूढ़ों की जगरात।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ध्रुवीय समीकरण ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – ध्रुवीय समीकरण ? ?

सेलेब्रिटी

नहीं कर पाते सेलेब्रेट

अपने लिए

नितांत अपने क्षण,

दूभर हो जाता है

24 बाय 7

कैमरे के आगे

सार्वजनिक होते

जन-नेता का

हर निजी पल,

अनुभव की सीख है,

दुनिया की रीत है,

हर अति

मांगती है

अपनी ऊँची कीमत,

पहाड़ की चोटी

जितनी संकरी

जितनी नुकीली,

उतना ही ढलवा होता है

उसका उतार भी,

फिर भी,

अनादि काल से

पहाड़ हैं,

चोटियाँ हैं,

चुनौतियाँ हैं,

आदमी है,

संकरेपन को

जीतने की

जिजीविषा है,

जीतकर

सार्वजनिक होने की

निजी आकांक्षा है,

निजता और

सार्वजनिकता का

अपना-अपना

आभास है,

ध्रुवीय समीकरण है,

दोनों में

आकंठ आकर्षण है,

दोनों में

कर्कश विरोधाभास है!

© संजय भारद्वाज 

(प्रातः 8 बजे, 13.11.2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी से आपको शीघ्र ही अवगत कराएंगे। 💥 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 164 – गीत – नासमझी का है अभिनय… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत –नासमझी का है अभिनय।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 164 – गीत – नासमझी का है अभिनय…  ✍

 वैसे तो सब समझ गया हूँ, नासमझी का है अभिनय।

 

जिस बगिया में फूल खिले हैं

वहाँ भीड़ भौंरों की होगी

आँखों के अंकुश से बचकर

आमद भी औरों की होगी

मालिक मौसम रूठ न जाये, मुझको केवल इतना भय ।

 

हम तो हैं रस्ते के राही

फूल तुम्हारे बाग तुम्हारा

खुशबू खुद न्योता देती है

फूलों जैसा गात तुम्हारा

अपमानित मधुमास हुए तो पतझरों की होगी जय।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 163 – “इधर आँख में थमें नहीं…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  इधर आँख में थमें नहीं...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 163 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “इधर आँख में थमें नहीं” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

पहुँची उन्हें विदेश, मृत्यु की

खबर, पिता जी की

है पहाड़ दुख का पर दोनों

कहें नहीं जी की

 

बड़ा भाई बोला छोटे से-

इधर जर्मनी में

मिलें छुट्टियाँ बहुत अल्प

छत्तीस महीने में

 

ऐसा करो अभी तुम

भारत-वर्ष स्वयम् जाओ

मैं जाऊँगा माँ के टाइम

समझो बारीकी

 

छोटा बोला ड्यू हैं मेरी

बाइफ की जाँचें

आप अगर घर से आयी

चिट्टी को जो बाँचें

 

कुछ हिदायतें, गर विदेश के

घर में कुछ अड़चन

तो मत आना, शोक सभा

करने को तुम फीकी

 

दोनों ही उधेड़ बुन में थे

जायें ना जायें

पर वे जाना नहीं चाहते

थे क्या बतलायें

 

इतना पैसा फ्लाईट का

बेकार खर्च होगा

चार पाँच महिने घर में

छायेगी तारीकी

 

इधर आँख में थमें नहीं

आँसू बुढ़िया माँ के

ऐसे क्या टूटा करते

सम्बंन्धों के टाँके

 

और अंत में माँ को

दोनों बेटों ने सूचित-

किया-  ” नहीं आसकते

करना तेरहवीं नीकी

 ©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

 11-10-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मौन संवाद ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – मौन संवाद ? ?

चाहते दोनों नहीं थे

फिर भी खींच दी

या शायद खिंच गई

मौन की रेखा

उनके बीच,

उनके व्यक्तित्वों को

साझा होने से

रोकने के लिए

यह ज़रूरी था,

खुश हैं

मौन के दोनों पात्र,

यह देखकर कि

उनका मौन संवाद

गहरा छन रहा है,

गढ़िया रहा है,

कथित समझदार श्रोता

इस मौन के भले

निकालते हों अर्थ

अपनी-अपनी सुविधा

और अपने-अपने तरीके से,

बेचारे हैं, विचित्र हैं,

कागज़ी ज्ञान तक सीमित हैं,

प्रेम की भाषा, बिम्ब,

प्रतीक और भावार्थ से

नितांत अपरिचित हैं!

© संजय भारद्वाज 

(अपराह्न 4 बजे, दीपावली,11.11.2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 214 ☆ “शहर…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता “शहर…”।)

☆ कविता – “शहर…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

पिता ने

एक बार

गांव बुलाया था

 

फिर झापड़

मारकर कहा था

तू इतना बिगड़ गया

कि अब कभी

गांव भी

नहीं आता

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 155 ☆ # रेवड़ियां # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# रेवड़ियां #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 155 ☆

☆ # रेवड़ियां #

कॉफ़ी हाउस में

कॉफ़ी पीते हुए

दो बुद्धिजीवी

चर्चा कर रहे थे

विषय की गंभीरता को देख

जोर से बोलने में

डर रहे थे

एक बोला – भाई!

आजकल खूब रेवड़ियां

बट रही है

कुछ लोगों की जिंदगी

भ्रम में कट रही है

घोषणाएं,

एक से बढ़कर एक हैं

क्या वाकई इनका

इरादा नेक है ?

कहीं यह गले की

फांस ना बन जाए

हितग्राहियों के लिए

झूठी आस ना बन जाए

 

दूसरा कॉफ़ी का

घूंट लेते हुए बोला – यार !

तू दिल पर मत ले

संसार ऐसे ही चलता है

किसी के दिल में ठंडक

तो कहीं पर दिल जलता है

गरीबों के साथ यह खेल

बहुत पुराना है

आज लाइम लाइट में है

क्योंकि मीडिया का जमाना है

करोड़ों, अरबों की राशि

कुछ लोग डकार गए

उनका कहीं पर

ज़िक्र नहीं है

डूब रही वित्तीय संस्थाएं

किसी को इसकी

फ़िक्र नहीं है

सब मुखौटा लगाकर घूम रहे हैं

अपनी रसूखदारी पर झूम रहे हैं

 

तू इनकी चिंता मत कर

कॉफ़ी का घूंट ले

नमकीन स्वादिष्ट है

उसका मज़ा लूट ले

बरसों से

रेवड़ियां बट रही हैं

अब ग़रीबों तक आई है

सब इसके भागीदार हैं

बस दिखावे की

चिल्लम चिल्लाई है

भाई ! –

यहां मुद्दे गौण

रेवड़ियां असरदार हैं

यह पूंजीवाद के बिसात पर

सज़ा बाजार है

यहां हर शख्स बिक रहा है

लोकतंत्र शर्मसार है, शर्मसार है/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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