हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 156 ☆ बघेलखंडी कविता – बघेली हाइकु… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं – बघेली हाइकु)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 156 ☆

☆ बघेली हाइकु ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

जिनखें हाथें

किस्मत के चाभी

बड़े दलाल

*

आम के आम

नेता करै कमाल

गोई के दाम

*

सुशांत-रिया

खबरचियन के

बाप औमाई

*

लागत हय

लिपा पुता चिकन

बाहेर घर

*

बाँचै किताब

आँसू के अनुबाद

आम जनता

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

११.९.२०२०

जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #208 – 94 – “जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े…”)

? ग़ज़ल # 94 – “जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

शायरों ने कहा दिलों में मुहब्बत होती है,

हमने कहा जनाब इंसानी क़ुदरत होती है।

आती है जवानी जिस्म परवान चढ़ता है,

हसीन अन्दाज़ उनकी ज़रूरत होती है।

राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है,

बहकना-बहकाना मजबूर फ़ितरत होती है। 

जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े,

अरमानों की खुलेआम बग़ावत होती है।

मुहब्बतज़दा दिलों में झाँकता है ‘आतिश’

आशिक़ी फ़रमाना सबकी क़ुदरत होती है।

दिलों में मुहब्बत का खेल शुरू होता है,

ज़हन में ग़ुलाम परस्त हसरत होती है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ चार क्षणिकाएं ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ चार क्षणिकाएं ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

1-

 चाँद भी गोल

रोटी भी गोल

कौन किसे समझाये

 दोनों का

अलग अलग भूगोल।।

 

2-

जाल बिछाकर

खुश है

बहेलिया

मुट्ठी भर दाने के लालच में

फँस ही जाती है

भोली चिड़िया।।

 

3-

वामन डग से

धरती नापने चले हैं

जो लोग

 क्या कभी आसमां से भी

मिले हैं।।

 

4-

उजाले की सरहद पर

पर्दे

टांग देते हैं

वो नहीं जानते

जिद्दी अंधेरे

 फिर भी

झाँक लेते हैं।।

♡ ♡ ♡ ♡ ♡

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हौसला ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – हौसला ? ?

अपने दुखों से पूछा मैंने,

क्या तुम असीम हो?

उनकी आँखों में

भय उतर आया,

विस्मित मैंने देखा चारों ओर,

अपने पीछे, अपने

हौसले को खड़ा पाया..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्रीगणेश साधना, गणेश चतुर्थी मंगलवार दि. 19 सितंबर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार गुरुवार 28 सितंबर तक चलेगी। 💥

🕉️ इस साधना का मंत्र होगा- ॐ गं गणपतये नमः🕉️

💥 साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गणेश-वंदना ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

गणेश-वंदना ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

हे विघ्नविनाशक,बुद्धिप्रदायक, नीति-ज्ञान बरसाओ ।

गहन तिमिर अज्ञान का फैला,नव किरणें बिखराओ।।

कदम-कदम पर अनाचार है,

झूठों की है महफिल

आज चरम पर पापकर्म है,

बढ़े निराशा प्रतिफल

एकदंत हे ! कपिल-गजानन,अग्नि-ज्वाल बरसाओ ।

गहन तिमिर अज्ञान का फैला,नव किरणें बिखराओ ।।

मोह,लोभ में मानव भटका,

भ्रम के गड्ढे गहरे

लोभी,कपटी,दम्भी हंसते

हैं विवेक पर पहरे

रिद्धि-सिद्दि तुम संग में लेकर,नवल सृजन सरसाओ।

गहन तिमिर अज्ञान का फैला,नव किरणें बिखराओ ।।

जीवन तो अब बोझ हो गया,

तुम वरदान बनाओ

नारी की होती उपेक्षा,

आकर मान बढ़ाओ

मंगलदायी, हे ! शुभकारी,अमिय आज बरसाओ ।

गहन तिमिर अज्ञान का फैला,नव किरणें बिखराओ ।।

      

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 84 ☆ मुक्तक ☆॥ अपनी वाणी से हीआदमी खासों आम होता है ॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 84 ☆

☆ मुक्तक ☆ ॥ अपनी वाणी से हीआदमी खासों आम होता है ॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

आदमी की  असली पहचान जुबान से होती है।

होता दूसरों  पर कितना मेहरबान  से  होती  है।।

हर दिल में जगहआदमी की  यूँ    ही  नहीं बनती।

व्यक्ति पहचान उसके भावना संज्ञान से होती है।।

[2]

बोलिये यूँ कि दूसरों के दिल में आप उतर जाईये।

सवेंदनायों का ज्वार बातों में भरकर जरा लाईये।।

लफ्ज़  और  लहज़ा जाकर अंतर्मन को छू जाये।

मत बोलिये कभी कि दिल से किसीके उतर आईये।।

[3]

वाणी से ही मनुष्य का जीवन में गुणगान होता है।

मान सम्मान वाणी से व्यक्ति का यशगान होता है।।

अमृत जहर दोंनों   ही हैं  हमारी जिव्हा में समाये।

अंदाज़े बयाँ से ही तोआदमी खासऔरआम होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 148 ☆ ग़ज़ल – “कोई किसी का सच्चा साथी यहाँ कहाँ है ?” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल  – “कोई किसी का सच्चा साथी यहाँ कहाँ है ?। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ग़ज़ल – “कोई किसी का सच्चा साथी यहाँ कहाँ है ?” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हमें दर्द दे वो जीते, हम प्यार करके हारे,

जिन्हें हमने अपना माना, वे न हो सके हमारे।

ये भी खूब जिन्दगी का कैसा अजब सफर है,

खतरों भरी है सड़के, काटों भरे किनारें।।

है राह एक सबकी मंजिल अलग-अलग है,

इससे भी हर नजर में हैं जुदा-जुदा नजारे।

बातें बहुत होती हैं, सफरों में सहारों की

चलता है पर सड़क में हर एक बेसहारे।

कोई किसी का सच्चा साथी यहाँ कहाँ है ?

हर एक जी रहा है इस जग में मन को मारे।

चंदा का रूप सबको अक्सर बहुत लुभाता,

पर कोई कुछ न पाता दिखते जहां सितारे।

देखा नहीं किसी ने सूरज सदा चमकते

हर दिन के आगे पीछे हैं सांझ औ’ सकारे।

सुनते हैं प्यार की भी देते हैं कई दुहाई।

थोड़े हैं किंतु ऐसे होते जो सबके प्यारे।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #200 ☆ श्री गणेशाय नमः ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक कविता श्री गणेशाय नमः)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 200 – साहित्य निकुंज ☆

☆ श्री गणेशाय नमः  डॉ भावना शुक्ल ☆

प्रथम पूज्य हैं आप तो, हे गणपति महराज।

विघ्न विनाशक देवता, बना रहे हर काज।।

श्री गणेश को पूजते, हैं वो ही सर्वेश।

विघ्नविनाशक देवता, देते है आदेश।।

करते गणपति वंदना, आज  पधारो आप।

धन्य धन्य हम हो रहे, दूर करो संताप।।

करते हैं हम आचमन, पंचामृत गणराज।

मोदक भोग लगा रहे, स्वीकारो प्रभु आज।।

तुम दाता इस सृष्टि के, हे गणपति महराज।

विनती इतनी मैं करूँ, करो सफल सब काज।।

मन मंगलमय हो रहा, झूम उठा है चंद।

हुआ आगमन आपका, छाया है आनंद।।

मन आनंदित हो गया, देख आपका रूप।

करते वंदन आपका, रोज जलाकर धूप।।

गणपति की आराधना, करते उनका ध्यान।

पूर्ण मनोरथ हो रहे, करते हैं गुणगान।।

रिद्धि सिद्धि के देवता, देवों के सरताज।

हरते विघ्न अपार वो, पूरे करते काज।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘लोभ…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Greed…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem लोभ.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – लोभ  ??

दूर तक

लिख रहा हूँ

ख़ामोशी..!

सब पढ़ना,

सब गुनना,

अपना-अपना

अर्थ बुनना,

लोभी हूँ,

हरेक का अर्थ

घटित होते देखना चाहता हूँ,

अपनी कविता को

बहुआयामी फलित होते

देखना चाहता हूँ..!

© संजय भारद्वाज 

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Greed…??

Been writing silence

far and wide…

Scripting it for

a long time…

Reading everything,

Contemplating everything,

Weaving own meaning…!

I am selfishly greedy,

I want to see

every meaning 

coming to fruition,

I want to see

my poetry becoming

polymathically

multi-dimensional..!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #185 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 185 ☆

☆ – संतोष के दोहे – ☆ श्री संतोष नेमा ☆

आजादी

आजादी मिलती नहीं, बिना किये संघर्ष

वीरों के बलिदान से, मना रहे हम हर्ष

उत्कर्ष

प्रगति सदा होती रहे, जीवन में हो हर्ष

जब हो सच्ची साधना, होता तब उत्कर्ष

लोकतंत्र

कर्तब्यों को भूल कर, याद रखें अधिकार

लोकतंत्र में अब दिखे, इसकी ही भरमार

मूल्य

आज समय के साथ अब, गिरते नैतिक मूल्य

स्वारथ बस भूले सभी, जीवन बहुत अमूल्य

तिरंगा

पूरे जग में छा रहा, खूब तिरंगा आज

आन-बान अरु शान से, हमको उस पर नाज़

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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