हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संख्यारेखा- ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – संख्यारेखा- ? ?

बाईं ओर

ऋण संख्या होती है,

दाहिनी ओर

धन संख्या होती है,

संख्यारेखा का सूत्र

गणित पढ़ा रहा था,

दोनों ओर

एक-सा निहारता हूँ

बीचों-बीच आकर

शून्य हो जाता हूँ,

अध्यात्म में

अद्वैत मंत्र कहलाता हूँ,

शासन में

लोकतंत्र  हो जाता हूँ!

?

© संजय भारद्वाज  

संध्या 5:49 बजे, 5.3.2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री शिव महापुराण का पारायण सम्पन्न हुआ। अगले कुछ समय पटल पर छुट्टी रहेगी। जिन साधकों का पारायण पूरा नहीं हो सका है, उन्हें छुट्टी की अवधि में इसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #41 – गीत – है प्रेमिल मधुमास सखी री… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – है प्रेमिल मधुमास सखी री

? रचना संसार # 41 – गीत – है प्रेमिल मधुमास सखी री…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

चंचल मन आह्लादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।

बहे पवन शीतल पावन भी,

कुसुमित फूल पलास सखी री।।

 *

ऋतु बसंत मदमाती आयी,

नव पल्लव पेड़ो पर छाए।

झूम रहे भौरे मतवाले,

अल्हड़ अमराई मुस्काए।।

पीली चूनर ओढ़े धरती,

हिय में रख उल्लास सखी री।

चंचल मन आल्हादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।।

 *

उन्मादित नभ धरती आकुल,

यौवन का मौसम रसवंती।

महुआ पुष्पित गदराया है,

सरसों का रँग हुआ बसंती।।

नाच रही है कंचन काया,

हिय अनंग का वास सखी री।

चंचल मन आल्हादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।।

 *

हुआ सुवासित तन गोरी का

अंग अंग लेता अँगड़ाई।

हृदय कुंज में मधुऋतु आयी,

भली लगे प्रिय की परछाई।।

मधुर यामिनी देख मिलन की ,

सभी सुखद आभास सखी री।

चंचल मन आल्हादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #268 ☆ भावना के दोहे – नारी ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – नारी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 268 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – नारी ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

ममता का भंडार है, स्नेह बहाए नीर।

रखती सबका ख्याल है, रहती वही  अधीर ।।

*

त्याग, तपस्या, प्रेम का, नारी है वरदान।

जग जननी संसार की, यह नारी की शान ।।

*

शील, सती, ममता भरी, अनुपम हैं हर रूप।

सहनशीलता, त्याग की, मूरत बड़ी अनूप ।।

*

नारी में दिखता सदा, देवी का अवतार।

रणचंडी का रूप है, उसमें शक्ति अपार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #250 ☆ एक बुंदेली गीत –  होरी में… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी – एक बुंदेली गीत – होरी में… आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 250 ☆

☆ एक बुंदेली गीत –  होरी में… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बिरहा  गा  रहो  श्रृंगार  होरी  में

सबै  खों छा रहो खुमार होरी में

*

रही  ने अब  सुध-बुध कोऊ खों

रंगों को  चढ़ रहो बुखार होरी में

*

ताक   लगाए   बैठी   है  बिरहन

जियरा हो  रहो बेकरार  होरी में

*

लरका –  बच्चा सभई  बौरा  रये

कोउ पै रहो ने ऐतवार  होरी  में

*

टेसू  पलाश  के  रंग  ने  दिखते

अब  छा रहो धूल गुबार होरी में

*

भंग  चढ़ा  लई  सबने  जम  खें

पी ख़ें ढूंढ रहो  अचार  होरी  में

*

ऐसों रंग  चढ़  गओ  सभई  खो

संतोष बन रहो रंगदार  होरी  में

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धाराप्रवाह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – धाराप्रवाह  ? ?

समय ने कहा,

मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ,

मैंने कहा,

तुम कब मेरे साथ थे?

और सुनो,

सदा विरुद्ध ही रहना,

मांगकर या जुगाड़ से नहीं,

श्रम और संकल्प से

लक्ष्य पाने का भाव रहा है मेरा,

धारा के विपरीत

धाराप्रवाह तैरने का

स्वभाव रहा है मेरा…!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 9:03 बजे, 5.03.2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 241 ☆ बाल गीत – झूम रहीं टेसू की डालें… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆ —

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक लगभग तेरह दर्जन से अधिक मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग चार दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान  सहित  बारह दर्जन से अधिक राजकीय प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर राजकीय साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत।

आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 241 ☆ 

☆ बाल गीत – झूम रहीं टेसू की डालें…  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

झूम रही टेसू की डालें

बहे समीर सुगंधित  है।

झूम रहीं मिल नृत्य कर रहीं

मन मेरा आनन्दित है।।

 *

जंगल की शोभा है न्यारी

मन को सहज लुभाती है

छिपी – छिपी पत्तों में कोयल

मधुरिम गीत सुनाती है

 *

अद्भुत आभा देख लग रहा

सृष्टि ईश की वंदित है।

झूम रहीं टेसू की डालें

बहे समीर सुंगंधित है।।

 *

उड़ें तितलियाँ मधु रस पीएं

कभी बैठतीं इठलाएँ

सबके ही उर को ये भाएँ

अनगिन आतुर कलिकाएं

 *

मधुपों की बासन्ती ऋतु में

मृदु- गुंजार तरंगित है।

झूम रहीं टेसू की डालें

बहे समीर सुगंधित है।।

 *

लाया है मधुमास छटाएँ

झूम उठी है अमराई

अनगिन पंछी मधुर तान में

बजा रहे हैं शहनाई

 *

डाल पात सब सोनचिरैया

जंगल ये अभिनंदित है।

झूम रहीं टेसू की डालें

बहे समीर सुगंधित है।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #270 – कविता – नश्वरता में है नवीनता… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता नश्वरता में है नवीनता” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #270 ☆

☆ नश्वरता में है नवीनता… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

कल के फूल आज मुरझाये

नये फूल शाखों पर आये

नश्वरता में है नवीनता

जन्म-मृत्यु के सूत्र सिखाये।

 

एक जगह रुक जाए नदिया

क्या उसका जल शुद्ध रहेगा

है सौंदर्य स्वच्छता तब ही

जब सरिता जल सतत बहेगा,

इस अनित्य में नित्य बोध का

बहती नदिया पाठ पढ़ाये

नये फूल शाखों पर आये….

 

नये धान्य तब ही उपजेंगे

बीज स्वत्व खुद का खोयेंगे

पंचतत्व में हो विलीन फिर

नये अंकुरण, जब बोयेंगे

सृजन-ध्वंस के प्रकृतिस्थ क्रम

जीवन के नव-रूप दिखाये

नये फूल शाखों पर आये….

 

नष्ट नहीं होता कुछ जग में

रूपांतरण नया  होता है

यह नियति का नियम अनूठा

मिले नहीं अग्रिम न्योता है,

स्वीकारें विधि के विधान को

हम अपने कर्तव्य निभाएँ

नये फूल शाखों पर आये….

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 94 ☆ हारता गाँव ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “हारता गाँव”।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 94 ☆ हारता गाँव ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

नई इबारत
 

लिखने बैठा
 

आज हमारा गाँव ।

 

सड़कों पर
 

छल की महफिल
 

दफ्तर गुलजारी के
 

गली गली
 

स्थापित टपरे
 

पान सुपारी के
 

इधर सिमटता
 

उधर फैलता
 

फिरे उघारा गाँव।

 

घर आंगन
 

सहमे सहमे से
 

दीवट देहरी द्वार
 

बूढ़ा छप्पर
 

गुपचुप सहता
 

मंहगाई की मार
 

मौन तोड़ता
 

द्वंद्व ओढ़ता
 

लगे विचारा गाँव।

 

राजनीति का
 

मोहरा बनकर
 

खोता अपनापन
 

जाति धर्म के
 

खेमों में बँट
 

लुटा रहा जीवन
 

कभी सियासत
 

कभी नियति से
 

पल पल हारा गाँव
     

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चमत्कार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – चमत्कार ? ?

कल जो बीत गया,

उसका पछतावा व्यर्थ,

संप्रति जो रीत रहा

उसे दो कोई अर्थ,

 

बीज में उर्वरापन

वटवृक्ष प्रस्फुटित करने का,

हर क्षण में अवसर,

चमत्कार उद्घाटित करने का,

 

सौ चोटों के बाद एक वार

प्रस्तर को खंडित कर देता है,

अनवरत प्रयासों से उपजा

एक चमत्कार कायापलट कर देता है,

 

संभावनाओं के बीजों को

कृषक हाथों की प्रतीक्षा निर्निमेष है,

चमत्कारों के अगणित अवसर

सुनो मनुज, अब भी शेष हैं..!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 5:43 बजे 21 जून 2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

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संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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🕉️💥 श्री शिव महापुराण का पारायण सम्पन्न हुआ। अगले कुछ समय पटल पर छुट्टी रहेगी। जिन साधकों का पारायण पूरा नहीं हो सका है, उन्हें छुट्टी की अवधि में इसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 98 ☆ वो तो अच्छा हुआ फैला दिया दामन तुमने… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “वो तो अच्छा हुआ फैला दिया दामन तुमने“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 98 ☆

✍ वो तो अच्छा हुआ फैला दिया दामन तुमने… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

हर मुसाफ़िर के लिए राह की ठोकर होता

ग़ुल अगर तुम न बनाते तो मैं पत्थर होता

 *

वो तो अच्छा हुआ फैला दिया दामन तुमने

वरना अश्क़ों का समंदर ही समंदर होता

 *

अपनी किस्मत की लकीरों को अगर पढ़ सकता

मेरे हाथों में जमाने का मुक़द्दर होता

 *

क्या गुनाहों की सज़ा है ये समझती दुनिया

फैसला इसका अगर क़ब्र के बाहर होता

 *

जिसका पैगाम था उस तक उसे पहुँचा न सका

ये ख़ता मुझसे न होती तो पयम्बर होता

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शुक्रिया तेरा के तू भूल गया मुझको अरुण

वरना जीना मेरा मरने के बराबर होता

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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