हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 152 – “काँटा चुभता ही रहता…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  काँटा चुभता ही रहता)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 152 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “काँटा चुभता ही रहता…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

 

माँ, आँगनसे घिसट-घिसट

ओसारे थी आयी ।

तभी अन्तरा से अब बन

पायी है स्थायी ॥

नहीं सुना करती थीं बहुयें

याचन भोजन का ।

माँ को देहरी से चौका

तो था सौ योजन का ।

पार नहीं कर पाती थी

दुख भरी लखन-रेखा-

यह दूरी माँ को बन

उभरी थी गहरी खाई ॥

गठिया का प्रकोप घुटनों

में ऐसे था बढ़ता ।

ज्यों बरसाती नाला थोड़े

जल में  है चढ़ता ।

दर्द दबाती फिर भी

काँटा चुभता ही रहता-

भोजन के मिलने में

था जो अविश्वास भाई ॥

रोटी का न मिलना

जीवन सार हीन दिखता ।

माँ का, सुत, विश्वास खो

चुका जबसे मरे पिता ।

बेचारी माँ, वैसे मन ही

मन में थी  चिन्तित –

आखिर मेरे लिये कौन

घर में उत्तरदायी ?

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

30-07-2023 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 144 ☆ # आजादी की पावन बेला में…🇮🇳 # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# आजादी की पावन बेला में… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 144 ☆

☆ # आजादी की पावन बेला में#

यह आजादी की पावन बेला है

सुगंधित फूलों का लगा मेला है

भांति भांति के

रंग बिरंगे, नये पुराने

सभी रंगों का अदभुत

एक रेला है

 

बच्चे, बूढ़े और जवान

सबके हाथ में तिरंगा है

क्या धरती, क्या आसमान है

हर जगह लहराता तिरंगा है

 

यह सड़क पर लंबी लंबी रैलियां

जयहिंद का नारा लगाते

बेटे और बेटियां

शाम ढलते ही, हर चौराहे पर

जलती हुई ये मोमबत्तियां

 

यह देश है हम सबका

हम सब इसके वासी हैं

कोई नहीं पराया यहां पर

हर शख्स भारत वासी हैं

 

तब हर क्षेत्र मे भेदभाव किसलिए?

जलती हुई बस्तियां ओर गांव किसलिए?

अहंकार, आडंबर, धर्मांधता से

डगमगाती देश की नांव किसलिए?

 

उठो साथी, जागो, समझो

तुम्हारी भावनाओं के साथ

यह खेल क्यों ?

निर्धन, वंचित, असहाय, पीड़ित को

बचाने प्रशासन फेल क्यों ?

जब सब के खून का रंग एक है

तब एक को सिहांसन

दूसरे को जेल क्यों ? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 153 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 153 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 153) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 153 ?

☆☆☆☆☆

कुछ आई पल, ज़रूरतों के

साथ  क्या  गुज़ारे,

मुँह फुला  के, बैठ  गईं

मेरी  सब  ख्वाहिशें..!

☆☆

Just spent some moments

with the needs,

All my wishes frowned 

with the grimace..!

☆☆☆☆☆

 जाने  कौन  देगा उनके

हिस्से के जवाब,

वो  लोग  जो  अक्सर

चुप रह जाते हैं…!

☆☆

Don’t know who will

answer  their  part…

Of those people, who

often  remain  silent…!

☆☆☆☆☆

चलो  ख़ामोशियों  की

गिरफ़्त  में  चलते  हैं,

बातें  ज़्यादा  हुईं  तो

ज़्बात  खुल  जायेंगे..!

☆☆

Let’s go in the grip of silence,

if too much of talks happen

Then emotions will become

a publically known secret..!

☆☆☆☆☆

सारी  गवाहियाँ  तो मेरे

हक़  में  आ  गईं,

लेकिन  मेरा  बयान  ही

मेरे  ख़िलाफ़  था…!

☆☆

All  the  evidences

came in my favour.

But my statement itself

was  against  me…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 151 ☆ नवगीत – “कौन बसा मन में अनजाने?…” ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक नवगीत – “कौन बसा मन में अनजाने?)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 151 ☆

☆ नवगीतकौन बसा मन में अनजाने?… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

निज छवि हेरूँ

तुझको पाऊँ

.

मन मंदिर में कौन छिपा है?

गहन तिमिर में कौन दिपा है?

मौन बैठकर

किसको गाऊँ?

.

हुई अभिन्न कहाँ कब किससे?

गूँज रहे हैं किसके किस्से??

कौन जानता

किसको ध्याऊँ?

.

कौन बसा मन में अनजाने?

बरबस पड़ते नयन चुराने?

उसका भी मन

चैन चुराऊँ?

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२-१२-२०१५, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #203 – 89 – “तुम मेरा ये संसार तो देखो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “तुम मेरा ये संसार तो देखो…”)

? ग़ज़ल # 89 – “तुम मेरा ये संसार तो देखो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

कमरे का विस्तार तो देखो,

तुम मेरा ये संसार तो देखो।

फ़ालतू  खबरों  से भरा है,

आज का अख़बार तो देखो।

बंद घरों में पार्टियाँ हो रहीं,

पल रहा व्यभिचार तो देखो।

धन जमा होता कंपनियों में,

नियोजित भ्रष्टाचार तो देखो।

शेर ऊलजलूल लिखे जा रहा,

‘आतिश’ का अचार तो देखो।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – साथ-साथ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – साथ-साथ ??

चलो कहीं साथ मिल बैठें,

न कोई शब्द बुनें,

न कोई शब्द गुनें,

बस खामोशी कहें,

बस खामोशी सुनें..!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:43 बजे, 25.08.22

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 80 ☆ मुक्तक ☆ ।। मैं उसकी बात करूँ, वो मेरी बात करे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ मुक्तक ☆ ।। मैं उसकी बात करूँ, वो मेरी बात करे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हाथों में   सब के  ही सब  का हाथ  हो।

एक    दूजे के लिए मन   से साथ  हो।।

जियो और जीने दो, एक ईश्वर की संतानें।

बात यह   दिल  में हमेशा ही  याद हो।।

[2]

सुख सुकून हर    किसी   का  आबाद  हो।

हर किसी के लिए संवेदना यही फरियाद हो।।

हर किसीके लिए सहयोग बस ये हो सरोकार।

मानवीय   रूपी ही एक दूसरे से  संवाद हो।।

[3]

हर दिल में बस स्नेह नेह  का ही  लगाव हो।

दिल के भीतर  तक बसता प्रेम का भाव हो।।

प्रभाव नहीं हो किसी  पर   घृणा के दंश का।

आपस में मीठे बोल का नहीं कहीं अभाव हो।।

[4]

हर कोई दूसरे के   जज्बात    की ही बात करे।

हो विश्वास का बोलबाला ना घात प्रतिघात करे।।

स्वर्ग सा  ही हिल मिल  कर रहें धरती पर हम।

मैं बस   तेरी बात करूं, और तू  मेरी बात करे।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 144 ☆ बाल गीतिका से – “हमारा वतन 🇮🇳” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत  – “हमारा वतन…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ बाल गीतिका से – “हमारा वतन 🇮🇳” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हमको प्यारा है भारत हमारा वतन

सारी दुनिया का सबसे सुहाना चमन

हम हैं पंछी ये गुलशन यहाँ बैठ मन

चैन पाता सजाता नये नित सपन ।

इसकी माटी में खुशबू है एक आब है

जैसे काश्मीर, दो आब, पंजाब है

इसकी धरती है चंदन, सुहाना गगन

धन भरे खेत खलिहान, मैदान, वन।

इसकी तहजीब का कोई सानी नहीं

जो पुरानी  होकर भी पुरानी नहीं

हर डगर-बिखरा मिलता यहाँ अपनापन

 प्रेम, सद्भाव संतोष है जिसके धन ।

हवा पानी में मीठी मोहब्बत घुली

 जिंदगी यहाँ है गंगाजल में घुली

फूल सा है खिला मन, खुला आचरण

सद् समझ, ईद होली बैसाखी मिलन ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भूमिकाएँ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – भूमिकाएँ ??

नहीं देना चाहता

कोई दोष तुम्हें,

तुम न छलते तो

कोई और छलता,

एक साधन बना,

एक निमित्त हुआ,

देह की अवधि

बीत जाने पर,

जब मिलेंगे विदेह,

अपने-अपने

अभिनय पर

आप इतराएँगे,

अपनी-अपनी

भूमिका के निर्वहन का

साझा उत्सव मनाएँगे!

© संजय भारद्वाज 

5:50 प्रात: 1.08.2022.

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #195 ☆ मुक्तक – गीत रमता गया… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “मुक्तक – गीत रमता गया…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 195 – साहित्य निकुंज ☆

☆ मुक्तक – गीत रमता गया…

गीत उनके हमें रास आने लगे।

मन ही मन यूं उसे गुनगुनाने  लगे।

चाहकर भी  न बोला तूने कभी।

 भाव अपने हमें  क्यों जताने लगे।।

हम उन्हें देखकर मुस्कुराने लगे।

देखते देखते भाव जगने लगे।

मेरी आंखों में तुमने पढ़ा है सही

गीत बारिश के तुम गुनगुनाने लगे

गीत रमता गया मैं भी रमती गई।

वो सुनाता गया मैं भी सुनती गई।

जो भी उसने कहा कैद मन में हुआ।

मैं तो उसकी ही बातों में बंधती गई।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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