हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 143 ☆ बाल गीतिका से – “हम सब हैं भारत के वासी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत  – “हम सब हैं भारत के वासी…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ बाल गीतिका से – “हम सब हैं भारत के वासी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

स्मिथ, राजिन्दर ,उस्मानी, वेंगल, नानू, गोपीनाथ । 

आओ, आओ, हाथ मिलाओ, हिलमिल हम सबको लें साथ ॥

भारत माँ हम सबकी माता, हम भारत माता के लाल ।

मिलजुल कर सब साथ चलें तो कर सकते हैं बड़े कमाल ॥

जिनने की है बड़ी तरक्की उनमें है भारत का नाम ।

पर अब भी आगे बढ़ने को करने हैं हमको कई काम ॥

गाँधीजी ने दी आजादी नेहरूजी ने दिया विकास ।

अब भी दूर गाँव तक शिक्षा का फैलाना मगर प्रकाश ॥

खेल कूद शिक्षा श्रम संयम अनुशासन साहस विज्ञान । 

का प्रसार करके समाज में रखना है भारत का मान ॥

बढ़ें प्रेम से हम समान सब, तो हो अपना देश महान् ।

भारत की दुनिया में उभरे अपनी एक अलग पहचान ॥ 

माँ आशा जग उत्सुकता से देखो हमको रहा निहार ।

यही विविधता में भी एकता है अपने सुख का आधार ॥

हम सब हैं भारत के वासी, सबके हैं समान अधिकार ।

सबको मिलकर के करना है बापू के सपने साकार ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… पावस सावन ऋतु… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशनाधीन ।राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 200 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… पावस सावन ऋतु☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(विधा – दाक्षायणी)

पावस सावन ऋतु सदा, खुशी भरें जीवन प्रदा,

हरित वस्त्र शृंगारित, बढ़ता रूप अनूप।

चातक से हृद आस बढ़, विरह वेदना प्यास बढ़,

सजन मिलन को आओ, छलती जीवन धूप ।‌।

प्रीति भरे अँगनाइयाँ, भाव बढ़े पुरवाइयाँ,

मधुप मधुर शहनाई, प्रेमा हृदय निनाद।

हुई उमंगित जिंदगी,अंत:स्थल की बंदगी,

बढ़ ज्वार हिलोरें ले, करिए प्रिय संवाद ।।

उपजे मन मृग तृष्णिका ,प्रेम प्राप्त रस कृष्णि का,

भाव विहृलता हर क्षण,प्रीति स्फुरित उर वक्र ।

नवल चढ़े हर कल्पना, प्रखर सरस हृद अल्पना,

नैन बिछे स्वागत में,  पूर्ण मिलन कर चक्र ।‌।

हृदय अतल गहराइयाँ, लिए प्रीति अँगड़ाइयाँ,

निशि दिन अंक चेतना, स्वप्न भरे आघूर्ण।

प्रेम-भाव भर चित्त में, करे प्रतिष्ठित सित्त में,

हृदय चाह व्योम पंथ, करे भ्रमण नित पूर्ण ।‌।

 

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वचन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – वचन ??

तराजू के पलड़े पर

रख दी हैं हमने

संतुष्टि और संवेदना,

दूसरे पलड़े पर

तुम रख लो

संपदा, शक्ति, जुगाड़,

वगैरह, वगैरह..,

जिस दिन

तुम झुका लोगे पलड़ा

अपनी ओर,

शब्द प्राण फूँकना

छोड़ देंगे,

यह वचन रहा,

हम लिखनेवाले

लिखना छोड़ देंगे…!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:06 बजे, 3.03.2022

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #193 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 193 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

सुंदर छवि है मोहनी,

प्यारे हो घन श्याम।

मोर मुकुट सिर पर सजे,

लीला धारी श्याम।।

 

पास बैठकर कृष्ण ने,

लिया मैया से ज्ञान।

नटखट कान्हा सुन रहे,

बातें माँ की ध्यान।।

 

मैया कहती कृष्ण से,

नहीं बिगाडो काम।

करी शिकायत आपकी,

लेत गोपियाँ  नाम।।

 

यशोदा कहती प्यार से,

सुन लो मेरे लाल।

माखन चोरी करो नहीं,

 संग खेलो गुपाल ।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #179 ☆ “संतोष के दोहे…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी संतोष के दोहे. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 179 ☆

☆ “संतोष के दोहे…”  ☆ श्री संतोष नेमा ☆

कोई नहीं कबीर सा, जिनकी गहरी मार

जो कुरीतियों पर सदा, भरते थे ललकार

सबसे ऊँचा जगत में, मानवता का धर्म

बता गए कबिरा हमें, जीवन का यह मर्म

रास कभी आया नहीं, झूठ-कपट, पाखण्ड

साथ खड़े हो सत्य के, दिया झूठ को दण्ड

डरे हुये थे उस समय, धर्मी ठेकेदार

कबिरा ने पाखण्ड पर, किया सदा ही वार

गागर में सागर भरा, ऐसे सन्त कबीर

अपने दोहों से रची, सामाजिक तस्वीर

मानव मानव में कभी, किया न उनने भेद

पढ़ कुरान, गीता सभी, धर्म परायण वेद

शिक्षा ऐसी दे गए, आती नित जो काम

उन पर करने से अमल, मिलते शुभ परिणाम

सिद्धांतों से अलग हट, दिया सार्थक ज्ञान

जाति-धरम को भूलकर, देखा बस इंसान

आज धरम के नाम पर, मानवता है लुप्त

आज विचारक, कवि सभी, जाने क्यों हैं सुप्त

हमें आज भी दे रहे, उनके दोहे सीख

पढ़ने से “संतोष” हो, नाम अमिट  तारीख

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आशा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – आशा ??

निरंतर मेरे मर्म पर

आघात पहुँचा रहे हैं,

मेरी वेदना का घनत्व

लगातार बढ़ा रहे हैं,

उन्हें क्या वांछित है

कुछ नहीं पता,

मैं आशान्वित हूँ;

किसी भी क्षण

फूट सकती है एक कविता..!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 8:47 बजे, 13.2.2022

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #9 ☆ कविता – “हां, हैं हम शायर…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 9 ☆

 ☆ कविता ☆ “हां, हैं हम शायर…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

हमारी मुहब्बत है शायरी

कागज को प्यार में भिगोते हैं शायर

कागज के पीछे तो छिपते हैं कायर ।

 

शायरी है वो प्यार हमारा

चाहे नाराज क्यों ना हो जमाना

है ऐसी मुहब्बत जिसे छिपाते नहीं हैं

खयाल छपवाने में  झिझकते नहीं हैं ।

 

एक मशाल है शायरी

या है एक दिया शायरी

किसी का दर्द है शायरी

किसी का एहसास है शायरी ।

 

इसे सिर्फ अल्फ़ाज़ ना समझना

कागज के आसमां में

सुलगता सूरज है शायरी

जलते हुए दिल में

महकता चांद है शायरी ।

 

अंधे इंसान की रोशनी है

गुफ़ा से बाहर का रास्ता है

पांव से तो चींटी भी चलती है

कलाम से तो उड़ना जन्नत तक है।

 

हाँ, हैं हम शायर

हमारी मुहब्बत है शायरी…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 170 ☆ गीत – बीते बचपन की यादें ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 170 ☆

☆ गीत – बीते बचपन की यादें ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

धूप गुनगुनी बैठे छत पर

सेंक रहे इकले नाना।

बीते बचपन की यादों का

है सुंदर सफर सुहाना।।

 

गाँव था अलबेला – सा अपना

जिसमें थी पेड़ों की छइयाँ।

गौधूलि में कितनी ही आतीं

बैल, भैंस , बकरी औ गइयाँ।

 

फूस – छप्परों के घर सबके

क्या सुखद था इक जमाना।

बीते बचपन की यादों का

है सुंदर सफर सुहाना।।

 

संगी – साथी , कुआ , बाबड़ी

घने नीम की छाँव भली।

आमों के थे बाग – बगीचे

धुर देहाती गाँव – गली।

 

याद रहा अट्टे की छत पर

नभ के नीचे सो जाना।

बीते बचपन की यादों का

है सुंदर सफर सुहाना।।

 

राखी औ सावन के झूले

त्योहारों की धूम निराली।

पथबारी की पूजा रौनक

बजते थे डमरू औ थाली।

 

लोकगीत में मस्त मगन हो

नाच – कूद होता गाना।

बीते बचपन की यादों का

है सुंदर सफर सुहाना।।

 

मिट्टी के गुड़िया – गुड्डों का

मिलजुल करके ब्याह रचाए।

इक्का, ताँगा, रेढू गाड़ी

दुल्हन घूँघट से शरमाए।

 

ढपर – ढपर से बैंड साज पर

घोड़ी ठुम – ठुम नचकाना।

बीते बचपन की यादों का

है सुंदर सफर सुहाना।।

 

झर लग जाते वर्षा के जब

छतें टपाटप थी करतीं।

चौपालों में करें मसखरी

राग – मल्हारें थीं गवतीं।

 

टूटा घर अब हुआ खंडहर

बस केवल आज फ़साना।

बीते बचपन की यादों का

है सुंदर सफर सुहाना।।

 

ढकींमीचना , कंचा गोली

गिल्लीडंडा औ गेंदतड़ी।

खिपड़े खूब नचा सरवर में

जल बर्षा में नाव पड़ी।

 

अ आ इ ई ऊ लिखें पहाड़े

शेष बचा ताना – बाना।।

बीते बचपन की यादों का

है सुंदर सफर सुहाना।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #193 – कविता – कविवर तुम श्रृंगार लिखो… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  “कविवर तुम श्रृंगार लिखो…)

☆ तन्मय साहित्य  #193 ☆

☆ कविवर तुम श्रृंगार लिखो…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

फन फुँफकार रहा विषधर

पर तुम सावनी फुहार लिखो

पुष्प-वाटिका, बाग-बहारें

कविवर तुम श्रृंगार लिखो।

 

प्यार मुहब्बत इश्क-मुश्क के

नए तराने तुम गाओ

नख-शिख सुंदरियों के वर्णन

कर खुद पर ही इतराओ,

 

कोई तुम्हें लिखे न लिखे पर

तुम उन सब को प्यार लिखो

फन फुँफकार रहा विषधर

पर कविवर तुम श्रृंगार लिखो….।

 

आत्ममुग्ध हो तत्सम शब्दों

का, तुम ऐसा जाल बुनो

अलंकार, व्यंजना, रम्य

उपमाओं के प्रतिमान चुनों,

 

विरह व्यथा दुख भरी कथा

कब होगी आँखें चार लिखो

फन फुँफकार रहा विषधर

पर कविवर तुम श्रृंगार लिखो…..।

 

दल-गत, छल-गत कृत्य दिखे

या पंथ-जाती संग्राम मचे

रहना इनसे अलग सदा तुम

कभी न इन पर काव्य रचें,

 

तपती जेठ दुपहरी में भी

शीतल मधुर बयार लिखो

फन फुँफकार रहा विषधर

पर कविवर तुम श्रृंगार लिखो।

 

कभी विसंगतियों पर भूख

प्यास पर कलम न चल पाए

रहना सजग, दया, करुणा

ममता, संत्रास न भरमाये,

 

निज हित पर प्रहार हो तब

समतामूलक व्यवहार लिखो

फन फुँफकार रहा विषधर

पर कविवर तुम श्रृंगार लिखो…..।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 18 ☆ अँधेरा पीछे पड़ा… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “अँधेरा पीछे पड़ा।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 18 ☆  अँधेरा पीछे पड़ा… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

रोज सूरज उगाता हूँ

पर अँधेरा है कि

पीछे ही पड़ा है।

 

कहाँ रख दूँ

धूप के तिनके

मुश्किल से सहेजे हैं

गढ़ रहे हैं

रोशनी की बात

अपने ही कलेजे हैं

 

रोज दीपक जलाता हूँ

लिए छाया ढीठ

तम नीचे खड़ा है।

 

आँगनों तक

पसर कर बैठा

उजली जात का पहरा

दब गया है

बहुत गहरे में

ख़ुशी का एक चेहरा

 

आस चिड़िया चुगाता हूँ

वक्त ने हरबार

थप्पड़ ही जड़ा है।

 

बाँध संयम

भोर को दे अर्घ्य

रखकर अल्गनी पर रात

कर्म को ही

मानकर अनुदान

झेले उम्र भर आघात।

 

रोज साँसें चुराता हूँ

और जीवन है कि

पंछी सा उड़ा है।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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