हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #191 – कविता – कैसे उस पर करें भरोसा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  “कैसे उस पर करें भरोसा)

☆  तन्मय साहित्य  #191 ☆

☆ कैसे उस पर करें भरोसा☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

उसने जब-तब झूठ परोसा

कैसे उस पर, करें भरोसा।

 

ठुकरा कर वह छोड़ गया है

स्नेहिल धागे तोड़ गया है

देख पराई घी चुपड़ी वह

रिश्तों से मुँह मोड़ गया है,

 

अपने मुँह का कौर खिलाकर

जिसे जतन से पाला-पोसा

कैसे उस पर करें भरोसा…..

 

मिली न सुविधा अपने क्रम में

मृगमरीचिकाओं के भ्रम में

झंडा-झोला छोड़-छाड़ कर

चला गया दूजे आश्रम में,

 

खीर मलाई, इधर डकारे

ऊपर से जी भर कर कोसा

कैसे उस पर करें भरोसा…..

 

कल तक जो थे शत्रु पराये

उनसे ही अब हाथ मिलाये

व्यथित,चकित,संभ्रमित समर्थक

पर इनको नहीं लज्जा आये,

 

स्वारथ के खातिर दलबदलू

पहनें टोपी, कभी अँगोछा

कैसे उस पर करें भरोसा……

 

लोक-तंत्र के हैं ये प्रहरी

चलते रहें साजिशें गहरी

आँख-कान से अंधे-बहरे,

मीठे बोल, असर है जहरी,

 

स्वाद कसैला होता, इनके

बारे में जब-जब भी सोचा

कैसे उस पर, करें भरोसा।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 16 ☆ अधिक वर्षा का गीत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “अधिक वर्षा का गीत।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 16 ☆  अधिक वर्षा का गीत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

नदी उड़ेले कितना पानी,

प्यास नहीं बुझती सागर की।।

 

मेंड़ उठाये खेत खड़े हैं,

डूब गई हैं फ़सलें सारी।

हाथ धरे कलुआ बैठा है,

कहाँ जाए बरखा है भारी।

 

बचा खुचा भी दाँव लगा है,

ख़बर नहीं मिलती बाहर की।।

 

सभी दिशाएँ पानी पानी,

शहर गाँव के रस्ते टूटे।

राहत की आशा में सारे,

भाग लिए बैठे हैं फूटे।

 

ढोर बछेरू बँधे थान से,

धार नहीं टूटी छप्पर की।।

 

घेर-घेर कर पानी मारे,

घुमड़-घुमड़ कर बरसें बदरा।

रह-रह बिजुरी चमक डराती,

नदिया नाले बने हैं खतरा।

 

बाँध हो रहे बेक़ाबू हैं,

सुध-बुध खो बैठे हैं घर की।।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ असर यूँ मुहब्बत दिखाई हमारी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “असर यूँ मुहब्बत दिखाई हमारी“)

✍ असर यूँ मुहब्बत दिखाई हमारी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

नजर में जिगर में बसा तू ही तू है

रहे दूर पर सामने हूबहू है

अलावा तेरे ख्याल आता न दिल में

मुझे रात दिन तेरी ही आरजू है

असर यूँ मुहब्बत दिखाई हमारी

सभी की ज़ुबाँ पर यहाँ कू-ब-कू है

शबाब आप पर खूब आया है ऐसा

लगी होड़ पाने यहाँ चार सू है

तग़ाफ़ुल में ये बात भी दिल में रखना

नहीं रब्त की हो सकेगी रफू है

सताइश नहीं ये हकीक़त है जाँना

नहीं दूसरा आपसा माहरू है

ये कैसी अदावत अरुण भाइयों में

अगर एक जैसा जो इनका लहू है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “सावन की कुंडलिया…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ “सावन की कुंडलिया…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

(१)

सावन आया मन रहा,  बूंदों का त्योहार।

मौसम को तो मिल गया, क़ुदरत का उपहार।।

क़ुदरत का उपहार, दादुरों में खुशहाली।

खेतों में मुस्कान, सिंचाई है मतवाली।।

मेघों का उपकार, धरा पर जल है आया।

स्वर गूंजें चहुंओर, आज तो सावन आया।।

(२)

सावन आया द्वार पर, करने सबसे प्यार।

मेघों द्वारा हो रहा, वर्षा का सत्कार।।

वर्षा का सत्कार, स्रोत जल के खुश दिखते।

कविगण में है हर्ष, सभी कविताएं लिखते।।

नाचें वन में मोर, सुखद पावस की माया।

आल्हा की है तान, बंधुवर सावन आया।।

(३)

सावन आया झूमकर, गाता हितकर गीत।

वर्षा रानी बन गई, कृषकों की मनमीत।।

कृषकों की मनमीत, नदी-नाले मस्ती में।

जंगल में है जोश, पेड़ सारे हस्ती में।।

मौसम का यशगान, हवाओं का रुख भाया।

उत्साहित सब लोग, सुहाना सावन आया।।

(४)

सावन आया है चहक, मौसम में आवेग।

मेघों ने हमको दिया, जल का पावन नेग।।

जल का पावन नेग, क्यारियों में रौनक है।

नदियों में सैलाब, बस्तियों में धक-धक है।

राखी का त्योहार, खुशी के पल लाया है।

ख़ूब पले अनुराग, देख सावन आया है।।

(५)

सावन आया ऐ सुनो, सब कुछ है अनुकूल।

आतप के चुभते नहीं, अब तो तीखे शूल।।

अब तो तीखे शूल, शीत की लय है प्यारी।

मौसम रचे खुमार, धरा लगती है न्यारी।।

सबने पीकर चाय, गर्म मुंगौड़ा खाया।

बिलखें ठंडे पेय, जोश में सावन आया।।

(६)

सावन आया मीत सुन, मादक चले बयार।

फिर भी तू क्यों दूर है, सूना मम् संसार।।

सूना मम् संसार, नहीं कुछ भी है भाता।

बांहें हैं बेचैन, एक पल चैन न आता।।

दिल में जागी प्रीति, मिलन का भाव समाया।

आज यही बस सत्य, रसीला सावन आया।।

सावन है नव चेतना, सावन इक उत्साह। 

सावन इक चिंतन नया, सावन है नव राह।। 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 12 – हमने हार न मानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – हमने हार न मानी है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 12 – हमने हार न मानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

रही उजड़ती हर दम

अपनी छप्पर-छानी है

पर अत्याचारों से

हमने हार न मानी है

 

लोहा तपता, पिटता है

लोहारों से

पुन: चमकता है तपकर

तलवारों से

संघर्षो से लिखी

प्रगति की नई कहानी है

 

चीटी गिर-गिरकर भी

चढ़ती कठिन पहाड़ी है

तू भी हार न मान

कि विपदा दिखती गाढ़ी है

पर्वत को भी धूल चटाई

जब-जब ठानी है

 

काटा जाता वृक्ष

ठूंठ रह जाती बाकी है

निकल वहीं से कोंपल ने

फिर दुनिया झाँकी है

अँगड़ाई लेकर,

हरियाली चादर तानी है

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 89 – सजल – वक्त भी ठहरा हुआ है…  ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “सजल – वक्त भी ठहरा हुआ है… …”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 89 – सजल – वक्त भी ठहरा हुआ है ☆

(सजल :: मात्रा – 14, समांत – हरा, पदांत –हुआ है)

 मौन कुछ गहरा हुआ है।

वक्त भी ठहरा हुआ है।।

आइए हम साथ जी लें,

प्रेम का पहरा हुआ है।

गर्म साँसों की दहक से,

सुर्ख सा चेहरा हुआ है।

थाम रक्खो हाथ मेरा,

सूर्य अब बहरा हुआ है।

कामनाओं की इमारत,

विजय का सेहरा हुआ है।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शिलालेख ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – शिलालेख ??

कविता नहीं मांगती समय,

न शिल्प विशेष,

न ही कोई साँचा

जिसमें ढालकर

छत्तीस-चौबीस-छत्तीस

या ज़ीरो फिगर गढ़ी जा सके,

कविता मांग नहीं रखती

लम्बे चौड़े वक्तव्य

या भारी-भरकम थीसिस की,

कविता तो दौड़ी चली आती है

नन्ही परी-सी रुनझुन करती;

आँखों में आविष्कारी कुतूहल

चेहरे पर अबोध सर्वज्ञता के भाव,

एक हाथ में ज़रा-सी मिट्टी

और दूसरे में कल्पवृक्ष के बीज लिए,

कविता के ये क्षण

धुंधला जाएँ तो

विस्मृति हो जाते हैं,

मानसपटल पर उकेर लिये जाएँ तो

शिलालेख कहलाते हैं..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 147 – गीत – कुछ भी नहीं कहूँगा… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – कुछ भी नहीं कहूँगा।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 147 – गीत – कुछ भी नहीं कहूँगा…  ✍

कुछ भी नहीं कहूँगा।

बस चुपचाप रहूँगा।

जो कहना था कहा, सुना

सपना अपनी आँख बुना

मेरी रही हैसियत जो

चाहा उससे लाख गुना।

अब अपने आप दहूँगा

बस चुपचाप रहूँगा।

देवल की प्रतिमा प्यारी

देख रही दुनिया सारी

दृष्टि सभी की दूध धुली

केवल मैं ही संसारी।

अब अपने पाप गहूँगा

बस चुपचाप रहूँगा।

इच्छाओं का अंत नहीं

होता सभी तुरन्त नहीं

केवल दोष यही मेरा

मैं मानव हूँ संत नहीं।

अब अपने शाप सहूँगा

बस चुपचाप रहूँगा।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 147 – “पूछ रही हर दिशा यहाँ…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  पूछ रही हर दिशा यहाँ)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 147 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “पूछ रही हर दिशा यहाँ…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

आज नही बरसेंगे बादल

शपथ उठा लौटे

कहते हम भी थक जाते हैं

कारण,  इकलौते

 

धुंध छँटी अब तक कुछ –

कुछ है इनकी आँखों से

संध्या के सपनो के टूटे

हुये सुराखों से

 

परछाईं उड़ती दिखती

है नभ की कोरों से

लगता श्याम-घटा ने

खोले जैसे कजरौटे

 

पूछ रही हर दिशा यहाँ

बिनबरसे मत जाना

वृष्टि-छाँव का यही

इलाका वरन हरजाना

 

मेरी बहने हंसी खुशी

करने को अगवानी

खडी हुई हैं अगरुगंध

ले बाहर परकोटे

 

छुटपुट बारदात सी बूँदे

यहाँ वहाँ गिर कर

चलीं गई ले संग घटा को

सिर्फ यहाँ घिर कर

 

सूख-सूख सरिताओं

की भी नब्ज लगी डूबी

रोयें भी तो कैसे

ले आँसू मोटे-मोटे

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

18-06-2023 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शब्द- दर-शब्द ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – शब्द- दर-शब्द ??

शब्दों के ढेर सरीखे

रखे हैं काया के

कई चोले मेरे सम्मुख,

यह पहनूँ, वो उतारूँ

इसे रखूँ , उसे संवारूँ..?

 

तुम ढूँढ़ते रहना

चोले का इतिहास

या तलाशना व्याकरण,

परिभाषित करना

चाहे अनुशासित,

अपभ्रंश कहना

 या परिष्कृत,

शुद्ध या सम्मिश्रित,

कितना ही घेरना

तलवार चलाना,

ख़त्म नहीं कर पाओगे

शब्दों में छिपा मेरा अस्तित्व!

 

मेरा वर्तमान चोला

खींच पाए अगर,

तब भी-

हर दूसरे शब्द में,

मैं रहूँगा..,

फिर तीसरे, चौथे,

चार सौवें, चालीस हज़ारवें

और असंख्य शब्दों में

बसकर महाकाव्य कहूँगा..,

 

हाँ, अगर कभी

प्रयत्नपूर्वक

घोंट पाए गला

मेरे शब्द का,

मत मनाना उत्सव

मत करना तुमुल निनाद,

गूँजेगा मौन मेरा

मेरे शब्दों के बाद..,

 

शापित अश्वत्थामा नहीं

शाश्वत सारस्वत हूँ मैं,

अमृत बन अनुभूति में रहूँगा

शब्द- दर-शब्द बहूँगा..,

 

मेरे शब्दों के सहारे

जब कभी मुझे

श्रद्धांजलि देना चाहोगे,

झिलमिलाने लगेंगे शब्द मेरे

आयोजन की धारा बदल देंगे,

तुम नाचोगे, हर्ष मनाओगे

भूलकर शोकसभा

मेरे नये जन्म की

बधाइयाँ गाओगे..!

(कविता संग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता।’)

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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