हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 166 ☆ गीत – पुकारती माँ भारती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 166 ☆

गीत – पुकारती माँ भारती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

जाग जाओ अब युवा

पुकारती माँ भारती।

लक्ष्य लेकर चल पड़ो

पूर्णिमा निहारती।।

 

अंधकार चीर दो।

न किसी को पीर दो।

श्रम का हाथ थामकर

कुछ नई लकीर दो।।

 

धीरता को पूज कर

नित्य करो आरती।

जाग जाओ अब युवा

पुकारती माँ भारती।।

 

इस धरा का रक्त है।

अल्प – सा ही वक्त है।

सामने आगे खड़ा

वीरता का तख्त है।।

 

जो शिखर पर बढ़ चले

मुश्किलें भी हारतीं।

जाग जाओ अब युवा

पुकारती माँ भारती।।

 

सत्यता की जीत है

श्रेष्ठ सबसे प्रीत है।

साधना ही त्याग का

माधुरी नवनीत है।।

 

शत्रुओं को दो सबक

माँ भारती पुकारती।

जाग जाओ अब युवा

पुकारती माँ भारती।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #188 – कविता – मानसून की पहली बूंदे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  “मानसून की पहली बूंदे)

☆  तन्मय साहित्य  #188 ☆

☆ मानसून की पहली बूंदे☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

मानसून की पहली बूंदे 

धरती पर आई

महकी सोंधी खुशबू

खुशियाँ जन मन में छाई।

 

 बड़े दिनों के बाद

 सुखद शीतल झोंके आए

 पशु पक्षी वनचर विभोर

 मन ही मन हरसाये,

      बजी बाँसुरी ग्वाले की

      बछड़े ने हाँक लगाई।…..

 

 ताल तलैया पनघट

 सरिताओं के पेट भरे

 पावस की बौछारें

 प्रेमी जनों के ताप हरे,

      गाँव गली पगडंडी में

      बूंदों ने धूम मचाई।……

 

 उम्मीदों के बीज

 चले बोने किसान खेतों में

 पुलकित है नव युगल

 प्रीत की बातें संकेतों में,

       कुहुक उठी कोकिला

       गूँजने लगे गीत अमराई।

       मानसून की पहली बूंदें

       धरती पर आई..

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 13 ☆खींच कर लकीर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “खींच कर लकीर।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 13 ☆  खींच कर लकीर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

पानी पर

खींचकर लकीर

भरते हैं सागर का दम।

 

अंगद का पाँव जमा

चाट लोकतंत्र

आँखों में धूल झोंक

भोग राजतंत्र

 

फिर बैठे

बन गए अमीर

लौलुपता नहीं हुई कम।

 

भावों के ऊसर में

शब्दों की फसल

छंद के लिफ़ाफ़े में

रख कोई ग़ज़ल

 

और कहें

स्वयं को कबीर

पाल रहे मीर का भरम।

 

तिनकों पर इतराएँ

डकराएँ खूब

अघा गए चर-चरकर

निर्धन की दूब

 

फैलाएँ

झूठ,बन फकीर

बेचें ईमान और धरम ।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 68 ☆ नज़्म – उसे भूल जा ना याद कर… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण नज़्म “उसे भूल जा ना याद कर…

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 68 ✒️

?  नज़्म – उसे भूल जा ना याद कर… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

(सन्दर्भ : कोविड)

जो जुदा हुए वो अजीज़ थे,

तेरे अपने तेरे क़रीब थे ।

उन्हें भूल जा ना याद कर ,

जो तूने सहा ना फ़रियाद कर ।।

 

यह कैसी ग़म की हवा चली ,

सुनसान हो गई है गली – गली ,

सुबहा से पहले शाम ढली ,

चमन को सिर्फ़ ही ख़िज़ां मिली ,

जो गया ख़ुदा का हबीब था ,

तू फ़िर से गुलशन आबाद कर ।

जो तूने ————————- ।।

 

वो करोना से जुदा हुए ,

सारी उम्र तुझ पर फ़िदा हुए ,

ना वबा का कोई कुसूर था ,

ये सब इंसान का ही फ़ितूर था ,

ये क़हर हमारा नसीब था ,

बची उम्र को ना बर्बाद कर ।

जो तूने ———————— ।।

 

किसी के जाने से कमी नहीं ,

ये दुनियां आज तक थमीं नहीं ,

जो मिल रहा वो ग़नीमत है ,

अभी कुछ दिनों की अज़ीयत है ,

वो दीन – दुनिया का रक़ीब था ,

उसे रिश्तों से आज़ाद कर ।

जो तूने ———————— ।।

 

दवा अस्पताल का बहाना था ,

क़ज़ा को उन्हें ले जाना था ,

जो बचा है उसका बन रहनुमा ,

कहीं सब हो जाए ना धुंआं ,

बहारों का वो अक़ीब था ,

उसकी यादों को पुरताब कर ।

जो तूने ————————- ।।

 

इक बार मिलती है ज़िन्दगी ,

कर शुक्र अल्लाह की बन्दगी ,

जो बचा है उसको सहेज ले ,

तू गिले-शिकवे सारे समेट ले ,

फ़लसफ़ा ये तेरा अजीब था ,

‘ सलमा ‘ तू अपना दिल शाद कर ।

जो तूने ————————– ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ न हमदम न साथी न… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “न हमदम न साथी न“)

✍  न हमदम न साथी न… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

गरीबों की ख़ातिर घरौदा बनाना

न मस्जिद शिवाला कलीसा बनाना

न मांगी दुआ में कभी कोठी गाड़ी

मुझे सिर्फ़ इंसान अच्छा बनाना

नहीं एक के वश की है बात समझो

हमें स्वच्छ भारत है अपना बनाना

समुंदर से खारे हुए नाम पाकर

अगर बन सको खुद को झरना बनाना

न हमदम न साथी न हमराज़ जायज़

मुझे सिर्फ तुम अपना साया बनाना

अलग तेरी पहचान तब ही बनेगी

नया अपनी मंजिल का रस्ता बनाना

डुबाने में सारी ही दुनिया लगी है

अरुण सबको तुम पर किनारा बनाना

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 09 – सारी करुण कहानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – सारी करुण कहानी है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 09 – सारी करुण कहानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

आडम्बर को ओढ़े

जो तस्वीर सुहानी है

आहत अहसासों की

सारी करुण कहानी है

 

यहाँ दिखाई देता जो

खुशियों का मेला है

पाखंडों का भरा हुआ

संपूर्ण झमेला है

इस हरियाली की पीड़ा

तो रेगिस्तानी है

 

नई सभ्यता खड़ी यहाँ

संस्कृति की लाशों पर

नकली फूल उगाये हैं

उजड़े मधुमासों पर

है जहरीली हवा

नदी का दूषित पानी है

 

आतंकी रातों का

खूनी यहाँ सबेरा है

हर विकास के पथ पर

पसरा कुटिल अँधेरा है

भागमभाग मची है

लेकिन नहीं रवानी है

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 86 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 86 – मनोज के दोहे… ☆

1 धार

नदिया के तट बैठकर, देखी उसकी धार।

मीन करे अठखेलियाँ, कभी न मानी हार।।

2 लहर

सुख-दुख की उठती लहर, हर दिन आती भोर।

तैराकी होता वही,   पार करे बिन शोर।।

3 प्रवाह

नद-प्रवाह जीवन-मधुर, सागर होता खार।

कंठ प्यास की कब बुझी,यह जीवन का सार।।

4 भँवर

मानव फँसता भँवर में, जो निकला वह वीर।

संयम दृढ़ता धैर्य से, बन जाते रघुबीर।।

5 कूल

कलकल बहती है नदी, शांत मनोरम कूल।

तन-मन आह्लादित करे, मिटें हृदय के शूल।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तूफान ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – तूफान ??

वह प्याले में

उठे तूफान के

किस्से सुनाता रहा,

अपने भीतर,

एक समंदर लिए

मैं चुपचाप सुनता रहा..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 144 – “पृथ्वी की पलकों पर…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  पृथ्वी की पलकों पर)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 144 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ पृथ्वी की पलकों पर ☆

ओ ! पीली गुलाचिनी ।

घोल-घोल जाती हो-

साँसों मे चाशनी ॥

 

ओढ खूब लहराती

पीत वरन बहकावे ।

हल्दिया उठानों से

मोल लिये पहरावे ।

 

मौन अंग-अंग सधे

हरित पर्ण छन्दों पर ।

फैलाती रहती हो

गंधवती चाँदनी ॥

 

सम्हल फैल जाती हो

मंत्रपूत गाछो में ।

रोजखिला करती हो

जन-जन की बाछों में ।

 

प्राकृत शाद्वलता सी

फैली बिखरी होती ।

धीमी-धीमी मर्मर

खुशबू की गाछिनी ॥

 

पृथ्वी की पलकों पर

टँगे हुये सपनों सी ।

पानी के कलाशों पर

सोने के ढकनो सी

 

आँखें मटकाती उस

तन्वंगी भाभी सी ।

झाँक  रही डालोंसे

मुग्धा सुहासिनी ॥

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

15-06-2023 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – साधन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – साधन ??

असंख्य आदमियों की तरह

आज एक और

आदमी मर गया,

अपने पीछे वे ही

अमर प्रश्न छोड़ गया,

समकालीन प्रश्न-

अब यह आदमी नहीं रहा

ऐसे में हमारा क्या होगा?

सार्वकालिक प्रश्न-

जन्म से पहले

आदमी कहाँ था,

मृत्यु के बाद

आदमी कहाँ जाएगा?

लगता है जैसे

कई तरह के प्रयोगों का

रसायन भर है आदमी,

जीवन की थीसिस के लिए

शोध और अनुसंधान का

साधन भर है आदमी।

(कवितासंग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’)

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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