हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 80 ☆ तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 80 ☆

✍ तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

वक़्त का क्या है ये लम्हे नहीं आने वाले

मुड़के इक बार जरा देख तो जाने वाले

 *

हम बने लोहे के कागज़ के न समझ लेना

खाक़ हो जाएगें खुद हमको जलाने वाले

 *

बच्चे तक सिर पे कफ़न बाँध के   घूमें इसके

जड़ से मिट जाए ये भारत को मिटाने वाले

 *

तुम वफ़ा का कभी अपनी भी तो मीज़ान करो

बेवफा होने का इल्ज़ाम लगाने वाले

 *

वोट को फिर से भिखारी से फिरोगे दर दर

सुन रिआया की लो सरकार चलाने वाले

 *

सामने कीजिये जाहिर या इशारों से बता

अपने जज़्बातों को दिल में ही दबाने वाले

 *

हम फरेबों में तेरे खूब पड़े हैं अब तक

बाज़ आ हमको महज़ ख़्वाब दिखाने वाले

 *

तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे

शर्म खा अपने फ़क़त गाल बजाने वाले

 *

तेरे खाने के दिखाने के अलग दाँत रहे

ताड हमने लिया ओ हमको लड़ाने वाले

 *

पट्टिका में है अरुण नाम वज़ीरों का बस

याद आये न पसीने को बहाने वाले

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 76 – जाँ निसारी का हुनर है आशिकी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – जाँ निसारी का हुनर है आशिकी।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 77 – जाँ निसारी का हुनर है आशिकी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

मौत ने, अहसान हम पर ये किया

उसने मेरा कत्ल, किश्तों में किया

 *

हमको, धोखे के सिवा कब, क्या मिला

बात पर तेरी, यकीं हमने किया

 *

नोंचकर, चट्टान का मुँह, आए हैं 

जंग का ऐलान, यूँ हमने किया

 *

वो, भिखारी या फरिश्ता कौन था 

उसको दुतकारा, बुरा तुमने किया

 *

जाँ निसारी का हुनर है आशिकी 

जलकर, परवाने ने पुख्ता ये किया

 *

पाँव फिसला, गोद में आकर गिरे 

तुमने ये अहसान अनजाने किया

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 149 – पुणे शहर की यह धरा… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – बदल गया है आज जमाना। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 149 – पुणे शहर की यह धरा… ☆

पुणे शहर की यह धरा, मन में भरे उमंग।

किला सिंहगढ़ का यहाँ, छाई-शिवा तरंग।।

*

हरियाली चहुँ ओर है, ऊँचे शिखर पहाड़।

मौसम की अठखेलियाँ, मातृ-भूमि से लाड़।।

*

भीमाशंकर है यहाँ, अष्ट विनायक सिद्ध।

दगड़ू सेठ गणेश जी, मंदिर बहुत प्रसिद्ध।।

*

महाबलेश्वर की छटा, फिल्म जगत की जान।

शिव मंदिर प्राचीन यह, हरित प्रकृति की शान।।

*

छत्रपति महाराज की, धरा रही यह खास।

जन्म भूमि शिवनेरि की, नगरी आई रास।।

*

मराठा साम्राज्य का, केन्द्र बिंदु यह खास।

मुगलों के हर आक्रमण, प्रतिउत्तर आभास।।

*

छल-छद्मों को मार कर, जीते थे हर युद्ध।

गले लगाया प्रजा को, बनकर गौतम बुद्ध।।

*

मुगलों का हो आक्रमण, अंग्रेजों से युद्ध।

पुणे-मराठा अग्रणी, यश-अर्जन  सुप्रसिद्ध।।

*

पेशवाइ साम्राज्य का, प्रमुख रहा यह केंद्र।

स्वाभिमान स्वातंत्र्य की, ज्योति जली रमणेंद्र।।

*

विदेशों से कम नहीं, पूना का परिवेश।

ऊँची बनीं इमारतें, देतीं शुभ संदेश ।।

*

शिक्षा का यह केंद्रबिंदु, रोजगार भरपूर।

शांत सौम्य वातावरण, दर्शनीय हैं टूर।।

*

आई टी का हब बना, विश्व में चर्चित नाम।

देश विदेशी कंपनियाँ, करें रात-दिन काम।।

*

बैंगलोर मुंबई नगर, प्रसिद्ध हैदराबाद।

पुणे शहर की शान को, सब देते हैं दाद।।

*

भारत का छठवाँ शहर, बना हुआ अनमोल।

शहर बड़ा यह काम का,सभ्य सुसंस्कृति बोल।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 309 ☆ कविता – “घृणा से निपटना ही होगा…  …” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 309 ☆

?  कविता – घृणा से निपटना ही होगा…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

मुफ्त  है

घृणा,

वही बंट रही है

दुनियां भर में

मुलम्मा चढ़ाया जाता है

घृणा पर

श्रेष्ठता और गर्व का

राजनैतिक दलों द्वारा

वोटों का सौदा करने

उम्दा जांचा परखा

फार्मूला है यह

एक वर्ग के

मन में

दूसरे के प्रति

नफरत भरना

आसान है।

 

कहीं जाति

कहीं मूल निवासी

कहीं सोशल स्टेटस

कहीं गोरा काला

इत्यादि इत्यादि

के वर्ग बनाना सरल है

निंदा , ईर्ष्या की फसलें खरपतवार सी उपजती हैं ।

मुश्किल है

पराली के धुएं सी

 छा जाती इस

धुंध से पार पाना

पर

इस मुश्किल से

है निपटना दुनियां को हर हाल में।

चुनौती है

जहरीले झाग से

यमुनोत्री से आती

मछलियों के

सुकोमल

मन तन को बचाना

पर बचाना तो है ही

घृणा के बारूद से दुनियां।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 209 – शुभ दीपावली ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “जल संरक्षण”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 208 ☆

🪔🪔शुभ दीपावली 🪔🪔

सारे जग में होती पूजा, धन श्री लक्ष्मी माता है।

दरिद्रता को दूर भगाती, चंचलता की दाता है।।

 *

घर-घर होती साफ सफाई, बच्चों की खुशहाली है।

काली रात अमावस आई, बिखरी छटा निराली है।।

जन-जन को यह पावन करती, सुख समृद्धि से नाता है।

सारे जग में होती पूजा, धन श्री लक्ष्मी माता है।।

 *

देवासुर संग्राम भयानक, अमृत को लालायित थे।

क्षीरसागर के गर्भ गृह में, कोटि रतन समाहित थे।।

समुद्र मंथन किया सभी ने, देव वेद के ज्ञाता थे।

सारे जग में होती पूजा, सुख समृद्धि से नाता है।।

 *

बनते मंदराचल मथानी, सर्प वासुकी डोर बने।

मंथन करते खींचातानी, देव दानव दोनों तने।।

निकले चौदह रत्न वहाँ से, सबके मन को भाता है।

सारे जग में होती पूजा, सुख समृद्धि से नाता है।।

 *

 लक्ष्मी जी जब निकली बाहर, नारायण को प्यारी है।

श्री लक्ष्मी नारायण महिमा, दुनिया तुम पर वारी है।।

विष को धारण करते शंकर, तीन लोक सब गाता है।

सारे जग में होती पूजा, धन श्री लक्ष्मी माता है।।

 *

पीकर अमृत देव अमर है, दानव दल तो हारा है।

त्रेता युग में दशरथ नंदन, रावण कुल को तारा है।।

निशिचर मारे लौट अयोध्या, राम राज्य फिर आता है।

सारे जग में होती पूजा, सुख समृद्धि से नाता है।।

 *

द्वारे दीपक सजा आरती, मंगल बेला आई है।

ढोल नगाड़े आतिशबाजी, बाज रहे शहनाई है।।

शुभ लाभ की देते बधाई, दीपावली सजाता है।

सारे जग में होती पूजा, धन श्री लक्ष्मी माता है।।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 211 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 211 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

सब पाना चाहते थे

रति की प्रतिकृति

माधवी को ।

वरमाला हाथ में लिये

पूरे सभा मंडप में

घूम गई माधवी

किन्तु

किसी का सौभाग्य नहीं जगा ।

और माधवी

सबको प्रणाम अर्पित कर

प्रस्थित हुई

तपोवन की ओर।

(प्रश्न है

क्यों?

आसक्ति से विरक्ति ?

क्या

प्रायश्चित के लिये ?

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 210 – “सारे घर की खुशहाली…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत सारे घर की खुशहाली...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 210 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “सारे घर की खुशहाली...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

दादी अम्मा के कमरे

में रखी हुई अब भी ।

सारे घर की खुशहाली

की खुश नसीब चाभी

 

चाभी क्या वह एक

टीन का ताले का डिब्बा

जिसमें पता नहीं क्या

रखते थे घरके बब्बा

 

आधी रात गये रोजाना

सिक्के खनकाते थे

जिसमें बहती थी घर

की वह सौख्यवती राबी

 

बड़ी बहू उस डिब्बे को

गर हाथ लगा देती

या फिर बैठे पास श्वान

को जबरन भगवा देती

 

सारे घर को एक महा

भारत तब सहना होता

घर की सभी औरते पूछें

क्या करना भाभी ?

 

दादी मरी शान से, उसका

क्रिया करम हुआ

ताला लगी बकसिया का

भी परदाफाश हुआ

 

जिसमें निकली एक पथरिया

चाँदी का सिक्का

केवल यह सम्पत्ति जिसे

पाने थी  बेताबी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

14-10-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 195 ☆ # “सत्य-असत्य और आम आदमी…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सत्य-असत्य और आम आदमी…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 195 ☆

☆ # “सत्य-असत्य और आम आदमी…” # ☆

सत्य और असत्य के द्वंद में

आम आदमी पिसता  है

सदियों के इस जंग में

आम आदमी पिसता है

दुनिया के पुराने ढंग में

आम आदमी पिसता है

हर घड़ी बदलते हुए रंग में

आम आदमी पिसता है

उस के लिए

सत्य क्या है ?

उसके लिए

असत्य क्या है ?

 

सत्य है –

रोजमर्रा की कठिनाई  

बढ़ती हुई मंहगाई

बच्चों की पढ़ाई

बीमार पत्नी की दवाई

 

सर पर आवारा छत

जीवन की होती हुई गत

कौड़ी के मोल बिकते हुए मत

बस्ती की दारू की लत

 

भूख मिटाने के लिए रोटी

परिवार बड़ा, कमाई छोटी

न्याय पाने की उम्मीद खोटी

शरीर पर बची सिर्फ लंगोटी

 

हर पल संघर्ष में बीता है

हर बार हारा कब जीता है

हर बार कड़वे घूंट पीता है

उसका जीवन जलती हुई चिता है

 

उसके लिए असत्य है –

मन लुभावने वादे

झूठे पाखंड भरे इरादे

दिखते सीधे सादे

कोई वादा तो निभादे

 

सुनहरे रंगीन सपने

अब दिन बदलेंगे अपने

ख्वाब लगे है पकने

खुशी में माला लगे है जपने

 

भेदभाव मिटा देंगे

ऊंच-नीच हटा देंगे

वैमनस्य घटा देंगे

सीने से सटा देंगे

 

न्याय सुलभ सस्ता होगा

हर चेहरा हंसता होगा

हृदय में इश्वर बसता होगा

जीवन खुशीयों का गुलदस्ता होगा

 

हर हाथ को मिलेगा काम

कोई नहीं होगा नाकाम

भूखमरी का नही होगा नाम

रोटी का होगा इंतजाम

 

आम आदमी जिसे चाहें चुन लें

वो सब सिर्फ जुमले है

दिखावें की सब बातें है

यथार्थ में सब धुंधले है

 

इसलिए आम आदमी

सत्य असत्य के

फेर में नहीं पड़ता है

ना ही भविष्य के लिए

लक्ष्य गढ़ता है

जीवन भर जो पाता है

उसे अपना नसीब समझ

उसे पाने के लिए लड़ता है  /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – ऐसे पुरुष महान बनो… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता ऐसे पुरुष महान बनो…‘।)

☆ कविता  – ऐसे पुरुष महान बनो… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆ 

जीवन यह क्षण भंगुर है,

जीवन का श्रृंगार करो,

मानव जाति गर्वित हो,

हर सपने को साकार करो,

मानव हो दानव ना बनो,

मानव जीवन को पहचानो

अनंत रहे सुरभि जिसकी,

राज पुष्प का हार बनो,

शांत रहो पर्वत की तरह,

नत मस्तक रह उत्थान करो,

 समय आए जब संकट का,

 सागर का तूफान बनो,

मानव जीवन है अमूल्य रत्न,

 जीवन का सत्कार करो,

तूफानों से जूझ सके जो,

ऐसी सशक्त पतवार बनो,

शांति गीत का हो गुंजन,

ऐसा मोहक साज बनो,

रस माधुर्य का संगम हो,

ऐसा मोहक साज बनो,

याद ना धुंधली हो जाए,

उदित रवि के समान बनो,

नाम रहे सदियों जिसका,

ऐसे पुरुष महान बनो.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ टैटू… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ टैटू☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

कुछ स्त्रियों को

कहते हुये सुना

ये जो टैटू हैं ना

स्वर्ग तक साथ जाते हैं !

देह तो राख हो जाती है !

 

मेरी अंतरात्मा की

बाँहों पर

जंगल पहाड़

नदी निर्झर

चिड़िया तितली

सुरधनु बिजली

सूरज और उल्काएं

सारे

चाँद तारे

 

पाँवों पर नाव

पीठ पर समय की दीठ के

टैटू बने हैं

 

दो आँखों से दिखाई नहीं देते

तीसरी आँख की

दरकार है

 

मेरी रचनाओं में वो

आखर आखर

नज़र आयेंगे।

ये टैटू

सफर में मेरा

हर पल साथ निभाएंगे।।

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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