हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #189 – 75 – “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…”)

? ग़ज़ल # 75 – “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

बेचारगी में ग़म रहा बेहिसाब,

मुसलसल आता रहा बेहिसाब।

गरम ठंडा तूफ़ान खूब गुज़रा,

इनका भी रखना पड़ा हिसाब।  

अदब की महफ़िलें आबाद रहीं,

मेहरून्निसा संग आया महताब।

दुश्मन हर चाल सोचकर रखता,

दाव दोस्तों का खासा लाजवाब।  

फलक से डोली में आएगी हसीना,

‘आतिश’ यही नियति का इंतख़ाब।  

* इंतख़ाब – चुनाव

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘सार…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘The Essence of Life…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “~ सार ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – सार ??

कितना अलग है

एक आँख का

कई सपने देखना और

कई आँखों का मिलकर

एक सपना देखना,

माना कि व्याकरण में

एकवचन से

बहुवचन होना विस्तार है

पर जीवन की बारहखड़ी में

बहुवचन को

एकवचन में बदल पाना

संसार का सार है!

© संजय भारद्वाज 

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ The Essence of Life… ??

How different it is

to see many dreams

through one eye

and to see one dream of

many eyes together…

Agreed that there is an

expansion from singular

to plural in grammar,

But in life’s vowels and

consonants of grammar,

converting plural to singular

is the essence of the world..!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आयाम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – आयाम ??

दीवार पर

जो उभरता है,

मुझे, तुम्हें

वह चित्र

अलग कैसे दिखता है..?

देखने, मिटाने का

अपना आयाम,

अपनी रेखाएँ

खींचता है…,

दीवार पर नहीं,

आँख में चित्र

बसता है…!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 67 ☆ ।।जो जीवन शेष है कि वही जीवन विशेष है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ मुक्तक  ☆ ।।जो जीवन शेष है कि वही जीवन विशेष है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

ढल रही शाम बस चलने  की तैयारी है।

मत यूं सोचो किअभी करने की बारी है।।

आखिरी श्वास तक चलती साथ जिंदगी।

अभी तो भीतर बाकी क्षमता खूब सारी है।।

[2]

करते रहो मत सोचो कि  उम्र बची नहीं है।

कि शुभ मुहूर्त की डोली अभी सजी नहीं है।।

आज करो अभी करो अरमानों को पूरे तुम।

जान लो ये बात कि कल आता कभी नहीं है।।

[3]

जिंदगी को अवसाद नहीं आसान बना लो।

समस्या नहीं समाधान का फरमान बना लो।।

जो जीवन शेष है वह जीवन  ही विशेष है।

जाने से पहले पहले खुद को इंसान बना लो।।

[4]

साठ सालआयु पर जिम्मेदारी नई आती है।

वरिष्ठनागरिक की भूमिका भी निभाती है।।

आपकीअनुभवी उम्र बहुत मायने है रखती।

नई पीढ़ी समाज को ये राह दिखा जाती है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 131 ☆ “काम होना चाहिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित ग़ज़ल – “काम होना चाहिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #131 ☆ ग़ज़ल – “काम होना चाहिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

सिर्फ बाते व्यर्थ है, कुछ काम होना चाहिये

हर हृदय को शांति-सुख-आराम होना चाहिये।

 

बातें तो होती बहुत पर काम हो पाते हैं कम

बातों में विश्वास का पैगाम होना चाहिये।

 

उड़ती बातों औ’ दिखाओं से भला क्या फायदा ?

काम हो जिनके सुखद परिणाम होना चाहिये।

 

हवा के झोंको से उनके विचार यदि जाते बिखर

तो सजाने का उन्हें व्यायाम होना चाहिये।

 

लोगों की नजरों में बसते स्वप्न है समृद्धि के

पाने नई उपलब्धि नित संग्राम होना चाहिये।

 

पारदर्शी यत्न ऐसे हों जिन्हें सब देख लें

सफलता जो मिले उसका नाम होना चाहिये।

 

सकारात्मक भावना भरती है हर मन में खुशी

सबके मन आनन्द का विश्राम होना चाहिये।

 

आसुरी दुशवृत्तियों  के सामयिक उच्छेद को

साथ शाश्वत सजग तत्पर ’राम’ होना चाहिये।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “पुस्तकों के दोहे” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

“पुस्तकों के दोहे☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

सदा पुस्तकें सत्य की, होती हैं आधार।

सदा पुस्तकों ने किया, परे सघन अँधियार।।

देती पुस्तक चेतना, हम सबको प्रिय नित्य।

पुस्तक लगती है हमें, जैसे हो आदित्य।।

पुस्तक रचतीं वेग से, संस्कारों की धूप।

 पढ़ें पुस्तकें मन लगा, पाओ तेजस रूप।।

पुुस्तक गढ़े चरित्र को, पुस्तक रचती धर्म।

पुस्तक में जो दिव्यता, बनती करुणा-मर्म।।

पुस्तक में इतिहास है, जो देता संदेश।

पुस्तक से व्यक्तित्व नव, रच हरता हर क्लेश।।

पुस्तक साथी श्रेष्ठतम, सदा निभाती साथ।

पुस्तक को तुम थाम लो, सखा बढ़ाकर हाथ।।

पुस्तक में दर्शन भरा , पुस्तक में विज्ञान।

पुस्तक में नव चेतना, पुस्तक में उत्थान।।

पुस्तक का वंदन करो, पुस्तक है अनमोल।

पुस्तक विद्या को गढ़े, पुस्तक की जय बोल।।

विद्यादेवी शारदा, पुस्तकधारी रूप।

पुस्तक को सब पूजते, रंक रहेे या भूप।।

पुस्तक ने संसार को, किया सतत् अभिराम।

पुस्तक जीने की कला, पुस्तक नव आयाम।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दिल मेरा पशेमां है… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “दिल मेरा पशेमां है “)

✍ कविता ☆ दिल मेरा पशेमां है … ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मतलब नहीं है मुझको इधर से या उधर से

दिल मेरा पशेमां है तो दंगे की खबर से

रहमत से उसकी शुहरतें मिलते ही  हुआ क्या

नादान ख़ुदा मान रहा खुद को बशर से

रुसवाई न हो उसकी लिया चलते ये वादा

 गुज़रा भी नहीं फिर कभी मैं उसके नगर से

पत्थर की भले चोट पड़े देना समर है

सीखा है सबक मैंने ये फलदार शज़र से 

हर रात मेरे घर में रहे नूर मुसल्सल

कमतर नहीं महबूब मेरा दोस्त क़मर से

थे चंद सिपाही वो हुकूमत थी ब्रिटिश की

चूलें हिला के रख दी जवानों ने गदर से

गलियों में नहीं इसकी रहा पाक है दामन

गुजरा मैं इसी से न  सियासत की डगर से

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ज्योतिर्गमय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – ज्योतिर्गमय ??

अथाह, असीम

अथक अंधेरा,

द्वादशपक्षीय

रात का डेरा,

ध्रुवीय बिंदु

सच को जानते हैं

चाँद को रात का

पहरेदार मानते हैं,

बात को समझा करो

पहरेदार से डरा करो,

पर इस पहरेदार की

टकटकी ही तो

मेरे पास है,

चाँद है सो

सूरज के लौटने

की आस है,

अवधि थोड़ी हो

अवधि अधिक हो,

सूरज की राह देखते

बीत जाती है रात,

अंधेरे के गर्भ में

प्रकाश को पंख फूटते हैं,

तमस के पैरोकार,

सुनो, रात काटना

इसे ही तो कहते हैं..!

(रात्रि 3:31 बजे, 6.6.2020)

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #181 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे…।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 181 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆

पथिक

आती बाधा रोककर, पथिक चला है राह।

डिगा नहीं तूफान से,कभी न निकली आह।।

मझधार

नाव फँसी मझधार में,बहती धाराधार।

पानी बढ़ता जा रहा, कैसे जाऊँ पार।।

आभार

मान रहे हैं आपको,करो आप उद्धार।

अर्जी मेरी प्रभु सुनो ,मानेंगे आभार।।

उत्सव

जश्न मनाओ खूब तुम, मचती उत्सव धूम।

बादल आए घूम के,बरसेंगे वो झूम।।

छाँव

पथिक राह में ढूँढता, मिली नहीं है छाँव।

चलते -चलते थक गया,अब तक मिली न ठाँव।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #167 ☆ “संतोष के दोहे… कर्म पर दोहे” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “संतोष के दोहे ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 166 ☆

☆ “संतोष के दोहे …कर्म पर दोहे☆ श्री संतोष नेमा ☆

जीवन के किस मोड़ पर, जाने कब हो अंत

मिलकर रहिये प्रेम से, कहते  साधू संत

कोई भी न देख सका, आने वाला काल

काम करें हम नेक सब, रहे न कभी मलाल

कौन यहाँ कब पढ़ सका, कभी स्वयं का भाल

कोई भी न समझ सका, यहाँ समय की चाल

ईश्वर ने हमको दिये, जीवन के दिन चार

दूर रहें छल-कपट से, रखिये शुद्ध विचार

जीवन में गर चाहिए, सुख शांति “संतोष”

काम-क्रोध् मद-लोभ् से, दूर रहें रख होश

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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