हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 138 – कैसा होता प्यार बताओ… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कैसा होता प्यार बताओ।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 138 – कैसा होता प्यार बताओ…  ✍

कैसा होता प्यार बताओ

बोल उठा मैं

कहती जाओ, कहती जाओ।

गंध घुली लगती है आहट

ओस घुली सी आँखें मेरी

चपल चाँदनी में पाता हूँ

अपने मन की चाह घनेरी

जानो बूझो भेद बताओ

तुम कहती हो

कैसा होता प्यार बताओ।

शब्द उच्चरित करती हो जब

रेशम रूप दिखाई देता

करती हो संधान स्वरों का

अनहद नाद सुनाई देता

कैसी यह अनुभूति बताओ

तुम कहती हो

कैसा होता प्यार बताओ।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 137 – “क्षोभदग्धा थी संरचना…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  “क्षोभदग्धा थी संरचना)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 137 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

क्षोभदग्धा थी संरचना ☆

गंध गई पहचानी बस

मौलिक सम्बंधों पर

तुम करते सम्वाद रहे

अनगिनत प्रबन्धों पर

 

टीका टिप्पणियों की

जो थी वर्ग सिद्ध उपमा

कभी काम आयेगी

अपने फैली हरीतिमा-

 

की समर्थ कमियों की

बनपायी क्या अनुसूची

किसी नये व्यवहारशील

पौरुष के कन्धों पर

 

प्रकृति पगा वात्सल्य

क्षोभदग्धा थी संरचना

सहज हुई जाती है जिसकी

क्षीण, स्वर्ण वसना-

 

आभा, जिसके नभ

कोटर में छिपी नाद-संध्या-

से झरती स्वर लहरी दिखती

चंचल छन्दों पर

 

भव्य परावर्तन के किंचित

स्नेह जनित सत्रों

का जिन पर उत्सर्ग रहा

है सभी भोजपत्रों-

 

कोई नहीं समझ पाया

वरदानी परम्परा

और वार्ता लगे समझने

इन उपबन्धों पर

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

07-05-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – दो ध्रुवों के बीच ??

कभी उलझता रहा,

कभी सुलझता रहा,

अपने बनाये पथ पर

आप ही भटकता रहा,

एक अक्षर के अंतर से

दो ध्रुवों में रीत गया,

उलझन सुलझन में

जीवन बीत गया..!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 10:36 बजे, 19 नवम्बर 2022

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 128 ☆ # तुमने मेरा साथ दिया… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# तुमने मेरा साथ दिया… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 128 ☆

☆ # तुमने मेरा साथ दिया… # ☆ 

(श्री श्याम खापर्डे द्वारा उनके विवाह की स्वर्ण जयंती पर रचित भावप्रवण रचना। हार्दिक बधाई।)

तुमने हर पल, हर मोड़ पर

मेरा साथ दिया

तुमने दुःख भी बांटे

सुख में भी मेरा साथ दिया

 

तुमने हाथ थामा तो

कभी छोड़ा नहीं

वादा निभाने की कसम को

कभी तोड़ा नहीं

संग चलती रही, बस चलती रही

राह में हर कदम पर

मेरा साथ दिया

 

कभी कभी अंबर पर

बादल खूब गरजते रहे

कभी कभी घनघोर घटा बन

बरसते रहे

तुम आंचल में मुझको

छुपाती रही

हर बारिश में आंचल बन

मेरा साथ दिया

 

जब उम्मीदें नाउम्मीद

बन कर सो गई

मुझे तो लगा जैसे

जिंदगी खत्म हो गई

तब तुम सुबह की नई

किरण बन कर आई

अंधेरे में रोशनी बन

तुमने मेरा साथ दिया

 

जब भी मैं लड़खड़ाया

तुमने संभाला मुझको

जब भी डूबने लगा

तुमने बाहर निकाला मुझको

बिना तुम्हारे मेरा कोई

वजूद नहीं

मै एहसानमंद हूँ

जो तुमने मेरा साथ दिया /

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “दिन चिट्टा रात काली” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ कविता ☆ “दिन चिट्टा रात काली” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

सब मिलके समझे

है मजनू एक पागल

एक मजनू समझे

सब होवे पागल ।

 

मिलके सब आशिक

चिढ़ाए रुलाने मजनू

मजनू तेरी लैला कैसी

वो तो रंगसे काली ।

 

हँसे मजनू दिलसे

असली होवे आशिक

कहे अंधे अशिकानू

कैसे तुम्हे दिखाऊं ।

 

पावन किताब के पन्ने चिट्टे

उस पर लिखी सियाही काली रे

उठे जहाँ दिल की धड़कन

वहाँ  क्या गोरी क्या काली वे ।

 

दिन दौड़ता उसकी धूप चिट्टी

जलाते सूरज में छांव काली रे

है जहा छांव इतनी सुनहरी

वहाँ  क्या गोरी क्या काली वे ।

( सूफ़ी संत बाबा बुलेशाह जी का मशहूर पंजाबी कलाम “मेरा पिया घर आया ओ लालजी” पर आधारित )

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 138 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 138 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 138) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 138 ?

☆☆☆☆☆

सुना है बहुत बारिश है

तुम्हारे शहर में,

ज्यादा भीगना मत…

धुल गयी अगर

सारी ग़लतफ़हमियाँ,

तो बहुत याद आएँगे हम..!

☆ ☆

Just heard it’s pouring

a lot in your city

Don’t get wet too much…

else misunderstandings

will get washed away

and you’ll miss me a lot..!

☆☆☆☆☆

 तुमसे कहा था कि हर शाम

हमारा हाल पूछ लिया करो

तुम ही बदल गए हो तो अब

शहर में शाम ही नहीं होती..!

☆ ☆

Told you that every evening

inquire about my well-being

Since you’ve changed now

there’s no evening in my city!

☆☆☆☆☆

I’m Wrong, You’re Right

☆☆☆

किसी से अब उलझने

का मन ही नहीं करता,

तुम सही, मैं गलत में

ही बस बात ख़त्म…!

☆ ☆

I just don’t feel like getting into

argument with anyone anymore…

You are right, I am wrong, that’s it,

and the matter ends there only…!

 ☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 137 ☆ दोहा सलिला… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  दोहा सलिला)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 137 ☆ 

☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

मोड़ मिलें स्वागत करो, नई दिशा लो देख

पग धरकर बढ़ते चलो, खींच सफलता रेख

*

सेंक रही रोटी सतत, राजनीति दिन-रात।

हुई कोयला सुलगकर, जन से करती घात।।

*

देख चुनावी मेघ को, दादुर करते शोर।

कहे भोर को रात यह, वह दोपहरी भोर।।

*

कथ्य, भाव, लय, बिंब, रस, भाव, सार सोपान।

ले समेट दोहा भरे, मन-नभ जीत उड़ान।।

*

सजन दूर मन खिन्न है, लिखना लगता त्रास।

सजन निकट कैसे लिखूँ, दोहा हुआ उदास।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२-५-२०१८, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #188 – 74 – “भगवान जाने…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “भगवान जाने…”)

? ग़ज़ल # 74 – “भगवान जाने…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

पहली बार गर्मी को लोग तरस रहे हैं,

सावन के बादल झूम कर बरस रहे हैं।

कूलर बोरियत सी महसूस करने लगे हैं,

लू के मौसम में चलने को तरस रहे हैं।

बाज़ार ए सी बिल्कुल ठंडा पड़ गया है,

गन्ना चरखियाँ पूरी तरह नीरस रहे हैं।

लोग जतन में लस्सी के इंतज़ार में थे,

भजिया और पकौड़ा खाकर हरस रहे हैं। 

भगवान जाने क्या माया फैलाई आतिश,

पाकिस्तानी बादल भारत में बरस रहे हैं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सीढ़ियाँ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सीढ़ियाँ ??

आती-जाती

रहती हैं पीढ़ियाँ,

जादुई होती हैं

उम्र की सीढ़ियाँ,

जैसे ही अगली

नज़र आती है,

पिछली तपाक से

विलुप्त हो जाती है,

आरोह की सतत

दृश्य संभावना में,

अवरोह की अदृश्य

आशंका खो जाती है,

जब फूलने लगे साँस,

नीचे अथाह अँधेरा हो,

पैर ऊपर उठाने को

बचा न साहस मेरा हो,

चलने-फिरने से भी

देह दूर भागती रहे,

पर भूख-प्यास तब भी

बिना नागा लगाती डेरा हो,

हे आयु के दाता! उससे

पहले प्रयाण करा देना,

अगले जन्मों के हिसाब में

बची हुई सीढ़ियाँ चढ़ा देना!

मैं जिया अपनी तरह,

मरुँ भी अपनी तरह,

आश्रित कराने से पहले

मुझे विलुप्त करा देना!

© संजय भारद्वाज 

प्रातः 8:01 बजे, 21.4.19

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 66 ☆ ।।काँटों के बीच भी गुलाब सा खिलना सीख लो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ मुक्तक  ☆ ।।काँटों के बीच भी गुलाब सा खिलना सीख लो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

आईने सी जिंदगी मुस्कायो  तो मुस्काती  है।

बाँट कर देखो खुशी  दुगनी होकर आती है।।

जीकर देखो सब के संग साथ जरा मिल कर।

यह जिंदगी सौगातों की झोली खोल जाती है।।

[2]

शिकवा शिकायत नहीं  शुकराना सीख जायो।

हर किसीके आदर में झुक जाना सीख जायो।।

कुछ धीरज और कुछ प्रभु   पर विश्वास रखो।

ईश्वर की मर्जी में राजी हो  पाना सीख जायो।।

[3]

आदमी को हराना नहीं दिल जीत जाना सीखो।

किताबें पढ़ कर उसे  आचरण मे लाना सीखो।।

तुम्हारे कर्म शब्दों  से  अधिक   होते हैं प्रभावी।

आत्मा मन वाणी बस प्रेम की भाषा लाना सीखो।।

[4]

बसा कर प्यार का शहर नफरत मिटाना सीख जायो।

समय पर हर आदमी के काम आना सीख जायो।।

इसी जमीं पर स्वर्ग सी बन सकती तुम्हारी दुनिया।

बस काँटों बीच गुलाब सा खिलखिलाना सीख जायो।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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