हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 136 ☆ सॉनेट – शुभेच्छा… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  “सॉनेट – शुभेच्छा”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 136 ☆ 

☆ सॉनेट – शुभेच्छा ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

नहीं अन्य की, निज त्रुटि लेखें।

दोष मुक्त हो सकें ईश! हम।

सद्गुण औरों से नित सीखें।।

काम करें निष्काम सदा हम।।

नहीं सफलता पा खुश ज्यादा।

नहीं विफल हो वरें हताशा।

फिर फिर कोशिश खुद से वादा।।

पल पल मन में पले नवाशा।।

श्रम सीकर से नित्य नहाएँ।

बाधा से लड़ कदम बढ़ाएँ।

कर संतोष सदा सुख पाएँ।।

प्रभु के प्रति आभार जताएँ।।

आत्मदीप जल सब तम हर ले।

जग जग में उजियारा कर दे।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-२-२०२२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #187 – 73 – “ख़याल ज़माने से छुपा कर ख़ुश हूँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ख़याल ज़माने से छुपा कर ख़ुश हूँ…”)

? ग़ज़ल # 73 – “ख़याल ज़माने से छुपा कर ख़ुश हूँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

इश्क़ की शम्मा जला कर ख़ुश हूँ,

मैं दिल में दर्द बसा कर ख़ुश हूँ।

 दिल जो धड़कता ज़िंदगी के लिए,

महबूब से दिल लगा कर ख़ुश हूँ।

जिस नाम से भर आती थी आँख,

अब उससे नज़रें बचा कर ख़ुश हूँ।

गीत ग़ज़ल में झूमता फिरता जो,

ख़याल ज़माने से छुपा कर ख़ुश हूँ।

तोड़ नहीं पाया रिवायत की जंजीरें,

पिंजरा खोल परिंदा उड़ा कर ख़ुश हूँ।

मिट्टी महकती अगर उसे सींचो तो,

मुहब्बत में आंसू बहा कर ख़ुश हूँ।

तुम भी देखते रहो आतिश छुप कर,

मैं भी मासूम को हंसा कर ख़ुश हूँ।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विदेह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – विदेह ??

जगत में रहकर

जगत से निर्लिप्त रहने की

वृत्ति पर मुस्कराती रही,

विदेह होने के लिए

पहले देह होने का पाठ

प्रकृति पढ़ाती रही…!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 5:20 बजे, 21.10.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 65 ☆ ।।इसी जन्म में हर करनी का हिसाब होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।इसी जन्म में हर करनी का हिसाब होता है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 65 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।इसी जन्म में हर करनी का हिसाब होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हमेशा खुश रहो ख्वाबों  और ख्यालों में।

जिंदगी के हर  जवाब और सवालों में।।

हर हालात में मोड़  लीजिए जिंदगी ऐसे।

खुश ही रहो तर  और सूखे निवालों में।।

[2]

चार दिन की यह जिंदगी हंस कर निभाना है।

थोड़ा थोड़ा रोज़ खुद कोअच्छा  बनाना है।।

एक मूरत की तरह ही रोज़ गढो खुद को।

फिर पूरी तरह खुद को संवार कर लाना है।।

[3]

तन से सुंदर नहीं पर मन से भी सुंदर बनना है।

अपने को दूसरों लिए उपयोगी सिद्ध करना है।।

गर उड़ना तो क्या कद देखना आसमान का।

परों से नहीं हौसलों से ऊंची उड़ान भरना है।।

[4]

बबूल की तरह नहीं आम की तरह उगना है।

फल लगे पेड़ सा  औरों के लिए झुकना है।।

हर दिल के कोने में  जगह बनानी है अपनी।

हर परमार्थ कार्य के लिए जीवन में रुकना है।।

[5]

तेरी वाणीऔर काम से ही नामो खिताब होता है।

प्रभु पास खुला तेरा हर खाता किताब होता है।।

बस अच्छे कर्म अच्छी  यादें जायेंगी साथ तेरे।

इसी जन्म में हर करनी   का हिसाब होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 129 ☆ “श्रद्धायें-निष्ठायें टूटीं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित ग़ज़ल – “श्रद्धायें-निष्ठायें टूटीं…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #129 ☆ ग़ज़ल – “श्रद्धायें-निष्ठायें टूटीं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

परिवर्तन की आँधी आई, धुंध छाई अँधियार हो गया

जड़ से उखड़े मूल्य पुराने, तार-तार परिवार हो गया।

उड़ी मान मर्यादायें सब मिट गई सब लक्ष्मण रेखायें

कंचनमृग के आकर्षण में, सीता का संसार खो गया।

श्रद्धायें-निष्ठायें टूटीं, बढ़ीं होड की परम्परायें

भारतीय संस्कारों के घर पश्चिम का अधिकार हो गया।

पूजा और भक्ति की मालाओं के मनके बिखरे ऐसे

लेन-देन की व्याकुलता में जीवन बस बाजार हो गया।

गांवों-खेतों के परिवेशों में रहते संतोष बहुत था

दुखी बहुत मन, राजमहल का जब से जुनू संवार हो गया।

मन की तन की सब पावनता युगधारा में बरबस बह गई

अनाचार जब से इस नई संस्कृति का शिष्टाचार हो गया।

उथले सोच विचारों में फँस  मन मंदिर की शांति खो गई

प्रीति प्यार सब रहन रखा गये, जीना भी दुश्वार  हो गया।

रच एकल परिवार अलग सब भटक रहे है मारे-मारे

जब से सबसे मिल सकने को बंद घरों का द्वार हो गया।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “हनुमानजी पर दोहे” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

हनुमानजी पर दोहे☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

राम सिया के भक्त हैं, पवनपुत्र हनुमान।

 हैं बेहद ही दिव्य जो, सच में बहुत महान।।

 संकट को हरते सदा, रामदूत हनुमान।

राम काज करते सदा,  हैं बेहद बलवान।। ंंंं

सब अनिष्ट हों दूर नित, आये कभी न आंच।

हनुमत की ताक़त ‘शरद’, कौन सका है बांच।।

बजरंगी जीतें सदा, पराभूत हो पाप।

हनुमत की महती दया, दूर रहें संताप।।

रामभक्त हैं देव वे, फैलाते आलोक।

हर युग में हनुमान जी, परे करें हर शोक।।

बलवीरा हनुमान जी, व्यापक रखें विवेक।

मंगल करते नित्य ही, काम करें नित नेक।।

हनुमत दयानिधान हैं, कर लो उनका जाप।

जीवन हो सुखमय सदा, परे हटे हर शाप।।

कलियुग में है आसरा, परमवीर कपिराज।

करें दया तब ही बजे, अमन-चैन का साज़।।

पवनपुत्र की जय करो, जो हैं बल के धाम।

देवों के हैं देव जो, सदा सुपावन नाम।।

कलियुग में वरदान हैं, हनुमत दयानिधान।

 करते हैं जो भक्त की, सदा सुरक्षित आन।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तथास्तु…! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – तथास्तु…! ??

मांग ले जो चाहे भला

कह दूँगा मैं तथास्तु..!

जिससे कभी कुछ नहीं मिला,

उसी प्रारब्ध ने यकायक कहा..,

किसी स्लाइड शो-सा

जीवन सम्मुख घूमने लगा,

और गले से स्वर निकला,

अब तक जो भी मिला

परिश्रम से ही मिला,

अखंड कर्मरत रहने की

सदा टिकी रहे जिजीविषा..,

इतना ही कहना था, …अस्तु!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 8:42 बजे, 9.4.2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #178 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 178 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे … ☆

आभार

नाम लिया है आपने,  मान रहे आभार

शब्द नहीं हैं कोश में,  करो प्रेम स्वीकार।।

ज्वार

ज्वार बाजरा खा रहे, है सेहत का राज।

ताकत अब बढ़ने लगी, बोझ न लगता काज।।

पुलकन

मन पुलकित अब हो गया, आई मेरे द्वार।

पुलकन मन की जान लो, तुम ही मेरा प्यार।।

सुकुमार

लिखा प्रकृति पर पंत ने, कवि-मन है सुकुमार

शब्द -शब्द से झाँकता, पर्यावरण अपार।।

चितवन

चितवन तेरी देखकर, मन है हुआ अधीर।

बढ़ी मिलन की प्यास है, होती मन में पीर।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #165 ☆ “संतोष के दोहे… घड़े पर दोहे” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “संतोष के दोहे घड़े पर दोहे. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 165 ☆

☆ “संतोष के दोहे …घड़े पर दोहे☆ श्री संतोष नेमा ☆

गर्मी आते ही मुझे, खूब चाहते लोग

प्यास बुझाता आपकी, जो करते उपयोग

मिट्टी से रुँधा गया, हूँ मिट्टी का लाल

मुझसे परहित सीखिए, खा ठोकर बन ढाल

अहम करे किस बात का, हे मूरख इंसान

मिट्टी का तन बाबरे, फिर झूठी क्यों शान

बार बार मिलती नहीं, यह मानव की  देह

कहे घड़ा शीतल रहो, करो सभी से नेह

घट-पानी सेवन करें, जो भी सज्जन लोग

मिले उन्हे “संतोष” भी, दूर भगें बहु रोग

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विस्मय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – विस्मय ??

रोज़ निद्रा तजना,

रोज़ नया हो जाना,

सारा देखा-भोगा

अतीत में समाना,

शरीर छूटने का भय

सचमुच विस्मय है,

मनुष्य का देहकाल ;

अनगिनत मृत्यु और

अनेक जीवन का

अनादि समुच्चय है..!

© संजय भारद्वाज 

17 सितम्बर 2017

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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